1

ऐ मेरे वतन ——||

 

 

ऐ मेरे वतन ——||

मैं आजाद हूँ,

मगर आज भी,

वक्त की तलहटी पर,

नजरें टिकाए बैठा हूँ

ऐ वतन तुझको मैं,

अपनी दुनिया बनाएं बैठा हूँ

अब दुश्मन न ताक सकेंगे

तेरी ओर कभी

जाने कबसे मैं उसकी तरफ,

अपनी नजरें गड़ाए बैठा हूँ

जानता हूँ अनगिनत,

शहीदों ने अपने लहू से

खेली होली है ऐ वतन,

उन्हीं  के वास्ते तेरी खातिर

कफन, अपना अपने

हाथों से सजाए बैठा हूँ,

अब दूर से आवाज,

किसी की नहीं आती

धधकते शोलों से खौफ के,

उस गदर के मंजर में  

ऐ मेरे वतन—-

तेरे रास्ते के शूल को मैं

अपनी फौलादी छाती पर फूल उगाए बैठा हूँ

मैं आजाद हूँ, मगर आज भी

वक्त की तलहटी पर,

आज भी नजरें टिकाए बैठा हूँ

सींच कर लहू से अपनी इस माटी को

गुलशन -गुलशन बनाए बैठा हूँ

मैं आजाद हूँ, मगर आज भी

वक्त की तलहटी पर,

आज भी नजरें टिकाए बैठा हूँ

मैं आजाद हूँ, मगर आज भी

 

डॉ कविता यादव

 

 

 




महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता “माँ जीवन की आधार”

जन्मदात्री शक्ति दायनी मां जीवन की झंकार है,

मां जीवन की आधार मां में सिमटा सारा संसार है।
जीवन की मां पहली मूरत निस्वार्थ भाव की संदर्भ है,

पालन-पोषण करने वाली मां पर हमको गर्व है।
हंसकर करती हर समस्या का निस्तारण हम से कुछ न कहती है,

बच्चों को जन्म देने में सबसे ज्यादा पीड़ा सहती है।
अन्न-अनाज खाने से पहले मां का दूध जीवन का संस्कार है,

मां जीवन की आधार मां में सिमटा सारा संसार है।
मां है गीता वेद पुराण बाइविल और कुरान है,

मां ममता का सागर है और संस्कृति का सम्मान है।
सुबह की पहली आवाज और मां ही मीठा कलरव है,

बाल्यकाल में बच्चों के होठों पर मां ही पहला स्वर है।
नजर उतारनें वाली माता करती काले टीके से श्रंगार है,

मां ही ज्ञान दायनी और मां की जायज फटकार है।
जब तकलीफ होती बच्चों पर मां ही थपकी देती है,

बच्चों को सूखे में सुलाती खुद गीले में सोती है।
हर संघर्ष मुसीबत में मां आत्मविश्वास की ताबीज़ है,

गलत मार्ग पर जाने से रोके मां बच्चों की तासीर हैं।
सर्दी गर्मी खाती जिंदगी में फिर भी शीतलता की धार है,

मां मंदिर की मूरत और अटूट प्रेम का हार है।
मां ही भविष्य की सौगात है और सगुन की दही कटोरी है,

बच्चों के रुधन को सुनकर बैचेन हो जाती और मां ही चंद्रमामा की लोरी है।
जिसके सिर पर नहीं है मां की ममता का हाथ उसके देखों क्या हालात है,

मां की कद्र नहीं की जिसने उसके जीवन पर लालात है।
मां बच्चों के जीवन की करुणामई संस्कार है,

मां जीवन की आधार इसमें सिमटा सारा संसार है।




महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता “बचा लो बेटी का सम्मान”

