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गणतन्त्र दिवस है आज भारत में

                                       शीर्षक – ‘गणतन्त्र दिवस है आज भारत में’

          गणतन्त्र दिवस है आज भारत में, राष्ट्र ध्वज का  सब करें सम्मान।

          हम  भारतीय  पूत भारती के,  यहाँ प्रजातन्त्र है इस देश की शान।।

  1. विविध भाषी इस देश की जनता  पर परस्पर रहे सब में एकता।

            हिन्दु, मुश्लिम, सिख, ईसाई सब भाई न कभी  परस्पर भेद था।

            वैभव कीर्ति अटल, विश्व पटल पर भारत, का गोरा इसकी गाथा सुना था।

            गुरुद्वारा, चर्च, मन्दिर, मस्जिद के आगे,  सदा सबका शीश झुका था।

            गीता कुरान हो या बाइबिल सबने, उपदेशों को इनके हसकर  सुना था।

            पुण्यभूमि है ये ऋषिमुनयों की जहाँ राम-कृष्ण हुए जन-जन के भगवान।

             गणतन्त्र दिवस है आज भारत में…… यहाँ प्रजातन्त्र है इस देश की शान।।

  1. ज्ञान का सागर देश हमारा, विज्ञान अध्यात्म की ये है खान।

           रामानुज, धनमन्तरी, चरक कलाम, इन सबका होता यहाँ यशो गान।

           गंगा, कावेरी, गोदा का कल-कल जल, नित देश प्रेम की छेडे तान।

           शंकरमठ है यहाँ ज्ञान के मन्दिर, हरते सदियों से सबका अज्ञान।

           धरणी ओढ़े हरित-फरित चुनरिया, पीली सरसों बढाए वसन्त की शान।

           गणतन्त्र दिवस है आज भारत में…… यहाँ प्रजातन्त्र है इस देश की शान।।

  1. संविधान ने दिया यहाँ पर, जन-जन को  जीवन जीने का अधिकार।

          ऊच-नीच का भेद मिट गया,  सबको खुला है यहाँ शिक्षा द्वार।

         बस राम राज्य हो यहाँ गान्धी का, चहुँ दिश प्रजातन्त्र की वहे ब्यार।

         ज्ञान, परिश्रम, मानवधर्म, यहाँ हो सबके जीवन का  आधार।

        देश प्रेम के बलिदान की खातिर, सदा रहे हर भारतीय  तैय्यार।

        राष्ट्र सेवा और मानव सेवा, हो जन नायक  की  यही  पहिचान।

        गणतन्त्र दिवस है आज भारत में…… यहाँ प्रजातन्त्र है इस देश की शान।।

    4. राम-कृष्ण प्रसूता ये भूमि, बुद्ध,महावीर,नानक, की है तपस्थली।

        कर्म क्षेत्र सुभाष आजाद, भगत का गान्धी विवेकानन्द की उपदेशस्थली।

        उदित है सूरज यहाँ ज्ञान विज्ञान का, जिसकी किरणों से है दुनिया उजली।

        मन्त्री हो या कोई अफसर,  जनता जनार्दन है सबसे शक्तिशाली।

       देश का नायक यहाँ जन सेवक है छोड के अपना स्वार्थ, अभिमान।

        गणतन्त्र दिवस है आज भारत में…… यहाँ प्रजातन्त्र है इस देश की शान।।

  1. केसरी कश्मीर ललाट भारती का, धडकता दिल है दिल्ली लाल किला राजधानी।

        गुजरात, मालवा,बुंदेलखण्ड, पंजाब सितारे, जिन से चम-चम चमके  चूरनधानी।

        पग धोता अरब सागर इसका, दामन निर्मल करता पावन गंगा का अमृत पानी।

       स्वर्ग से सुन्दर इस देश की खातिर, मिटा दिए अनगिन वीर  हसते हसते अपनी जबानी।

       हमें मान है ऐसे भारत पर, जिसकी गाथा गाए विश्व के जन-जन अपनी जुबानी।

       राम-कृष्ण के हम वंशज ‘कमल’ जो  दे गए भारत को विश्वगुरु  की पहिचान।

       गणतन्त्र दिवस है आज भारत में…… यहाँ प्रजातन्त्र है इस देश की शान।।

 

 

                                                                                                                   डां. नन्द किशोर नामदेव ‘कमल’

                                                                                                                     (Associate Professor )

                                                                                                                        भारतीय भाषा विभाग

                                                                                       महर्षि महेश योगी वैदिक विश्व विद्यालय

                                                                                                करोंदी परिसर कटनी म.प्र.-483332

                                                                                                  मो.8827167620,

e-mail- [email protected]

 

।। सभी सम्मानीय सदस्यों को गणतन्त्र दिवस की  अग्रिम शुभकामनाओं सहित।।

।। जय हिन्द, जय भारत।।




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु…रचना शीर्षक ” बेटी “

बेटी…!!!

