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मीनाक्षी डबास की नई कविता: रिमझिम-रिमिझम

रिमझिम रिमझिम

 बरसे फुहार

 मन नाचे मेरा

 करे पुकार l

रिमझिम रिमझिम

 बरसो पानी

 भू पर लिख दो 

फिर नई कहानी 

रिमझिम रिमझिम

 कदम बढ़ाए

डालों को तुम 

चलो भिगोएं l

रिमझिम रिमझिम 

मधम मधम 

मिट्टी के कण में 

बस जाओ 

रिमझिम रिमझिम 

नाच नाच के 

नदियों से तुम 

आन मिलो, अब 

रिमझिम रिमझिम

 कूद फांद के 

चट्टानों से भिड़ जाओ 

रिमझिम रिमझिम 

नाच नाच के

बच्चों का भी 

जी बहलाओ 

 मीनाक्षी डबास “मन” 

(हिंदी प्रवक्ता)

राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार 

शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली 




हाइकु (ये बालक कैसा)

हाइकु (ये बालक कैसा)

अस्थिपिंजर
कफ़न में लिपटा
एक ठूँठ सा।

पूर्ण उपेक्ष्य
मानवी जीवन का
कटु घूँट सा।

स्लेटी बदन
उसपे भाग्य लिखे
मैलों की धार।

कटोरा लिए
एक मूर्त ढो रही
तन का भार।

लाल लोचन
अपलक ताकते
राहगीर को।

सूखे से होंठ
पपड़ी में छिपाए
हर पीर को।

उलझी लटें
बरगद जटा सी
चेहरा ढके।

उपेक्षित हो
भरी राह में खड़ा
कोई ना तके।

शून्य चेहरा
रिक्त फैले नभ सा
है भाव हीन।

जड़े तमाचा
मानवी सभ्यता पे
बालक दीन।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

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वासुदेव जी आपकी बालक पर लिखी हुई यह हाइकु शैली में कविता वास्तव में बहुत ही सराहनीय है. यूं तो हर हाइकु अपने-आप में स्वतंत्र होता है लेकिन आपने अनेक हाई को एक साथ मिलाकर बालक पर एक बहुत ही मार्मिक कविता का रूप दिया है मैं इस कविता को हाइकु में एक प्रयोग के रूप में देखता हूं साथ ही आपने 2 हाइकु को तुकांत के रूप में मिलाकर इस कविता को पठनीय बना दिया है जैसे गजल में हर शेर अपने आप में स्वतंत्र होता है लेकिन अगर गजल का हर शेर एक ही विषय को लेकर कहा जाता है तो वह मुसलसल गजल कहलाती है इसी तरह से मैं इसे निरंतर हाइकु कविता कहना चाहूंगा

आपका सुरेंद्र सिंघल




सार छंद “भारत गौरव”

 

सार छंद “भारत गौरव”

जय भारत जय पावनि गंगे, जय गिरिराज हिमालय;
सकल विश्व के नभ में गूँजे, तेरी पावन जय जय।
तूने अपनी ज्ञान रश्मि से, जग का तिमिर हटाया;
अपनी धर्म भेरी के स्वर से, जन मानस गूँजाया।।

उत्तर में नगराज हिमालय, तेरा मुकुट सजाए;
दक्षिण में पावन रत्नाकर , तेरे चरण धुलाए।
खेतों की हरियाली तुझको, हरित वस्त्र पहनाए;
तेरे उपवन बागों की छवि, जन जन को हर्षाए।।

गंगा यमुना कावेरी की, शोभा बड़ी निराली;
अपनी जलधारा से डाले, खेतों में हरियाली।
तेरी प्यारी दिव्य भूमि है, अनुपम वैभवशाली;
कहीं महीधर कहीं नदी है, कहीं रेत सोनाली।।

महापुरुष अगणित जन्मे थे, इस पावन वसुधा पर;
धीर वीर शरणागतवत्सल, सब थे पर दुख कातर।
दानशीलता न्यायकुशलता, उन सब की थी थाती;
उनकी कृतियों की गुण गाथा, थकै न ये भू गाती।।

तेरी पुण्य धरा पर जन्मे, राम कृष्ण अवतारी;
पा कर के उन रत्नों को थी, धन्य हुई भू सारी।।
आतताइयों का वध करके, मुक्त मही की जिनने;
ऋषि मुनियों के सब कष्टों को, दूर किया था उनने।।

तेरे ऋषि मुनियों ने जग को, अनुपम योग दिया था;
सतत साधना से उन सब ने, जग-कल्याण किया था।
बुद्ध अशोक समान धर्मपति, जन्म लिये इस भू पर;
धर्म-ध्वजा के थे वे वाहक, मानवता के सहचर।।

वीर शिवा राणा प्रताप से, तलवारों के चालक;
मिटे जन्म भू पर हँस कर वे, मातृ धरा के पालक।
भगत सिंह गांधी सुभाष सम, स्वतन्त्रता के रक्षक;
देश स्वतंत्र किये बन कर वे, अंग्रेजों के भक्षक।।

सदियों का संघर्ष फलित जो, इसे सँभालें मिल हम;
ऊँच-नीच के जात-पाँत के, दूर करें सारे तम।
तेरे यश की गाथा गाए, गंगा से कावेरी;
बारंबार नमन हे जगगुरु, पुण्य धरा को तेरी।।

  1. बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया