1

“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता – “नमन तुमको देश मेरा”

नमन तुमको           देश मेरा

सूर्य चंदा और तारे

के सुखद मनहर नजारे

हैं सजाते देश को नित

स्वर्ण किरणों के सहारे,

गोधुली जिसकी सुहानी

सुखद है जिसका सवेरा 

नमन तुमको देश मेरा ।

अहा! पर्वत और घाटी

धन्य अपनी धूल माटी

अर्चना मे लिप्त जिसकी

वेदमंत्रों के सुपाठी,

देवताओं की धरा यह

साधु-संतो का बसेरा

नमन तुमको देश मेरा ।

हम चले सबको जगाने

जागरण का गीत गाने

विश्व गुरु था देश अपना

विश्व गुरु फिर से बनाने,

चल पड़े हैं हम धरा से

अब मिटाने को अँधेरा

नमन तुमको देश मेरा ।

  

   अनन्त प्रसाद ‘रामभरोसे’

ग्राम पोस्ट-सागरपाली

जिला-बलिया

277506 

E mail – [email protected]

Mobile-9838408017

उपर्युक्त रचना मेरी मौलिक, स्वरचित है। इसपर किसी तरह का कापीराइट विवाद नहींं है।

 अनन्त प्रसाद’रामभरोसे’




नववर्ष

 

विधा- मुक्तक
शीर्षक- नववर्ष

मधुमास की मीठी सुरभित पवन,
रसपान कराये घूम कर वन वन।
नव वर्ष में शरद का चंदा चमके-
सुन्दरी रजनी दमकी भवन भवन।।

प्रभा है प्रफुल्लित,तिमिर दूर भागे,
वैभव संग बढ़ी लक्ष्मी आगे आगे।
नववर्ष जीवन में मौलिकता लाए-
जनजीवन महके और भाग्य जागे।।

पिघल जाए मन,दूर हो दारुण दुख,
हो शीतलता मिले तप्त उर को सुख।
नववर्ष में ऊँच-नीच का न हो वास-
दूर हो कटुता,सर्वत्र हो प्रिय मुख।।

दिन बदला,रात हुई अब नई नवेली,
षडऋतु संग वसुंधरा होगी अलबेली।
नववर्ष में तन से लिपटे स्वस्थ धूप-
और जीवन बने आशा रुपी हवेली।।

मानव के लिए हो मंगलमय नववर्ष,
चहुँओर फैल जाए एक समान हर्ष।
सबके जीवन में आए ढेरों खुशियाँ-
समता के भाव से सबका हो उत्कर्ष।।

