1

सुखबीर दुहन की नई कविता- हालात-ए-किसान

हालात ए किसान

यह जो तेरे घर में अन्न आया है।
जरा सोचो किसने पसीना बहाया है।
चाह मिटायी , चिन्ता पाई , चैन की नींद ना आई,
तुझे दिया, खुद न खाया, बासी रोटी से भूख मिटाई।
भोर उठा , मुंह न धोया ,मिट्टी से सनी काया ,
फटे कपड़े टूटी चप्पल ,आदर भी ना पाया।
दीनहीन लगता रहता, हाथ में न कमाई,
खेत-खलिहानों में ही पूरी जिंदगी बिताई।
थका मांदा लगा रहता ,इसने ना चैन पाया,
कभी सूखा ,कभी बाढ़, ओलों ने बड़ा सताया।
जलती धूप , चमकती बिजली, ठंड इसे काम से न रोक पाई,
स्वयं ना बचे भले तूफानों से, मगर अपनी फसल बचाई ।
यह जो तेरे घर में अन्न आया है,
एक किसान ने पसीना बहाया है।

-डॉ. सुखबीर दुहन, हिसार




पूनम शर्मा की कविता – ‘चमकेगी हिंदी की बिंदी’

पूरब से पश्चिम तक

उत्तर से दक्षिण तक

सबको पिरोती एक डोर में

इसलिए सूत्रधार बनके चमकेगी हिंदी की बिंदी।

अलग-अलग जाति, धर्मों के लोग यहाँ

भिन्न-भिन्न प्रांतों के भिन्न त्योहार यहाँ

इतनी विविधता होने पर

एकता बनके चमकेगी हिंदी हिंदी की बिंदी।

जन-जन के भावों को दर्शाती

राष्ट्र को एक पहचान दिलाती

यह मधुर-मनमोहन, यही मनभाती

इसलिए मातृभाषा बनके चमकेगी हिंदी की बिंदी।

बचपन से बच्चे की बोली बन जाती

नैतिक मूल्य भी यही सिखाती

सबके ज्ञान में वृद्धि कर जाती

इसलिए शिक्षा बनके चमकेगी हिंदी की बिंदी।

प्रेमचंद, भारतेंदु, अज्ञेय, चौहान और त्रिपाठी

तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी सबको अपनाती

आदि से अब तक का इतिहास बताती

इसलिए साहित्य बनके चमकेगी हिंदी की बिंदी।

आओ मिलकर इसको फैलाएँ

विश्व में इसका नगाड़ा बजाएँ

इसे जन-जन की आवाज़ बनाएँ

तभी तो सूरज बनके चमकेगी हिंदी की बिंदी।




डा अशोक पण्ड्या के गीत

जिन्दगी एक गीत है

गीत जिस पर लिखे गए अनेकों गीत हैं
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है ।
गुनगुनाते अनेकों अधर
अपने प्रणय की गीति को
आलाप करते प्रफुल्ल मन
आप उपजी प्रीति को,
हंसते हुए बीतजाय यह जिंदगी
यों गीत गाती आरही यह बंदगी
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एकदम गीत है ।
पंछियों के कलरव को भी
कहते हम यह एक गीत है
कलकल बहते जल प्रवाह से
भी सुनते हम संगीत हैं ,
प्रकृति का नाम मानो
दूसरा यह गीत है।
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है।
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं,
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिंदगी एक गीत है।
नहीं कह रहा मैं आपसे
आनन्द ही बस गीत है,
दुखियों की दर्द भरी आह में भी
मिल जाता हमें गीत है ।
आनन्द के उत्संग में ही
पलना नहीं गीत है,
कण्टकों के जाल में
रोना भी तो एक गीत है ।
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं,
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है ।
सुख की हो या दुःख की
कल्पना मात्र एक गीत है
चेतन की तरह जब में भी
विद्यमान यह गीत है ।
अनन्त आनन्द पा कर भी
गाया जाता यह गीत है,
लेकिन वेदना का श्रृंगार
भी तो यह गीत है ।
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं,
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है ।।
– डा अशोक पण्ड्या

“‘प्रियतम प्यारे” 

