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महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता –मैं नारी……

1. मैं नारी………
मैं नारी सदियों से
स्व अस्तित्व की खोज में
फिरती हूँ मारी-मारी
कोई न मुझको माने जन
सब ने समझा व्यक्तिगत धन
जनक के घर में कन्या धन
दान दे मुझको किया अर्पण
जब जन्मी मुझको समझा कर्ज़
दानी बन अपना निभाया फर्ज़
साथ में कुछ उपहार दिए
अपने सब कर्ज़ उतार दिए
सौंप दिया किसी को जीवन
कन्या से बन गई पत्नी धन
समझा जहां पैरों की दासी
अवांछित ज्यों कोई खाना बासी
जब चाहा मुझको अपनाया
मन न माना तो ठुकराया
मेरी चाहत को भुला दिया
कांटों की सेज़ पे सुला दिया
मार दी मेरी हर चाहत
हर क्षण ही होती रही आहत
माँ बनकर जब मैनें जाना
थोडा तो खुद को पहचाना
फिर भी बन गई मैं मातृ धन
नहीं रहा कोई खुद का जीवन
चलती रही पर पथ अनजाना
बस गुमनामी में खो जाना
कभी आई थी सीता बनकर
पछताई मृगेच्छा कर कर
लांघी क्या इक सीमा मैंने
हर युग में मिले मुझको ताने
राधा बनकर मैं ही रोई
भटकी वन वन खोई खोई
कभी पांचाली बनकर रोई
पतियों ने मर्यादा खोई
दांव पे मुझको लगा दिया
अपना छोटापन दिखा दिया
मैं रोती रही चिल्लाती रही
पतिव्रता स्वयं को बताती रही
भरी सभा में बैठे पांच पति
की गई मेरी ऐसी दुर्गति
नहीं किसी का पुरुषत्व जागा
बस मुझ पर ही लांछन लागा
फिर बन आई झांसी रानी
नारी से बन गई मर्दानी
अब गीत मेरे सब गाते हैं
किस्से लिख-लिख के सुनाते हैं
मैने तो उठा लिया बीड़ा
पर नहीं दिखी मेरी पीड़ा
न देखा मैनें स्व यौवन
विधवापन में खोया बचपन
न माँ बनी मैं माँ बनकर
सोई कांटों की सेज़ जाकर
हर युग ने मुझको तरसाया
भावना ने मुझे मेरी बहकाया
कभी कटु कभी मैं बेचारी
हर युग में मैं भटकी नारी |
 
 
 
 

2. नारी-परीक्षा

मत लेना कोई परीक्षा अब

मेरे सब्र की

बहुत सह लिया

अब न सहेंगे

हम अपने आप को

सीता न कहेंगे

न ही तुम राम हो

जो तोड़ सको शिव-धनुष

या फिर डाल सको पत्थरों में जान

नहीं बन्धना अब मुझे

किसी लक्ष्मण रेखा मे

यह रेखाएँ पार कर ली थी सीता ने

भले ही गुजरी वो

अग्नि परीक्षा की ज्वाला से

भले ही भटकी वो जन्गल-जन्गल

भले ही मिला सब का तिरस्कार

पर कर दिया उसने नारी को आगाह

कि तोड़ दो सब सीमाएँ

अब नहीं देना कोई परीक्षा

अपनी पावनता की

नहीं सहना कोई अत्याचार

बदल दो अब अपने विचार

नारी नहीं है बेचारी

न ही किस्मत की मारी

वह तो आधार है इस जगत का

वह तो शक्ति है नर की

आधुनिक नारी हूँ मैं

नहीं शर्म की मारी हूँ मैं

बना ली है अब मैने अपनी सीमाएँ

जिसकी रेखा पर

कदम रखने से

हो सकता है तुम्हारा भी अपहरण

या फिर मैं भी दे सकती हूँ

तुम्हें देश-निकाला

कर सकती हूँ तुम्हारा बहिष्कार

या फिर तुम्हें भी देनी पड सकती है

कोई अग्नि परीक्षा

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पहली बार नारी की आजादी की पहल की थी तो जानकी सीता ने लक्षमण-रेखा को लाँघ कर