 सशक्तिकरण की जयकारों से गूंजेगी मां वसुंधरा,

दुर्गा स्वरूपा शक्ति दायनी की चर्चाओं से अंर्तमन मेरा पूछ पड़ा,

वेदों में पुराणों में महिमा नारी की गाते हो,

गर्भ में कन्या आ जाए तो क्यों भ्रूण हत्या करवाते हो।
नदियां नाले में फेंककर कुत्तों से नुचवाते हो,

बेटों की आशा करते और बेटी बोझ बताते हो।
जब गोद सूनी होती तो अनाथश्रमों की चौखट पर जाते हो,

बेटा गोद में होता है तो बेटी का अपमान करवाते हो।
गुरूद्वारे, मंदिर, मस्जिद में मन्नत मांगने जाते हो,

पुत्ररत्न की प्राप्ति खातिर मनमानी भेंट चढ़ाते हो।
दहेज के भूंखे मानव के घर बेटी की बली चढ़ाते हो,

यश और कीर्ती पाने की खातिर नारी माध्यम बनाते हो।
मां बहनों को कटुक वचन से सीने पर गाज गिराते हो,

वहशी दरिंदे, पशु असुर सब हबस का शिकार बनाते हो।
शक्ति स्वरूपा दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी ये नारी के रूप है,

मनमोहिनी शीतला काली इनके स्वरूप अनेक है।
न ललकारों नारी शक्ति को नारी को नारी रहने दो,

करुणामई, ममतामई नारी को शीतलता से बहने दो।
अगर जाग गई नारीशक्ति तो महाप्रलय आ जाएगी,

सर्वनाश होगा पापियों का जग में हाहाकार मच जाएगी।
 




जय भारत, जय भारती

कविता
*जय भारत , जय भारती*

खाते हैं जिस देश का
गाते है उसी देश का
क्योंकि यह धरती हमारी माता है
जय भारत , जय भारती
सिवा मुझे नहीं कुछ आता है

कल-कल बहती नदियों की
हरे पौधे , पुष्पों की कलियों की
खेत में लहलहाते पौधे के बालियों की
सुस्वच्छ अन्न का निर्माता है
जय भारत , जय भारती
सिवा मुझे नहीं कुछ आता है

मानवता की मूर्ति यहाँ है
प्रथम गणतंत्र की कृति यहाँ है
देश सेवा की रीति यहाँ है
अनेकता में एकता यहाँ है
लोकतंत्र यहाँ का
सत्य अहिंसा में भाग्य अजमाता है
जय भारत , जय भारती
सिवा मुझे नहीं कुछ आता है ।
स्वरचित
मधुर मिलन नायक
नारायणपुर , भागलपुर




देश भक्ति की दो कविताएँ

अरुण कमल

वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन मुख्यालय

डीआरडीओ भवन

राजाजी मार्ग

नई दिल्ली-110011

मो -9811015727

[email protected]

 

 

देश भक्ति काव्य प्रतियोगिता के लिए दो कविताएँ

 

 

जुड़े मेरे संग,  देश के धागे!

 

 

घाव उभर आता है दिल में 

दर्द छलक आता आँखों में

टीस उठे तो संभले मन ना

कसक उठे हर पल बाहों में !

 

बावरे  नैंनों से बहता जल

बिछी रही राहों पर हर पल 

दो दिन को बस गले लगाया 

और हुए आँखों से ओझल !

 

धर्म निभाया राष्ट्र पुत्र का 

गौरव बने तुम माँ के गोद का 

आलिंगन कर लिया मृत्यु को

मैं बस बनी शहीद की विधवा!

 

तेरी श्रद्धा ही, मेरी श्रद्धा 

साथ में तेरी माँ है वृद्धा 

गर्भ में  मेरे अंकुर  तेरा 

तड़प रहा देने को कंधा !

 

इतनी भी तो क्या जल्दी थी 

उतरी  नहीं  मेरी  मेहंदी थी 

माथे की बिंदिया पूछ रही है 

क्या मेरी भी कोई गलती थी !

