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वो हार कहां मानती है!( महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु)

 वो हार कहां मानती है!

सुबह की मीठी धूप सी

सुकून भरी गीत वो

वोअरुणिमा है शाम की

हर सुख -दुख की मीत वो!!
वो शक्ति की प्रतीक है
वो सृष्टि का वरदान है
वो आराधना की मंत्र है
वो कलमा, वो अज़ान है!
उसके लाखों रूप है
वो हर रूप में समाई है,
मां,बहन ,बेटी कभी तो
पत्नी बन परछाई है!
संसार की विस्तार वो
सृजन कभी संहार वो,
वो नारी है, नारायणी है
वो कला है कल्याणी है!
धरा सी सहनशीलता
गगन सा विशाल वो,
वो भक्ति है भगवान की
करुणा की मशाल वो!
आराधना कर साधना कर
मत उसे ललकार तूं
प्रलय फिर हर ओर होगा
मचेगा हाहाकार यूं!
अस्मिता पर चोट वो
सहन न करने पाएगी
वो है दुर्गा जो कभी तो
काली भी बन जाएगी!!
वो जन्म दे जननी बनी
वो तुझे पालती है,
भवानी बन भव पार करती
वो तुझे तारती है!!
वो करती है जो ठानती है
हर बला वो टालती है
हर मुश्किलों से निकालती है
वो हार कहां मानती है
वो हार कहां मानती है…
अर्चना रॉय
प्राचार्या सह साहित्यकार
रामगढ़
झारखंड




“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता ” हेतु कविता – वीरों को देश का वन्दन

वीरों को देश का वन्दन

उन वीरों को देश का वन्दन, जो प्राणों को वारे हुए हैं,

अपनी खुशबू दे के वतन को, आज वो चाँद-सितारे हुए हैं । 

हम धरती पर हों या ना हों, देश का सूरज चमके हरदम,

प्रण जो लिया है दोहराएंगे, जब तक तन में रहता है दम,

जिनके डर से देश के दुश्मन, तन-मन-धन से हरे हुए हैं । 

आज मुझे सौभाग्य मिला है, कहती है सिन्दूर की लाली,

देश के हित सर्वस्व दिया है, मौन ह्रदय है खाली-खाली,

पूरित कर संकल्प को अपना, आज सभी के प्यारे हुए हैं । 

वीर सपूत को अर्पित करके, मन पिघला पर आँख न बहता,

गोदी के थे जो किलकारी, प्राण थमा पर शौर्य दे बढ़ता,

मेरे कुल का उज्ज्वल दीपक, घर-घर के उजियारे हुए हैं । 

स्वर्ण सा चितवन हो गयी माटी, मेरा दुख कौन है बाँटे,

गलते तन की भीगी आँचल, दिन और रात कैसे काटे,

कण-कण बिखरी मेरी ममता, वीर शहीद दुलारे हुए हैं । 

जिनके यश की अमर कहानी, गीतों में फिर गाया जाये,

हर बालक के मन मन्दिर में, बिम्ब उसी का छाया जाये,

जय-हिन्द के उद्घोष-गुंजित – गाँव, गली, गलियारे हुए हैं । 

***




“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता ” हेतु कविता – वीरों का वन्दन होना चाहिए

वीरों का वंदन होना चाहिए

इस देश का अम्बर रोता है, इस देश की धरती रोती है,

जब-जब वीर जवानों को, भारत माता खोती है । 

अलगाववाद के नाम पर, नापाक हरकतें होती हैं,

पत्थरबाजी की आड़ में, आतंकी जड़ें पनपती हैं । 

आस्तीन में साँप छुपे हैं, कब तक दूध पिलाओगे,

रक्त पिपासु भेड़ियों को, कब तुम सबक सिखाओगे । 

पूछ रही है बूढ़ी माँ, पूछ रही है बहन तुम्हारी ?

पूछ रहा है नन्हा बालक, पूछ रही है प्रियतम प्यारी ?

हम सब की अश्रु धारा का, कर्ज़ चुकाओगे कैसे ?

अमर शहीद जवानों का, मान बढ़ाओगे कैसे ?

बन्द करो समझौते सारे, हुक्का-पानी बन्द करो,

डालो नाक-नकेल तुम, उसकी मनमानी बन्द करो । 

अमर शहीदों की गाथा का, गान होना चाहिए,

वीरों का अभिमान बढ़े, सम्मान होना चाहिए । 

नागफनी की हर शाख को, चन्दन होना चाहिए,

तपती रेत में हरियाली का, नन्दन होना चाहिए । 

दुश्मन के हर ख़ेमे में, क्रंदन होना चाहिए,

अभिनन्दन का युगों-युगों तक, वंदन होना चाहिए । 




प्यारा भारत

                                                   देशभक्ति काव्य लेखन हेतु     

                                                             प्यारा भारत 

              

                    आसां नहीं शब्दों में लिखना, कई अर्थों की गाथा भारत

                    अखिल विश्व है एक संगीत, उस संगीत को गाता भारत

                    नदी, पर्वत जहाँ पूजे जाते, तब बनता है भारत भारत

                    प्रेम वतन से करता हर कोई पर स्वयं प्रेम सिखाता भारत

                    प्रेम के रंग फैलाता कुछ लिपटे तिरंगें में ऐसा रंगीला भारत

                    खोज नहीं इंसां की ये स्वयं ईश्वर की रचना है भारत

                    धरा है अद्भुत यहाँ की स्वयं नर रूप धरा ईश्वर ने

                         दश अवतारों की पावन धरती भारत ..।।

                              जय हिन्द जय भारत

 

                                          

                                                          डॉ. इन्दिरा कुमारी (Teacher)

 

                                                                  गा. पुराना मटौर. पत्रालय नन्देहड

                                                         जिला एवं तहसील काँगडा हि.प्र. 176001

                                                                    Mobile – 9459408261

                                                                  [email protected]                  

                  




“प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता”- जल उठे दीप

जल उठे दीप

जल उठे दीप दोऊ ,आरती तो सजाने दे

भावना का भोग , इस देवी को चढ़ाने दे |

हँसी की तरंगिणी को ,कान घुल जाने दे

मिश्री की चाशनी का, स्वाद थोड़ा आने दे |

मीठी तान बाँसुरी की ,फिर छिड़ जाने दे

राधा-कान्हा प्रेम गीत ,फिर गुनगुनाने दे |

जल उठे—————-चढ़ाने दे |

मंदिरों की घंटियों से,आत्मा का पाप धुले

ह्रदय तरंगिणी को ,डुबकी लगाने दे |

साधन को पूर्ण आज ,साधिका से होने दे

प्रेम जल गगरी से ,आत्मा भिंगोने दे |

जल उठे———–चढ़ाने दे |

 

कवयित्री -प्रेमशीला सिंह

मौलिक स्वरचित रचना

मोबाईल/whats -app: 9425008960  

 

 




“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता – जाग वीर  

जाग वीर  

जाग वीर वीरता भर ,निंद्रा का तू त्याग कर दे

भारती के आन पर तू, प्राण का बलिदान कर दे

प्रस्थान कर सीमाओं पर, अरि को तू ललकार दे

नरमुंड  सजा के थाल में , तू भारती को दान कर दे |

बाहुओं को लौह कर तू ,सीने को तू चट्टान कर ले

अग्नि से तू आग ले ,लपट ज्वालामुखी का भर ले  

भस्मासुर का रूप धर ,और दुश्मनों के प्राण हर ले

शेर बन दहाड़ उठ तू ,हाथियों का बल तू भर ले |

सागर से बड़वाग्नि ले ,गर्जन-तर्जन तू रोर भर दे

ला सुनामी तीव्रतर  तू ,विनाश तू विनाश कर दे

सोता सागर जाग जा तू, दुश्मनों का नाश कर दे

काट अरि के मुंड को तू ,कंदुक बना उछाल दे  | 

काल तू विकराल बन जा ,दुश्मनों का नाश कर दे

अपने पौरुष के तू बल से , धरा अम्बर को कँपा दे

है अमावस  रात गहरी , बन के सूरज प्रकाश दे

अंधकार घोर घिरा है ,रात्रि  को विहान कर दे |

 

कवयित्री-प्रेमशीला सिंह

मौलिक स्वरचित रचना

मोबाईल/whats -app: 9425008960  

 

 

 

 

  




प्रेम-काव्‍य लेखन प्रतियोगिता – प्रेम की परिभाषा

प्रेम की परिभाषा

 

 प्रेम की पवित्रता परखना हो तो 

भगवान की सूरत से परखों

प्रेम छोडने के लिए नहीं

                                                  पाने के  लिए  किया जाता है                                    ।।  1   ।।

 

प्रेम की आंंधी इन्‍सान को 

राजा से  रंक  भी बना  सकती है 

प्रेम तो दो आत्‍माओं का पवित्र  मिलन है 

                              प्रेम ही सच्‍चा रिस्‍ता  है  जिसमें प्‍यार ही प्‍यार  हैै                ।। 2 ।।

 

प्रेम को पाने के लिए जान की आहुती तक देनी पडती है

तब कोई प्रेम की ज्‍योती जगमगाती है 

प्रेम की गहराई सात समुंदर से गहरी है और हिमालय से भी उॅँँची है

                        प्रेम काेे गर सच्‍चा प्रेम मिले तो जीवन स्‍वर्ग ही स्‍वर्ग बन जाता हैै          ।।  3 ।।

 

 

 




देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता

1****** “मातृ वन्दना” *****

हे जन्मभूमि, हे कर्मभूमि, हे धर्मभूमि है तुझे प्रणाम!
ऐ रंगभूमि, ऐ युद्वभूमि, ऐ तपोभूमि है तुझे प्रणाम!!

सम्प्रदायों की सरिताएँ हैं, बहु धर्मों का संगम है
है वीरों की तू क्रान्तिभूमि, ऐ क्रान्ति भूमि है तुझे प्रणाम!

जौहर की ज्वाला तुझमें है, तुझमें है शीतलता महान
ऐ महादेश, ऐ महाभूमि, तुझको है मेरा सत-सत प्रणाम !!

वीरों की तुम बगिया हो, इस बगिया के हम फूल
प्रेम,अहिंसा धर्म हमारा, यही हमारा मन्त्रमूल !!

तू धड़कन की उद्भव, हर जन की है प्राण
तुझे समर्पित तन व मन और समर्पित मेरा प्राण !!

हे जन्मभूमि, हे कर्मभूमि, हे धर्मभूमि है तुझे प्रणाम!
ऐ रंगभूमि, ऐ युद्धभूमि, ऐ तपोभूमि है तुझे प्रणाम !!
…………………………………..✍️ स्वरचित एवं मौलिक रचना:’बृजेश आनन्द राय’
2-
………….कविता………….
” भारत वन्दन “
………………………………
मरू को शस्य श्यामला कर दे, पर्वत पर जो दुर्ग बना दे;
ऐसी ‘भारत की मानस’ है, अजन्ता में बुद्धत्व जगा दे !!
टेरीकोटा से परकोटा तक, वास्तुकला स्थापित कर दे;
ये ‘आर्यावर्त का वैभव’ है, रेत को जो स्वर्णिम आभा दे !!
ऋचा में संगीत गूंँजती, महामृत्युंजय का वरण करती;
यज्ञ, शंख, ओंंकार की संस्कृति, ताण्डव को शिवत्व से भर दे !!
देववाणी आकाश -गुंजित, अट्टालिका प्रतिध्वन-निनादित;
ताल, थाप, शास्त्रीय-सनातन, अखिल विश्व झंकृत कर दे !!
वेद, ऋषि, कृषि-ज्ञान;
योग, आयुष परम्परा महान;
लोक-विद्या, विविध रंग, ‘आदि-जन-मन’, सुख सुषमा दे !!

स्वरचित एवं मौलिक ✍️ बृजेश आनन्द राय”
3:-
**************************3जागो हे भारत की युवा-शक्ति”
**********’कविता’************

“जागो हे भारत की ‘युवा-शक्ति’ !”
सिन्धु में लहर उठे,
वायु में भवर उठे,
गिरि में भूचाल है;
उत्तर क्षितिज लाल है!
जागो स्वाभिमान से,
देश के सम्मान से,
है ‘शत्रु’ दर्प तोड़ना;
गर्दन है मरोड़ना…
अब न झुकेंगे कभी,
अब न सहेंगे कभी ;
छल में जो हैं खो दिये-
वो भी पा लेंगे सभी !
मांँ भारती की ‘करने को भक्ति ‘!
जागो हे भारत की युवा-शक्ति!!
अक्साई, गलवान हो,
कश्मीर, डोकलाम हो,
द्रास, बटालिक के लिए;
चाहे भीषड़ संग्राम हो !
हम डटेंगे हर जगह ,
हम मिटेंगे हर जगह ,
अपने मातृभूमि की-
एक इंच न छोड़ेंगे जगह…!
ऐ ‘शत्रु’ ! मत घूरना,
आस्तीन मत सिकोड़ना;
भुजाएं हम तोड़ देंगे,
मस्तक हम फोड़ देंगे,
लद्दाख की बात करोगे…?
तिब्बत में चीर देंगे!
मांँ भारती से मिलती है शक्ति!
जागो हे भारत की युवा-शक्ति !!
प्रेरित हम राम से,
योगेश्वर के काम से,
बुद्ध की अहिंसा और-
नानक के गान से !
प्राचीनतम इतिहास हम,
सनातनी विकास हम;
हड़प्पा मोहन जोदड़ो की-
‘सभ्यता विकास क्रम’ !
‘हमें तुम विज्ञान दोगे…?’
( दूसरे देशों से प्रश्न )
‘तकनीकी का वरदान दोगे…?’
सीखो, आगम-वेद से ;
आर्यों के मेधा-योग से;
ऋषियों के संयम और-
त्रिपिटक के त्याग से!
अद्भुत है हमारी आत्मशक्ति!
जागो हे भारत की युवा शक्ति!!
**************************✍️बृजेश आनन्द राय *************************
कविता(गीत)शीर्षक:”गगन में गूंज रहा जयगान”

…………. गीत ……..
गगन में गूँज रहा जयगान,
मेरा प्यारा भारत देश महान!!-टेक!!
नव जागृत, नव मन प्रमुदित,
नव आत्मबल, नव पुनर्संगठित;
‘हर भारतवंशी’ – नव इच्छित
-‘देश का भविष्य में द्रुत उत्थान’!
मेरा प्यारा भारत देश महान!!
गगन में गूंज….. …. !!.1टेक
‘हिमगिरि उत्तुंग, विस्तृत सागर’,
प्रसन्न रहें,जिसके यश गाकर;
‘महापुरुषों की अमर कीर्ति-
और अन्तरिक्ष भेदता ज्ञान’!
मेरा प्यारा भारत देश महान!!
गगन में गूंज… …. !!टेक2
जहाँ पूजे जाते, जड़-जंगम,
पर्वत और नदियों का संगम;
मौसम के गीतों में रहते-
घाघ-भट्टरी के अनुमान!
मेरा प्यारा भारत देश महान!!
गगन में गूँज रहा….. …!!टेक3
नभमंडल से रविमंडल तक,
दिग्मंडल से जग मंडल तक;
भारत के विस्तृत भूमण्डल पर-
कर रहा देश अब नव-संधान!
मेरा प्यारा भारत देश महान!!
गगन में गूँज… ….महान!!टेक4
……………………………………
स्वरचित मौलिक:✍️’बृजेश आनन्द राय’
*************************
5-
कविता शीर्षक: ‘भारत देश हमारा प्यारा’
…………………………………….
……………कविता…………..
प्रगति पथ पर कर्म निरत
स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत
लोकतन्त्र का अनुपालक
सम्पूर्ण विश्व में न्यारा।
भारत देश हमारा प्यारा।।1।।
जनमन की है महागाथा यह
समता समरसता की भाषा यह
स्रम-संगीत सर्वहारा की
‘कृषि-प्रधान’ देश का नारा ।
भारत देश हमारा प्यारा।।
सर्वजन हिताय, बहुजन सुखाय
संस्थापित सर्व सांविधिक निकाय
‘मानवाधिकार और कर्तव्य ज्ञान’
गणतन्त्र सभी को प्यारा।
भारत देश हमारा प्यारा।।
‘गुटनिरपेक्ष-तटस्थता-सिद्धान्ता’
‘पंचशील-नियम-पालनकर्ता’
‘विश्व शान्ति का अग्रदूत’
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ तान हमारा।’
भारत देश हमारा प्यारा।।
‘सदा सेवा में तत्पर’ भाव जहाँ पर
‘अहर्निशसेवाम्यहम’ चाव जहां पर
कर्मयोद्धाओं का गाँव जहाँ पर
‘परहित-जीवन-अर्पण’- संकल्प हमारा।
भारत देश हमारा प्यारा।
…………………………………….
स्वरचितः एवं मौलिक(C)’:-✍️बृजेश आनन्द राय’जौनपुर(उ.प्र.)*****************************************
…………………………… …
6:-
……..”कविता”………..
………………………………..”बच्चों के लिए”…………….

  • अपने सुकर्मों की पहचान बनो तुम
    इक अनुशासित इंसान बनो तुम
    जिस पर गर्व करे यह देश तुम्हारा
    ऐसे नागरिक महान बनो तुम !!
    पढ़ो, लिखो, कूदो, खेलो
    सबसे तुम अच्छा बोलो
    दुर्भावना से रहकर दूर सदा
    सबकी शुभेच्छा तुम पा लो !!
    सबके प्रिय होवो! सबके दुलारे
    दुख-सुख मेंं बनो तुम सबके ‘सहारे’
    प्रियदर्शी, समदर्शी हो जाओ
    बनो भारत माँ के आँख के तारे !!
    सदाचार श्री राम का पा लो
    स्वयं को महावीर,बुद्ध बना लो
    अम्बेडकर की समता हो तुममे
    गाँधी जी के धैर्य को पा लो !!
    क्रांति की राह, सत्य की राह हो
    सत्य-सत्य बस सत्य की चाह हो
    सत्य हो जीवन, अर्पण सत्य हो
    सत्य के लिए समर्पण सत्य हो !!
    टैगोर, बंकिमचंद की प्रतिभा हो
    शरत, प्रेमचन्द की करुणा हो
    तुलसी का समभाव हो तुममे-
    हर जीव में ईश्वर को देखो !!
    सुभाष सदृश नेतृत्व का गुण हो
    भगत सिंह की मेधाशक्ति हो
    निर्भीक बनो तुम ‘चन्द्र शेखर’ सा
    बिस्मिल, बटुक सा त्याग शक्ति हो !!
    राणाप्रताप सा स्वाभिमानी हो
    वीर शिवा सा बलिदानी हो
    मात्रृभूमि की रक्षा हित
    सिख, मराठों सा अभिमानी हो !!
    देश की इच्छा, देश की रक्षा
    देश प्रेम में हर इक परीक्षा
    ऐतिहासिक गौरव से अनुप्राणित-
    आत्मबोध की हर इक शिक्षा !!
    ‘दया-विवेकानन्द’ को धारण कर लो
    आर्यावर्त के हर संताप को हर लो
    विस्तृत होवो सिन्ध से शिलांग तक
    कश्मीर-केरल को एक सा कर लो !!
    मणिपुर, नागालैंड, आसाम, बंगाल में
    सत्य सनातन की संस्थापना कर दो
    सेवा-शिक्षा, कार्य समर्पण के दम पर
    आर्य संस्कृति पुनः अवतारित कर दो !!
    अपनी संस्कृति, आर्य संस्कृति
    अपनी सभ्यता ‘सप्त-सैन्धव’
    अपनी रचना-उपनिषद गीता
    आध्यात्म सम्पन्न अपना वैभव !!
    गर्व करो तुम ‘भारत’ में जन्में
    शस्य श्यामला धरती पर खेले
    न इतनी समृद्ध आध्यात्म- विरासत
    न कहीं ऐसा पवित्र संस्कार मिले ।।
    ‘सम्पूर्ण मानवी बनने में
    यह धरती है स्वयं सहायक’
    रामायण-गीता में भगवान कह गए
    कह गए सरस्वती के अमर गायक ।।
    ……………………………….
    स्वरचित एवं मौलिक
    ✍️बृजेश आनन्द राय राय,जौनपुर,उत्तर प्रदेश
    भारत।मो.9451055830
    ……………………………….