और कर दिया आज की नारी को आगाह कि नहीं देना कोई परीक्षा |प्रणाम है उस नारी को

जिसने आधुनिक नारी को राह दिखाई




वक्त की पुकार – बदलना है व्यवहार

परिवर्तन ही नियति का सनातन नियम है,

जल प्रवाहित होना ही नदी का संयम है,

निश्चल खडा पर्वत ही दृढता का सूचक है,

चलता काल चक्र ही लयता का द्योतक है,

हवा के दिशा साथ बदले वही समझदार है,

व्यवहार को बदलना, अब वक्त की पुकार है।1।

चिलचिलाती गर्मी में, ज्यों ढूढते छाया,

कंपकपाती सर्दी में ज्यों बचाते काया,

वर्षा के हास से इस धरा का अट्टहास है,

बसंत के विकास में सुगंध का आभास है,

इन मुसीबतों से बच गये तो फिर सदाबहार है,

व्यवहार को बदलना अब वक्त की पुकार है।2।

जाति धर्म छोडकर मानवता धर्म जोड लें,

संवेदनाएँ ओढकर विरोध से नाता तोड लें,

दिल मिलाकर जुबां हर एक के उत्कर्ष में, 

नहीं किसी की भलाई है आपसी संघर्ष में, 

पंछी को करो प्रेम तो वो भी लुटाता प्यार है,

व्यवहार को बदलना वक्त की पुकार है।3।

नम्रता ही मानव जाति का महा मूलमंत्र है,

अतिरेक में अकडने से बिगडते परितंत्र है,

मुसीबत की आंधी में जो झुका वो बचा,

सब्र किया जो कभी वक्त ने भी उसे रचा,

पतझड़ में जो जुडे वक्त ने किया श्रृंगार है,

व्यवहार को बदलना वक्त की पुकार है ।4। 

 




आचार्य रामचंद्र गोविंद वैजापुरकर की कविता – ‘मॉं’

मुझे खिलाती मुझे पिलाती
बांहों मे लेकर सो जाती।
तिरस्कार की गंध न जिसमें
साक्षात ममता की प्रति मूर्ति।

क्या जाने मानव उस मां को
नव मास तक कष्ट झेलती।
प्रसव वेदना की घड़ी में वह
अपना धैर्य कभी न खोती।

आशा चाहे पुत्र पुत्री की
सबको अपने हृदय लगाती।
दुग्धपान का सुख देकर वह
हृष्ट पुष्ट बालक को करती।

क्षण प्रशिक्षण चिंतन उस सुत का
जिसकी आशा लेकर बैठी।
ज्येष्ठ श्रेष्ठ हो पुत्र यह मेरा
मोती सदृश भाव पिरोती।

उच्च भाव यह उस मां के प्रति
जिसके मन में प्रतिदिन होता।
वही पुत्र सच्चा कहलाता
अन्य सभी बस मिथ्या मिथ्या।

मां ने दिया प्रेम पुत्र को
प्रीति पात्र वह कहलाता।
उसकी आंखों का तारा वह
यदि उसे न भूल जाता।

अपने-अपने सब होते हैं
पर मां का प्रेम नहीं देते हैं।
गोपी सदा कृष्ण को प्यारी
फिर भी नाम यशोदा का लेते हैं।

भावपूर्ण पूजन माता का
यह संस्कृति की उज्जवल गाथा।
तभी विश्व जगत में भारत
सदा पूजनीय कहलाता।

मां की सेवा करता जो नन्दन
घर में कभी न होता क्रन्दन।
देव विवश होकर भी करते
प्रतिदिन उसका वन्दन वन्दन।