 

जीवन को मिथ्या, न बनने दूँ मैं 

आँखों के आँसू, को भी पी लूँ मैं 

जो छोड़ गए  तुम,  काम अधूरा 

उस काम को आगे पूर्ण करूँ मैं !

 

जिस धरती पर,प्राण हैं त्यागे 

अब मेरे लिए क्या, उसके आगे 

तेरे दिल के धागों से अब तो 

जुड़े मेरे संग,  देश के धागे!

 

करूँ नमन मैं राष्ट्र प्रहरी को

लांघूँ अब मैं घर की देहरी को 

करूँ समर्पित स्वयं को पहले 

फिर करूँ तैयार नयी कड़ी को !

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?

 

 

कोई बात सकता है क्या,

क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?

उम्र सैंतालिस की हो चुकी 

लेकिन धमनियों में बढ़ रही है रक्त गति 

अब सारा धीरज खो चुकी मैं

अपने कितने जवानों को खो कर रो चुकी मैं

क्या अब भी साँसे रोक कर, चैन से सो सकती हूँ मैं?

 

क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?

 

हर एक जान का बदला पड़ोसियों से लूँगी

एक भी जान को व्यर्थ नहीं जाने दूँगी 

हमारे बच्चे अनाथ बनकर क्यों घूमें

क्यों हर बार कोई बच्चा अपने खून से लथपथ पिता का माथा चूमे 

इंसान के जान की क़ीमत देश की राजनीति से ऊपर है 

हर विधवा , हर बच्चे के आँसू, 

दो देशों के बीच अनखिंची सीमा रेखाओं से बढ़कर है 

इस तरह ज़ख्मों को दिल में कब तलक ढो सकती हूँ मैं?

 

क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?

 

एक कदम भी आगे बढ़ाने से पहले पड़ोसियों को 

सौ बार  सोचना होगा, 

जान के बदले उनका जहान लेकर 

उनको रोकना ही होगा 

आज उम्र की सीमाएँ हटाएँ

हम भी अपने जवानों के साथ हाथ बटाएँ

 बच्चा-बच्चा तैयार है, बड़े बूढ़ों का अंबार है 

हर भारतीय के सिर पर आज, एक जुनून सवार है 

रक्त में घुले काँटे को, क्या उनको चुभो सकती हूँ मैं?

 

क्या  मैं फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?

 

देश से बढ़कर कुछ भी नहीं 

धीरज की पोटली संभालकर अलग रख दी

जज़्बातों में तूफ़ान भर आया है

हर चमड़ी आज वर्दी में उतर आया है 

बेवर्दी ही वर्दी में हम राष्ट्र सेवा को उतरे हैं

गिनते जाना हमने कितनों के कैसे सब पर कतरे हैं 

बस फूंक मार हम उड़ा ही देंगे, जो भी मंडराते ख़तरे हैं 

लक्ष्मी बाई की वंशज होकर, कब तक आँचल भिगो सकती हूँ मैं?

 

क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?

 

 




देश प्रेम

तन वतन के लिये
मन वतन के लिए
भाव भावनाए वतन का प्रवाह
वतन ही जिंदगी वतन ही पहचान ।।
वतन पर जीना मरना ही
ख्वाब हकीकत अरमान
वतन सलामत रहे
वतन से ही रिश्ता खास अभिमान ।।
वतन की संस्कृति संस्कार तिरंगा
शान स्वभिमान तिरंगा
वंदे मातरम माँ भारती के
आराधन का मूल मंत्र सम्मान तिरंगा।।
सीने में वतन की जज्बे की ज्वाला।
सांसो धड़कन की गर्मी
वतन की अस्मत प्राण।।
चाहे जितने भी आये माँ
भारती को बनाने गुलाम
त्याग बलिदानी धरती के माँ
भारती के बीर सपूतों ने माँ भारती की आजादी की रक्षा में दे दी जान।।
वतन की राह चाह में हो
गए कुर्बान ना कोई अफसोस
ना कोई ग्लानि हँसते हँसते
लड़ते तिरंगे को दिया ऊंचाई
आसमान।।
दुश्मन जो आंख दिखाए
उसका कर दे वो हाल
जल बिन जैसे मछली तड़पे
पानी बिन तरसे जीवन को
मौत की मांगें भीख मर्दन कर दे
कर दे मान।।
वतन धर्म ,वतन कर्म दायित्व
सपनो में भी वतन भौतिकता
नैतिकता में वतन की गरिमा
गौरव का पल पल मर्यादा की
गौरव गाथा गान का भान।।
आजादी के दीवानों परवानों के
बलिदानों के उद्देश्य पथ का पथिक
स्वतंत्रता गणतंत्र के मौलिक
मूल्यों का अवनि आकाश आन
वान का जीवन जान।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता शीर्षक मां दिनांक 2 जनवरी 2021