प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है
रसवंती रंभा अमराई
फूलों की पैबंद है,
प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है ।
श्वेत सुहागन बसंत सुंदरी
ओढ़े श्वेत परिधान
लाल लाल रक्तिम आभा
संग लिये रश्मि सखियन
नवपल्लव औऺ पुष्प कलियन
सुहागिन का सिंगार है,
प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है ।
शिखिनृत्य,कोयल की कूक
चिड़ियों की चहचहाट है
कलि खिलती, पुष्प महकता
सर्वत्र आनन्दबहार है
पुष्पपल्लवी बनी नर्त्तकी
बसंत का संगीत है,
प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है ।।

“सुख का सागर लहराऊं”

मैं करूं कल्पना ऐसी
सुख का सागर लहराऊं
विश्वोदय की ज्वाला में जलूं
जल कर भी मन में मुस्कराऊं
मैं करूं कल्पना ऐसी ।

अन्त ने हो इस जीवन का मेरे
मैं यह बाधा लेता हूं
सबकी भूख मिट कर रहे
सबसे मैं यह कहता हूं ,
मैं करूं कल्पना ऐसी
सुख का सागर लहराऊं ।
दुःख की ज्वालाएं जलाएं
जी भर मुझको,
तो जलाएं
लेकिन भाव न डूबेंं-छूटें
विश्वोदय की ज्योत जलाएं ।
मैं करूं कल्पना ऐसी
सुख का सागर लहराऊं ।।




मनीष खारी की नई कविता -मेरे बच्चों के लिए

जिस दिन तुम खुद को अकेला पाओ,

घबराओ ,डर जाओ और

उसका सामना ना कर पाओ।

उस दिन एक बार हिम्मत करके

अपने माता -पिता के पास जाना

हो सकता है तुम्हें थोड़ा -सा अजीब लगे

लेकिन उनके गले लग जाना।

तुम्हारा माथा सहलाएंगे,

सब समझ जाएंगे

जिस दिन असफल हो जाओ , 

फिर से खड़े ना हो पाओ

पूरी दुनिया को अपने खिलाफ पाओ,

उस दि न हिम्मत करके, स्कूल चले जाना

हो सकता है तुम्हें थोड़ा -सा अजीब लगे

लेकिन टीचर से मिलना ,दोस्तों को याद करना,

बचपन जहाँ बिताया उस नर्सरी विंग में जाना

ढूँढना अपने सबसे प्यार शिक्षक को,

 उसके सामने खड़े हो जाना

वो थपथपाएगा तुम्हारी पीठ ,तुम्हें देगा शाबाशी 

और सब ठीक हो जाएगा।

जिस दिन कुछ समझ ना पाओ ,हँसते -हँसते रोने लग जाओ

आँखों के सामने सिर्फ़ अँधेरा ही पाओ

उस दिन हिम्मत करके अपने भाई -बहन के पास जाना 

हो सकता है तुम्हें थोड़ा -सा अजीब लगे

लेकिन,उनके साथ बचपन याद करना ,

कैसे लड़ते थे ,खेलते थे ,गिरते थे , सब सुनना सुनाना

 तुम्हारे कंधे पर उनका हाथ होगा,

और देखना सब बदल जाएगा।

जिस दिन तुम हारना चाहो , किसी से मिलना ना चाहो

और हमेशा के लिए गुम हो जाना चाहो

उस दिन हिम्मत करके ,शीशे के सामने खड़े हो जाना

हो सकता है तुम्हें थोड़ा -सा अजीब लगे

लेकिन

खुद से आँखें मिलाना ,आँसू बहाना

दिल खोल कर बातें करना खुद से

चाहे तो झूठे दिलासे देना ,कोई भी हथकंडा अपनाना

लेकिन

खुद को एक बार ज़रूर मनाना।

दिल को मजबूत करना और फिर से बाहर आना

मेरे बच्चों हो सकता है तुम्हें अजीब लगे

लेकिन एक बार यह जरूर आज़माना

 

-मनीष खारी




द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी सीखने वाले सिंहली मातृभाषी विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत समस्याएँ

वरिष्ठ प्राध्यापिका डा. वजिरा गुणसेन और सहाय प्राध्यापिका सरसि रणसिंह

श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय, श्री लंका

[email protected]

 

आजकल संसार भर में मुख्य रूप से 6500 भाषाएँ बोली जाती हैं। उनमें अनेक विविधताएँ दिखाई देती हैं फिर भी वे सब मिलकर इस पूरे संसार को सुंदर बना देती हैं।  कहते हैं कि संसार के 60-70 % लोगों में कम से कम दो भाषाएँ बोलने की क्षमता होती है।  इनमें से एक उनकी मातृ भाषा ; (L1) होती है और दूसरी उनकी द्वितीय भाषा (L2)। वास्तव में यह मातृ भाषा और द्वितीय भाषा क्या हैं ? मातृ भाषा को दो ढंग से परिभाषित किया जा सकता है। पहला संदर्भ उसे पालने या झूले की भाषा के रूप में स्वीकार करता है। अर्थात किसी व्यक्ति की मातृ भाषा वह है, जिसे व्यक्ति अपने बचपन में अनायास ही से सीखता है। जिस तरह अपनी माता की गोद में रहते रहते व्यक्ति चलना फिरना सीखता है उसी तरह वह अपने परिवार में आत्मीय जनों के बीच बोली जाने वाली भाषा को भी सहज ढंग से सीख लेता है। दूसरा संदर्भ उसे समाजीकरण की भाषा के रूप में परिभाषित करता है। मातृभाषा के माध्यम से पहले व्यक्ति अपने परिवार के साथ और फिर चारों ओर फैले हुए समाज से जुड़ जाता है। संक्षेप में कहे तो मातृ भाषा वही है जो बचपन में अनायास सीखी जाती है और समाज से जुड़ने का माध्यम भी। तो द्वितीय भाषा क्या है? द्वितीय भाषा वह भाषा है जो किसी भी व्यक्ति से अपनी मातृ भाषा के बाद प्रयत्न करके सीखी जाती है। यह द्वितीय भाषा अपने मातृ भूमि के अंदर ही प्रयोग की जानेवाली कोई अन्य भाषा हो सकती है या किसी विदेश की भाषा भी। उदाहरण स्वरूप श्री लंका के अधिकतर लोगों की मातृ भाषा सिंहली है, पर वे तमिल, अंग्रेज़ी, हिंदी, कोरियाई, चीनी, जापानी, रूसी और फ्राँसीसी भी द्वितीय भाषा के रूप में सीखते हैं।

हिंदी विश्व की एक प्रमुख भाषा है और भारत की राज भाषा भी। यदि हम ऐसा भी कहा जाय कि हिंदी पूर्वी देशों की अत्यंत सुंदर तथा मधुरतम भाषा है, तो उस कथन में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से हिंदी ने (615 million speakers) तृतीय स्थान प्राप्त किया है। भारत की जनगणना 2011 में 57.1 प्रतिशत भारतीय आबादी हिंदी को जानती है जिसमें 43.63 प्रतिशत भारतीय लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा या मातृ भाषा घोषित कर दी है। हिंदी और उसकी बोलियाँ संपूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी लोग हिंदी बोलते हैं, पढ़ते हैं और लिखते हैं जैसे अमेरिका, मारिशस, नेपाल, जर्मनी, श्री लंका, पाकिस्तान, न्यूज़ीलैंड, इंग्लैंड, चीन, अरब आदि। हिंदी भाषा का उद्भव आज से हज़ारों वर्ष पूर्व भारत में हुआ था। हिंदी भारत-यूरोपीय परिवार के अंतर्गत आती है। यह भारत ईरानी शाखा की भारतीय आर्यभाषा उपशाखा की आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के अंतर्गत वर्गीकृत है। भारतीय आर्यभाषाएँ वे हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए हिंदी में संस्कृत तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है। इतना ही नहीं हिंदी शब्दकोश में अरबी फ़ारसी शब्द भी हैं। इस प्रकार देखें तो हिंदी कोई एक भाषा नहीं है। वास्तव में मुख्य रूप से पाँच उपभाषाओं – पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी हिंदी, बिहारी हिंदी, पूर्वी हिंदी, पहाड़ी हिंदी तथा उनकी अठारह बोलियों और उनकी भी उपबोलियों से निर्मित हिंदी भाषा को द्वितीय भाषा के रूप में सीखना किसी को कोई आसान काम नहीं होता। सिंहली और हिंदी संस्कृत से उत्पन्न होते हुए भी इन दोनों भाषाओं में कई अंतर दिखाई देते हैं। इसलिए ही द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी पढ़ते समय सिंहली मातृ भाषी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

