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अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन

विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन

दिनांक:17 जनवरी 2021,

समय :- सुबह 11 बजे से (भारत)

अध्यक्ष: प्रो. नीलू गुप्ता, कैलिफोर्निया, अमेरिका

मुख्य अतिथि : प्रो. हितेंद्र मिश्रा, पू.प. विश्वविद्यालय, शिलांग, मेघालय, भारत

सान्निध्य: प्रो. विनोद कुमार मिश्र, महासचिव विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस

विशिष्ट अतिथिगण :

1. श्री हरिहर झा, मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया

2. डॉ. नूतन पांडेय, दिल्ली, भारत

आमंत्रित कविगण

1. शीतल जैन, सिंगापुर 2. कविराज बाबू, मॉरीशस 3. संजीव शर्मा, भारत 4. झुम्मुन, मॉरीशस 5. अंजलि, मॉरीशस 6. राज हीरामन, मॉरीशस 7. कैलाश, मॉरीशस8. शिक्षा गजाधार, मॉरीशस9. संदीप सिंधवाल, पपुआ न्यू गिनी

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उत्तरायण हो चलो प्रभाकर

उत्तरायण हो चले प्रभाकर
अंधेरो की लंबी रात गयी
चाहूं ओर फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुवन सा सारा।।
खेतों में हरियाली झूमती
धान- गेहूँ की बाली कलियों का खिलना भौरों का गुंजन फूलों की गमक नव जीवन जांगरण चेतना।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
मधुर राग कोयल की प्रातः बेला
मंदिर में घंटे घड़ियालों की संध्या पूजा
सूर्य , शनि पिता पुत्र का संगम
शुभ काल कलेवर का अभिनंदन
उल्लास उदित प्रातः संध्या का युग मेला।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
सर्द शाम की आग ताप में
तिलकुटिया गुड़ ढोल नगाड़ो की
थाप पंजाबियत की लोहड़ी का प्यारा पंजाब।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
धान की फसलें आयी मनोकामना की
पूर्णतया गांव किसान के संग लायी गांव किसान की अविनि खुशिया संसार पोंगल निराला प्यारा परम्परा पर्व शान।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
पूर्वोत्तर की शान निराली
हरियाली मुस्कान का प्राणी प्राण
विहू धन धान्य का स्वागत विश्वाश।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
हर प्रातः सूर्य का पूरब में उदय उदित
लाली लालिमा जीवन का याथार्त
विहू मानव की खुशी खूबसूरती का
प्रबाह।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
पावन नदियों में स्नान दान पुण्य
जीवन का धर्म मर्म सत्य सनातन
भारत की विश्व पहचान।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
तिल -तिलकुट चुड़ा -दही
नैवेद्य संस्कार की संस्कृति
मकर संक्रांति का उपहार।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
पतंग उड़ाते बच्चे बूढ़े जवान
हर हृदय भावों में जश्न जोश
लहलाती फैसले आशाओं के मंगलमय
मधुमास बसन्त का दस्तक स्वागत
मकर संक्रांति उल्लास।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
भारत भूमि की बात निराली
जहाँ ऋतुये मौसम भी न्यारी प्यारी
हर मौसम ऋतुओं का निराला भाव
त्योहारों की मस्ती मानव हद हस्ती का अंदाज़ ।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगता हेतु-एक गीत प्रेम वेदना के नाम

 मम वेदना का एक अंश, 

सम्भाल लो तो जान लूं। 

संतप्त मरु दृग नीर बिन्दु, 

खंगाल लो तो जान लूं।

              मेैं निरा निर्धन जगत का,

              एक खोटा द्रव्य हूं।

              निज भार के अतिरिक्त ढोता,

              श्रमिक मैं अति श्रव्य हूं।

असीम कंटकपूर्ण जंगल पथ मेरा, जिस पर चला,

              मेरे पगों का एक शूल,

              निकाल लो तो जान लूं।

                             मम वेदना का…..!

              जैसे जलद है जान जाता,

              भू की उजली प्यास को।

              बिन कहे सुन ले पवन,

              फूलों की बुझती सांस को।

हिलते अधर, रुंधती नज़र,निर्वाक कंठ रहे मेरा,

             पलकों से छू मेरी व्यथा,

             पहचान लो तो जान लूं।

                        मम वेदना का…..!