मां,,,,,

1,,,

मां चंदा की चांदनी ,मां सूरज की धूप।।

वक़्त पड़े ज्वालामुखी ,वक्त़ पड़े जल रूप।।

2,,,,

सरिता मां की नम्रता, इसमें इतना प्यार।।

जीवन भर टूटे नहीं, जिसकी अविरल धार।।

3,,,,

मां शाला मां है गुरू, मां जीवन आधार।।

पौधा मां के प्यार में, वृक्ष बने छतनार।।

4,,,,

मां मीरा की पीर है,मां कबीर का सत्य।।

मां ईश्वर की प्रार्थना, तुलसी का साहित्य।।

5,,,

मां गीता का सार है, मां है वेद पुरान।।

मां है पावन बाइबिल,मां में हर ईमान।।

6,,,,,

मां में तीरथ धाम सब, मां अटूट विश्वास।।

मां के चरणों में हुआ,जन्नत का आभास।।

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बृंदावन राय सरल सागर एमपी

मोबाइल 7869218525

12/1/2021

 

 

 




देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता

“देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु

 

साष्टांग नमन तुमको करती,

शत बार नमन तुमको करती।

मिट्टी से इसकी तिलक करूं,

मैं देश नमन तुमको करती ।।

        माथे का मुकुट हिमालय है,

        सागर पद प्रक्षालन करता,

        जीवन अमृत नदियां इसकी,

        गंगा कल कल छल छल बहती।। 

                          मै देश नमन तुमको करती ….

यह वीर प्रसूता धरती है,

वीरों को जन्मा करती है,

राणा का रक्त शिराओं में,

अरिदल पर विद्युत बन गिरती ।।

                         मै देश नमन तुमको करती….

शक हूण मिटे इस धरती से,

गोरी गजनी भी धूल मिले,

पश्चिमी सुनामी लौट गई,

पूंजीपति बर्बरता मिटती ।।

                       मै देश नमन तुमको करती….

घोर निशा अब बीत चली है,

नवल ज्योति अब फूट चली है,

किरणों के कर खोले कपाट,

अब मुक्त हुई अपनी धरती ।।

                        मै देश नमन तुमको करती….

चिर पावन नूतन बीज लिए,

मनु नौका प्लावन पार हुई,

हम विजय गीत गाते बढ़ते,

यह रैन अंधेरी है मिटती ।।

                        मै देश नमन तुमको करती …

                        

   पूर्णतः स्वरचित मौलिक                     

गीता सिंह “शंभु सुता”

व्यवसाय..गृहणी




हिन्दी हमारी शान

हिन्दी हमारी आन है
हिन्दी हमारी शान
हिन्दी से बना हिन्द हमारा
हिन्दी से जिंदा है हिन्दुस्तान

हिन्दी से हमारी जय जयकार
प्रगति का यहीं आधार
शब्द सरिताएं समाती इसमें
सागर सा है विशाल आकर

आओ हिन्दी को आधार बनाये
मातृभाषा को अपना श्रृंगार बनाये
बोलचाल में और राजकाज में
हिन्दी भाषा ही अपनाये

