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काव्य-मंच 

काव्य-मंच 
(मापनी:- 2122  2122  212)

काव्य मंचों की अवस्था देख के,
लग रहा कविता ही अब तो खो गयी;
आज फूहड़ता का ऐसा जोर है,
कल्पना कवियों की जैसे सो गयी।

काव्य-रचना की जो प्रचलित मान्यता,
तोड़ उनको जो रचें वे श्रेष्ठ हैं;
नव-विचारों के वे संवाहक बनें,
कवि गणों में आज वे ही ज्येष्ठ हैं।

वासनाएँ मन की जो अतृप्त हैं,
वे बहें तो काव्य में रस-धार है;
हो अनावृत काव्य में सौंदर्य तो,
आज की भाषा में वो शृंगार है।

रूप की प्रतिमा अगर है मंच पर,
गौण फिर तो काव्य का सौंदर्य है;
फब्तियों की बाढ़ में खो कर रहे,
काव्य का ही पाठ ये आश्चर्य है!

चुटकलों में आज के श्रोता सभी,
काव्य का पावन रसामृत ढूंढते;
बिन समझ की वाहवाही करके वे,
प्राण फूहड़ काव्य में भी फूंकते।

मूक कवि, वाचाल सब लफ्फाज हैं,
काव्य के सच्चे उपासक खो रहे;
दुर्दशा मंचों की ऐसी देख कर,
काव्य-प्रेमी आज सारे रो रहे।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




गीतिका (अभी तो सूरज उगा है)

गीतिका (अभी तो सूरज उगा है)

प्रधान मंत्री मोदी जी की कविता की पंक्ति से प्रेरणा पा लिखी गीतिका।
(मापनी:- 12222  122)

अभी तो सूरज उगा है,
सवेरा यह कुछ नया है।

प्रखरतर यह भानु होता ,
गगन में बढ़ अब चला है।

अभी तक जो नींद में थे,
जगा उन सब को दिया है।

सभी का विश्वास ले के,
प्रगति पथ पर चल पड़ा है।

तमस की रजनी गयी छँट,
उजाला अब छा गया है।

उड़ानें यह देश लेगा,
सभी दिग में नभ खुला है।

भवन उन्नति-नींव पर अब,
शुरू द्रुत गति से हुआ है।

गया बढ़ उत्साह सब का,
कलेजा रिपु का हिला है।

‘नमन’ भारत का भरोसा,
सभी क्षेत्रों में बढ़ा है।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




अहसास- पिता होने का

हम तो चाॅद सितारे, उस परिवार के,

जिसमें पिता एक आकाश होता है।

जिसके रोशनी से दमकते पूरा घर,

वह तो पिता का ही प्रकाश होता है।1।

आसमां से ऊंची होती जगह कहीं, 

तो वह बस,पिता का स्थान होता है।

कंधों पे बैठा लेते,तब लगता मुझको,

इस सारे जगत का अभिमान छोटा है।2।

दुलार पर कह सकते नहीं तुम्हें,

पर चुप्पी में छुपा यार नजर आता है।

हमारी खुशी में लाखों गम भूल जाते,

मेरी तोतली पे दिलबाग नजर आता है।3।

जोश आ जाता जग जीतने का जब,

मेरी हथेली तुम्हारी ऊँगली पकड लेती,

परिवारों का आदर्श बन जाते तभी तुम,

मेरी कामयाबी जब चार चाँद लगा लेती।4।

तुम नहीं,तो लगता इस घर की छत नहीं, 

जरा सी हवा में,ये तूफान नजर आता है।

आग के गोले से लगते बन्धुबान्धव मेरे,

झरोखे से,ये शहर वीरान नजर आता है।5।