रचनाकार- मनोरमा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक

हैदराबाद 

तेलंगाना 




सजा

संस्मरण 
शीर्षक- सजा

घटना आज से चार-पाँच साल पहले की है। मेरे पति सुबह सुबह ऑफिस के लिए निकलकर हैदराबाद के कारखाना नामक जगह पर पहुँचे थे,सुबह के कारण सड़क थोड़ी खाली ही थी।तभी एक वृद्ध व्यक्ति जिसकी उम्र 60/ 65 साल की होगी,अचानक सड़क पर गिरकर बेहोश हो गया। सब लोग वहाँ से गुजर रहे
थे लेकिन कोई मदद के लिए रूक नहीं रहा था।मेरे पति वही बाइक को रोक दिए और फोन करके बगल के पुलिस स्टेशन से पुलिस को बुला लिया। पुलिस के साथ मिलकर वृद्ध व्यक्ति को गांधी हॉस्पिटल में भी पहुँचाया।वह वृद्ध बहुत गरीब था,इसीलिए मेरे पति ने 500 रुपए उसके हाथ में रखकर वापस ऑफिस चले गए। वृद्ध व्यक्ति को होश आ गया था,उसने मेरे पति को बहुत दुआएँ भी दी।
दूसरे दिन हम लोगों को पता चला कि वृद्ध व्यक्ति का बेटा और पुलिस दोनों मिलकर मेरे पति के ऊपर केस कर दिया कि मेरे पति ने ही एक्सीडेंट किया है। हम लोग अवाक रह गए थे।मेरे पति वृद्ध व्यक्ति से मिलने हॉस्पिटल गए और उसे बहुत भला बुरा भी कहा।पता नहीं,वृद्ध व्यक्ति ने तेलुगु में क्या क्या कहा,मेरे पति को कुछ भी समझ में नहीं आया। हाँ,केस खत्म करने के लिए उन्हें 20000 रुपये पुलिस को देने पड़े। उस दिन हम लोगों को समझ में आया कि आखिर सड़क पर पड़े लोगों की मदद कोई क्यों नहीं करता है? ऑफिस में मेरे पति के बॉस ने कहा था,” शर्मा,किसने कहा था,बाइक रोककर मदद करो।”मेरे पति ने एक ही पंक्ति कहा,”सर, मुझे लगा कि मेरे पिताजी सड़क पर गिरे हैं इसलिए मैंने मदद की।” उसके बाद हम में से कोई भी उनसे से कुछ भी प्रश्न नहीं किया।
इस घटना के चार महीने के बाद मेरे पति को एक दिन वृद्ध व्यक्ति का बेटा ने फोन पर बोला कि एक बार आप मेरे घर आ जाइए। गुस्सा के कारण मेरे पति उसके घर जाना नहीं चाहते थे,लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे उसके घर गए। जैसे वहाँ गए,वृद्ध व्यक्ति उनके पैरों पर गिर पड़ा और बार-बार माफी माँगने लगा। मेरे पति ने कहा कि हाँ, मैंने माफ कर दिया।जैसे इनके मुँह से माफी शब्द निकला वैसे ही वृद्ध व्यक्ति ने दम तोड़ दिया।वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु के बाद मेरे पति ने उसके अंतिम काम क्रिया के लिए 1000 रुपये उसके बेटे को दिया और वापस आ गए। उसके बेटे ने बताया था कि उसे पुलिस वालों ने ही केस करने को कहा था और इसके बदले में पुलिस वालों ने उसे 5000 रुपये दिए थे। इस बात का पता जब उसके पिता को चला था तो वे माफी माँगना चाहते थे और बीमार भी रहने लगे थे।वृद्ध व्यक्ति को कुछ स्किन की बीमारी भी हो गई थी और इसी बीमारी की वजह से उसकी मृत्यु भी हुई। लेकिन हम लोग आज तक यही सोचते हैं कि मदद करने की सजा के बदले में हमें 21500 रुपये की राशि भुगतान करनी पड़ी। मेरे पति आज भी बोलते हैं कि यह पिछले जन्म का कर्ज था जो मैंने वृद्ध व्यक्ति को दिया,अब भी कोई व्यक्ति सड़क पर असहाय गिरा हो तो मैं मदद जरूर करूँगा। मैं भी यह मानती हूँ कि चाहे जो हो,इंसानियत से भरोसा नहीं उठना चाहिए।