वृक्ष विशाल होते हैं फिर भी
उन्हें कल्पना भू से मिलती।
जिसकी गोद में पलती प्रकृति
उसकी चिंता मां भी करती ।

फल के भारों से लद कर भी
वृक्ष सदा झुक जाते हैं।
मानों मां का आदर करने
नतमस्तक हो जाते हैं।

यही प्रकृति शिक्षा देती है
मां के उस सम्मान की।
जीव जगत अनुकरण करें जो
मां निधि आशीर्वचनों की।

आचार्य रामचंद्र गोविंद वैजापुरकर
श्री जगद्देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय सप्तर्षि आश्रम हरिद्वार




नरसिंह यादव की कविता – ‘रेप की सजा फांसी’

लहरों को देखा आज यूं ही लहराते हुए,
हवाओं को भी देखा गुलछर्रे उड़ाते हुए,
बादल घूम रहा अकेले इधर उधर आज,
मिट्टी में मिली खुद जीवन सभालते हुए।

खूब घोट लो सत्य का गला घोंटने वाले,
किसी बात पे अपनी बात जोतने वाले,
क्या हो रहा आज छुपकर कहा सो रहे,
कहां खोए समाधि पे फुल चढ़ाने वाले।

अहिंसा के पुजारी दांत दिखाते हुए,
अपने ही कामों को मुंह चिढ़ाते हुए,
बोल रहे बढ़ चढ़ के उन्हीं के हत्यारे,
फिर आ जाओ हमें ये सिखाते हुए,

जिंदा हैं बहू बेटियों को यूं डराते हुए,
घूम रहे इज्जत को तार तार करते हुए,
भूल गए वहीं आज नारा लगाया जो,
जी रहे सरकार का मौज उड़ाते हुए।

आ गया वहीं दो अक्टूबर फिर आज,
आए दो फुल चढ़ा वो समाधि पे आज,
पूरा करके दिखा दिया सरकारी कोरम,
मिले जो सच को सच से ही छुपाते हुए।

सब मौन हैं पर कह रहे मिलकर आपसे,
सुना जो नहीं वहीं गुजर गया जो पास से,
बने एक विधान नियम हो जाए फांसी जो,
वो भूल जाए बाला का रेप करना आज से।




मनोरंजन तिवारी की कहानी – ‘एहसास’

एक रात जब मैं घर पहुँचा  तो मेरी पत्नी ने मेरे लिए खाना परोसा।  मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा कि मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। वह बैठ गई और चुप-चाप खाना खाने लगी। लेकिन मुझे उसके चेहरे पर दर्द की  झलक दिखी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उससे कैसे कहूँ की मुझे उससे तलाक चाहिए। लेकिन मुझे तो कहना ही था।  मैंने ठंडे दिमाग से बात शुरू की और अपनी इच्छा बता दी।  उसके चेहरे पर कोई नाराज़गी के भाव तो नहीं आए, मगर उसने वैसे ही शांतचित रहते हुए पूछा क्यों?

मैंने उसके प्रश्न को कोई तवज्जो नहीं दिया।  इस पर वह भड़क उठी और वहाँ पड़े बर्तन को उठा कर मेरी तरफ दे मारा,और बड़बड़ाते हुए बोली ” तुम मर्द नहीं हो”। 

फिर उस रात हम दोनों में कोई बात नहीं हुई।  वह बिस्तर पर पड़ी रोती रही।  मैं जानता था कि वह जानना चाहती थी की आखिर हुआ क्या है, मगर मैं कोई सही कारण बता सकने में असमर्थ था।  वास्तव में कारण यह था कि  मैं किसी और स्त्री से प्रेम करने लगा था और मेरे दिल में मेरी पत्नी के लिए कोई जगह नहीं बची थी। मैं सिर्फ उसे बेवकूफ़ बना रहा था और हाँ उसके साथ धोखा भी कर रहा था।

अगले दिन अपराधबोध महसूस करते हुए भी मैंने तलाक के कागज़ात तैयार करवा दिए जिसमें मैंने अपनी पत्नी को एक घर, एक कार और अपनी  कंपनी में 30 %  की हिस्सेदारी देने की बात थी, मगर जब मैंने तलाक के वो कागज़ात को अपनी पत्नी को दिए तो उसने वो कागजात फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए और फिर बिल्कुल अजनबी की तरह खड़ी  रोती रही। 

मैं जानता था कि उसने मुझे अपने दस साल दिए थे। अपना समय, सम्पदा और ऊर्जा सब कुछ दिया, मगर उसके इस बर्बाद हुए समय को तो मैं लौटा नहीं सकता था। मैं अपनी महिला मित्र से बहुत गहरा प्रेम करने लगा था और  मैं जनता था कि उसके आँसू एक तरह से मुझे आज़ाद कर रहे थे उन उलझनों से जिनमें मैं पिछले कई सप्ताह से उलझा हुआ था। उसके आँसुओं ने हमारे तलाक के बारे में मेरे विचार को और अधिक स्पष्ट एवं और अधिक मजबूत कर दिया था।

अगली रात को मैं बहुत देर से घर आया। बहुत थके होने के कारण सीधे बिस्तर में चला गया।  मैंने देखा कि मेरी पत्नी टेबल पर बैठी कुछ लिख रही है।  मगर मैंने उसकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया और सो गया।

काफ़ी रात गुजरने के बाद मेरी नींद खुली तो देखा वह तब भी टेबल पर बैठी लिख रही है। मैंने करवट बदलकर अपना चेहरा दूसरी तरफ किया फिर से सो गया।

अगली सुबह वह तलाक के लिए अपनी शर्तों के साथ मेरे सामने प्रस्तुत हुई। उसने उसमें लिखा था कि उसे मुझसे कुछ भी नहीं चाहिए। सिर्फ एक महीने का नोटिस चाहिए। और इस एक महीने में हम दोनों बिल्कुल सामान्य बने रहने की कोशिश करेंगे। 

ऐसा करने के पीछे कारण यह था कि हमारे बेटे की परीक्षा अगले एक महीने में संपन्न होने वाली थी और वह नहीं चाहती थी कि हमारे टूटते हुए या ये कहें कि टूटे हुए रिश्ते का कोई असर हमारे बेटे पर हो। यह तो बहुत अच्छी बात थी। मैंने उसकी  उस शर्त को  स्वीकार कर लिया।

तलाक के लिए उसकी कुछ और भी शर्ते थीं। उनमें से एक था कि जिस तरह मैं  उसे शादी के दिन अपने बाँहों में लिए हुए बाहर से अंदर और फिर बेड रूम में ले गया था, ठीक उसी तरह अगले एक महीने तक मुझे उसे वैसे ही बाँहों में लेकर अंदर बेड रूम से बाहर बैठक तक और फिर घर के बहार तक छोड़ना था। ये शर्त सुन कर पहले तो मुझे लगा की यह पागल हो गई है मगर किसी तरह एक महीना तक मैनेज करने के लिए मैं राज़ी हो ही गया।

जब मैंने तलाक के लिए अपनी पत्नी की शर्तों को अपनी महिला मित्र को बताया तो वह ठहाका लगा कर हँसने लगी, और बोली कि वह अब कुछ भी जतन कर ले लेकिन उसका तलाक तो अब होकर ही रहेगा।

मेरा अपनी पत्नी के साथ काफी अर्से से कोई शारीरिक संपर्क नहीं था।  अगली सुबह जब शर्त के अनुसार मैं उसे अपनी बाँहों में लेकर बाहर गया तो हम दोनों को बहुत संकोच हुआ। मेरा बेटा, हमारे पीछे से खड़ा होकर हँसता हुआ ताली बजा रहा था ये सोच कर कि उसके पापा उसकी माँ को बाँहों में लेकर चल रहे हैं। ये सोच कर मुझे बहुत तकलीफ़ हुई। मेरी पत्नी ने बहुत प्यार से मुझे कहा कि हमारे टूटे हुए रिश्ते के बारे में मैं अपने बेटे को कभी भी न  बताऊँ। मैंने उसे दरवाज़े के बाहर छोड़ दिया। वहाँ से वह अपने ऑफिस चली गई और मैं अपनी गाड़ी लेकर अपने ऑफिस चला गया।

दूसरे दिन जब मैं अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर बाहर जाने लगा तो मुझे उसके ब्लाउज से खुशबू आई और मुझे महसूस हुआ कि एक लम्बे समय से मैं उस पर ध्यान ही नहीं दे रहा था।  वह अब जवान नहीं रह गई थी। कुछ झुर्रियों जैसे निशान और सफ़ेद बाल दिखने लगे थे उसके।  उसने जो अपने दस साल मुझे दिए, उसके लिए मुझे दुःख हो रहा था।

चौथे दिन मुझे महसूस हुआ कि हमारे बीच अपनापन और नजदीकियाँ वापस आने लगी हैं  लेकिन मैंने कुछ भी नहीं कहा और उसे दरवाजे के बाहर छोड़ कर ऑफिस के लिए निकल गया।

इसी तरह हर रोज-रोज यह क्रिया हम करते-करते मुझे ऐसा महसूस हुआ कि वह दिन-प्रतिदिन कमजोर और हल्की होते जा रही है वहीं दूसरी ओर इस लगातार व्यायाम से मैं ताकतवर होता  जा रहा था।

एक सुबह मेरी पत्नी ने पहनने के लिए ड्रेस चुनने को कहा।  वह एक-एक करके हर ड्रेस को पहन कर देखती जा रही थी मगर उसके कमज़ोर और दुबली-पतली होने के कारण उसी के ड्रेस उस पर फिट नहीं हो रहे थे।  मैं यह सोच कर बहुत व्यथित हुआ कि मेरी पत्नी ने अपने दर्द और तकलीफों को इस तरह अपने अंदर छुपा लिया है कि  इसका असर उसके सेहत पर हो रहा है, वह हर रोज दुबली और हल्की होते जा रही है, तभी तो मैं उसे आसानी से उठा पाता हूँ। तभी मेरा बेटा आकर बोला ” पापा, मम्मी को बाँहों में उठा कर बाहर छोड़ने का समय हो गया।मेरी पत्नी ने बेटे के तरफ प्यार से देखा और अपने पास बुला कर अपने बाँहों में ले लिया। मैंने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया, क्योंकि मुझे महसूस हुआ की इस क्षण मैं इतना कमज़ोर हो रहा था की, शायद अपना फ़ैसला बदल देता।

आख़री दिन जब मैं, अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर चला तो मेरे पैर ही नहीं उठ रहे थे, मुझे उस दिन उसका इतना हल्का होना,मुझे इस कदर दुःखी कर दिया की मेरे आँसू बहने लगे, मैंने उसे और जोर से अपनी बाँहों में पकड़ते हुए सिर्फ इतना कहा ” मुझे अब समझ आ रहा है की, हमारे रिश्ते में नजदीकी (intimasy ) की बहुत कमी हो गई थी, फिर मैंने उसे दरवाज़े के बाहर छोड़ कर तेज़ी से अपनी गाड़ी लेकर निकल गया, मैं बहुत तेज़ जा रहा था, ऐसा लग रहा था की कहीं देर न हो जाए।

मैं लगभग दौड़ते हुए अपनी महिला मित्र के घर गया और जाते ही कहा, मुझे माफ़ कर दो, मैं अपनी पत्नी से तलाक नहीं ले सकता। मेरी महिला मित्र ने थोड़ा चिंतित होकर मेरे ललाट पर हाथ रखते हुए बोली ” तुम्हे बुख़ार तो नहीं न आ रहा? क्या तुम ठीक हो?

मगर मैंने उसके हाथ को दूर हटा कर कहा, हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ अब, लेकिन मैं अपनी पत्नी से तलाक नहीं लेना चाहता, और ये मेरा फ़ैसला है, क्योंकि मुझे अब समझ में आ गया है की,मैं अपनी पत्नी से इसलिए तलाक नहीं रहा था, क्योंकि मैं उससे प्यार नहीं करता, बल्कि इसलिए तलाक ले रहा था, क्योंकि हम दोनों ने एक-दूसरे के बारे में छोटी-छोटी बातों को देखना भूल गए थे, मैं अभी भी अपनी पत्नी से ही प्यार करता हूँ, तुमसे सिर्फ मेरा शारीरिक आकर्षण है, जो प्यार जैसा लग रहा है। यह सुन कर मेरी महिला मित्र ने मुझे एक जोर का थप्पड़ मारा और रोते हुए मुझे बाहर निकाल कर मेरे मुँह पर धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर दिया।

मैं दौड़ते हुए फूल और बुके की दुकान पर गया और अपनी पत्नी के लिए खूबसूरत फूलों का एक बुके बनाने को कहा। वहाँ खड़ी सेल्स गर्ल ने पुछा की इस पर क्या लिखना है सर? तो मैंने अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए लिखा ” मैं तुम्हे हर सुबह इसी तरह बाँहों में लेकर बाहर छोडूगा जब तक की मौत हम दोनों को अलग ना कर दे”

उस सायं को जब मैं घर पहुँचा तो हाथों में फूलों के ग़ुलदश्ता लिए, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए दौड़ते हुए सीढ़ियाँ चढ़ कर बेडरूम में गया तो देखा, मेरी पत्नी वहाँ मरी पड़ी है। मेरी पत्नी को कैंसर आखरी स्टेज पर था, और मैं अपनी महिला मित्र के साथ इसकदर मौज़-मस्ती में उलझा रहा की, अपनी पत्नी के ख़राब होते सेहत पर ध्यान भी ना दे सका। मेरी पत्नी जानती थी की, वह सिर्फ कुछ दिनों तक जीवित रहने वाली है है, इसी लिए उसने मेरे साथ तलाक का इस तरह का शर्त रखा था, जिससे हमारे बेटे को लगे की हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है। वह चाहती थी की उसके मौत के बाद मेरा बेटा एक अच्छा पति और पिता के रूप में जाने ना की कोई नकारात्मक बात उसके मन में आए।

हमारे जीवन में धन-सम्पति, कार , बंगला ये सब जीवन को आसान तो बना देते है, मगर एक खुशहाल जीवन नहीं बना सकते, खुशहाल जीवन के लिए हम सबको एक-दूसरे की छोटी-छोटी बातों, छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल रखना चाहिए।




