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मेरा वतन

*मेरा* *वतन*
वतन है या तन है मेरा
प्राण न्योछावर इस पर कर जाऊं मैं
सांस है या लहू है मेरा
भारत पर न्योछावर हो जाऊं मैं

फूल है या है कोमल हृदय
इस पर स्वाभिमान लुटाऊं मैं
स्वर है या उन्माद है इसका
गीत इसी के गाऊं मै

उपज इसकी या सोंधी खुशबू
वतन की मिट्टी में लौट जाऊं मैं

मेरी अभिलाषा….
मिले मौका तो ……….. फूल सा बन
अपनी खुशबू से इसको महकाऊं मैं
अपनी जान कुर्बान कर जाऊं मैं
मातृभूमि का वीर कहलाऊं हूं मैं,
वतन का वीर कहलाऊं मैं।
ऋतु गर्ग
स्वरचित, मौलिक रचना
सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल




लोहड़ी

लोहड़ी आई ,लोहड़ी आई
सौगात खुशियो का है लायी।।
तिलकुटिया रेवड़ी मिले
जले ज्वाला की तेज अलाव।
सर्दी का मौसम उल्लास की गर्मी उत्साह।।
लोहड़ी आई ,लोहड़ी आई।।
सौगात खुशियो का है लायी।।
भांगड़ा गिद्दा डोल नगाड़ो की बाजे थाप गुरुओं की बलिदानी मिट्टी की
सुगन्ध से रौशन हुआ पंजाब।।
लोहड़ी आई लोहड़ी आई
खुशियो की सौगात है लाई।।
खेतो में हरियाली पीले सरसों के
फूल मन आँगन घर आँगन
आशा विश्वासों का संचार लाई।।
लोहड़ी आई लोहड़ी आई
खुशियो की सौगात है लाई।।

लोहड़ी की ढेरों शुभकामनाएं
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर




घर

घर

डॉ. नानासाहेब जावळे

 

     घर प्रिय नहीं होता, केवल मनुष्य को ही                 

     होता है, पशु-पंछियों को भी अपना घर प्यारा

     हड़कंप मचने के बावजूद, दुनिया में

     होती है कामना, बसेरा बना रहे हमारा।

 

     केवल घर बनाए रखने के लिए

     घर छोड़कर दौड़ते हैं, मनुष्य दिन-रात

     उनकी जद्दोजहद देखकर

     समझ में आती है, महत्ता घर की आज।

 

     घर होता है, आदमी के लिए                 

     और आदमी होता है, घर के लिए

     घर के प्रति यह असीम लगाव  

     अटूट होता है उससे नाता। 

 

      घर के होते हैं, दो अंग

      बाह्य रूप और अंतरंग

      दीवारें और साज-सज्जा उसका बाह्य अंग

      विचार, आचार, व्यवहार घर के अंतरंग।

 

दुनिया वालों की दृष्टि में, घर के होंगे अनेक नाम

हाऊस, फॉर्महाऊस, ओपेरा हाऊस, हॉलिडे होम,                 

नाम के ही अनुसार होता है लगाव

उसके साथ जुड़ा, अपनत्व भाव।

 

   जहां आश्रय मिलता है 

   आवश्यकताएं पूर्ण होती है, वह हाउस

   खेत खलिहान पर जो होता है

   वह फार्म हाउस।

 

    जहां कलाओं का स्वाद लिया जाता है

    वह ओपेरा हाऊस 

    और जहां छुट्टियां मनाई जाती है 

    वह हॉलिडे होम।

 

               लेकिन भारतीयों के लिए

               घर माने केवल चार दीवारें नहीं

               वह मात्र मौज मस्ती 

               मनाने की जगह नहीं।

 

               घर परिवार जनों का विकल्प है

               घर का संबंध आप्त जनों से हैं

               जहां सुख-दुख बांटे जाते हैं

               जहां जीवन अर्थ धारण करता है।

 

     मकान किराए का हो सकता है 

     उसे कभी भी छोड़ा जा सकता है

     लेकिन जिन्हें कभी छोड़ा नहीं जा सकता

     ऐसे स्वजनों का निवासस्थान माने घर।

 