रचनाकार- मनोरमा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक

हैदराबाद 

तेलंगाना 




सजा

संस्मरण 
शीर्षक- सजा

घटना आज से चार-पाँच साल पहले की है। मेरे पति सुबह सुबह ऑफिस के लिए निकलकर हैदराबाद के कारखाना नामक जगह पर पहुँचे थे,सुबह के कारण सड़क थोड़ी खाली ही थी।तभी एक वृद्ध व्यक्ति जिसकी उम्र 60/ 65 साल की होगी,अचानक सड़क पर गिरकर बेहोश हो गया। सब लोग वहाँ से गुजर रहे
थे लेकिन कोई मदद के लिए रूक नहीं रहा था।मेरे पति वही बाइक को रोक दिए और फोन करके बगल के पुलिस स्टेशन से पुलिस को बुला लिया। पुलिस के साथ मिलकर वृद्ध व्यक्ति को गांधी हॉस्पिटल में भी पहुँचाया।वह वृद्ध बहुत गरीब था,इसीलिए मेरे पति ने 500 रुपए उसके हाथ में रखकर वापस ऑफिस चले गए। वृद्ध व्यक्ति को होश आ गया था,उसने मेरे पति को बहुत दुआएँ भी दी।
दूसरे दिन हम लोगों को पता चला कि वृद्ध व्यक्ति का बेटा और पुलिस दोनों मिलकर मेरे पति के ऊपर केस कर दिया कि मेरे पति ने ही एक्सीडेंट किया है। हम लोग अवाक रह गए थे।मेरे पति वृद्ध व्यक्ति से मिलने हॉस्पिटल गए और उसे बहुत भला बुरा भी कहा।पता नहीं,वृद्ध व्यक्ति ने तेलुगु में क्या क्या कहा,मेरे पति को कुछ भी समझ में नहीं आया। हाँ,केस खत्म करने के लिए उन्हें 20000 रुपये पुलिस को देने पड़े। उस दिन हम लोगों को समझ में आया कि आखिर सड़क पर पड़े लोगों की मदद कोई क्यों नहीं करता है? ऑफिस में मेरे पति के बॉस ने कहा था,” शर्मा,किसने कहा था,बाइक रोककर मदद करो।”मेरे पति ने एक ही पंक्ति कहा,”सर, मुझे लगा कि मेरे पिताजी सड़क पर गिरे हैं इसलिए मैंने मदद की।” उसके बाद हम में से कोई भी उनसे से कुछ भी प्रश्न नहीं किया।
इस घटना के चार महीने के बाद मेरे पति को एक दिन वृद्ध व्यक्ति का बेटा ने फोन पर बोला कि एक बार आप मेरे घर आ जाइए। गुस्सा के कारण मेरे पति उसके घर जाना नहीं चाहते थे,लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे उसके घर गए। जैसे वहाँ गए,वृद्ध व्यक्ति उनके पैरों पर गिर पड़ा और बार-बार माफी माँगने लगा। मेरे पति ने कहा कि हाँ, मैंने माफ कर दिया।जैसे इनके मुँह से माफी शब्द निकला वैसे ही वृद्ध व्यक्ति ने दम तोड़ दिया।वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु के बाद मेरे पति ने उसके अंतिम काम क्रिया के लिए 1000 रुपये उसके बेटे को दिया और वापस आ गए। उसके बेटे ने बताया था कि उसे पुलिस वालों ने ही केस करने को कहा था और इसके बदले में पुलिस वालों ने उसे 5000 रुपये दिए थे। इस बात का पता जब उसके पिता को चला था तो वे माफी माँगना चाहते थे और बीमार भी रहने लगे थे।वृद्ध व्यक्ति को कुछ स्किन की बीमारी भी हो गई थी और इसी बीमारी की वजह से उसकी मृत्यु भी हुई। लेकिन हम लोग आज तक यही सोचते हैं कि मदद करने की सजा के बदले में हमें 21500 रुपये की राशि भुगतान करनी पड़ी। मेरे पति आज भी बोलते हैं कि यह पिछले जन्म का कर्ज था जो मैंने वृद्ध व्यक्ति को दिया,अब भी कोई व्यक्ति सड़क पर असहाय गिरा हो तो मैं मदद जरूर करूँगा। मैं भी यह मानती हूँ कि चाहे जो हो,इंसानियत से भरोसा नहीं उठना चाहिए।

रचनाकार- मनोरमा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक

हैदराबाद 

तेलंगाना 




डॉ. श्याम लाल गौड़ की कविता – ‘स्त्री विमर्श’

स्त्री नहीं श्री है, जिसे तुम रुलाते।
 रुठ अगर वो जाये तो उसको काली समझो।।
जो अबला कही जाती, उसे बल का भंडार समझो ।
अपने रक्त से पोषण करने वाली, करुणा अवतार समझो ।।
स्त्री नहीं…
श्री सुख-समृद्धि यदि चाहो तो उसे न रूलावो,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते का सूत्र अपनावो।
उसकी भावनाओं को ना ठेस पहुंचाओ,
उसके आदर को अहसान न समझो ।।
स्त्री नहीं…
उसके त्याग को न भूलो तुम,
उसके जीवन के महत्ता नहै कम।
वह तुमसे किये का उपकार ना चाहती,
उसे तुम मां बेटी बहू कुछ तो समझो।।
स्त्री नहीं…
 उसके बिना न यज्ञ होते, न कर्मों का कोई ठिकाना।
 कैसे बिन उसका जीवन हो पूरा,
उसे तुम मुक्ति का कारण समझो ।।
स्त्री नहीं…
 वो न होती तो जन्म कैसा हमारा,
पापों के प्रायश्चित अवसर न मिलता।
 जन्म चौरासी का चक्कर न काटो,
उसको तुम तारण का कारण ही समझो।।
स्त्री नहीं…
स्त्री बिन पुरुष का न कोई ठिकाना,
उसके मान का आदर क्या करेगा जमाना।
उसे तुम समस्या  न, समाधान ही मानो।
 उसे अपने जीवन का आधार समझो।।
स्त्री नहीं…
संपर्क : डॉ. श्याम लाल गौड़, श्री जगद्देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार, -स0प्रवक्ता, मोबाईल : 9368760732, ईमेल पता : [email protected]



रानू चौधरी की कविता – ‘नई शुरुआत’

बेटियों की नन्ही सी मुस्कान
पहले देती थी माँ को सुकून
अब डूबे हैं वह इस दुविधा में
कैसे रखे बेटियों को दरिदों से दूर |
बेटियों की नन्ही सी मुस्कान
क्यों बदल रही हैं चीखों में
माँ की ममता भरी आंखें
क्यों बदल रही हैं आंसूओं में |
जागना हैं सभी को
मिलकर उठानी है आवाज
करनी है हमे मिलकर
घर से ही नई शुरुआत |
जब उठने लगेगी आवाज
घर से होगी नई शुरुआत
ना आएगा कोई दरिंदा
हमारी बेटियों के पास |




दलित चेतना और अम्बेडकर

आचार्य गुरुदास प्रजापति महक जौनपुरी
23, मेहरावां, सोनिकपुर, जौनपुर उ0प्र0
[email protected]

डॉ0 अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश इंदौर जनपद के महू नामक उपनगर में 14 अप्रैल, 1891 ई0 को हुआ था। इनके पिता रामजी सकपाल धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। अम्बेडकर को विद्यालय में अछूत भावना का सामना करना पड़ा। अस्पृश्यता उन्मूलन की भावना बचपन में ही उनके दिल में बस गई।
डॉ0 भीमराव अम्बेडकर जिस समुदाय में पैदा हुए और पले बढ़े, उसका उद्धार उनके जीवन और चिन्तन का प्रधान लक्ष्य था। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए आन्दोलन और संघर्ष करने के पूर्व उन्होंने परम्परागत हिन्दू सामाजिक संरचना का व्यवस्थित अध्ययन किया। उनके विचार से अस्पृश्यता दलितों के उत्थान के मार्ग में सबसे भयानक व्यवधान थी। उनका मत था कि अस्पृश्यता दलितों के मानव होने पर प्रश्न चिह्न लगाती है। इसलिए वे चाहते थे कि दलित इसके विरुद्ध संघर्ष करें उन्होंने कहा- आज तक हम मानते थे कि अस्पृश्यता हिन्दू धर्म पर लगा हुआ कलंक है। जब तक यह हिन्दू धर्म पर कलंक है, ऐसा हम मानते थे तब तक उसे नष्ट करने का काम हमने आप पर सौंप दिया था। हमारा अब मत है कि यह हमारे ऊपर लगा हुआ दाग है, इसलिए इसे धोकर निकालने का पवित्र काम भी हमने शुरू किया है।
डॉ0 अम्बेडकर ने दलित समस्या का ऐतिहासिक संदर्भ में विश्लेषण करने का प्रयास किया। उन्होंने वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया। उनका मत था कि दलित हिन्दुओं से पृथक भिन्न संस्कृतियों के लोग हैं। उनका मत था कि दलित प्राचीन बौद्ध हैं। प्राचीन भारत में वैदिक संस्कृति और बौद्ध संस्कृति में निरन्तर संघर्ष चला करता था। अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का वर्चस्व था तथा वैदिक धर्म अवनति की ओर था। 185 ई0 पूर्व में अन्तिम मौर्यशासक वृहदर्थ मौर्य की पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर दी। पुष्यमित्र शुंग वैदिक धर्मावलम्बी था।
वैदिक धर्म के लिए यह स्वर्ण युग था। इसी काल में मनुस्मृति की रचना हुई। इस ग्रन्थ में दलितों के प्रति घृणा व्यक्त की गई है कालान्तर में अस्पृश्यता की भावना का उदय हुआ। अम्बेडकर के अनुसार यह 400 ई0 के आस-पास हुआ। अस्पृश्यता के मूल में उन्होंने गोमांस आहार की बात बताई। अस्पृश्यता के लिए अम्बेडकर जी वर्ण व्यवस्था एवं हिन्दू धर्मशास्त्र को उत्तरदायी बताते हैं जिसमें सच्चाई निहित है। अम्बेडकर ने जाति प्रथा, अस्पृश्यता तथा सामाजिक विषमता का विरोध किया। अम्बेडकर ने उन लोगों में आत्माभिमान जगाया जिन्हें हिन्दू समाज व्यवस्था ने सदियों से आत्महीन बना दिया था। उन्होंने 1927 में महाड़ के चबदार तालाब पर सत्याग्रह करके दलितों को