बेटे की चाह में देखो तो,
कैसे बेटी वो छोड़ गए,
मुख मयंक आभा से कैसे,
वो क्रूर हृदय मुख मोड़ गए…!

हरि इच्छा के जो है अधीन,
वो भी तुमको स्वीकार नहीं,
क्यूं कोख दिया फिर बेटी को,
जब थी वो अंगीकार नहीं…!

परित्यक्त भाव से पुरित हो,
तुमने बेटी का त्याग किया,
निज जननी को भी भूल गए,
हा धिक…! कैसा दुष्पाप किया…!

इक मां ने तुझको जन्म दिया,
इक मां को ही तुम त्याग रहे,
जिस श्वास वायु से जीवित रहे,
उस वायु से ही तुम भाग रहे…!

करके अनाथ उस बेटी को,
बेटे की चाह में रोते हो,
चित्कार रुदन सुनते सुनते,
कैसे भर नींद तुम सोते हो…!

पशुवत सा व्यवहार लिए,
तुम मानव रूप में जन्म लिए,
हो विवेक से हीन मूर्ख,
कैसे कैसे ये अधर्म किए…!

अब बेटी की रक्षा को तुम,
हे ईश्वर…! इक संधान करो,
जिनको स्त्रीत्व का बोध नहीं,
हे ईश्वर…! निः संतान करो…!!

सादर🙏😊




प्रेमकाव्य लेखन प्रतियोगिता , “तलाश”

“तलाश”

वे वक्त के साथ

अपने आपको बदल लेते हैं |

हम उनके भीतर

झाँकते है |

निहारते हैं

उनकी परछाईयों को |

उनके प्रेम

कभी दिखते नहीं |

हमें खोजते-खोजते

और कितने वक्त 

गुजर जाते हैं |

उनकी सादगी और

मायुशी को पढ़ने की

कोशिश करते हैं |

फिर 

खो जाते हैं

उनके चेहरे पर 

खींची लकीरों में |

शब्दों को पहचान पाना |

और उनके प्रेम की

थाह लगाना |

मेरे लिए 

सागर में 

डूबने जैसा है |

जहाँ तैरना नहीं आता 

मेरे और अथाह सागर के बीच

सिर्फ गहराईयाँ ही रह जाती हैं |

वहाँ हमें कोई दूसरा

बचाना नहीं आता |

हम तलाशते

अपने प्रेम को

जिससे जीवन हमें

सजाना नहीं आता |

भटकते रहे

तलाश करते रहे

राहों पर कई काँटे चुभते रहे

जिस काँटे को हमें 

खुद निकालना नहीं आता |

और प्रेम उसी बीच में

उलझकर रह जाता है

फूल और काँटों की तरह |

जिससे कभी हमें  

सुलझना नहीं आता |

 

  के.एम.रेनू

  शोधार्थी

 हिंदी विभाग

 दिल्ली विश्वविद्यालय

 

 

 




क्यों पढ़े संस्कृत हम

देशभक्ति काव्य – लेखन प्रतियोगिता

क्यों पढ़े संस्कृत हम

ज्ञान की यह खान
संस्कृति की पहचान
भाषाओं की जननी
देवभाषा है महान।
गागर में सागर समाहित
सदियों से यह आदृत।
वेद ऋचाएँ गंगा – सी
श्लोकों में धारा अमृत की।
यह मनीषियों की तपस्या
आज है कंप्यूटर की भाषा।
श्रवण से स्मरण-शक्ति बढ़ती
वाचन से जिह्वा है टूटती।
शिक्षा के हर क्षेत्र में अब्बल,
जीवन पथ का सक्षम सम्बल।
दुश्मनों की चोट सहती आई
आओ करें चोटों की भरपाई
संतानों को जागरूक करें
जीवन दायिनी संस्कृत भरें।

मौलिक और अप्रकाशित

गणेश चंद्र शाह

असिस्टेंट प्रोफेसर
रामलखन सिंह यादव कॉलेज
बेतिया , बिहार




प्रेम- काव्य लेखन प्रतियोगिता

जमी’ पे तारे जो झिलमिलाए
कहो तो कैसी ये बात होगी ,               
मेरे महल में  जो चाँद उतरे               
कहो तो कैसी  वो रात होगी। 
 