हिंदी सिनेमा कई शताब्दियों से श्री लंकावासियों को अपनी ओर आकर्षित करती आ रही है। आज भी श्री लंका के अधिकतर लोग हिंदी गीतों और सिनेमा से बहुत प्यार करते हैं। इतना ही नहीं कुरुणैगल, कोलंबो, कैन्डी, गोल आदि प्रदेशों के सरकारी स्कूलों और श्री जयवर्धनपुर, केलणिय, सबरगमुव आदि विश्वविद्यालयों और अनेक संस्थानों के द्वारा हिंदी भाषा सिखायी जाती है। क्योंकि उतने ही छात्र-छात्राएँ हिंदी सीखना पसंद करते हैं। पर ये सब सिंहली मातृभाषी छात्र छात्राएँ हैं। जब ये छात्र हिंदी सीखने लगते हैं तो उनके समक्ष अनेक कठिनाइयाँ प्रस्तुत होती हैं।

इन सभी समस्याओं को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं –

  1. भाषण संबंधी समस्याएँ

      1.1   ए और ऐ का उच्चारण

सिंहली वर्णमाला में e ,ȇ, ai, ये तीनों स्वर हैं पर हिंदी में e स्वर नहीं है। केवल ए  और ऐ (ai) हैं। पर सिंहली मातृभाषी ए का उच्चारण e के रूप में करते हैं और ऐ का उच्चारण ए के रूप में करते हैं। और अधिकतर छात्र ऐ का उच्चारण अइ के रूप में करते हैं। पर वह गलत है। ऐ का उच्चारण ai के रूप में होना चाहिए।

उदाहरण – 

                             अशुद्ध                     शुद्ध

ऐसा                       अइसा                     ऐसा (aisa)

पैसा                       पइसा                     पैसा (paisa)

ऐनक                     अइनक                   ऐनक (ainak)

 

1.2    अ का उच्चारण

सिंहली भाषा में अ वर्ण का उच्चारण विवृत मुख से किया जाता है। परंतु हिंदी में अ वर्ण का उच्चारण अर्ध विवृत रूप से किया जाता है। बचपन से ही सिंहली मातृभाषी छात्र अ का उच्चारण पूरी तरह विवृत रूप से करने के आदी हो गये हैं। इसलिए हिंदी के कमल, घर, कल, नहीं, पर, फल आदि शब्दों के क्रमशः क, घ, क, न, प, फ आदि का उच्चारण विवृत रूप से करते हैं। उससे हिंदी भाषा की सुंदरता नष्ट हो जाती है।

1.3    ऋ का उच्चारण

सिंहली और हिंदी दोनों भाषाओं में संस्कृत तत्सम शब्द पाये जाते हैं। लेकिन दोनों भाषाओं में उनका उच्चारण भिन्न स्वरूप लेता है। सिंहली में ऋ का उच्चारण अधिकतर  रु , अर या रि के रूप में होता है। पर हिंदी में ऋ का उच्चारण हर वक्त रि का रूप लेता है। यदि सिहंली तत्सम शब्दों के समान हिंदी के ऋ अक्षर सहित संस्कृत तत्सम शब्दों का उच्चारण करें तो वह दोष सहित उच्चारण बन जाता है।

उदा –

                                      अशुद्ध                     शुद्ध

वृक्ष                                 Wruksha             Wriksh

हृदय                              Hardaya               Hriday       

ऋतु                                 Irthu                     Rithu

 

1.4    अल्पप्राण और महप्राण अक्षरों का उच्चारण

 

सिंहली और हिंदी दोनों भाषाओं में अल्पप्राण और महप्राण अक्षर होते हैं। लिखते समय सिंहली लोग भी अल्पप्राण और महप्राण अक्षरों पर ध्यान देते हैं। पर हिंदी लोगों के समान सिंहली मातृभाषी लोगों द्वारा महप्राण अक्षरों का उच्चारण नहीं किया जाता। जिस तरह सिंहली बोलते समय महाप्राण अक्षरों का उच्चारण भी अल्पप्राण अक्षरों के समान किया जाता है उसी तरह सिंहली मातृभाषी लोगों द्वारा हिंदी के महाप्राण अक्षरों का भी उच्चारण नहीं किया जाता। तब अर्थ की दृष्टि से उनमें पर्याप्त अंतर दिखाई देने लगते हैं, इसी कारण लिखते वक्त भी गलतियाँ होती हैं और इससे हिंदी भाषा की सुंदरता भी मिट जाती है।

         

उदाहरण –

 

हिंदी शब्द                         अशुद्ध                               शुद्ध

 