     जहां माता-पिता, पति-पत्नी, बाल-बच्चे

     इनमें केवल होते नहीं रिश्ते-नाते

     वहां होता है, परस्पर आदर और स्नेह 

     होती है परस्पर आत्मीयता और विश्वास।

 

     होता है प्रत्येक भारतीय को घर प्रिय यहां

     समझता है वह, घर की जिम्मेवारियां

     देख भारतीयों का परिवार प्रेम यहां

     आज भी दुनियां है, अचंभित वहां।  

 

               भारतीय परिवार व्यवस्था में

               मन होते हैं, परस्पर अटके हुए

               चाहे सुख हो, चाहे दुःख हो

               सभी होते हैं, एक-दूजे के लिए।

 

               होता है प्रत्येक घर

               जीवन शिक्षा का केंद्र यहां

               स्कूल में जाने के पुर्व ही

               घर में मिलते हैं, संस्कार यहां।

 

               मां होती है, पहला गुरु

               जिससे होती है, जीवन शिक्षा शुरू

               दादा-दादी के विचार, गीत

               घर होता है, ज्ञानपीठ।

 

               घर माने संस्कार धन

               घर करता है, परंपरा का वहन

               दुनिया में परिवर्तन होता रहेगा

               फिर भी घर बना रहेगा।

 

               घर वह भावनिक मसला है

               जिसपर राजनीति चलती है

               सपनों के घर बांटकर 

               चुनाव जीते जाते हैं।

 

               बढ़ती आबादी के कारण

               बढ़ती बेरोजगारी के कारण

               जगह की कमी के कारण

               घर विभाजित हो जाते हैं।

 

         आज वैश्वीकरण, बाजारीकरण के कारण

         घर-घर में स्पर्धा सी लग गई

         कई जगहों पर झोपड़पट्टी 

         तो कहीं विशाल अट्टालिकाएं बन गई।

 

               जब हम होते हैं मजबूर

               तभी जाते हैं घर से दूर

               फिर भी घर की याद सताती है

               हमें वापस बुलाती है।

 

               अनेक बार मनुष्य सुख में

               भूल जाता है, घर को अक्सर

               दुख, संकट, भयभीत होने पर

               चल पड़ता है, घर की ओर।

 

          आज दुनिया में करोड़ों हैं बेघर 

          हो चुके हैं, ध्वस्त लाखों के घर

          भले ही दुनिया हसीनों का मेला है

          फिर भी घर के बिना जीवन अधूरा है।

 

 डॉ. नानासाहेब जावळे

सहयोगी प्राध्यापक,

सुभाष बाबुराव कुल कला, वाणिज्य व विज्ञान महाविद्यालय केडगांव, तहसील – दौंड, जिला – पुणे, महाराष्ट्र, भारत।

E-mail- [email protected]

दूरभाष 7588952444




प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता,, बसंत उत्सव हेतु

ग़ज़ल,,,,,

फूलों की खुशबुओं से महकता जिगर रहा।।

जब तक किसी हसीन का कांधे पर सर रहा।।

 

देखा जो उसे दूर से अहसास हुआ यूं।

जैसे फलक से चांद ज़मीं पर उतर रहा।।

 

मुद्दत गुजर गई है छुए उसके जिस्म को।

हाथों में मगर आज भी उसका असर रहा।।

 

बाहों में चांद आ गया खुशियां समेटकर।

जबतक तुम्हारे साथ हमारा सफर रहा।।

 

फूलों की तरह जिंदगी मेरी महक गई।

उल्फत वफ़ा खुलूस का ऐसा असर रहा।।

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बृंदावन राय सरल सागर एमपी

13/1/2021

प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु

 




बैंक का रोकड़िया

बैंक के रोकड़िए का
कैसा नसीब हैं
दिन भर दोनों हाथ
सने रहते रोकड़ में
फिर भी रोकड़ की
पहुँच से दूर हैं

मौलिक एवं स्वरचित

जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी”




धीरे-धीरे बसंत आ रहा है

 प्रेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है
कोयल कूक ने वाली है
संंग हम सब नर-नारी है
जोर जोर से बोलने की
सब कर लिए तैयारी है
तन का मन भंग हो रहा है