ये मस्त  खुशबू, ये  भौर    गुंजन 
तनुक-सी फुनगी पे फूल -स्पन्दन
प्रभात    बेला,     पुनीत    वंदन
तेरे नयन  का  थिरकता  खंजन
मेरे   हृदय  में   उतर  जो   जाए
कहो  तो  कैसी  ये  बात  होगी । जमी-पे—
 
स्वच्छंद   वीणा  के  तार  बोले
जो कोई  मुक्ति  के द्वार  खोले
मधुर-सा सपना नयन में  डोले
कोई जो प्राणों  में रस को घोले
जो प्रीति-कलिका हृदय खिलाए
कहो  तो  कैसी  ये  बात   होगी  ।जमी  पे—
 
अनंत आकाश का  नील रंजन
तेरे  प्रणय  का  ये  गाढ़  बंधन 
थिरक उठे क्यों  ना मोर बन मन
न क्योँ लगे सिकता स्वर्ण का कण
जो   रस   में   मेरा  हृदय  नहाए 
कहो  तो  कैसी  ये   बात   होगी   ।जमी पे–



प्रेम -काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु

मन महकने लगा, तन बहकने लगा
कर दिया कोई जादू तेरे नाम ने, 
बंद सी आँख मेरी ये कहने लगी, 
तु जरूर आ गई है मेरे सामने। 
 
अब तलक कोई प्राणों में आई ना थी, 
कोई खुशबू रगों में समायी ना थी, 
मन की वीणा पर अंगुली चलाई ना थी, 
प्यार की कोंपले सुगबुगाई न थी, 
तूने पुलका दिया मन के चुप तार को, 
किस यवनिका से आकर मेरे सामने। मन…….. 
 
तेरी पायल की छम- छम बसी प्राण में, 
गर्म साँसों की सीं- सीं सटी कान में
तेरे अलकों की भीनी महक घ्राण में, 
जैसे सद्भाव निखरे हों इंसान में, 
खिल उठा मन- कमल प्राण- सर में विकल
पा तेरी पूर्ण आनन- विभा सामने। मन…. 
 
यों लगा सारा संसार सोने लगा, 
तेरे पदचाप- तालों में खोने लगा, 
फूल के गाल पर ओस सोने लगी, 
चाँद जग को किरण से भिगोने लगा, 
यह कोई स्वप्न था याकि तेरा असर, 
मुझको उल्झा दिया इसी अंजाम में। मन…. 
          –डॉ. अमरकांत कुमर



हिन्दी : भारत का अभिमान

हिन्दी : भारत का अभिमान

ध्वज हिंदी का चूमता आसमान है

अजय हिंदी यह भाषा महान है,

पाणिनी की  संस्कृत जन्मदात्री,

पाली प्राकृत अपभ्रंश सखी समान है,

देवनागरी लिपि ,शब्दों का वरदान है।

हम हिंद हिंदी की संतान है,

नवजागृत भोर सी हिंदी, हर और प्रकाशमान है।

कमल, सरोज, पंकज, नीरज, जलज,

रवि, दिनकर, आदित्य ,सूर्य, भानु, प्रभाकर,

एक शब्द के कई उपनाम है।

” हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद,अपने मुंह मियां मिट्ठू, नाच ना जाने आंगन टेढ़ा। “

हिंदी मुहावरों में भी बलवान है ,

भारत की पावन भूमि में हिंदी मजबूत वृक्ष समान है।

साहित्य के कोरे कागज पर हिंदी कलम के अंकित अद्भुत निशान है ।

प्रेमचंद्र का निर्णय इसमें, जयशंकर के चंद्रगुप्त बलवान है, महादेवी की नायिका सर्वशक्तिमान है।

हरिवंश की मधुशाला ,  गोस्वामी के राम भी इसमें विद्यमान है।

चहुँ दिशाओं में फैली हिंदी,

मातृत्व में हिंदी, हिंदी जन उल्लास है 

काली, रणचंडी, हिंदी शंखनाद है ।

शीश नवाकर मेरा हिंदी को प्रणाम है ।

 

हिन्दी दिवस के लिए मेरी रचना। यह मेरी मौलिक रचना है। 




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता

  • नारी जग की तारिणी

    नारी जग की तारिणी, नारी जग आधार।
    नारी जग की शक्ति है, नारी से संसार।।1।।

    नारी से ही है सुता, नारी से ही मात।
    नारी बहना रूप है, श्रद्धा की सौगात।।2।।

    नारी सम शोभा नहीं, नारी सम नहिँ छाँव।
    नारी सम दौलत नहीं, नारी सम नहिँ ठाँव।।3।।