सम्मान हिन्दी को दिला के रहेंगे
अपमान जननी का मिटा के रहेंगे
शान विकास कामिनी की बढ़ा के रहेंगे
हिन्दी को जग में मान दिलाकर रहेंगे

जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी




प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता

-सृजन आस्ट्रेलिया ई पत्रिका(प्रेम कविताएँ)
-यही आस अंतिम बाक़ी-
प्यार किया जाता है कैसे,मिले जो तुमसे सीख गए
मोहनी मूरत साँवली सूरत,पर हम तेरी रीझ गए

बच्चों जैसी बातें तेरी,मीठी-मीठी सी मुस्कान
देख सुन लट्टु हो जाए,अलबेला राही अनजान

साहस और हिम्मत है तुझमें,पुरुषों से भी बढ़-चढ़कर
तुमसे मिलकर हमने जाना,प्यार न होता है डरकर

अब तो दिल चाहता है केवल,तेरे संग में ही रहना
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में,बीते अब ये दिन रैना

आओ मिलकर आज करें हम,इक दूजे से ये वादा
शरीर भले ही बिछुड़ें अपने,दिल न होंगे कभी जुदा

प्रेम कहानी लिख जाएँगे,लैला मजनूँ की भाँति
वफ़ा हमारी याद करें सब,यही आस अंतिम बाक़ी।
पूर्णतःस्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम
9717531426

सृजन आस्ट्रेलिया ई पत्रिका(प्रेम कविताएँ)
-पागलपन-
चाहता हूँ मैं तुमको साथी,मित्र घनिष्ठ बनाना
अपने दिल की गहराइयों में,मूरत तेरी सजाना

मिले मीत ग़र तुम जैसा,मन की बात बतायें
मिल-जुलकर सुख-दुख बाँटे,
एक-दूजे को हर्षायें

अहं मेरा आड़े आता है,तो बेशक आ जाए
किंतु तेरी भोली सूरत, मन-मंदिर बस जाए

तेरा यह व्यक्तित्व निराला,और सुमधुर भावनाएँ
मुझको तो अच्छी लगती हैं,तेरी सभी अदायें

चाहता तो हूँ तुझको अपनी,पलकों बीच बिठाना
तेरी स्मृतियों के साये में,स्वप्न सेज सजाना

चाहने से होता ही क्या है,जब तक तुम ना मानो
मेरी स्वप्निल नगरी को,नहीं जब तक तुम पहचानो

डर लगता है अगर कहीं,तुम बुरा मान जाओगे
इस पागल के ‘पागलपन’ पर,तरस नहीं खाओगे !!
पूर्णतःस्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम

सृजन आस्ट्रेलिया ई पत्रिका (प्रेम कविताएँ)
-हमें बुला लेना-
जब दिल हो कभी उदास तो हमें बुला लेना
अकेलेपन का हो अहसास तो हमें बुला लेना

सोचता हूँ दिन-रात तेरे भले के लिए
जब कोई ना हो पास तो हमें बुला लेना

भरी जवानी में हुस्न के हज़ारों हैं तामीरदार
ढलती उम्र का हो अहसास तो हमें बुला लेना

मुश्किल है मिलना आज भरोसे का आशियाँ
जब किसी पे ना हो विश्वास तो हमें बुला लेना

इस दौर में रिश्ते निभाना काँटों भरा है ताज
रिश्तों में आ जाए खटास तो हमें बुला लेना

यह उम्र हसीन ख़्वाबों तमन्नाओं की नहीं
फिर भी रखते हो आस तो हमें बुला लेना

ज़िंदगी यूँ अंधेरों में नहीं काटना आसाँ
यदि डर का हो आभास तो हमें बुला लेना

ग़र ज़िंदगी रही तो मिलेंगे ज़रूर
हो कहीं भी तेरा वास हमें बुला लेना
पूर्णतः स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम