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चरर्तृहरि की ज्ञान मारक कथाएं

<span;>सब जीव-जंतु अपनी खोपड़ी पर आगे लगे ललाट नामक नोटिस बोर्ड पर लिखवा कर आते हैं। ईश्वर इसके ऊपर स्केच पेन से लिख देता है; जिसे भाग्य कहा जाता है। कोई भी नेता या मंत्री किसी को कुछ नहीं देता। न ही कोई अफसर किसी का कोई काम करता है। अफसर और मंत्री अपनी खोपड़ी पर आगे से लिखवा कर लाते हैं। वे अपनी खोपड़ी का लिखा हुआ ही खाते हैं। इसलिए सीमेंट-सरिया सब पचाते हैं। चमचा चरर्तृहरि ने भी इस मामले में बड़े एक्सपेरिमेंट किए। कहा कि इस ललाट नोटिस पट्ट पर जो कुछ लिख दिया गया है, वही होकर रहता है। जैसे बसंत ऋतु आने पर भी करील वृक्ष पर किसी भी हाल में पत्ते तक नहीं लगते हैं। जैसे सूरज का उजाला होने पर भी उल्लू देव को दिखाई नहीं देता है। जैसे चारों और बरसात होने पर भी चातक हमेशा प्यासा ही रहता है। जैसे नेता हर हाथ को काम और हर मुंह को रोटी देने का वादा करता है, लेकिन कुछ नहीं देता है। इससे स्पष्ट होता है कि इनके भाग्य में यही होना लिखा हुआ है और यही होता है। फिलहाल मेरे सामने टेबल पर जो केला रखा हुआ है, वह बिल्कुल अकेला है। मेरी इसे खाने की भयंकर इच्छा हो रही है। लेकिन मेरे भाग्य में लिखा होगा, तो मैं इस केले को खाऊंगा वरना ऐसे ही लिखते-बिलखते सड़ जाऊंगा। <span;>चरर्तृहरि<span;> एक्सपेरिमेंट करते हैं। उन्होंने भाग्य की वैक्सीन खोजने के लिए बाकायदा एक प्रयोगशाला स्थापित की। पहले प्रयोग में उन्होंने एक गंजे आदमी की व्यवस्था की। ऐसा गंजा जिसके पास बाकायदा एक कंघा भी था और कहते हैं कि खुदा ने उसको नाखून भी दिए थे। इसे प्रयोगशाला में बुलाया। देखा कि प्रयोगशाला के बाहर जो सूरज तम-तमा रहा था उसकी सारी किरणें उसकी खोपड़ी पर आ गिरी। इसकी वजह से गंजे की खोपड़ी से पसीना चूने लगा। तत्काल वह मरणासन्न भया। तब उसे प्रयोगशाला में बुलाकर एक कुर्सी पर बैठाया गया। जिस कुर्सी पर वह बैठा था, उसके ऊपर एक भारी सा झूमर लगा था। तत्क्षण ही झूमर गिरकर उसकी चिकन लोडी खोपड़ी को चकनाचूर कर गया। तब <span;>चरर्तृहरि<span;> ने अपने लैपटॉप पर ये नोट्स लिखे कि अगर किसी के भाग्य में ठुकना लिखा होता है, तो उसे हर जगह ठुकना पड़ता है।

<span;>एक अन्य एक्सपेरिमेंट में उन्होंने एक भूखा सांप लिया। उसे टोकरी में बंद करके रसोई घर में रख दिया। <span;>चरर्तृहरि<span;> हमेशा सांप पर नजरें रखा करते थे। पूरे 4 दिन बीत गए। सांप काफी मात्रा में भूखा हो गया। उनको यकीन हो गया कि अब सांप मर जाएगा। तभी उन्होंने देखा कि एक चूहा जो बहुत मोटा ताजा था और एक नेता की तरह सीमेंट-सरिये से लेकर रोटी-बोटी चट करके फुलं-फुल मोटा ताजा हो गया था। उसने अपने दांत गड़ा कर उस टोकरी में छेद कर दिया जिसमें सांप रखा गया था। चूहा छेद करके टोकरी के अंदर घुस गया। भूखा सांप चूहे को खा गया और वह उसी <span;>छेद<span;> से बाहर निकल गया जिससे चूहा अंदर गया था। तब <span;>चरर्तृहरि<span;> ने अपने लैपटॉप को फिर खटखटाया एक्सेल शीट में टाइप किया कि अब तो सबूत नंबर दो आ गया। पता भी लग गया है कि जिसके भाग्य में जो कुछ लिखा होता है, वही हो जाता है। इस बात को और पुख्ता करने के लिए <span;>चरर्तृहरि<span;> ने एक्सपेरिमेंट नंबर 3 किया। इस एक्सपेरिमेंट में <span;>चरर्तृहरि<span;> ने अपने पड़ोसी से एक टूटी-फूटी जंग खाई बाल्टी उधार मांगी। बाल्टी लेकर वह हैंडपंप से उसमें पानी भरने लगे। देखा कि पानी जितना भरा उतना बाहर निकल गया। बाल्टी लेकर वे एक झील के किनारे गए। उन्होंने पानी भरा देखा कि जितना पानी भरा गया वह सब निकल गया। बाल्टी को वे जहां भी ले गए बाल्टी अंत में खाली ही रही। तब एकदम से उन्होंने कंप्यूटर ऑन किया और लिख मारा कि बाल्टी में चाहे जितना ही पानी भरो। फूटी बाल्टी के भाग्य में पानी नहीं होता। इसलिए हमें भी मंत्री और अफसरों से उम्मीद नहीं करना चाहिए। बस अपनी खोपड़ी पर सरसों का तेल मलते हुए आराम से खाट पकड़ कर पड़ जाना चाहिए। नेताओं के चुनावी वादों को मात्र चुटकुले समझना चाहिए। इतना ज्ञान मारकर <span;>चरर्तृहरि<span;> ने अपना लैपटॉप शटडाउन कर दिया। <span;>अफसर करे न चाकरी, मंत्री करे न काज। वोटर वोट दे घर गया, अब चमचे करे मसाज।

