पर्वतराज हिमालय रक्षक,
ऋषियों की संतान हूँ
वेद पुराण ऋचाएँ मुझमें,
मानव संस्कृति की पहचान हूँ
हांँ, मैं हिंदुस्तान हूँ ,,,,,,,,
मस्तक केसर तिलक लगाये
कश्मीर घाटी स्वर्ग बसाये
देवो की तपोभूमि मैं
अगणित रत्नों की खान हूँ
हाँ, मैं हिंदुस्तान हूँ,,,,,,,,,,
कल-कल बहती नदिया मुझमें,
झरने पहाड़ी और कहीं पठार हूँ
हर भाषा मुझ से ही जन्मी
मैं सुन्दर वन, मैं ही रेगिस्तान हूँ
हांँ, मैं हिंदुस्तान हूँ ,,,,,,,,,,,
लहर लहर लहराए धरती अपनी,
रबी, खरीफ, जायद फसल किसान हूँ,
वसुधैव कुटुंबकम् बसता मुझमें,
विश्व गुरु की पहचान हूँ
हाँ, मैं हिंदुस्तानी हूँ,,,,,,,
राम,कृष्ण, नानक, गौतम जन्में जहाँ,
आर्यभट्ट, पाणिनी, वेदव्यास बागान हूंँ,
गार्गी, अपाला, घोषा, अनसूया, सावित्री
लक्ष्मीबाई, राधा, मीरा, मैं सीता की गान हूँ
हाँ, मैं हिंदुस्तान हूँ,,,,,
मुझमें ही कबीर, तुलसी, जायसी हुए
दिनकर, पंत, निराला कालिदास महान हूँ,
इतिहास के स्वर्णिम धरोहर मुझमें,
करोड़ों वीरगाथाओं की बखान हूँ
हांँ, मैं हिंदुस्तान हूँ,,,,,
काशी, मथुरा, अयोध्या, वृंदावन,
कटक, सागरतट बसता रामेश्वर स्थान हूंँ,
कत्थक, कजरी, शहनाई, बांसुरी,
गरबा, भांगड़ा, मोहनीअट्टम यशगान हूँ,
हाँ, मैं हिंदुस्तान हूँ,,,,,,,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई,
सब धर्मों का सम्मान हूंँ
लोकतंत्र है बसता मुझमें,
विशाल संविधान का मैं शान हूँ,
हाँ, मैं हिंदुस्तान हूँ,,,,,,
एकता, अखंडता, विविधता मैं,
खुद में समेटे हुये
कण-कण में बसता,
प्रेम, त्याग, दया अपनत्व का मैं गुलिस्तान हूँ,
हाँ हिंदुस्तान हूँ,,,,
वन्दना यादव “ग़ज़ल”
वाराणसी, यू०पी०