1

देश भक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु कविता

शहीदों के खून की खुशबू मिटने नही देगे, 

हम अपने परचम को कभी झुकने नही देगे |

हमे लुटने के दर्द का अहसास हो चुका है, 

बमुश्किल सम्हले है आबरू लुटने नही देगे |

एक बार बहकावे में हमने घर बाँट दिया, 

अब आँगने में कोई दीवार बनने नहीं देगे |

दुनियाँ में आजादी से बड़ी कोई नेमत नहीं है, 

ये शहीदों की अमानत है बिखरने नही देगे |

बापू के चमन में अमन के पंकज खिलेगे,

हम किसी सैय्याद को बसेरा करने नहीं देगे |

आजाद फिजाओ में लहरायेगा तिरंगा , 

हम अपने परचम की साँस घुटने नही देगे |

पंकज कुमार श्रीवास्तव

स्वरचित मौलिक रचना

 




देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतू कविता “भारत वंदना”, “अमन के रखवाले”, “मातृभूमी”, “राष्ट्रहित”, “मत लाशो का व्यापार करो”

    1. भारत वंदना

आतंकित पीड़ित है आज गौरवमयी भारत माँ

अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन

धानी के अंचल में तरुणाई सोती है

सावन के झूलों को डाली अब रोती है

दिग्भ्रमित हैं युवा जन दिखला दे राहें वतन

अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन

नहीं भाषा में अब भेद, है धर्म हमारा एक

हम सब भारतवासी सबकी नियत है नेक

गौरवमयी वाणी में करते हैं राष्ट्र अर्चन

अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन

हम सबका यह सन्देश अब नहीं बंटेगा देश

सबके सद्कर्मों से जन जन के मिटेंगे क्लेश

मानव के मिटे कृन्दन सर्वत्र हो चैन अमन

अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन

आतंकित पीड़ित है आज गौरवमयी भारत माँ

अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन

*****

सतीश आचार्य

‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001

मो. 94142 19618

Email : [email protected]

व्हाट्सएप नंबर  94142 19618

 

 2. अमन के रखवाले

 

हम है अमन के रखवाले, युद्धों को अब कैसे टाले

ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी

 

बिना दीन वंदन के कैसे मिटेगा

धानि के अंचल का अविरल ये कृन्दन

सफर की डगर पे टिकी है निगाहें

कहो अब कटेगी विषमता की राहे

समर्पित हो समभाव के लक्ष्य लेकर,जागी है अब ये जवानी

ग़म से नहीं दोस्ताना हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी

,

वतन के हम राही समर्पित सिपाही

न कोई पराया सभी भाई भाई

वतन के लिए ही सदा हम जियें है

अमन की फ़िज़ा में करें क्यूँ लड़ाई

उठाई वतन पर किसी ने जो आँखे, याद आयेगी उनकों नानी

ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी

 

वसुधा पुकारे लड़े मिलके सारे

है संकट में दुनिया सभी मिलके तारे

ज़माना करे मान हर उस मनुज का

जो निज प्राण देकर जगत को बचाएं

अगर अब ना समझे ना संभले तो समझो, सबकों कीमत पड़ेगी चुकानी

ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी

 

हम है अमन के रखवाले, युद्धों को अब कैसे टाले

ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी

*****

सतीश आचार्य

‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001

मो. 94142 19618

Email : [email protected]

व्हाट्सएप नंबर  94142 19618

 

  3. मातृभूमि

ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन

आंच ना आयेगी तेरी शान पर खाते कसम

ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन

 

नफरतों के बीज बोकर, अमन की क्यों आस पाले

इस विषम आतंक वेला में  कहो अब क्या बचाले

वेदना के इन क्षणों में शांति का आव्हान करलें

देशहित निकले हमारे प्राण, यह संकल्प कर ले

सरहदों की शान में मिटना हमारा है धरम

ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन

 

आज अरि को खटकता है, मेरे गुलशन का अमन

उस चमन को कौन लूटे जिसके रखवाले है हम

धूल में मिल जाए ना जो शान की भारत की रही

वक्त का दस्तूर कहता, ये शहादत की घड़ी।

आखिरी मौका है वापस खिंच ले बढ़ते कदम

ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन

 

मन जले जब देश में अलगाव की बातें चले

देश को बर्बाद करने सांड छूटे क्यूँ करें

जंग की वेला वतन में और हम वीतराग गाये,

देशहित जन्मे है सारे देश पर सब जान लुटाये।

आज जग भी जान ले मां के जायों का ये जतन

ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन

 

ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन

आंच ना आयेगी तेरी शान पर खाते कसम

*****

 

सतीश आचार्य

‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001

मो. 94142 19618

Email : [email protected]

व्हाट्सएप नंबर  94142 19618

 

 

    4. राष्ट्रहित

 

राष्ट्रहित बलिदान अब पीढियां कैसे मिलेगी

देशद्रोही की समर्पित भावना कैसे फलेगी

जबतलक मुझको यहाँ मिलता नहीं परिणाम है

आ मृत्युतक जीवन में देखो अब कहाँ विश्राम है

 

विश्रामहिन जीवन बने निज राष्ट्र के खातिर यहां

संग्राम गृह संघर्ष आभूषण बनेंगे अब यहां

विश्रामहिन जीवन को अब तरुणाई ने ललकारा है

निज राष्ट्र गौरव से कहें हिन्दुस्थान हमारा है

 

ऐसा न हो ये राष्ट्र योय कल तुम्हारें कर्म पर

ऐसा न हो कि जग हँसे कल राष्ट्र के इस मर्म पर

निज कार्य को तुम राष्ट्र हित साधक समझ बढ़ते चलो

निज स्वार्थ को तुम राष्ट्र हित बाधक समझ चलते चलो

 

इस राष्ट्र के अस्तित्व से ही अब हमारा मान हैं

जो राष्ट्र गौरव को तजे वो नर पशु सामान है

राष्ट्र गौरव के लिए जसने तजे निज प्राण है

उस राष्ट्रभक्त पुरुष का ही स्वप्न हिन्दुस्थान है

 

अब ही अगर कुछ शेष है दिखलादो मेरे साथियों

अब भी अगर कुछ गर्म है उठ जाओं मेरे साथियों

संग्रामहिन जीवन को अब इस राष्ट्र ने पुकारा है

समवेत स्वर में सब कहें हिन्दुस्थान हमारा है

*****

सतीश आचार्य

‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001

मो. 94142 19618

Email : [email protected]

व्हाट्सएप नंबर  94142 19618

 

 

    5. मत लाशों का व्यापार करो

 

जीवन संघर्षों का सागर तुम हंसते – हंसते पार करो।

अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।

 

आतंकवाद-अलगाववाद घाटी में आज चले गोली।

केसर की क्यारी हुई लाल  क्यूं खेले हम खूनी होली।

गैरों के बहकावें में तुम मत अपनों का संहार करो।

अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।

 

हादसें हो गये जो सारे हमें उनको आज भुलाना है।

भूले-भटके भारतवासी को आज राह पर लाना है।

मत भूलो देश सभी का है मिलकर के सब हुंकार भरो।

अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।

 

ये वतनपरस्ती का जज़्बा हर दिल आज जगाना है।

जो द्रोह की बात करे हमें उसको सबक सिखाना है।

जो मिटे देा की खातिर उन बलिदानों का सम्मान करो।

अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।

 

परहित के सारे काम करें जीवन मर्यादित हो अपना।

खुशहाल जींदगी हो सबकी ये देश बने सुंदर सपना।

हिरे से मनख़ जमारे को  मत सडकों पर निलाम करो।

अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।

 

जीवन संघर्षों का सागर तुम हंसते – हंसते पार करो।

अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।

*****

सतीश आचार्य

‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001

मो. 94142 19618

Email : [email protected]

व्हाट्सएप नंबर  94142 19618

 




गणतन्त्र दिवस

गणतन्त्र दिवस

छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को
मेरा भारत घोषित हुआ गणतन्त्र
संविधान लागू हो गया और
भारत बन गया पूर्ण गणतन्त्र ।

पर यह मुकाम हासिल करने में,
कितनों ने जान गँवाई थी।
खुद कितनी रातें जेल में रहकर ,
हमको आजादी दिलवाई थी ।

गणतन्त्र भारत का तिरंगा
कुछ पूछ रहा तुझ से ओ बन्दे ।
उन वीरों को भी याद करो
जो झूल गए फाँसी के फन्दे।

गाँधी, सुभाष , तिलक, और नेहरू
चन्द्रशेखर, पटेल , अम्बेड़कर
भारत को सम्मान दिलाया ,
खुद अत्याचारों को झेलकर।

स्वतन्त्र हो गया, गणतन्त्र हो गया
भारत होगया विश्व में सम्मानित।
पर भारत के सम्मान के खातिर
हमें त्यागने होगें अपने निजी हित ।

देशहित हो सबसे ऊपर ,
आओ शपथ लें मिल कर आज ।
फिर से बन जाए सोने की चिड़िया
विश्व करेगा भारत पर नाज ।

क्या हम आज़ादी पा लेते,
गर यही सोचते वीर हमारे।
खुली हवा में साँस ना मिलती
छँटते नहीं बादल कारे।

शत् शत् नमन है उन वीरों को,
प्राण दिए जिन्होंने अपने
बाजी लगा दी अपनी जान की,
पूरे किए हमारे सपने।

आज़ादी तो मिल गई हमको,
पर क्या सचमुच हम आज़ाद हो गए?
क्यूँ प्राण गँवाए उन वीरों नें
क्या वो सपने साकार हो गए?

अंधविश्वास और कुटिल कुरीतियाँ,
अब भी करती हम पर राज
कैसा होगा भविष्य हमारा
जब नहीं सुरक्षित हमारा आज।

भ्रूणहत्या, बलात्कार, चोरी,
दान-दहेज की बेड़ियाँ,
ऐसे दानवों के आगे हम
अब भी रगड़ते एड़ियाँ।

सादा जीवन उच्च विचार,
ये नारा हम लगाते हैं।
जब सोच हमारी छोटी है,
तो कैसे यह कह पाते हैं?

ये ज्वलंत समस्याएँ हैं हमारी,
जिनके हम अब भी गुलाम हैं।
सोच नहीं बदलेगी जब तक
हम आज़ाद होकर भी गुलाम हैं।

सोच नहीं बदलेगी जब तक

हम आज़ाद होकर भी गुलाम हैं।

(स्वरचित व मौलिक ) 

…समिधा नवीन वर्मा 




देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु कविता

शहीद 

देश की आन पर कुर्बान हो गए 

सरहदों पर जो अड़े मेरी जान हो गए

 हूँकारते रहे वो सिहं सी दहाड़ से

 मात दे वो मौत को हिंदुस्तान होगए  

 

वतन तेरी याद का दिया जला गए

 दुश्मनों के सीने में तिरंगा गड़ा गए

 वो शहिदी पा के भगवान हो गए 

देश की आन पर कुर्बान हो गए

 

खून मेरा.पानी ना वह तो उबल गया 

शत्रु की  धरती पर ज्वाला उगल गया

प्राण जो बचे रहे हिन्द ए शान होगए 

देश की आन पर……. कुर्बान हो गए 

 

दनदनाती गोलियां या बम के गोलेहो 

चीर दूंगा छातियां जो तने वतन पे जो

जयकारा देते हिंद का चिर निंद्रा सो

गए देश की आन पर..कुर्बान हो गए 

 

मां मेरी भी मेरा इंतजार करती है 

कामिनी मेरी सदा है  आहें भरती है

 मां बना हम भारती, एक पैगाम हो

गए देश की आन पर.. कुर्बान हो गए 

 

कहता है दिल मेरा की याद कर लेना

मेरी मां बहन बीवी को सम्मान दे देना

शहीदी ना भूलें हम प्राणदान कर गए

देश की आन पर…कुर्बान हो गये 




प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु “चंदा”

चंदा

                                                                            [ “हरिश्चंदा” (प्रेम की अनन्य गाथा) प्रेम काव्य कविता का नायक हरि अपनी चंदा के सौंदर्य पर कोकिला से संवाद करते हुए लेखक “हिंदी जुड़वाँ”]

कुछ तो बोलो, हरि, अपनी चंदा का हाल सुनाओ।
कैसे दिखती है तुम्हारी चंदा, जरा मुझको भी बताओ।

सुनो कोकिला मेरी चंदा, सौम्य प्रभा है प्रकृति प्यारी।
निश्छल प्रेम की गगरी, आभा सुंदर स्वर्ग से भी न्यारी।

जब जानोगे दिव्य चंदा को, तुम चंदा चंदा हो जाओगे।
सुनो हृदय निधि खोलकर, तभी चंदा को समझ पाओगे।

हे कोकिला, चंदा नहीं कोई मांसल तन की सुन्दर बाला।
चंदा भाव है विचार है स्मरण है शक्ति सौंदर्य की माला।

जिसके स्मरण मात्र से ही काव्य संसार रचते जाते हैं।
जिसके मुखमंडल को देखकर कवि मद में खो जाते हैं।

हे कोकिला मेरी प्यारी चंदा, कहीं शारदे कहीं रति ।
कहीं रमा कहीं खुशी कहीं कवि की कलम की गति।

मुखारविन्द की मंद हँसी चुरा ले जाती स्वर्ग का मोल।
खिले अम्बर अप्सराओं सम पुलकित गुलाबी कपोल ।

                                                                   चंदा का परिधान सुन्दर दिव्य, कहीं हरित कहीं लाल।                                                                   इसमें भिन्न भिन्न रंगों से सजा हुआ इंद्रपर्णी कमाल ।

छटा बिखरी रहती पान के पत्तों सी लताओं सी अद्भुत ।
इस रूप में उतर आती नित विष्णुप्रिया रूप अच्युत।

वहीं मस्तक बिंदी चमके शशि सविता को देती मात ।
शीर्षक पट्टिका मध्य दमके, भगीरथी की सुन्दर बिसात।

श्याम शेष केश सजे हिमालयी दिव्य रजनी में चमक रहे।
देख शारदे रति लक्ष्मी त्रयी देवी, देवगण भी हो रहे ठगे।

भौहें तनी धनुष के चाप में प्रकृति गांडीव उठा रही।
मृगनयनी चक्षु अति प्रिय रति रूप में हिय भा रही है।

मुख नाशिका हीर सरिस शोभा सहस्र चंद्र लगाती।
कर्ण कुंडल की आभा मन मोह हृदय छवि बनाती।

औष्ठगुलाबी लालिमा लिए, देव ललचाए, पान को तरसे।
विवृतमुख सौम्य मुस्कान पर, ठगे स्वयं काम भी हरसे l

सीने पर उभरते ऊर्जा लिए, बढ़ती उरोज की परिधि ।
दिव्य रूप को सुन्दर बनाती है यह अद्भुत दाङिम निधि l

ढका तन, लिपटा अम्बर भी अपने भाग्य पर इतराता ।
इस अनुपम छवि की पराकाष्ठा से काम भी कतराता।

                                                                   इतनी अद्भुत दिव्य श्री, मेरी चंदा, जिसका रूप अनूप ।
                                                                  इस सौंदर्यपान को तरस रहा समस्त देवमंडल का भूप l

हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”
शिक्षा – MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित
सम्प्रति-हिन्दी शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय पूठकलां, शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली
9829960782 [email protected]
माता-पिता – श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
प्रकाशित रचनाएं
जलियांवाला बाग दीर्घ कविता-खण्डकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
मैं हिन्दी हूँ – राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य-महाकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ राजस्थान भारत
कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य
वीर पंजाब की धरती (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ – महाकाव्य )
उद्देश्य- हिंदी को प्रशासनिक कार्यालयों में लोकप्रिय व प्राथमिक संचार की भाषा बनाना।
साहित्य सम्मान –
स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश l
साहित्य श्री सम्मान 2020- साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र l
ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020- ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक l
सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड।
कला शिरोमणी साहित्य सम्मान 2020- ब्रजलोक साहित्य शोध संस्थान, आगरा उत्तर प्रदेश l