साथ    (with)                    सात    (Seven)               साथ

धर्म     (Religion)            दर्म     (No meaning)      धर्म

फल    (Fruit)                   पल     (Moment)             फल

खान   (Food)                 कान    (Ear)                     खान

भात    (Rice)                   बात    (Matter)                भात

 

1.5    ड़, ढ़ और ण अक्षरों का उच्चारण

 

सिंहली वर्णमाला में ड़, ढ़ अक्षर नहीं है। इसलिए सिंहली मातृभाषी छात्र जब ड़ और ढ़ का उच्चारण करने लगें तो उनका सही उच्चारण करने में असफ़ल हो जाते हैं। पर ण अक्षर हिंदी और सिंहली दोनों वर्णमालाओं में है। लेकिन समस्या यह है कि लिखते समय तो सिंहली लोग ण अक्षर लिखते हैं, पर उच्चारण करते समय वे उसका उच्चारण मामूली न के समान ही करते हैं । इसलिए हिंदी में भी उनसे त्रुटिपूर्ण उच्चारण ऐसे ही निकल आते हैं।

उदा –

अशुद्ध                              शुद्ध

दर्पन                                दर्पण

ऋन                                 ऋण

उदाहरन                           उदाहरण

 

1.6    है और हैं का उच्चारण

 

अधिकतर सिंहली छात्र, है और हैं का उच्चारण सही रूप में करने में असमर्थ हो जाते हैं। उसका मूलभूत कारण ये शब्द सिंहली में नहीं है। है में ऐ स्वर  अंतर्गत होता है और हैं में ऐं वर्ण अंतर्गत होता है। इसलिए ध्यान से है का उच्चारण ऐ के रूप में और हैं का उच्चारण ऐं के रूप में करना चाहिए।

 

1.7. क्षेत्रीय शैलियों के रूप में उच्चारण-भेद

हिंदी भाषा का स्वभाव ही ऐसा है कि एक ही शब्द के उच्चारण में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक जाते समय थोड़ा बहुत उच्चारण परिवर्तन दिखाई देते हैं। तो द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी सीखते समय हमें इसका ज्ञान होना चाहिए कि कौन सा उच्चारण सही है तथा कौन सा उच्चारण मानक हिंदी के अंतर्गत आता है। क्योंकि हम द्वितीय भाषा के रूप में मानक हिंदी का ही अध्ययन करते हैं । उदाहरण स्वरूप कुछ क्षेत्र में ए घ्वनि का उच्चारण मूल स्वर के रूप में करते हैं -जैसे पैसा, औसत -, उन्हीं ध्वनियों को दूसरे क्षेत्र में संध्यक्षर के रूप में करते हैं – जैसे पइसा, अउसत।

एक जगह पर संख्यावाचक शब्दों में इ का प्रयोग करते हैं, जैसे इक्कीस, इकसठ । दूसरी जगह पर इ की जगह ए का प्रयोग करते हैं, जैसे एक्कीस, एकसठ।

छत्तीसगढ के लोग घास, चावल, हाथ, हाथी आदि शब्दों को अनुनासिकता के साथ बोलते हैं। जैसे घांस, चांवल, हांथ, हांथी ।

अवधी भाषी क्ष की जगह छ बोलते हैं। जैसे क्षण के लिए छन ।

मारवाड़ी के लोग न की जगह ण बोलते हैं। जैसे मन के लिए मण, ननद के लिए नणद आदि।

और कुछ क्षेत्रों में ज़ की जगह ज बोलते हैं, जैसे मेज़ के जिए मेज, ताज़ा के लिए ताजा आदि।

इस प्रकार हिंदी भाषा को द्वितीय भाषा के रूप में सीखते समय मानक हिंदी और क्षेत्रीय हिंदी भाषा-भेदों के साथ सिंहली छात्रों को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

 

1.7    ज़, स और श, ष का उच्चारण

सिंहली भाषा में ज़ वर्ण नहीं है, इसलिए अधिकतर सिंहली मातृभाषी छात्र ज़ का उच्चारण स के रूप में करते हैं। वह एक बडा दोष है।

शुद्ध                       अशुद्ध

ज़मीन                     समीन

ज़रा                        सरा

मेज़                         मेस

 