<span;>– रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर  (305023) राजस्थान




डॉ प्रियंका मिश्रा की दो कविताएं

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कितनी बदल गयी है दुनिया

कितनी बदल गयी है दुनिया

यह स्वीकारा जायेगा

या जिसने यह पाप किया

वह पापी मारा जायेगा ?

 

इन्द्रलोक के ऐरावत हो

ऐसा जाना जाता था

गौरी सुत का रूप तुम्हीं हो

गणपति माना जाता था

 

पहला भोग तुम्हें लगता है

फिर दूजों को जाता है

बुद्धि विनायक कहकर,तुमको

पहले पूजा जाता है

 

अब तक जो पढ़ती आई मैं

लगा कथानक झूठ रहा

मैं मानव हूँ सबका रक्षक

अभी भरम यह टूट रहा

 

अगर कथानक सच्चे हैं, तो

ऐसी बात कहाँ से आयी

गर्भवती मां के सम्मुख वह

काली रात कहाँ से आयी

 

जंगल से बाहर आयी थी

केवल क्षुधा मिटाने को

नहीं पता था निकल पड़ी

अपनी तकदीर लुटाने को

 

मानव पर विश्वास किया था

उसको उसका सूद मिला

अन्ननास के फल के अन्दर

बदले में बारूद मिला

 

जाने कितना भटकी होगी

दर्द लिये वह राहों में

अपनी व्यथा सुनाती होगी

खुद ही खुद को आहों मे

 

तीन दिनों तक जल में रहती

अपना गर्भ बचाने को

एक अकेली ही काफी थी

वह कोहराम मचाने को

 

मानवता कितनी ओछी है

यह उसने बतलाया है

बेजुबान होकर उसने

अहिंसा का पाठ पढ़ाया है

 

मानवता ऐसे कृत्यों से

तार-तार हो जाती है

इस भारत की गौरवगाथा

शर्मसार हो जाती है

 

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मन की बात कही होती

 

विपदाओं को पीठ दिखाना कर्म नहीं है मानव का

बिना लड़े ही प्राण गंवाना धर्म नहीं है मानव का

 

मौत भले आयी हो सर पर दूर भागने लगती है

मानव प्रण के सम्मुख विपदा स्वयं कांपने लगती है

 

अगर बढ़ाकर हिम्मत थोड़ा मन की बात कही होती

मन हल्का कुछ हो जाता फिर निश्चित मौत नहीं होती

 

सबके जीवन में संकट कोई न कोई रहता है

साहस नहीं तोड़ता जिससे हर संकट को सहता है

 

सुख दुख है जीवन का संगम इससे कोई बचा नहीं 

जिसने हार मान ली दुख से उसने कुछ भी रचा नहीं

 

मातु पिता को नहीं पता था क्या देना क्या लेना है

जिसको पाला पोस अब तक उसको कंधा देना है

 

मंजिल पाने के हित में शोलों पर पैर धरे होते

पाते सह अनुभूति मेरी यदि अपनी मौत मरे होते

 

मेरी कलम चला करती है स्वाभिमान के आदर में

मेरी कविता लिप्त नहीं  रण छोड़ भाग के जाने में 

 

यह कविता है बूढी आँखों के बेबस लाचारी की

बीच सफर में छोड़ गये जो केवल उस नाराजी की

 

यह कविता है मातु पिता के पावन उन संबंधों पर

जिनपर उनको जाना था वह लाश रखी जिन कंधों पर

 

डॉ. प्रियंका मिश्र