गुलाम

गुलाम 3 –

रेत रेत खेलती लङकियों ने
फैसला किया
अब नहीं खेलेंगे रेत रेत
और  कुछ हाथों ने अचानक
 बन्दूक थाम लिया
नेस्तोनाबूत कर दिए गये
कितनी गुङियों के घर
तोङ दी गई कलमें
फाङ डाले गए कई महाकाव्य
और गिरा दिए गए
पुरातन सभ्यताओं में निर्मित
रेत के महल।
छप तो सकती थी
यह खबर भी
तमाम ऊल जलूल खबरों की तरह
मगर सभी समाचार पत्रों द्वारा यह
एक एक कर नकार दी गई
आखिर औरतें सृष्टि के आदिम विचारों
की सहभागी नहीं
उन्हें नहीं मालूम उत्तर कोरिया की
सीमा रेखा की हलचल
न फ्रांस के राष्ट्रपति का नाम ही
वो बहस नहीं करती मार्क्स वाद पर
जबकि ये सभी मुद्दे
उन्हें आजाद कर सकते हैं।
उनकी अपनी खुद की गुलामी से
जो चुनी गई है
उन्हीं के द्वारा ही
उनके खुद के लिए।




देश भक्ति काव्य रचना प्रतियोगिता

            ।। मेरा जुनून देश भक्ति ।।

हे मातृभूमि मेरी, तुझ पर यह जीवन अर्पण हैं ।

तेरा मानना मिटने दूंगा, तू विश्व का दर्पण है ।।

“मेरा जुनून है” राष्ट्रभक्ति का, नाम नहीं मिटने दूंगा ।हे भारत मां भारती, तेरा मान ना झुकने दूंगा ।।

यह मेरा मानव चोला तो, तुझ पर ही समर्पण है ।

हे मातृभूमि मेरी, तुझ पर यह जीवन अर्पण है ।।

“मेरा जुनून है” विश्व गुरु का, पद पर भारत को लाना है।

सोने की चिड़िया पहले थी, अब फिर सोने का बनाना है।।

त्याद तपस्या धर्म कर्म और, सेवा का आकर्षण है।

हे मातृभूमि मेरी, तुझ पर यह जीवन अर्पण है ।।

“मेरा जुनून तो” ध्वज पर तेरे, नया रंग भरने का है ।

इतिहास पुरुष बलिदानी जैसा, लड़ते-लड़ते मरने का है।।

सूर वीर सपूतों के संग, तेरी महिमा का वर्णन है ।।

हे मातृभूमि मेरी, तुझ पर यह जीवन अर्पण है।।

“मेरा जुनून है, ऋषि-मुनियों को, व्यापक सम्मान दिलाने का।

शाकाहारी नशा मुक्त और, भारत नया बनाने का ।।

नेम नियम विद्या “जलक्षत्री”, साधना का दर्शन है ।

हे मातृभूमि मेरी, तुझ पर यह जीवन अर्पण है ।।

 

रचनाकार- अशोक धीवर “जलक्षत्री”

ग्राम -तुलसी (तिल्दा नेवरा )

जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)

सचलभास क्रमांक – 9300 716 740