             ऐसा मिलन तन-मन से हो,

             छत का मिलन आंगन से हो।

             ऐसे बने सम्बन्ध अपना,

            जल का ज्यों जीवन से हो।

जीवन डगर हो सरल ऐसे ,जल में जैसे मीन का,

            हँसी में कही कटु बात हँसकर,

            टाल दो तो जान लूं।

                      मम वेदना का…..!




पतंग सी लहराए दिल

  1. पतंग सी लहराए दिल
    ऊंची जीवन की उड़ान हो,
    तील और गुड़ जैसा मीठा बनें
    सबके होठों पर मुस्कान हो!!
    पावन पर्व संक्रांति की,
    प्रकाशित सबके जीवन को करे
    नई ऊर्जा, नया उल्लास,
    प्रेम और विश्वास
    हर दिल में भरे!!



मन ही मन

मन ही मन..
—————————
मेरे मन के ख्याल….!
मौन साक्षी हैं
कितने ही बार
तेरे मनआगमन पर आने पर
मनाई है मन ही मन दीपावली

कितनी बार ही कोसा है
जब कोई भंग किया है ख्याल
उस पर तुम्हारे साच्क्षात
अनचाही रख़्सतो पर
जतायी है मातम
मन ही मन…!

करते रहे हैं प्रतिक्षा
बुनते हैं रहे हैं सन्नाटे
पल प्रति पल
बरस दर बरस
सोख लेते हैं विषाद
देते हैं आमंत्रण
सुखद स्मृतियों और
करते हैं क्षमायाचना
मन ही मन…!

जो ठेस पहुँचाई हो कभी
इन तमाम संभावनाओं के साक्षी
तुम मेरे मन के प्रीत
मीत मौन ही गुनते अब
इतिहास के साक्षी होने का
तठस्थ होकर
वर्तमान भूत भविष्य को भोगते
मन ही मन…!

-समि…..✍

 




मन ले चल

मन ले चल.. डॉ.प्रदीप शिंदे
सुबह सुरज की किरन
नींद से जगाती आंगन
गांव पाठशाला शिक्षक
शिक्षा मिली अनमोल
समान इतवार सोमवार
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
                       
पनघट घड़े लेकर दुल्हन
पायल की सुंदर छम छम
अनेक खेलों में मन मेल
हार जित में नोंक झोंक
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
                       
मेले घुमना झुले झुलना
खुशी से झुम उठना
दादी की कहानी सुनना
खुले आकाश ख्वाब देखना
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
                         
रुठने मनाने के हसीन दिन
हंसते रोते वे खुले दिल
शाबाशी से पीठ थपथपाना
थप्पड़ में भी स्नेह पाना
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
प्रा.डॉ.प्रदीप शिंदे  7385635505




मन ले चल

मन ले चल.. डॉ.प्रदीप शिंदे
सुबह सुरज की किरन
नींद से जगाती आंगन
गांव पाठशाला शिक्षक
शिक्षा मिली अनमोल
समान इतवार सोमवार
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
                       
पनघट घड़े लेकर दुल्हन
पायल की सुंदर छम छम
अनेक खेलों में मन मेल
हार जित में नोंक झोंक
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
                       
मेले घुमना झुले झुलना
खुशी से झुम उठना
दादी की कहानी सुनना
खुले आकाश ख्वाब देखना
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
                         
रुठने मनाने के हसीन दिन
हंसते रोते वे खुले दिल
शाबाशी से पीठ थपथपाना
थप्पड़ में भी स्नेह पाना
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
प्रा.डॉ.प्रदीप शिंदे  7385635505




मकर संक्रांति आई हैं

मकर संक्रांति आई हैं

मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें हैं जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं,

मन में नई मस्ती आई हैं
तन में भी चुस्ती आई हैं
गुलज़ार सभी अब बस्ती हैं
समान सभी तो हस्ती हैं
कोई ऊंच नीच दुनियाँ में
यह बात बताने आई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें हैं जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं ,

हर चेहरा हैं हँसता हँसता
फूल कली भी खिलता खिलता
तितली बाँगो में आई हैं
मचलती लेती अंगड़ाई हैं
भौरों को नहीं सुहाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें हैं जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं ,

गुड़ तिल औऱ मूंगफली
दान पुण्य और मिला मिली
रंगे बिरंगे पतंगों का डोर
भरा आकाश का ओर छोर
बढतें रहना सबसें आगें
छोड़कर हर मुश्किल पाछें
कटें ना काँटे किसी के धागे
छोड़ भँवर में क़भी ना भागें
यह बात सबकों बतलाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं ।।

©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
   देवरिया उत्तर प्रदेश