मेरे अपनों को शिकायत रहती है
जब देर रात तक,
भीगी पलकों से,
जागती रहती हूं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
कभी मेरी तन्हाई,
मुझसे रूठ कर,
कोने में रोती रहती है,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
जब खुद में खो जाती हूं,
जागते हुए सो जाती हूं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
खुदा से खफा होकर,
अनगिनत सवाल लिए,
चादर जब ओढ़ लेती हूं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
कई अधूरी सी ख्वाहिशें,
मन को उद्वेलित कर,
एक आंदोलन सा करती हैं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
भटक कर शब्दों के जंगल में,
दिल शिकायत करता है,
कि खुद को बदल लो थोड़ा सा,
तुम्हारे अपनों को शिकायत रहती है।