अमानुषिक छुआछूत के विरूद्ध उठ खड़े होने की प्रेरणा दी दूसरी ओर शिक्षण संस्थाओं का जाल बिछाकर महाराष्ट्र के दलितों को आधुनिक जीवन के लिए आवश्यक क्षमताओं से लैस होकर सम्मान पूर्वक जीवन जीने के दिशा में प्रवृत्त किया। देश के अनेक भागों में आज अगर अत्याचारों के विरूद्ध युवा दलितों को रिरियाने के बजाय संघर्ष का तेजस्वी स्वर देता है तो यह डॉ0 अम्बेडकर का स्वर है। डॉ0 अम्बेडकर के अनुसार मानव समाज में तीन प्रकार की शक्तियाँ होती है। मनुष्य बल, धन बल और मानसिक बल। अस्पृश्य में इन तीनों शक्तियों का अभाव है। संविधान में उन्होंने समानता, भ्रातृत्व, न्याय और स्वतंत्रता को प्रमुख स्थान दिया। यह सामाजिक न्याय के लिए महत्वपूर्ण कवच हैं इसके साथ वे शिक्षा को महत्त्व देते है। उन्होंने समाजवाद के लिए अनुच्छेद 14, 16, 17, 29, 35, 46, 330, 332, 334, 338 एवं पांचवी अनुसूची को संविधान में जोड़ा है।
यदि हम अम्बेडकर की दलित चेतना के आयाम के रूप में संक्षेप में बताये तो शिक्षा, समानता, भातृत्व, न्याय, समानत को मान सकते है।
हमारे इन विचारों की पुष्टि डॉ0 मोहम्मद आबिद अंसारी के निम्नांकित पंक्तियों से होती है –
डॉ0 अम्बेडकर के प्रमुख संदेश जैसे समानता, स्वतंत्रता, भाई-चारा, शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो। बुद्ध, धम्म एवं संघ की प्रासंगिकता का अनवरत बने रहना।
यदि गम्भीरता से विचार किया जाये तो दलित चेतना के ये उत्साह हर प्रकार के दलित लेखन में ढूंढ़े जा सकते हैं इस चेतना का आधार यह है कि यह देश उन लोगों का भी है जो मात्र दो जून की रोटी मुश्किल से जुटा पाते हैं और जिनके खून-पसीने की सब्सिडी पर देश की सरकार अपना जी0डी0पी0 बढ़ाती है। आर्थिक विकास का ढिंढोरा पीटती है और यह उनका भी है जो अपने प्राणों की बाजी लगाकर इन मुसीबत जदों के हक की लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन यह देश उन लोगों का तो कत्तई नहीं हो सकता जो देश का विकास करने के नाम पर इनका सर्वनाश करते हैं और यह देश उनका भी नहीं हो सकता जो इन हत्यारों को मनमानी करनें की छूट देकर हिंसक कुकृत्यों को जायज ठहराते हैं।
ऊपर पंक्तियों में दलितों की क्रान्ति चेतना का बीज छिपा हुआ है, अन्याय को हटाने का तरीका है अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करना। इस संघर्ष की प्रेरणा आधुनिक काल में महात्मा ज्योतिबाफुले, छत्रपति शाहू जी महाराज, पेरियार, रामस्वामी नायकर, भीमराव अम्बेडकर के चिन्तन एवं कार्य-कलापों से मिली है अब दलित चेतना साहित्य के कविता, कहानी, उपन्यास लेखन आयाम में ढूंढ़ी जा सकती है बीसवीं शती के अन्तिम दशक में यह घोषणा की गई कि दलित लेखन दलित कर सकता है। वैसे दलित लेखकों में ओम प्रकाश बाल्मीकि, मोहनदास नैमिसराय के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं-
इस प्रकार कथाकार दलितों के जीवन का दर्दभरा इतिहास कहते हैं। इस वर्णन में पीड़ा का एहसास है। मानवता की पुकार है। विद्रोह का स्वर है। पाठक की सहानुभूति व स्वानुभूति का निमंत्रण है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची-
1 अलख निरंजन: समकालीन दलित चिन्तक: पृ0 46
2 डॉ0 एम0 फिरोज खान तथा इकरार अहमद: नये संदर्भ में दलित विमर्श, पृ0 14
3 डॉ0 एम0 फिरोज खान तथा इकरार अहमद: नये संदर्भ में दलित विमर्श, पृ0 25




रोती होगी माँ धरती आँचल अपनी फटती देख

  • रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख

आदित्य, इन्दु हैं एक जहाँ,

प्राकृतिक दिव्य ज्योति लिए हुए,

फिर भी है परस्पर अद्भुत् मेल,

लोक प्रकाशित करना है लक्ष्य एक,

पर यहाँ मानव का वैचारिक भेद,

रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

थे जन्म समय सब में एक रक्त रंग

खाया सबने एक ही अन्न,

एक प्रकृति में पले बढ़े,

एक ईश्वर के कर नाम भेद, 

हो धर्म नाम पर बँटे अनेक,

        रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जो हर कूड़े करकट कर देती नष्ट,

न देते ये मैल भी उसे कष्ट,

जितना विचार नैतिकता भ्रष्ट,

और भी ज़ेहाद, माओ, नक्सल से त्रस्त,

जगह-जगह मानवता को मरते देख,

रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जहाँ एक ही कागज़ पर था नैतिक पाठ पढ़ा,

धरा पर उसका कुछ योगदान का कर्ज था,

वहीं से ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’,

‘लेके रहेंगे आज़ादी’ ‘शाहीन बाग़ से खंडित करते’

हाथों में पत्थर उठने का खेद,

रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जहाँ खिले पीले, नीले, लाल सुमन,

हैं एक मनोहर दृश्य उद्देश्य,

जितना है जातिगत विभेद,

न है अचेतन पेड़-पौधों में अन्तः भेद,

हिन्दू-मुस्लिम पटती दूरी का खेद,

रोती होगी माँ धरती आँचल अपनी फटती देख |

न कोई चिल्लाता हिन्दू-हिन्दू, न मुस्लिम-मुस्लिम,

गर, यहाँ मानव धर्म व्यवहृत होता,

देश के माथे से कलंक मिटेगा,

न टुकड़े होंगे भारत माँ के,

न होगा आतंक से भेंट,

तब हर्षित होगी, मानव मुस्कान धरा पर हँसते देख ||

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हो धर्म नाम पर बँटे अनेक,

        रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जो हर कूड़े करकट कर देती नष्ट,

न देते ये मैल भी उसे कष्ट,

जितना विचार नैतिकता भ्रष्ट,

और भी ज़ेहाद, माओ, नक्सल से त्रस्त,

जगह-जगह मानवता को मरते देख,

रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जहाँ एक ही कागज़ पर था नैतिक पाठ पढ़ा,

धरा पर उसका कुछ योगदान का कर्ज था,

वहीं से ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’,

‘लेके रहेंगे आज़ादी’ ‘शाहीन बाग़ से खंडित करते’

हाथों में पत्थर उठने का खेद,

रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जहाँ खिले पीले, नीले, लाल सुमन,

हैं एक मनोहर दृश्य उद्देश्य,

जितना है जातिगत विभेद,

न है अचेतन पेड़-पौधों में अन्तः भेद,

हिन्दू-मुस्लिम पटती दूरी का खेद,

रोती होगी माँ धरती आँचल अपनी फटती देख |

न कोई चिल्लाता हिन्दू-हिन्दू, न मुस्लिम-मुस्लिम,

गर, यहाँ मानव धर्म व्यवहृत होता,

देश के माथे से कलंक मिटेगा,

न टुकड़े होंगे भारत माँ के,

न होगा आतंक से भेंट,

तब हर्षित होगी, मानव मुस्कान धरा पर हँसते देख ||




अमूल्य त्रिपाठी की कविता – ‘हिंदी’

भारत की आन है हिंदी,
देश का अभिमान है,हिंदी,
फ़िर क्यूँ एक दिन की मेहमान है हिन्दी.
अंग्रेज़ों की वाकपटुता में,
खो गयी अपनी शान है हिंदी,
आज अनपढ़ो की पहचान है हिन्दी।
पर वक्त अब बदल रहा है,
हिंदी में अब विमर्श, हो रहा है
तभी तो Google भी हिन्दी,
बोल रहा है .
मोबाइल में कीबोर्ड हिन्दी में दे रहा,
हिन्दी पेजों को ट्रैफिक दे रहा है.
हिंदी का परचम लहराया था,
वाजपेयी जी ने जब मान बढ़ाया था,
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को अपनाया था,
हिंदी को अंग्रेज़ी, से बेहतर बताया था,
युवाओं को भी अब,
आना होगा,
हिंदी को उसका मान दिलाना होगा।




प्रिय प्रेम

प्रेम काव्य प्रतियोगिता

 

प्रिय प्रेम ! तुम महान हो
तुम अमर हो , तुम ओजस्वी हो
तुम सदियों पुराना विश्वास हो
तुम दीपक हो , जो कालो से
जलता आ रहा है
तुम पूजा हो , तुम तपस्या हो
तुम मधुर एहसास हो
तुम जानवर को इंसान ,
इंसान को देवता ,
देवता को ब्रह्मा विष्णु महेश
बना सकते हो
तुम खुद तो महान हो
औरों को भी महान
बना सकते हो
अगर जरूरत है तो सिर्फ डूबने की जितना डूब सकते हो ।
उतना डुबो ,अपने अंदर खोजो ।
अपने आपको टटोलो ,
जो खजाना तुम्हारे अंदर
समाया हुआ है।
मेरे अंदर समाया हुआ है
हम सब के अंदर समाया हुआ है ,
उसे बाहर निकालो ।
इस हाड – मास के शरीर में से
कुछ खोजो , अपने आप को पहचानो तुम कमजोर नहीं हो
तुम छोटे भी नहीं हो
अपने को तुच्छ मत समझो।
तुम तीनो लोको के स्वामी हो
तुम इंसान हो ,
इंसान जो प्यार के लिए
मिट गया ,मिट रहा है
जिसने प्यार को जाना है
उसने अपने अस्तित्व को पहचाना है। प्यार सौदा नहीं
प्यार समझौता भी नहीं
प्यार तो सिर्फ समर्पण है
त्याग है , बलिदान है
एक दूसरे के प्रति
पूर्ण रूप से निस्वार्थ मन से
समर्पित
हो जाना ही प्यार है ।
प्यार है तो संघर्ष है
क्योंकि प्यार सुकून नहीं
प्यार बेकरारी है
प्यार वासना नहीं
प्यार तो दो आत्माओं का मिलन है
जो सदियों से ,
कालो से विश्वास पर टिका हुआ है
क्योंकि , प्यार का एहसास
तब होता है
जब जुदाई का गम तड़पाता है
प्यार झुकता नहीं
प्यार तो उठना है
प्यार इंसान को
हर पल , हर लम्हा
एक शक्ति देता है
ऊर्जा देता है
जिसका एहसास वह सदा
अपने अंदर करता है

  • कमल राठौर साहिल
    शिवपुर मध्य प्रदेश
  • मोबाइल- 9685907895