      प्रेम का रंग चढ़ रहा है

     धीरे-धीरे बसंत आ रहा है

भंवरों की गुनगुन में 
संगीत लहेरिया मार रही है
फूल की कलियों को खिलते देेख
एहसास हो रहा है मधुपर्क का
छोड़ दो उसे सपने में आज
जो होनेवाले है साकार

प्रेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है


नज़रों से कह दो प्यार में
मिलने का मौसम आ रहा है
कंधे पर बांहें डाले
चले जा रहे हैंं अभिसार करने वाले

प्रेेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है।

ढोल मजीरा और भांग गुलाल
कृष्ण का रेेेला और फगुआ का मेला
सुबह का बेला और गोपियों का सेना
राधा की गली ओर बड़़े जा रहे हैं।

प्रेेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है। ये













 

 




सीढ़ी

सीढ़ी

छत की दीवार से लगी सीढ़ी
खड़ी दो पाँव पर
ऊपर जाती
नीचे आती
सीढ़ी चढ़ना
सीढ़ी उतरना
करता निर्भर
कहाँ खड़े हम।

कुछ लोग
सीढी के सहारे
चढ़ जाते ऊपर
वहीं बस जाते
बहरे हो जाते
अंधे बन जाते
भूल जाते
सीढ़ी का होना
जिससे होकर
थे आए ऊपर।

पुरानी सीढ़ी
जर्जर
अपाहिज़
कंपित
भुला दिया जाता
उसका होना
उसके त्याग
उसका समर्पण
उसका बलिदान।

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत

                                                                     माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार




देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु “हरियाणा गौरव गान”

हरियाणा गौरव गान

(देशोsस्ति हरयाणाख्य: पृथ्व्यां स्वर्गसन्निभ:)

कवि – जितेन्द्र सिंह

 

वीर धरा म्हारा हरियाणा………….… कर्मठ निष्ठावान

सारे पासे हम छाये…….…….खेल खेत हो जंग मैदान

सभी जिलों की गौरव गाथा………. ..सब हैं आलीशान

पंचकूला में मनसा जी……… . माथे की बिंदिया सम्मान

वेद रचनी सरस्वती ………………….पौराणिक प्रमाण

 घग्गर नदी का मीठा पानी ……… ..फसलों की है जान

मेहनतकश अन्नदाता किसान. …….जवान देश की आन

काला सोना मुर्रा भैंस…….. ………हरियाणा की बाण

गगनचुंबी गुरुग्राम…………..…. पारस मणि सी शान

 गीता जयंती कुरुक्षेत्र………..…. बरसाया पवित्र गांव

 

जिंद का जलवा सबसे हटके…….. प्रसिद्ध अग्रोहा धाम

छोटीकाशी भवानी म्हारी……………. जग में सारे नाम

औद्योगिक नगरी फरीदाबाद……… स्वरोजगार की खान

सूरजकुंड का हस्तशिल्प मेला… …..सब करते गुणगान

मनमोहक रत्नावली……………. संस्कृत की यश गान

खेल धरा म्हारा हरियाणा….…… लहराए तिरंगा जहान

सिरसा सोहना सोनीपत… ………सौम्य अनुपम सुजान

गीता, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहिब…… पवित्र हमारी कुरान

सुंदर विकसित हाईवे हमारे…. ….. सफर कटे सुखवाल

गठजोड़ ए रहे साथ सलामत… जय बेरी माँ तेरा वरदान

 

तीज त्योहार की परंपराएं……… भाईचारा प्रथम स्थान

 डौल सुडोल अरावली पर्वत……. दक्षिण का अभियान

 उत्तर में शिवालिक………….….…. खड़ी प्रहरी सम्मान

कल-कल करती बड़खल झील… मनचित और सुखवाल

शिक्षा मंदिर अति निराले…….. …. है जी गहना सम्मान

सुलतानपुर बर्ड सेंचुरी……….…… . मनमोहक पहचान

 हिसार नारनौल बल्लभगढ़.……विकास की देखो मुस्कान

साहित्य, कला, विज्ञान में………. भरो सपनों की उड़ान

देश के गौरव गांव…………… हमारे महिमा बड़ी महान

चरपर चरपर पंछी चाहके……… हरे भरे खेत खलियान

 