और श और ष का उच्चारण में भी सिंहली लोग कोई अंतर नहीं दिखाते हैं। दोनों ही अक्षर श के रूप में उच्चारण करते हैं। पर हिंदी लोग दोनों का उच्चारण, उच्चारण स्थान के अनुसार सही ढंग से करते हैं । वास्तव में सिंहली लोग उच्चारण का इतना ध्यान नहीं देता। उदाहरण स्वरूप सिंहली मातृभाषी छात्र शाला के लिए भी श का प्रयोग करते हैं और वर्षा के लिए भी -वर्शा- श का प्रयोग करते हैं। परंतु हिंदी में ताल्वय श का उच्चारण तालु से और मूर्धन्य ष का उच्चारण मूर्धा से करना चाहिए। तब लेखन के लिए भी वह आसान होता है।

1.9 शब्दों के मात्रा रहित अंतिम अक्षर का दोष सहित उच्चारण

सामान्यतः हिंदी भाषा में शब्दों के मात्रा रहित अंतिम अक्षर का उच्चारण हल स्वरूप लेता है। पर सिंहली भाषा में शब्दों के मात्रा रहित अंतिम अक्षर का उच्चारण ऐसे हल स्वरूप नहीं लेता। इसलिए कुछ सिंहली छात्र हिंदी शब्दों के मात्रा रहित अंतिम अक्षरों का उच्चारण भी हल न करके पूर्ण रूप से ही करते हैं। वह सिंहली छात्रों की बहुत बडी समस्या है।

                                           अशुद्ध  उच्चारण                  शुद्ध उच्चारण

उदाहरण                              Udaharana                    Udaharan                    

दोष                                      Dosha                              Dosh

उच्चारण                               Uchcharana                  Uchcharan

 

02 लेखन संबंधी समस्याएँ

2.1 हिंदी भाषा की भूतकाल संबंधी समस्याएँ

हिंदी और सिंहली के भूतकाल वाक्यों में पर्याप्त अंतर दिखाई देते हैं। इसलिए सिंहली छात्रों के समक्ष प्रस्तुत एक मूतभूत समस्या है कि हिंदी के सामान्य भूतकाल वाक्यों का निर्माण। एक तो सकर्मक और अकर्मक भेद। दूसरा, ने विभक्ति का प्रयोग। क्योंकि सिंहली सामान्य भूतकाल में सकर्मक और अकर्मक जैसा कोई भेद नहीं होता और ने जैसी कोई विभक्ति का भी प्रयोग नहीं करता। सिंहली में सामान्य वर्तमान के समान ही भूतकाल वाक्यों का निर्माण होता है। पर हिंदी में भूतकाल के वाक्य लिखने के लिए सिंहली छात्रों को इसका ज्ञान तो अवश्य होना चाहिए कि सामान्य भूतकाल की क्रिया सकर्मक है या अकर्मक? सिंहली में ऐसा भेद न होने के कारण छात्रों के द्वारा हिंदी भूतकाल वाक्य लिखते समय अनेक त्रृटिपूर्ण प्रयोग किये जाते हैं।

अशुद्ध                                                      शुद्ध

 

मैं दो आम खाया।                                      मैंने दो आम खाये।

मैं माताजी के लिए एक साड़ी खरीदा।        मैंने माताजी के लिए एक साड़ी खरदी।

बच्चे ने मैदान में खेले।                                बच्चे मैदान में खेले।

उसने बोला                                                वह बोला

 

2.2. सकना के साथ को विभक्ति का प्रयोग

यह भी सिंहली बच्चों से किया जाने वाला एक बड़ा दोष है। क्योंकि सिंहली में सकना के साथ को विभक्ति का प्रयोग करते हैं। इसलिए सिंहली छात्रों से यह गलती यों ही हो जाती है।

              अशुद्ध                                                  शुद्ध

मुझे हिंदी बोल सकती है।                         मैं हिंदी बोल सकती हूँ।

हमको नाच सकती है।                              हम नाच सकती हैं।

उसे अकेले जा सकता है।                         वह अकेले जा सकता है।

 

2.3. चाहिए का प्रयोग – को विभक्ति के बिना चाहिए का प्रयोग

सिंहली में चाहिए के साथ को विभक्ति का प्रयोग नहीं किया करते। इसलिए को विभक्ति के बिना हिंदी में भी चाहिए का प्रयोग करना भी सिंहली छात्रों का एक मुख्य दोष है।

 

          शुद्ध                                                    शुद्ध

मैं घर जाना चाहिए।                              मुझे घर जाना चाहिए।

हम खेलना चाहिए।                               हमें खेलना चाहिए।

तुम मन लगाकर पढ़ना चाहिए।             तुम्हें मन लगाकर पढ़ना चाहिए।

मैं एक किताब खरीदना चाहिए।            मुझे एक किताब खरीदनी चाहिए।

 