    यदि पतंग परिवार है, नारी उसकी डोर।
    टूट गई तो है पतन, वरना उन्नति ओर।।4।।

    नारी रहती है सदा, बड़ी गुणी गम्भीर।
    दुख हो कितना ही भले, होती नहीं अधीर।।5।।

    डॉ जोगेन्द्र कुमार
    एसोसिएट प्रोफेसर
    बी एल जे एस कॉलेज
    तोशाम(भिवानी)
    हरियाणा




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता

नारी

नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।
ईश्वर की ये अनुपम रचना,
मानव जीवन का वरदान।।

अस्तित्व नहीं था लहरों का,
जलधि यदि नहीं होता आज।
शक्ति भक्ति जगत की जननी,
बिन नारी न होता समाज।।
नारी है अस्तित्व हमारा,
उसका खूब करो गुणगान।
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।।

सागर सी गम्भीर रहे ये,
पर्वत सी रहती ये धीर।
आसमान सा आँचल इनका,
बहे नैनों में नदी नीर।।
इनको फिर जो अबला कहते,
करते वह नारी अपमान
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।।

जन्म सुवीरों को जो देती,
कैसे कहें उसे कमजोर।
त्याग करुणा और ममता की,
सच में नारी पक्की डोर।।
भूखी प्यासी रहकर खुद ये,
रहे परिवार पर कुर्बान।
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।।

मानते परिवार पतंग हम,
नारी उसकी डोर स्वरूप।
नारी शोभा और सहारा,
नारी ही है छाया धूप।।
जल में थल में नभ में घर में,
बना रही नारी पहचान।
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।।

नारी धन है जीवन नारी,
नारी लक्ष्मी कुल का मान।
माता पत्नी बेटी बहना,
बिन इनके जीवन सुनसान।।
वैदिक ऋचा ये कृष्ण गीता,
ममता की है अनुपम खान।
नारी का सम्मान करो रे,
करो नहीं उसका अपमान।।

-डॉ. जोगेन्द्र कुमार-
एसोसिएट प्रोफेसर
बी एल जे एस कॉलेज
तोशाम (भिवानी)
हरियाणा
Mob. 9466234509




महिला दिवस-2021,काव्य प्रतियोगिता हेतु प्रेषित मेरी प्रविष्टि(कविता)

स्वरचित कविता (महिला काव्य प्रतियोगिता हेतु प्रेषित  प्रविष्टि)

शीर्षक-“जाग रहीआधीआबादी”

जाग रहीआधीआबादी,दु:ख छिपकर अब सोता है।

देश मेरा गर्वित है इनपर,सुख-स्वप्नों में खोता है ।।

दिन चमकीले,रात सुहानी,घर-घर गूंजे यही कहानी।

कहीं राष्ट्रप्रेम की ठानी,कहीं बनी घर की पटरानी।।

सीमा पर तैनात गरजती,दुश्मन हरदम रोता है।

बेटी है वरदान नियति का,नेह का मेह भिगोता है।।

जाग रही…

सेवा,ममता,उल्फत,साहस,हर इक क्षेत्र में रम जाती है। 

मां,बहना,प्रियतमा सभी रूपों में झटपट ढल जाती है।।

पालक,चालक,नर्स,चिकित्सक, नेता,कलमकार,संरक्षक। 

कर्मक्षेत्र की कलाकार यह,आंखों में भरपूर चमक।।

तन किसान मानस-वसुधा पर बीज हर्ष के बोता है।

पारिजात से खिल जाते,सांसों में सुरभि समोता है।।

जाग रही…

प्राची में है रवि किरण सी,उगती आशाओं का पूर।

चटक चांदनी चमकाती सी,मुख पर ले चंदा का नूर।।

बरछी,भाले कटि पर बांधे,अरि पर करती वार।

काम चले ना गर शस्त्रों से, कलम बने तलवार।।

‘बिन घरनी घर भूत का डेरा’ कहकर ये जग रोता है।

जो देवी का दर्द बढ़ाए ,पाप की गठरी ढोता है।।

जाग रही…

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स्वरचित, मौलिक,सर्वथा अप्रकाशित एवं अप्रसारित कविता-

कवयित्री-डा. अंजु लता सिंह, नई दिल्ली