चंडीगढ़ म्हारी राजधानी.. ………..समस्त जहां में मान

आओ पधारो हरियाणा………..… हम कर्मठ निष्ठावान

अतिथि देवो भव……………… दूध दही के खान-पान

धरा हमारी धान कटोरा…………. महके समस्त जहान

मैना, बुलबुल, एथनिक इंडिया…… हम सब के मेजबान

62 65 71 कारगिल…………..…… ज्यादा हम कुर्बान

माँ भारती के हम रखवाले……… बढ़ते आगे सीना तान

हरी धरा, म्हारा हरियाणा………. ..… छुए आसमान

 देश मेरे के रक्षा कवच का…. ….. कायम रखे गुणगान

सारे पासे हमसाए…. ……. खेल- खेत हो जंग मैदान

 

जगाधरी से दादरी…… म्हारा छैल- छबीला हरियाणा

कैथल, करनाल, पानीपत……..भव्य दिव्य हरियाणा

गोहाना,हांसी, टोहाना…. म्हारा खट्टा – मीठा हरियाणा

पिंजौर, बावल, मानेसर…. औद्योगिक संगम हरियाणा

महम, मेवात, नरवाना……. म्हारा हट्टा कट्टा हरियाणा

राई, रोहतक, रेवाड़ी……… निपुण व सक्षम हरियाणा

हिंद धरा पर सबसे न्यारा…. विकसित म्हारा हरियाणा

 

                                                    

जितेन्द्र सिंह

(चंडीगढ़ पुलिस)

गांव – निन्दाना, रोहतक, हरियाणा

9815639388

6280320244




युगपुरुष

बदलाव

नए साल पर,
कुछ तो नया पन लाओ।
हो सके तो,
कुछ आदतों में ही सुधार लाओ।
कोई कब तक कहेगा
तुम सुधर जाओ
कभी तुम ही
स्वयं को बदल कर,
लोगों को अचंभित कर जाओ।
चुन चुन कर तुम,
व्यसनों को पनाह देते हो।
पुराने साल पर मिट्टी डालो
नए साल पे,
नए रंग रूप में आओ।
दिन , महीने , साल ,
कब तक बे खबरी में गुजारोगे
कभी तो अखबारों की,
सुर्खियां बन कर दिखलाओ।
कब तक पिघलोगे,
मोम की तरह,
कभी तो अगरबत्ती की तरह,
महक कर दिखाओ।
बहुत बज लिए,
ढोल की तरह।
कभी तो वीणा की,
तान सुनाओ।
नये साल पर,
कुछ तो बदलाव लाओ।

कमल राठौर साहिल
श्योपुर मध्य प्रदेश




सूर्योपासना

प्रातःकाल में जो प्रतिदिन,
प्रेरित कर हमें जगाता है।
जिस सूरज के उग जाने से,
अंधियारा दूर हो जाता है।।
सब उत्साहित हो-होकर,
आगे बढ़ने को मचलते हैं।
नीड़ छोड़कर डालों पर,
पक्षी भी कलरव करते हैं।।

कंधे पर हल-पाटा लेकर,
कृषक खेत को चलता है।
डब्बे में दुग्ध आदि भरकर,
ग्वाला शहर निकलता है।।
कपड़ा पहने, बस्ता लादे,
बच्चे शिक्षालय जाते हैं।
मजदूर और अधिकारी भी,
दिनचर्या रत हो जाते हैं।।

स्वयं जलकर, दिनभर चलकर,
सूर्य प्रकाश फैलाता है।
सायं काल में लाली देकर,
बिना थके ढल जाता है।।
यह है परम् कर्तव्य हमारा,
नित उसके गुण गाएँ।
सबसे आगे, सबसे पहले,
उठकर शीश नवाएं।।

उससे विनती, उसका भजन,
उसकी पूजा, हवन-होम हो।
गुरुवार हो, भौमवार हो,
रविवार हो या सोम हो।।
आस्थावान हो, हम मिलकर,
उससे करें यह याचना।
हे भगवन, सब सुखी रहें,
आपकी हो सदैव उपासना।।