प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु “मिलन”

मिलन

प्रिय जब से सुनी है मेरे कानों में तेरे कदमों की आहट।
दिल धड़कने लगा है, बैचेनी बढ़ी, बढ़ गयी घबराहट।

थम गई है सांसे तुमसे तुम्हारा प्रेम छुपाना चाहती हूं।
बस अपनी आंखों से ही अपना प्रेम बताना चाहती हूं।

जब तुम मुझको देखोगे, खुद को रोक ना पाओगे।
मेरा होने से तुझसे मिलने को अपने कदम बढ़ाओगे।

कब से लिख रही हूं अपने स्नेह मिलन की एक कहानी।
जब मिलेंगे तो सुनाउंगी दो दिलों के मिलने की जुबानी।

बस दो कदमों की दूरी मानो मिलो की दूरी लगती है।
तेरा आना ही उमंग मेरी, उष्णता भी शीतल लगती है।

जब तुम मिलोगे तो तुझमें ही मदहोश हो जाऊंगी ।
लिखी प्रेम कहानी तुझे अपनी बांहों में सुनाउंगी ।

टूटकर बरसेगा स्नेह, गिले-शिकवे दूर हो जाएंगे ।
अद्भुत मिलन होगा हमारा देव भी ठगे रह जाएंगे।

 

पिंकी भार्गव “हरि”

हिंदी भवन
गाँव कराला
उत्तर पश्चिम – ब, नई दिल्ली भारत 110081




देश भक्ति प्रतियोगिता हेतु प्रेषित कविता- कविता का शीर्षक-1 लोकतंत्र 2.वो देश है…मेरा 3. वक्त पे संभालने वालों..!!

देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता के लिए प्रेषित कविताएं

 

1.कविता का शीर्षक :- लोकततंत्र

लोकतंत्र की राजनीति में,
       ‘लोक’ खो गया ‘तंत्र’ बाकी हैं।
           लोक इधर-उधर धक्के खा रहा हैं…!
             तंत्र अपनी ही मोझों में उड़ा जा रहा हैं ।।

लोक से तंत्र का बिछुड़ कर चलना
        अपनों पर बड़ा सितम ढा रहा
        जिसमें…
          जन सामान्य मरा जा रहा हैं।
    फिर भी तंत्र को कोई साध कर
         सही दिशा क्यों नहीं दिखा रहा हैं ?
           इसी चिंता में घुट-घुटकर…
              प्रबुद्ध से सामान्य वर्ग तक पीसा जा रहा।
                 बाक़ी इसके अतिरिक्त सब
             ठीक-ठाक चलता जा रहा….!
                यह कैसा वक्त आ रहा …?

अपना अपनों के लिए ही
        घातक बनता जा रहा।
        गीदड़ शेर का चोला पहन कर-
            मोज मना रहा
इस शेर से डर कर मानव समाज
            जीवन बिता रहा।।
              कैसा हुआ ये जमाना…?
           ये लोकतंत्र कहाँ से कहाँ… जा रहा ?
वह तो बस अपनी ही मौज़ों में
          बहता जा रहा
             बस…जा रहा

 

2. कविता का शीर्षक : – वो देश है…मेरा..!!

देश हमको…
      क्या -क्या नहीं देता ?
रहने को जो भूखंड देता
       वो मात्र भूमि का टुकड़ा नहीं ?
हमारे जीवन का आधार, सुमधुर स्वप्नों का संसार
       हमारी मातृ भूमि और जीवन में …
           खुशहाली फैलाने का सु-संगम ।

यहाँ की नदियाँ …
         पवित्रता और जीवन का आधार।
            उत्तर में गंगा-यमुना-सरस्वती और ब्रह्मपुत्र,
             मध्य में नर्बदा-ताप्ती-चम्बल और महानदी,
               दक्षिण में गोदावरी-कृष्णा-कावेरी और पेन्नार
भारत भूमि में शिराओं और धमनियों सम
          प्रवाहित हो कर भू को हराभरा और संपन्न बनाती।

उत्तर में हिमालय भारत का शीश मुकुट,
          अरावली की सुमधुर छटाएँ।
               मध्य में विंध्य,सतपुड़ा और अजंता,
                  संस्कृति के विविध रूप दिखाए।।
             पूर्वोत्तर की घनगौर बरसातें और
                विविध लोक-संस्कृतियों में प्राण फूंकती
             सुरम्य संयोजन की छटाएँ
              मन को आनंद विभौर कर जाए।
दक्षिण में नीलगिरि-अन्नामलाई-बाबाबूदन
                इलायची,शिवराय,वेंलिकोंडा पहाड़ियों के
    बनिवासियों की निश्छलताएँ सहज ही मन को भाए।।
      पूर्वोत्तर में गारो-खासी-जयंतिया की पहाड़ियाँ
           मानसून का आधार,
हरीतिमा की रवानी,
        संस्कृति की जिंदगानी
निरंतर खुशियाँ बाँटती
     सब के मन में प्यार जगाती
पश्चिम में थार मरु की संस्कृति
      रेत के धोरों की निश्छलता
सहज ही मन को लुभाती

ये विविधताएँ ही  भारत को …भारतीय बनाती
       उत्तर में हिमालय, दक्षिण में हिन्द महासागर
           दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी,
         दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर,
   उत्तर पश्चिम में थार मरुस्थल
           निरंतर जिसकी शोभा बढ़ाता

वो देश है…मेरा..!!
        यहाँ की सांस्कृतिक विविधता,
जलवायु भिन्नता, खानपान-रहन सहन के
       विविध सतरंगी रंग सबके मन को भाते।
भारत भूमि सब रतनन को उपजावती
      देश प्रेमी जो मातृ भूमि पर
          सब कुछ न्यौछावर करती जाती
बड़े-बड़े उद्योगपति,जो विदेशों में भारत की शान बढ़ाते
      बड़े डॉक्टर और इंजीनियर
जिनका लोहा और गुणगान
      अमेरिका और विकसित देश भी मानते
              जोहरी,तपस्वी इसी भू की देन
जब कोई इस भू-पर आँख उठाता
        तो हमारी भारतीय सेना
       उसका मुँह तोड़ जवाब देने में
           तनिक भी विचलित न होती
भारत जन भी तन-मन-धन से
          इनका साथ निभाते
         कभी न अपने पाँव पीछे हटाते।

देश ने जो हमको दिया …
        उसका कितना फ़र्ज़ हमने अदा किया?
            लिया बहुत-बहुत और दिया कम-कम
        देश दिन पर दिन कहाँ से…
                  कहाँ पहुँचने लगा ?
जाने कितनों के सपनें पूर्ण हुए
                 तो कितनों के चकनाचूर ?

देश को देने के बाद जो दाय हमको मिला

                वो कितना और कैसा लगा?
यह चिंतन-मनन-मंथन का विषय है,
            देश किस-किस को क्या-क्या दे रहा?
कहीं रेवड़ बाँटने के चक्कर में
              क्वालिटी से कॉम्प्रोमाइज की यह नीति
कहीं घातक सिद्ध ना हो जाए ?
        गधे गुलाब जामुन खाए और
घोड़ों को घास खाने के भी लाले पड़ जाए
           बेड़ा ग़र्क होने से फिर कौन देश को बचाए?

3.कविता का शीर्षक :- वक्त पे संभालने वालों..!!

वक्त ने ..
         बे वक्त ही
          ये कैसे घाव दिये?
             अपने ही भीतर घात से
                  हम तार-तार हुए।

देश को स्वार्थियों से
         सजग रहना होगा ।
           वार्ना…?
अपनी ही हदों और चौहद्दियों को
            उम्रभर सहना होगा ।
वक्त रहते हम ना बोल पाये तो..?
           जीवनभर ऐसे ही सितम सहना होगा।

देश की सीमाओं के
        सजग पहरे दारों..
अपनी सहादत से माटी का
      कर्ज़ चुकाने वालों
         ये देश तुमको कभी भी
          भुला ना पायेगा..
वक्त-वक्त की नज़ाकत को
         वक्त पे संभालने वालों..!!
देश का सीना
       फ़क्र से ऊँचा करने वालों
          हे वीर जवानों..!!
अपनी वीरता के परचम को
           जन-मन में जगाने वाले
              हे वीर जवानों..!!