आत्मविश्वास

घनघोर बरसातों के बाद तृप्त धरा ही,

मनोहर हरियाली की चादर चढती है,

चिलचिलाती धूप से खलिहान में रखी,

फसल ही लोगों  की थाल परोसती है,

युगों से लिखा इतिहास दिलाता हर

अहसास पनपते घटना परिणामों पर,

जीत हमेशा होगी हर भीषण संघर्षों में, 

अडिग बना रहे, हाॅ विश्वास है खुद पर।1।

हर घुप अंधेरी रात के बाद झुटपुटे भोर के

दिवस का उल्लास लिए आगाज होता है,

शान्त खडे पेडो में बैठे परिंदों के घोसले में, 

हर नये उन्मुक्त जीवन का अंदाज होता है।

हर वनवास बदा होता,अधर्म के नाश पर,

अडिग बना रहे हाँ विश्वास खुद पर ।2।

वह सीधी लहर होती जो पर्वत से टकराती, 

और निरन्तर टकराकर उसे चूर चूर कर जाती,

हर निद्रा में ही होता नव रक्त शक्ति संचार 

महामना बनाकर देता नवयुग का निर्माण 

बिजली बनती है सदैव जल के अवरूद्ध पर,

अडिग बना रहे,हाँ विश्वास खुद पर ।3।

वर्तमान के संकट ने जरूर बडा कहर बरपाया है,

अपने अडिग विश्वास से ही इसे जरा रोक पाया है

अब बुद्धि जागरूकता धैर्य का लेना संज्ञान, 

जाति भेद और अज्ञानता का करना है वलिदान,

नया सवेरा आयेगा,खुद अपने अंदाज पर 

अडिग बना रहे, हाॅ मुझे विश्वास खुद पर ।4।

 

 




नववर्ष २०२१ अभिनंदन

🌺नव वर्ष २०२१अभिनंदन🌺

नव वर्ष हम करते अभिनंदन तुम्हारा हैं,
नव चेतना व आशा में झूमे जग सारा है,
प्रगति पथ पर सतत् आगे बढ़ते रहे हम,
चेहरों पे मुस्कान हो ये उद्येशय हमारा है,
नववर्ष हम ……

कोई छोटा नही ,न कोई अहंकार में तना हो,
दीन -हीन की रक्षा में जन गण मन जुटा हो,
खुशियों की चादर फैला हम सब साथ बैठे,
हम दे मान सबको ,हर दिल में प्यार भरा हो,
नव वर्ष हम …..

माँ सरस्वती,लेखनी के हम सब आराधक हैं,
हाथों से लिखते हम दुनिया की नई इबारत हैं,
मन के भावों को गंगाजल सा पावन रखकर,
जग को देनी नई दिशा,नव प्रवाह की धारा है,
नववर्ष हम ……

खूब रचा रचियेता ने जग का ये तो विधान है,
इसके वेग-आवेग में बहते हम लहर समान है,
ऊचाई तक जाने के बाद , आना फिर धरातल,
गढ़ नूतन सोपान,समय भी कब कहाँ ठहरा है,
नववर्ष हम ……

  • मनीषा सुमन
    स्वरचित

 




देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता कविता: आजादी की सुबह

आजादी की पहली सुबह
नवोन्मेष से पुर्ण थी
मुक्त हुई थी भारत भुमि
जंजीरें तोड़ गुलामी की
नव सपनें लेकर के आयी
आजादी की सुबह सुहानी
पर उससे पहले लिखी
विभाजन की कहानी
नवभारत के निर्माण को लेकर
आशाओं का नवसंचार हुआ
देखे थे जो सपने
वीरों ने आजादी के
आजादी की नव सुबह पर
वो सपने साकार हुए
नवभारत उल्लास नया
नयी सोच लेकर आयी
आजादी की नयी सुबह
मिलकर के आगे बढ़ना था
भारत को आगे ले जाने को
स्वप्न जो देखा था वीरों ने
वक्त था पूरा करने का
आसमान में गर्व से अपना
लहरा रहा था तिरंगा
वो भारत जो चाहा था
नहीं हम बना पाये
अफसोस यही है आज भी
वीरों का कर्ज न चुका पाये
एक बार फिर से अब ठानो
नवभारत का निर्माण करें
भ्रष्टाचार और दुराचार को
भारत से मिल बाहर करें
आजादी की पहली सुबह पर
सपना जो देखा था सबने
आओ एक बार फिर मिलकर
हम उसको साकार करें

नाम- धीरज कुमार शुक्ला “दर्श”

पद- जिलाध्यक्ष, झालावाड़ स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया, राजस्थान

पता- ग्राम व पोस्ट पिपलाज, तह. खानपुर ,जिला झालावाड़, राजस्थान, (326038) भारत

मोबाइल अंक/वाट्सएप अंक- 7688823730

Email- [email protected]