2.3. को विभक्ति के साथ चाहता का प्रयोग

सिंहली में चाहता के साथ को विभक्ति का प्रयोग करते हैं। इसलिए हिंदी में भी सिंहली छात्र चाहता के लिए कर्तृ के साथ को विभक्ति लगा देते हैं। पर वह बहुत बड़ा दोष है। क्योंकि चाहता के साथ को विभक्ति का प्रयोग नहीं किया जाता।

            अशुद्ध                                                    शुद्ध

मुझे घर जाना चाहता है।                         मैं घर जाना चाहता हूँ।

हमें संगीत पढ़ना चाहते हैं।                      हम संगीत पढ़ना चाहते हैं।

 

2.4. लिंग भेद का प्रयोग

हिंदी का लिंग भेद भी सिंहली छात्रों के समक्ष प्रस्तुत एक बड़ी समस्या है। क्योंकि सिंहली में स्त्री लिंग, पुल्लिंग और नपुंसक लिंग ये तीनों ही हैं। पर हिंदी में नपुंसक लिंग नहीं है। इसलिए अप्राण वस्तुओं का लिंग निर्णय करना, सिंहली मातृभाषी छात्रों के समक्ष एक बड़ी समस्या बन गयी है।

            शब्द                                हिंदी                      सिंहली

          किताब                             स्त्री लिंग                 नपुंसक लिंग

          पेड़                                  पुल्लिंग                   नपुंसक लिंग

          ज़मीन                              स्त्री लिंग                 नपुंसक लिंग

          आसमान                          पुल्लिंग                   नपुंसक लिंग

 

2.5. विभक्तियों का प्रयोग

सिंहली मातृभाषी छात्र सिंहली व्याकारण के नियमों के अनुसार वाक्य लिखने में आदी हो गये हैं। इसलिए वाक्य के अर्थ के अनुसार ऐसे ही विभक्तियों का भी प्रयोग करते हैं। पर हिंदी में ऐसे कुछ स्थान है, जहाँ लगता है कि अर्थ की दृष्टि से को या के साथ आना चाहिए पर वहाँ से का प्रयोग किया जाता है। तो हमें उनका ध्यान रखना चाहिए।

                                   अशुद्ध                              शुद्ध

कहना                    उसको कहो।                      उससे कहो।   

मिलना                   मुझे मिलने आया था।          मुझसे मिलने आया था।                 

दोस्ती करना           राहुल के साथ दोस्ती करो।   राहुल से दोस्ती करो।

प्यार करना             मैंने उसे प्यार किया।           मैंने उससे प्यार किया।

नफ़्रत करना           मुझे नफ़रत मत करो।          मुझसे नफ़रत मत करो।

शादी करना            मेरे साथ शादी करो।           मुझसे शादी करो।

लड़ना                     उसके साथ मत लड़ो।          उससे मत लड़ो।

नाराज़ होना            मेरे साथ नाराज़ है क्या?       मुझसे नाराज़ है क्या?

रक्षा करना              माँ को रक्षा करो।                 माँ की रक्षा करो।

मदद करना            उसे मदद करो।                 उसकी मदद करो।

 

ऽ        विभक्ति आने के बाद संज्ञा शब्दों का परिवर्तन

यह भी सिंहली मातृभाषी छात्रों के सामने एक बड़ी समस्या है। हिंदी में अधिकतर संज्ञा शब्द के बाद विभक्ति आने से संज्ञा शब्द का रूप बदल जाता है। इसीलिए लेखन में छात्रों को उसका सही ज्ञान होना चाहिए।

              अशुद्ध                                                  शुद्ध

लड़का ने भात खाया।                               लड़के ने भात खाया।

हमारा स्कूल में बहुत छात्र हैं।                    हमारे स्कूल में बहुत छात्र हैं।

राधा का बेटे को ये किताबें दे दो।              राधा के बेटों को ये किताबें दे दो।

ये किताब में बहुत कहानी हैं।                    इन किताबों में बहुत कहानियाँ हैं।

 