देश को भीतर- भीतर से
   खोकला करने वालों को
       अगर वक्त रहते
       बेनकाब ना कर पाये तो..?
          हमारा देश किस हाल में होगा..?
 हाल बेहाल होगा..!!
       अपनों का क्या हाल होगा?
देश ले भीतरी गद्दारों को
        अगर..
वक्त बेवक्त ना ढूंढ़ निकाला तो
           मेरा देश कहाँ जायेगा?
             बवतन कहाँ जायेगा?
               माटी का कर्ज कौन चुकायेगा?

मातृभूमि को अपने लहू से
        सींचने वालों..
ये देश हमेशा तुम्हारा
         कर्ज़दार हो..
तुम्हारे फ़र्ज़ को ना कोई भूल पायेगा
         हर वक्त जो फ़र्ज़ के लिये जिये..
             अपने वतन के लिए जिये..
  ये वतन आज़ाद रहे..
        ये देश आबाद रहे..
     ये लोकतंत्र और संविधान आबाद रहे..!
          हम रहे या ना रहे
      हमेशा ये मेरा हिन्दुस्तान आबाद रहे..!!

डॉ. मुकेश कुमार शर्मा (‘सुदीप’)
असिस्टेंट प्रोफेसर स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
महात्मा गांधी सरकारी आर्ट्स कॉलेज, चालक्करा, माही (U.T. पुदुच्चेरी)भारत
पिन कोड 673311
मोबाईल – 09660325669
ईमेल- [email protected]




देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता

 

 

 

परिचय: 

 नाम   –  डॉ . पद्मावती

जन्म स्थान -दिल्ली,

मातृ भाषा-   तेलुगु

शैक्षिक योग्यता – एम ए ,एम फ़िल , पी.एच डी , स्लेट. (हिंदी)

अध्यापन कार्य -गत 15 वर्षों से हिंदी भाषा साहित्य का अध्ययन और अध्यापन कार्य,   महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्यान .

   प्रकाशन   –   विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में 10 से अधिक शोध आलेखों का प्रकाशन .

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो में प्रतिभगिता और शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण .

प्रसारण-   आकाशवाणी पर आलेखों का प्रसारण .

विभिन्न साहित्य शिविरों और कार्यशालाओं में सक्रिय सहभागिता .

रुचि-  दर्शन , इतिहास , यात्रा, साहित्य में विशेष रुचि .

सम्पर्क;  सहायक आचार्य, हिंदी विभाग, आसन मेमोरियल महाविद्यालय ,चेन्नई, तमिलनाडु.

[email protected]                     9789924539, 9080232606

 

——————————————————————————————————————————–

 

 

                               धन्य धन्य ये भारत भूमि.

                         वंद्य  वंद्य हे भारत भूमि !!!!!!

मधुमय स्वर्णिम  पावन भूमि,

संत विभुओं की तपोवन  भूमि,

स्वर्ग तुल्य  मनोहारी  भूमि, 

अनुपम श्रद्धा का आधार यह भूमि !!!

 

भक्तानुरागियों की है वैराग्य भूमि,

वीर सुपूतों की यह है कर्म भूमि,

अतुल संपदा का भण्डार है यह भूमि,

प्रेम रस पूरण अमृतमयी है स्वर्ण भूमि !!1!

 

 

है यह वह भूमि जिसने जगत  को ,

प्रेम  सुधा का  है घूँट पिलाया,

 क्षमा ,त्याग, करुणा आदर्श  है इसके ,

ध्यान योग का है मंत्र सिखाया !!!!!

