1

International Desh bhakti Kavya pratiyogita

देशभक्ति कविता

 

जय जवान जय किसान

 

यह देश है वीर जवानों का, यह देश है वीर किसानों का।

उनके ही कन्धों पर भार है पूरे हिन्दुस्तान का।

जो सरहद पर दिनरात हमारी रक्षा करते है,

हम अपने घर में बैठे अमन-चैन से सोते हैं।

वन रैंक वन पेंशन पूरी तरह से मिले, सभी सैनिको की माँगे है,

तरह-तरह की पेंशन में भिन्नता, यह उनके लिए सब घाते हैं।

पूरी पेंशन पाने के लिए क्यो वीरता सम्मान वापस करना पड़ता है ?

जब हम वीर जवानों को मजबूर करते हैं उनकी नहीं सुनते हैं।

तब अपनी बात सुनाने के लिए, सरकार तक बात पहुँचाने के लिए,

वीरता सम्मान वापस करने का रास्ता चुनने को मजबूर होना पड़ता है।

हम हमेशा कहते हैं, हम सैनिकों का बहुत सम्मान करते हैं,

सैनिकों क पूरा सम्मान तभी महसूस होगा,

जब पूरी पेंशन आजीवन बिना किसी टेंशन के मिलेगी।

वीर शहीदो को हम देशवासी बार-बार कोटिश: नमन करते है,

और नमन करते है उनके माता-पिता, भाई-बन्धु परिवार को,

जो उनके न रहने पर हर तरह का कष्ट सहते हैं।

हम आजाद होकर अमन चैन से सोते हैं।

जो भी वीर-जवान देश हित में शहीद हो जाये,

उसके परिवार को पूरी पेंशन मिलना जरूरी है।

सेवा शर्तों और नियमावलियों में बदलाव लाना जरूरी है,

पुराने नियम कानून को ही ढोने की क्या मजबूरी है।

सबके प्रति बदल रहे हैं तो जवानों के प्रति क्यों नहीं बदलते है,

उनकी दिक्कतों पर हम  गम्भीरता से क्यों नहीं विचार करते है।

उनके परिवार की कठिनाइयों पर क्यों नहीं ध्यान देते हैं,
इस देश के लिए मर मिटने वाला हर एक सैनिक शहीद है

जब हम वीर सैनिकों को शहीद का दर्जा देते है, सम्मान करते हैं,

तब हम सैनिकों के लिए शहीद पेंशन योजना लाने से क्यों कतराते हैं।

तब हम क्यों यह नियम लागू करते है कि सेवाकाल की अवधि यह होनी चाहिए,

जो सैनिक सौभाग्यशाली है, वो पूरी सेवा करते है,

पूरी पेंशन पाते हैं आजीवन और पूरा सम्मान पाते हैं

पर जिस माता-पिता का वीर लाल सेना में जाते ही,

सीमा की रक्षा करता हुआ शहीद हो जाता है

उसका पार्थिव शरीर तिरंगा झण्डा में लपेटकर वापस आता है

पत्नी के हाथों की मेंहदी, पैरों में महावर की लाली,

अभी सूख भी नहीं पायी होती है, माँग का सिन्दूर लुट जाता है

उसके माता-पिता, पत्नी को पूरी पेंशन क्यों नहीं मिल पाती है ?

तब सेवा काल का समय क्यों मापा जाता है ?

क्यों आधार बनाया जाता है समय सीमा का ?

सेवाकाल का समय नहीं, उद्देश्य देखना चाहिए,
भारत माँ के हर वीर लाल को पेंशन मिलना चाहिए।

क्या बात है कि आज किसान आन्दोलन पर उतर आये हैं ?
उनसे वार्ता कर हम उनकी बात को क्यों नहीं सुलझा पाये हैं ?

जब हम मानते है कि किसान ही हमारा अन्नदाता है

वहीं हमें खिलाता है वही हमें जिलाता है।

वह ही हमारे राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी है

उसके बिना पूरा राष्ट्र धूल की पगडण्डी है।

जनता के लिए जनता के राज का सपना तभी पूरा होगा,

जब हर जवान, हर किसान के मन का सपना पूरा होगा।

किसानो की उन्नति कैसे होगी ? जब तक हम इस पर विचार नहीं करेंगे,

तब तक उनकी स्थिति में आवश्यक सुधार कैसे होंगे ?

स्वामीनाथन से लेकर अब तक के किसानों की आवाज सुननी होगी।

तभी किसानो की हालत बदलेगी, उनकी बिगड़ी दशा सुधरेगी।

किसानों की उन्नति की बात तो अभी दूर की कौड़ी है

लागत अधिक लगती पर कीमत मिलती बहुत थोड़ी है।

किसान कभी अतिवृष्टि, कभी ओलावृष्टि का शिकार बन जाता है।

कभी सूखा पीड़ित कभी विविध प्रकार के कीटों के नुकसान को सहता है।

उसकी खेत में लगाई हुई लागत, मेहनत भी नहीं मिल पाती है

ऊपर से एम.एस.पी. की माँग भी नहीं पूरी हो पाती है।

हमारा अन्नदाता आत्महत्या करने को क्यों मजबूर हो जाता है ?

जो मेहनत करके दूसरों को खिलाता हैं, वह क्यों खुद खत्म हो जाता है?

उसकी इस समस्या की जड़ को समझना जरूरी है

आत्महत्या करने की मजबूरी को दूर करना बहुत ही जरूरी है।

ऐसी व्यवस्था करनी होगी, हर किसान खुशहाल हो जाये

किसान खुश तभी हो पायेगा, जब उसकी स्थिति बदलेगी।

जब उसके उत्पादन के बदले अच्छी कीमत की गारण्टी होगी।

जब हम जुबान से किसानों का बहुत सम्मान करते है।

तब हम उनकी माँगों को उनके अनुसार क्यों नहीं मान लेते है

किसान भी खुशहाल हो जायें, जवान भी खुशहाल हो जायें।
भारत माँ के हर लाल के चेहरे पर मुस्कान लहराये।

यह देश है वीर जवानों का, यह देश है वीर किसानों का।

उनके ही कन्धों पर है भार सारे हिन्दुस्तान का।

उनको बार-बार नमन करता है सारा हिन्दुस्तान।

जय जवान – जय किसान, जय जवान जय किसान।

 

 

                           एसोशिएट प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष

                  हिन्दी विभाग

                                 जगत तारन गर्ल्स पी.जी.कालेज,

                                     इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज।

 

 

 




डा० स्नेहिल पांडेय की कविता “बनों महान”

नन्हे मुन्ने बनो महान…
तुम सब हो भारत की संतान..
कोयल जैसी बोली बोलो..
शीतल मंद पवन से डोलो…
तरु की घनी छांव सी छाया ..
उपकारी हो तेरी काया..
फूलों की खुशबू से महको..
नन्ही गौरैया से चहको..
बहते नदी सरीखे पानी …
बनो कर्ण जैसे तुम दानी…
साफ- स्वच्छ परिवेश बनाओ..
पेड़ तुम खूब लगाओ..
पानी की हर बूंद बचाओ …
पर्यावरण प्रहरी कहलाओ..
मानवता के रक्षक बनकर…
दीनदुखी की पीड़ा हरकर..
लवकुश जैसे बनो महान..
तुम सब हो भारत संतान…

 

                 रचयिता
         डा० स्नेहिल पांडेय
(राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका)




देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता

श्रद्धांजलि

आज मेरा दिल उन वीरों को

श्रद्धांजलि देने के लिए,

अपने आप ही नतमस्तक है,

जिन्होंने अपने प्राणों की

बाज़ी लगाने में तनिक भी

संकोच नहीं किया,

पलटकर सूनी माँग,

सूनी कलाइयों को नहीं देखा,

सुबकते बच्चों, नम आँखों

को नहीं देखा,

माँ की ममता को, गले तले

उतार कर, बाप की लाठी को

उसके हाथों में ही थमाकर,

चल दिये भारत माँ की

रक्षा के लिए,

आज भारत माँ ही नहीं, समूचा

देश तुम्हारा, तुम्हारी जननी का ऋणी है

तुम्हें झुक-झुक कर असंख्य

बार प्रणाम करता है,

करता रहेगा।

तुम धन्य हो, वीर हो,

अमर हो, रहती दुनिया तक

तुम्हारी वीरता का ये

चर्चा चलता रहेगा।




देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता

शहीद की माँ

इक बुढ़िया आँसुओं से

आँगन लीप रही थी,

आसमान रो रहा था

धरती काँप रही थी।

बेजान लाश बनी वह

खुद को ढो रही थी,

न जाने धरती में वह

किसको ढूँढ रही थी।

आहट पर मेरी उसने

दो नयन जो उठाये

उन कश्तियों में मानों

पूरी दुनिया डूब रही थी।

इन सरहदों ने उसका

सब कुछ निचोड़ लिया था,

बुत-सी बनी वह

किसकी बाट जोह रही थी।

एक माँ की लाज खातिर

दूजी माँ व्याकुल हो रही थी,

न जाने कितने लहुलुहान चेहरे

वो इन आँसुओं में

धो रही थी।




देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता

-सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका(देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता)
-ओज की रसधार-
माँ वाणी से राष्ट्रहित उपहार माँगता हूँ
शब्द-शब्द में ओज की रसधार माँगता हूँ

बात जब-जब भारत स्वाभिमान की उठेगी
देश ख़ातिर प्राणों के बलिदान की उठेगी
सीमाओं की चौकसी पर ध्यान की उठेगी
राष्ट्र नव निर्माण और उत्थान की उठेगी
लिपिबद्ध करने का बस अधिकार माँगता हूँ
शब्द-शब्द में ओज की रसधार माँगता हूँ

सुनिश्चित करना है आँच देश पर न आए
चिन्हित भी करना है उनको आँख जो दिखाए
मान मनोबल सैनिकों का नित्य बढ़ाते जायें
वर्दी पर कभी दाग उनके लगने ना पाए
वीर जवानो के लिए सत्कार माँगता हूँ
शब्द-शब्द में ओज की रसधार माँगता हूँ

बच्चा बच्चा देश का भारत की जय बोले
शब्दोच्चार से देशप्रेम के ही उगले शोले
शहीदों के आदर्शों पर चल संयम अपना तौले
पूरी निष्ठा लगन भाव से देश ही का हो ले
होनहार ऐसे भावी कर्णधार माँगता हूँ
शब्द-शब्द में ओज की रसधार माँगता हूँ

कलम के हर लेख में हुंकार ही भरा हो
शब्द-शब्द में वीर रस भंडार ही भरा हो
देशभक्ति का जुनून और प्यार ही भरा हो
जोश जज़्बे का उफनता ज्वार ही भरा हो
स्वरलहरी में जोश का संचार माँगता हूँ
शब्द-शब्द में ओज की रसधार माँगता हूँ !!
पूर्णतःस्वरचित मौलिक
✍️राजपाल यादव,गुरुग्राम
9717531426
-सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका(देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता)
-है नमन उनको मेरा-

है नमन उनको मेरा जो
देश पर मर मिट गए हैं
प्राणों का उत्सर्ग करके
इतिहास अद्भुत रच गए हैं

है नमन उनको मेरा जो
आसमाँ से भी बड़े हैं
हौसले पर्वत से ऊँचे
लिए सरहद पर खड़े हैं

नमन मेरा उन वीरों को
जो गल्वन में डटकर लड़े हैं
बर्फ़ की शिलाओं में भी
राष्ट्र रक्षा हित खड़े हैं

नमन मेरा उस माँ को जो
क़र्ज़ दूध का माँग रही है
बेटे की शहादत पर अपना
गर्व से सीना तान रही है

नमन मेरा उस बहना को
जो भैया से उपहार ये माँगे
शीश ले आना उस बैरी का
भारत की सीमा जो लांघे

नमन मेरा उस प्राणेश्वरी को
कहती शत्रु का सर लाना
आवश्यकता ग़र पड़ी बालम
रणभूमि में मर मिट जाना

अंतिम नमन मेरा उनको
इतिहास नया जो रच जाते हैं
माँ बहना पत्नी यादों संग
सूली पर भी चढ़ जाते हैं !!
पूर्णतःस्वरचित मौलिक रचना
(राजपाल यादव,आरडी सिटी,गुरुग्राम)
9717531426
-सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका(देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता)
– -बदल रहा है अब कश्मीर-

बदल रहा रहा है अब कश्मीर
बदल रही उसकी तस्वीर
बदला उसका विधि-विधान
बदला सत्ता का संविधान
वेतन-भत्ते बदल गए
हुई पेश अदभुत नज़ीर
बदल रहा है अब कश्मीर

बदली भाषा और परिवेश
बना केंद्र शासित प्रदेश
एक सूत्र में बाँध देश
घाटी की बदली तक़दीर
बदल रहा है अब कश्मीर

हवा नई और नई फ़िज़ा
मिली दिशा और नई दशा
बदल रहे अब नौकरशाह
बदले राजा,रंक,फ़क़ीर
बदल रहा है अब कश्मीर

बदली रंगत,पवन-बयार
बदला है आचार विचार
शांति के बन रहे आसार
खेल रहे सब रंग-अबीर
बदल रहा है अब कश्मीर

बदल रहा है अब माहौल
बदल गया इतिहास भूगोल
जन्नत की घाटी अनमोल
चहक रहा फिर से कश्मीर
बदल रहा है अब कश्मीर

प्रगति के अब द्वार खुले
निवेश के बाज़ार खुले
नियुक्तियों के आसार खुले
यही बन रही है तहरीर
बदल रहा है अब कश्मीर

बदल गया है अब इतिहास
आतंकी सब हुए हताश
लेह-लद्दाख में हर्षोल्लास
प्रफुल्लित संतरी,वज़ीर
बदल रहा है अब कश्मीर
पूर्णतःस्वरचित मौलिक
(राजपाल यादव,गुरुग्राम)
9717531426




देश की मिट्टी

“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता –देश की मिट्टी

 

  देश की मिट्टी

 अपने देश की मिट्टी की,

 बात ही कुछ और हैं|

 खेत खलिहानों में दमकते,

 सरसों की फूलगियों पर

 लहलहाते मदमाती बसंती,

 बहारों का शोर कुछ और है|

 सर्द हवाओं के संगसंग,

 मचलते ये फूलों की डालियाँ

 घेर लेती है अक्सर मुझे,

 मेरे गाँव की अनगिनत पगडंडियाँ

 दूर कहीं क्षितिज के अधरों पर,

 मुसकाती,  खिलखिलाती कलरव करती,

 रह –रह कर, इतराती, बलखाती

 मेरे देश की नदियों के

 लहरों का शोर कुछ और है| 

 अपने देश की मिट्टी की,

 बात ही कुछ और हैं|

धर्म संस्कृति और सभ्यता का

अनुपम पहचान लिए,

सोंधी-सोंधी खुशबू में सिमटी

नार-नवेली देश का अभिमान लिए,

उड़ते पक्षी कलरव करते

खुले गगन के छाँव तले,

वीरों की इस धरती पर

फिर आई नयी भोर है|

अपने देश की मिट्टी की,

बात ही कुछ और हैं|

अपने देश की मिट्टी की,

बात ही कुछ और हैं|

 

डॉ कविता यादव




अंतर राषट्रीय कवि सम्मेलन हेतु प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता

 

अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन हेतु,प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु

  1. मनुकुल का सृजन- श्रृंगार

 

अधूरा है जीवन जिए बिन श्रृंगार,

रसिकता ही जीवन का नित आधार।

भावानंद है प्रणय का सरगम,

शिव-शिवा का हृद्य समागम।

 

जीव-जीव का भाव- रस बहार,

नस-नस में  सदा खुशी की फुहार,

मिला दिव्य क्षितिज का भव्य आसरा,

पुलकित है उन्मादित आर्द्र वसुंधरा।

 

प्रेम गीत के है चतुर वादक नर,

दिव्य सुरीली बांसुरी नित नार।

रही अमृत सिंचन के राग विलास,

हो सदा राधा-माधव प्रेम-लीला रास।

 

तरु से लिपटी लता सदा प्यारी,

सावन संभ्रम की बेला ही न्यारी।

मदन से लिपटी रति सदानुरागी,

जिए युगल अविरत प्रेमानुभोगी।

 

नारी है एक सितार, सुर-सागर,

नर रहा है सदैव सुरीली तार।

मनु-शतरूपा का सुखद मिलन-

से नित संपन्न मनु-कुल सृजन।

        ******

  1. सदा वसंत

 

तन भर रंगों के बहार लिए,

झूम उठी है ऋतु राज प्रिये।

निहार के वसंत का सुखद आगमन,

हुए उन्मादित अवनि के तन-मन।

 

तरु-लता की आनंद की होली,

मधुकर- पुष्प की आँख मिचोली।

उन्मत्त हुआ भृंग, मधु-पान किए,

खिला पुष्प फलित होने की आस लिए।

 

प्यार ही चंदन, प्यार ही बंधन,

प्यार से प्रकृति में है नित स्पंदन।

प्यार तो है सदा बहुत ही न्यारा,

प्यार में डूबा है हर पल जग सारा।

 

प्यार ही अनुबंध की नितांत बेला,

प्यार से ही बनी है सृष्टि की लीला।

है प्यार से नव-नवीन हुआ जग जीवन,

सदा वसंत है जीव राशि के तन –मन।

           **********




कामना

प्यार के शब्द की अनकही सी वही
अपने दिल की ग़ज़ल गुनगुना दीजिए
दर्द देता है मायूस चेहरा सनम
मेरी खातिर जरा मुस्कुरा दीजिए

लाखों की भीड़ में गुमशुदा मैं सही
मुझे पहचान अपनी बना दीजिए
खुशबू बनके तुम्हारी महकता रहूं
अब मुझे इत्र अपना बना दीजिए

मैंने प्यासे लबों से कहा है मगर
अपने होठों की शबनम गिरा दीजिए
आँख भर आए जो यूँ मेरी बात से
मेरे होठों से ही मुस्कुरा दीजिए

जिस तरह थी संवारी वो कॉलर मेरी
जिन्दगी को भी सुन्दर बना दीजिए
चाहता हूँ निहारूं तुम्हें उम्र भर
अपने चेहरे से पर्दा हटा दीजिए

शर्म आए जो मेरी निगाहों से भी
आप पलकों को अपनी झुका दीजिए
सीधे कर न सको बात जो इश्क़ की
बातों की फिर जलेबी बना दीजिए

उमेश पंसारी
युवा समाजसेवी छात्र व लेखक
मो. 8878703926




“गाथा वीर सपूतों की”

भारत के वीर सपूतों की गाऊँ मैं गाथा नित्य प्रति, 

हर- हर महादेव के बोलों को दोहराऊंगी मैं नित्य प्रति|

आकाश पे पड़ती रेखाएँ करे उनके शौर्य का गुणगान, 

जल -थल या वो नभ में हों हर जगह उन्हीं का कीर्तिमान|

वो न रुकना झुकना सीखा है शमशीर पे रखता सदा हाथ, 

अपना तो शीश कटा लेगा भारत का मान बढ़ाएगा |

इन शेरों की जो माता हैं बलिदानों की जो गाथा हैं,  

अर्पण कर देती अपने लाल माँ भारती पा कर होती निहाल

वो माँ भी जिसने जन्म दिया, वो पिता भी जिसने प्रेम दिया

वो बहन भी जिसने स्नेह दिया, वो पत्नी भी जिसने प्रेम किया

सब के हृदय की यही पुकार जाओ तुम देश का रखो ख्याल

हम पैरों में न डालेंगे अपने ममता की बेड़ी कभी |

भारत के वीर सपूतों की गाऊँ मैं गाथा नित्य प्रति, 

हर- हर महादेव के बोलों को दोहराऊंगी मैं नित्य प्रति|

 




फिर वंदे मातरम् !

निलनभपर  सुरज तिरंगा                                     ललाट गेरुआ                                                   तप्त श्वेत मध्यमा                                             और धरती हरीयाली.                                         हिमालय करता  गरीमा                                     और  महासागर पैर चुमता.

आत्मद्विप हैं मॉ  भारती

पुकारे वाणी वेद की

प्राण उपनिषद गीता के

थिरकते पाव संतोंके

राहपर है तुफान अनेक

मुश्किले भी है पर्वत बनकर.

झरने को सागर में मिटना  होगा.

देश बनकर तुम्हे उठना होगा.

प्यास है धरती की

आस है माॅ भारती की

कर दो तुम अपनी आवाज बुलंद.

मुठ्ठी में बाँध लोजोश को.

हवा का बदल दो रुख तुम .

फिर वंदे मातरम् का गाओ तुम.

हे !  प्रकाश के स्वामी.

चेतना के पुजारी.

आशिष दे, हम है हिंदुस्थानी.

हरदिन,हरक्षण गाये हम.

वंदे मातरम्, वंदे मातरम् .