रचना -1
पग में मेरे नूपुर बंध गए ,मन में ठहरे साज बजे,
हर धक पर भैरवी बजी,हर धड़कन राग सजे ,
संदल सा महका है तन मन,रोम रोम उद्गार बसे,
पग में मेरे नूपुर बंध गए,मन में ठहरे साज बजे।।
मैं तो ठहरी सी हरदम, चहकि आज फिर भाग जगे,
अमलताश सी मै बिल्कुल, हर अंग अब पलाश सजे।।
तुम वीणा के तार सजन, मै सरगम सी मात्र प्रिये,
सुर से सुरीला राग छिड़ गया, सुबह शाम राग रचे।।
चमक बीजुरी सी मै घिर_ती,तुम विराट आकाश धजे,
कोयल सी मीठी बोली मेरी,तुम प्रेम_प्रीत राग प्रिये।।
रचना -2
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न शब्द है न आधार है
सिर्फ़ रहता मौन क्या ये प्यार है?
जब बार बार होती तकरार है
तो कैसे कह दूँ ये प्यार हैै!
आशा अपेक्षा – इसकी नीति नही
जिसमें सिर्फ़ उम्मीद हो-वो प्रीति नही।।
🍁फिर आख़िर प्यार क्या है??
🍁प्यार क्या है-क्या ये आस है,
जो कभी न बुझी – वो प्यास है,
ये शब्द है — ये धवनि है ,
जो नित नयी – कभी न सुनी है ।।
रूह मे – ह्रदय में-बसता लोक है,
प्यार श्लोक है – प्यार आलोक है,
अंतः से उठती -वो सुगंध है,
ये स्नेह का -ऐसा बँध है ।।
प्यार मंत्र है – ऐसा तंत्र है ,
जो शुरू तो है- कभी न अंत है,
ये बुझी -बुझी ,सी आग है ,
जो कभी न- ख़त्म हो वो प्यासहै।।
जो न कभी ———
कभी धन में है – कभी फ़क़ीरी मे है,
ये मन मे मोती है-नयनो मे ज्योति है
प्यार कुबेर है – प्यार वो ढेर है,
कभी हिम्मतों में दिखता वो शेर है।
कभी चढ़ती उम्र का उबाल है,
प्यार रक्त है- प्यार लाल है,
कभी लब पर दिखता-कभी गालों पर
कभी प्रेम में -उड़ते गुलालो पर ।।
प्यार वो लपट है-प्यार वो आग है,
जो कभी न ख़त्म हो- वो प्यास है,
प्रेम नारी है या – कोई व्यक्ति है,
प्रेम क़ुदरत की सबसे सुंदर अभिवक्ति है —
सबसे सुंदर अभिवक्ति है – ——-