 

ज्ञान वृष्टि की कुसुमित भूमि,

त्याग  बलिदानों से  मुकुलित  भूमि,

विश्व विजयी है भारत भूमि,

शांति, अहिंसा तप की भूमि !!!!

 

 

इस मिट्टी से उगता है सोना,

ब्रह्मांड उदर का कोना कोना ,

तृप्त  कल-कल अमृत नदियाँ,

कृष्ण, कावेरी  गंगा ,जमुना !!!!

 

ललाट है भाल स्वरूप हिमालय ,

तीर्थ-स्थलों की पावन भूमि.,

द्वादश ज्योतिर्लिंग उदर में,

बद्री, कैलाश समागम भूमि  !!!!!  

 

पूरब का है  प्रहरी पर्वत ,

सुंदर बन से सघन विपिन वन,

हरित हरितिमा से आलोड़ित,

बहती पवन गुंजार करती यह भूमि.!!!

 

पश्चिम में है अतुल पयोनिधि ,

गहन विशाल लहरों की परिधि,

रक्षा करती शत्रु से अविचल,

अनल उगलती नीचे तपती मरुभूमि   !!!!!

 

दक्षिण का है दिव्य वैभव,

पद- प्रक्षालन करें त्रिदिश रत्नाकर,

भव्य उत्तुंग शिखर से मंदिर,

ज्ञान, भक्ति ,कला की संगम भूमि   !!!!!

 

 

कबीर, मीरा,  टैगोर की भूमि,

नामदेव, आसन, भारती की  भूमि,

 विवेक, महावीर ,बुद्ध  की यज्ञ भूमि,

शंकर, मध्व, रामानंद ,चैतन्य की आनंद भूमि   !!!!!!!

 

यहाँ ज्ञानियों की दिव्य दृष्टि ने ,

भू मण्डल  आलोकित किया,

सदियों पूर्व ही धरा और नक्षत्रों के,

समय ,दूरी का ज्ञान दिया   !!!!

 

अंड ,पिंड, ब्रह्मांड का  ज्ञान,

सृष्टि का गूढ़  छद्म  संज्ञान ,

अजर अमर संतों की वाणी  ,

 साक्षी भूत निरूपित करती  यह योग भूमि  !!!!

 

यह भूमि है कई रंगो की,

कई बोलियों की, कई भाषाओं की ,

हर प्रदेश की अपनी बोली,हर प्रदेश की अपनी भाषा,

लेकिन एक संस्कृति, एक आचार ,एक विचार की पोषक भूमि !!!!!

 

है  प्रार्थना ईश्वर से, किया धन्य दे कर जन्म यहाँ,

आगे  करना एक अनुग्रह, हर बार जन्म ले इस भूमि पर ,

हर बार जन्म ले इस भूमि पर ,यह है एक आकांक्षा मेरी,

तारण मोक्ष प्रदात्री भूमि,तारण  मोक्ष प्रदात्री भूमि !!!!

 

धन्य धन्य है भारत भूमि,

वंद्य वंद्य है पावन भूमि !!!1!

 

===================== ===========================================

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                     

 

 

 

 




चादर

वक्त की चादर ओढ़े बैठा
खुदको ढूंढता रहता हूँ मैं।
दुनियां बहुत बड़ी है लेकिन
मैं उस चादर में ही सिमटा रहता।

डर से भाग रहा हूँ खुदके
और मैं खुद में ही सिमटा रहता।
चाहत मेरी भी थी खुद से
मैं तुझसे इस दुनियां को कुछ कहता।

बिखरे मोती सा मैं सागर का था पहरा
तारों की दुनियां मैं
चादर ओढ़े रहता।

फिसल गया था जो वक़्त नहीं था
मेरे रिश्तों का था चेहरा
मैं था फिर भी चादर ओढ़े
खुद के भीतर कुछ सिमटा रहता।

चाहता था रोक लूं उनको लेकिन
बदलते वक्त पर था मेरा चेहरा।
बदल रहा थे वक़्त के बादल
और मैं सिमटा रहा ओढ़े
मुझपर था चादर का पहरा।




वक़्त

वक़्त