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Stree

  • स्त्री जब खुश होती है
    बर्तन माजते माजते
    कपड़े धोते-धोते
    रोटी बेलते बेलते
    सब्जी में छोका लगाते लगाते
    भी गुनगुनाती है
    कभी अकेले खामोश चारदीवारी में
    भी गुनगुनाती है
    सुबह से शाम तक
    चक्की की तरफ पिसते पिसते
    भी खुश होकर गुनगुनाती है
    वह बच्चों की भागमभाग
    बच्चों की फरमाइश
    और रिश्ते नाते निभाते निभाते
    भी खुश होकर
    खुद को खुश रखने के लिए
    गुनगुना लेती है
    अपने लिए
    वह कुछ पल गुनगुनाती है
    जब स्त्री खुश होती है



अंतरराष्ट्रीय सम्मान

अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता पुरस्कार से नवाजे गए साहित्यकार गोविंद अवस्थी

उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ शहर के युवा साहित्यकार एवं समाजसेवी गोविंद अवस्थी जी वर्तमान में इंजीनियरिंग के छात्र हैं इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करना गोविंद अवस्थी के साथ-साथ पूरे अलीगढ़ शहर के लिए बड़े गौरव की बात है
यह विश्व स्तरीय सम्मान गोविंद अवस्थी जी को समाज राष्ट्र एवं मानवता की सेवा एवं उनके द्वारा किए गए साहित्यिक और सामाजिक कार्यों में विशेष योगदान के लिए दिया गया है

इस सम्मान पर साहित्यकार गोविंद अवस्थी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सम्मान पाना उनके लिए बड़ी खुशी की बात है और हमेशा कोशिश रहेगी कि अपनी कलम से समाज में एकजुटता लाते हुए लोगों के बीच नैतिक एवं वैचारिक जागरूकता को जगाना है

अवस्थी जी की मां श्रीमती विद्या देवी जी से पुत्र की उपलब्धि के बारे में पूछे जाने पर उनकी माता ने कहा कि पुत्र द्वारा किए जा रहे सामाजिक एवं साहित्य की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें गर्व होता है और हर मां की तरह मेरी भी भगवान से बस यही प्रार्थना है कि मेरा बेटा सदैव खुश रहते हुए उच्च एवं सम्मानित पद प्राप्त करे

अवस्थी जी को राष्ट्रीय सम्मान सहित पित्र भक्ति, कोरोना वॉरियर्स शिक्षा सुधार योद्धा,
आदि पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं




Samma

अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता पुरस्कार से नवाजे गए साहित्यकार गोविंद अवस्थी

उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ शहर के युवा साहित्यकार एवं समाजसेवी गोविंद अवस्थी जी वर्तमान में इंजीनियरिंग के छात्र हैं इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करना गोविंद अवस्थी के साथ-साथ पूरे अलीगढ़ शहर के लिए बड़े गौरव की बात है
यह विश्व स्तरीय सम्मान गोविंद अवस्थी जी को समाज राष्ट्र एवं मानवता की सेवा एवं उनके द्वारा किए गए साहित्यिक और सामाजिक कार्यों में विशेष योगदान के लिए दिया गया है

इस सम्मान पर साहित्यकार गोविंद अवस्थी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सम्मान पाना उनके लिए बड़ी खुशी की बात है और हमेशा कोशिश रहेगी कि अपनी कलम से समाज में एकजुटता लाते हुए लोगों के बीच नैतिक एवं वैचारिक जागरूकता को जगाना है

अवस्थी जी की मां श्रीमती विद्या देवी जी से पुत्र की उपलब्धि के बारे में पूछे जाने पर उनकी माता ने कहा कि पुत्र द्वारा किए जा रहे सामाजिक एवं साहित्य की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें गर्व होता है और हर मां की तरह मेरी भी भगवान से बस यही प्रार्थना है कि मेरा बेटा सदैव खुश रहते हुए उच्च एवं सम्मानित पद प्राप्त करे

अवस्थी जी को राष्ट्रीय सम्मान सहित पित्र भक्ति, कोरोना वॉरियर्स शिक्षा सुधार योद्धा,
आदि पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं




प्रेम

छुई मूई के भाँति
अप्रत्याशित और खूबसूरत है
प्रेम की प्रकृति
जिसमें लज्जा है, सज्जा है
और औषधीय प्रवृति भी,
मगर इतना सुलभ नहीं है
किसी का प्रेम पाना,
अगर सच में असान होता
किसी का प्रेम पाना
तो शायद प्रेम की बुनियाद पर
इतने कविताएं और किताब
नहीं लिखे जाते,
इन्हें सहेजने के लिए
वक्त के घाव नहीं कुरेदे जाते
इसे पाने के लिए
मन्नत के
इतने धागे नहीं बाँधे जाते,
बस बना दिए जाते ये
एक दूसरे के पूरक
जैसे किसी रोगी के लिए
अनिवार्य हो करना
औषधि का पान। 




तव चरणार्पित

अंतरराष्ट्रीय देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता

तव चरणार्पित

बाईस अनमोल भाषा रत्नों से जड़ी अनोखा हार,

अर्पित है हे माँ तव चरणों में उपहार।

बीच में चमक रही है राजभाषा हिन्दी।

जैसे तेरी ललाट पर विराजमान लाल बिंदी।

ये कन्नड़- ये बंगाली, वही भाव, है वही शैली,

अपनी भाषा हेतु क्यों कर रहे है सब अपना मन मैली ?

आपस में लड़ कर हे माँ हम क्या पाएंगे ?

एकता की कली को खिलने से पहले ही मुरझा देंगे !

सब है तेरे ही क्यारी की प्यारी फूल।

फिर भी घटती है भाषांधता से कई भूल।

कहीं भी रहें, हम सब तो है भाई- भाई,

आपस में लड़कर क्यों बन गए है कसाई ?

भाषा से भाईचारे का संदेश मिले अगर हमें यहाँ,

हम से अधिक भाग्यवान होगा कौन और कहाँ ?

लड़ना है नहीं आपस में भाषा के नाम पर।

      एक ह्रदय होना है हम सब को राजभाषा हिन्दी अपना कर।

              ***********                         




तेरे मेरुता तो है ही अमित महान

 

अंतरराष्ट्रीय देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता

 

तेरे मेरुता तो है ही अमित महान

 

अगाध- अनंत भूमंडल की-

आभा हो तुम हे भारत माता।

तेरी अगम्य अमित चेतना की

कैसी बखान करूँ यशो-गाथा?

 

स्वतंत्रता की मशाल लिए,

अमर हुए तेरे अगणित संतान।

नर-नारी में फरक बिन किए,

हुए सब अचेतन- अमित महान।

 

थल-जल अरु वायु सेना ने,

आज तुझे बे- दाग संभाली।

तेरी ये शूर- वीर संतति ने,

अब अमरत्व की भी ठान ली।

 

विवेकानंद की विवेक संपादा का

हृदय पूर्वक बयान करूँ,

या विश्व मान्य योगा परंपरा की 

उपयोगिता का बखान करुँ।

 

बाह्याकाश के अनंत क्षितिज पर,

कलाम जी की है अमूल्य साधना,

प्रौद्योगिकी के नवोन्मेशण को भी

सद-सर्वदा है हमें मानना।

 

सारे विश्व नतमस्तक है,

तेरे विज्ञान – तंत्र ज्ञान की सुज्ञान से।

कृषि की बात तो है क्या कहना ?

बस, अन्न-दाता सदा सुखी रहना।

 

युग -पुरुष प्रधान सेवक को पाकर,

धन्य हो हे माता तुम हर पल।

राम-राज्य की नींव डालकर,

मचाया है तुझ में नित हलचल।

 

आत्म -निर्भर बनेंगे हम सब,

होंगे आत्माभिमान का प्रतीक।

विदेशी वस्तुओं को सदैव नकार कर।

ऊँचा करेंगे नित तेरे मस्तक।

 

हो रही है सारे जग में प्रशंसा-

तेरी अगाध आन-बान-शान की।

बढ़ा है तुझ में आत्म-विश्वास,

समग्र विश्वाग्रणी बनने की।

 

अनेकता में एकता की भावना से,

अर्पित है तुझे ये सहज भावांजली।

तन रूपी पुष्प के कण कण से,

नित अविरत कृत पुष्पांजली।

 

तेरी अगम्य अमित चेतना को,

समर्पित है ये श्रद्धा सुमन।

तेरे मेरुता तो है ही अमित महान,

बखान करूँ कैसे तेरे यशो-गान?

        *******

 

-अनुराधा के,

वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी,

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,

क्षेत्रीय कार्यालय,मंगलूरु,कर्नाटक

 

 

 

 




बचपन

।। ग़ज़ल ।।
बचपन से भरा कौन मेरा ख्वाब ले गया ।
अम्मा की गोद जन्नत-ए-नवाब ले गया ।।

कागज़ की कई कश्तियां पानी का किनारा ।।
ये कौन दुश्मनी में बेहिसाब ले गया ।।

बचपन का वो इतवार मेरे दोस्त कहां है ।
गलियों से मुहल्लों से वो सैलाब ले गया ।।

दो उंगलियों को जोड़ते ही दोस्त बन गए ।
प्रश्नों के भँवर छोड़ के जवाब ले गया ।।

अम्मा मुझे थमा दे वो स्कूल का थैला ।
अब ज़िन्दगी का बोझ भी शराब ले गया ।।

उड़ते थे चील ,कौवा क्यों बचपन भी उड़ गया ।
बेमोल मेरी ज़िन्दगी नायाब ले गया ।।

“अवधेश” अब तू ख्वाब की दुनियाँ से लौट आ ।
उस मोड़ से वो ,शख़्स भी आदाब ले गया ।।
डॉ. अवधेश कुमार जौहरी




कविताओं के सिरे

मेरी कविताओं के बस सिरे नहीं मिलते..
शुरुआत मिलती है क्यूँ अंत नहीं मिलते..

रंगीन पतंग सी उड़ के पहुँचती है दूर…
पीछे लौट नहीं पाती,है कैसी मजबूर..

मुरझाये फूलों सी मृत पड़ी है किताब में.
भावनाओं की ख़ाक भी होगी हिसाब में..

कितने ही शब्दों को जोड़ कर लिखी गयी..
कुछ तो छूटा है जो अधूरी सी कहीं रह गयी..

आँखों के गंगाजल से धुली पवित्र सी लगती है..
कभी मुस्कान के पैबंद में विचित्र सी लगती है..

सुनो !! तुम भी तो जानते हो ना मेरी भाषा..
पूरा करोगे इन्हे क्या मैं करूँ तुमसे ये आशा..

बस ख्याल इतना सा मायने मेरे बदल मत देना..
ना हो ना सही लौट जाओ अभी साथ मत देना..

प्रेम के बदले प्रेम, तुमसे “प्रिया ” नहीं चाहती है..
प्रेम स्वतंत्र है,ये कविता हिय से कहना चाहती है..

Priya kumaar©




कोरोना काल अवसर या अभिशाप

कोरोना काल अवसर या अभिशाप

 

माना कि करोना काल ने कहर है बरसाया।

न जाने कितने लोगों को घर पर बैठाया,

कई लोगों को अपनों से बिछड़ाया, उन्हें रुलाया,

फिर भी यह काल अभिशाप नहीं, यह विचार आया

कि यह काल तो खुदा की नियामक बनकर आया।

 

कोरोना काल ने हमें फिर से जीना सीखाया,

हमें पशुता छोड़ मानव का पाठ पढ़ाया,

प्रकृति को और प्रदुषित होने से बचाया,

व्यस्त माता-पिता को अपने बच्चों से रु-ब-रु करवाया

परदेशी बच्चों ने भी अपने माता-पिता का हृदय जुड़ाया।

 

भारतीय संस्कृति को उजागर करवाया,

भागते हुए मानव के जीवन में ठहराव लाया,

साथ-साथ खाना, मिलकर काम करना सिखाया,

तू-तू-मैं-मैं से ‘हम’ बनना सिखाया,

और मैं क्या कहूँ-क्या-क्या बदलाव आया?

 

इस अवसर को हाथ से नहीं है जाने देना,

दक्ष व्यपारी की तरह भरपूर लाभ है उठाना,

आर्थिक मार तो फिर भी कर लेंगे बर्दाश्त,

लेकिन मानसिक विकार का नही है कोई उपाय,

इसलिए तो कहती हूँ, तोल-मोल कर जनाब

कोरोना काल अभिशाप नहीं, यह है वरदान॥

 

थोड़ी-सी सावधानी और सजगता की है जरुरत,

धैर्य व साहस की परीक्षा का है यह वक्त,

सहानुभूति व मानवता जगाने की है जरुरत,

एक दिन ऎसा भी आएगा जब हम सब

कहेंगे कोरोना काल था अवसर, नहीं था अभिशाप॥