2.6 संस्कृत तत्सम शब्दों का प्रयोग

सिंहली और हिंदी दोनों भाषाओं में संस्कृत तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग होता है। पर कभी कभी उनका अर्थ भिन्न रूपों में प्रयुक्त होता हैं। अगर छात्र को उनका सही ज्ञान न हो तो दोष सहित पदों का प्रयोग वाक्यों में दिखाई देता है।

संस्कृत तत्सम शब्द              हिंदी अर्थ                          सिंहली अर्थ

कवि                                      Poet                               Poem

अवस्था                                 Age                               Occation, Chance                 

आशा                                    Hope                             Desire

 

         अशुद्ध  प्रयोग                                         शुद्ध प्रयोग

मुझे एक अवस्था दे दो।                             मुझे एक अवसर दे दो।                                     

उसके द्वारा एक कवि लिखी गयी।             उसके द्वारा एक कविता लिखी गयी।

 

 2.7 अनुवाद संबंधी समस्याएँ

अनुवाद सबंधी मुख्य समस्या तो यह है कि मुहावरों और लोकोक्तियों का सही ज्ञान न होना। सिंहली भाषा से ज़्यादा हिंदी में हज़ारों संख्या से मुहावरे और लोकोक्तियाँ होते हैं। इसलिए अनुवाद कार्य करते समय ठीक से उनपर ध्यान देना पड़ता है। उदाहरण स्वरूप मानो उन्हें आँखें मिल गयी। इसका मतलब उन्हें आँखें मिलना नहीं है। यह एक मुहावरा है। आँखे मिलने का मतलब एक दूसरे को देखना है। और एक उदाहरण लेंगे तो सतसई के दोहों में बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।। गागर में सागर भरना एक मुहावरा है। उसका मतलब एक गागर में सागर का पानी भरना नही है। थोड़े शब्दों में अधिक भाव प्रकट करना है। इस प्रकार मुहावरों और लोकोक्तियों का सही ज्ञान सिंहली छात्रों को होना चाहिए। नहीं तो त्रुटिपूर्ण अनुवाद हो सकता है।

ऐसी ऐसी और भी कठिनाइयाँ हैं जिनका सामना सिंहली मातृभाषी छात्रों को करना पड़ता है। इन सभी तथ्यों पर ध्यान देते समय हम यह कह सकते हैं कि संस्कृत नामी माँ की दो बेटियाँ होने के कारण हिंदी और सिंहली में कुछ समानताएँ है और पढ़ने की सुगमता है। पर अलग अलग भाषा होने के कारण बहुत कुछ असमानताएँ भी दिखाई देती हैं। इसलिए हमको इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी सीखनी पड़ेगी। इसके लिए सिंहली मातृभाषी हिंदी अध्यापकों को भी वर्ण विचार, शब्द विचार, पद विचार और वाक्य विचार इन चारों को लेकर हिंदी का सही रूप पढ़ाना होगा। इतना ही नहीं हिंदी गीतों, फ़िल्मों और छोटी छोटी कहानियों को लेकर आनंद के साथ शिक्षण का कार्य करना होगा । सिंहली छात्रों को अधिकतर हिंदी शब्दकोशों का प्रयोग करते हुए, जितना हो सकें उतना हिंदी की किताबं पढ़ते हुए सतत अभ्यास करना होगा। तभी इन कठिनाइयों से आप उद्घार पा सकेंगे। तभी आप मानक हिंदी की और हिंदी भाषा की मधुरता की रक्षा कर सकेंगे।

संदर्भ सूची : – 

  1. दीक्षित डॉ.मीरा, 2008, हिंदी भाषा, समीक्षा प्रकाशन, इलाहबाद।
  2. शरण, श्री 2015, मानक हिंदी व्याकरण तथा संरचना, संशाइन बुक, नयी दिल्ली।
  3. जीत, योगेन्द्र, 1993, हिंदी भाषा शिक्षण,विनोद पुस्तक मंदिर,आगरा।
  4. तिवारी, भोलानाथ, 2017, हिंदी भाषा, किताब महल, इलाहबाद।
  5. तिवारी, भोलानाथ, 1951, हिंदी किताब महल, इलाहबाद।
  6. पाठक, रघुवंशमणि, 2016, भाषा विज्ञान एवं हिंदी भाषा तथा लिपि, संवेदना प्रकाशन, लखनऊ।
  7. वर्मा, रामचंद्र, अच्छी हिंदी, लोकभारती प्रकाशन, इलाहबाद।
  8. सहाय, चतुरभुज, 1985, हिंदी के मूल वाक्य, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा।