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अमूल्य त्रिपाठी की नई कविता – “तेरी मुहब्बत”

वो रातें मुझे पसंद है,
वो बातें मुझे पसंद है,
तेरी मुहब्बत की हर,
यादें मुझे पसंद है।

चाँदनी रातों में तेरा,
खूबसूरत दमकता चेहरा,
इन आँखों को बड़ा पसंद है।

बारिश की बूँदों के बीच,
तेरा,यूँ भीगते जाना,
तेरी हर मुलाकात
मुझे पसंद है।

चेहरे पर गिरती लटों को,
यूँ हाथों से फेरना,
मुझे पसंद है।

मुहब्बत की बातों पर,
तेरा मुस्कुराना
मुझे पसंद है.
हर लहजा तेरा
मुझे पसंद है।




प्रभांशु कुमार की नई कविता-मेरे अंदर का दूसरा आदमी

मेरे अंदर का दूसरा आदमी

मेरा दूसरा रुप है,

वर्तमान परिदृश्य 

का सच्चा स्वरूप है।

रात में सो रहा होता हूं

उसी समय मेरे अंदर का दूसरा आदमी

अस्पताल के आईसीयू के बाहर 

ईश्वर से विनती 

कर रहा होता है।

जब मैं रोटी के टुकड़े

खा रहा होता हूं

तो मेरा दूसरा आदमी

किसी रेस्टोरेंट में

बिरयानी के स्वाद में

तल्लीन हो रहा होता है।

जब मैं मॉ की दवाई

खरीद रहा होता हूं

तो मेरे अंदर का दूसरा आदमी

अपनी प्रेयसी को 

को पत्र लिख रहा होता है।

और जब मैं

अपने विचारों की 

आकाशगंगा में

गोता लगा रहा होता हूं

तो मेरे अंदर का दूसरा आदमी

टेलीविजन पर रिमोट के

बटन बदल रहा होता है।

सोचिए मत, जरा विचारिए

मैं और मेरा दूसरा आदमी

दो नहीं एक है

बस विचारों से अनेक है।।

                                




पढ़िए डॉ० भावना कुंअर का यात्रा वृतांत- अफ्रीकन सफारी

हमारी रोमांचक यात्रा

अफ्रीकन सफ़ारी दुनिया भर में प्रसिद्ध है काफी समय से हम लोगपरिवार सहित पूर्वी अफ्रीका के प्राकृतिक खूबसूरती से समृद्धयुगांडा की राजधानीकम्पालामें रह रहे हैं इसेसिटी ऑफ सेवनहिल्स‘  भी कहते हैं मगर सफ़ारी जाने का अवसर एक लम्बे अरसे बाद ही मिल सका यूँ तोतंज़ानिया और कीनियासफ़ारी भी बहुत प्रसिद्ध है किन्तुमरचीज़न फॉल नेशनल पार्क‘  ‘युगांडाकी सबसे प्रसिद्ध सफ़ारी है

आखिरकार 7अप्रैल 2007 को वह दिन ही गया जब हम लोगों कोअफ्रीकन सफ़ारी जाने का अवसर मिला मैं, प्रगीत, मेरी दोनों बेटियाँकनुप्रिया और ऐश्वर्या, प्रगीत के मित्र, 5बजकर 50 मिनट पर कम्पाला से सफ़ारी वैन में निकल पड़े,क्योंकि वहाँ अपनी गाड़ियों से जाना खतरे सेखेलना होता है

सफ़र शुरु हुआ तो मेरी छोटी बेटी ने , जो मात्र 6 साल की है, अपनी प्यारीप्यारी बातों से सबका मन मोह लिया वह मुझसे बोली— “मम्माहम रात में ही जा रहे हैं ना?”

नहीं ,  ये तो सुबह हो गई है अब सुबह के 6 बजे हैं

तो इतना अँधेरा क्यों है ? और ही आसमान में कोई कलर भी दिखाई देरहा ? “

मैंने कहा– “थोड़ी देर में कलर भी जायेंगे….”

मेरी बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि वह खुद ही बोल पड़ी – “अच्छा अभी हमारी तरफ कलर इसलिए नहीं हैं ;क्योंकि परियाँ इधर नहीं आई है, क्योंकि वे तो दो ही होती हैं वे दूसरी तरफ कलर कर रही होंगी जबवे उधर के आसमान में कलर कर लेगीं तब । हमारी तरफ़ वाले आसमान मेंआकर कलर करेंगी तब हमें नारंगी  और नीला कलर दिखाई देखा देगा और वे साथ में सूरज भी लेकर आएँगी है ना मम्मा?”  

हम उसकी इन काल्पनिक बातों को सुनकर अपने बचपन में खो गए। जब हमारी दादी माँ और नानी माँ हमें परियों के किस्से और कहानियाँ सुनाया करतीं थीं और हमेशा हमारे सपनों में परियाँ आया करती थी अपनी छड़ी लेकर।

कम्पाला सेमरचीज़न फॉल400 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को लगभग 5 घण्टे में तय किया जा सकता है। रास्ते में एक शहर आया जिसका नाममसीन्डीथा। यहाँ हम ठीक 9 बजे पहुँच गये। युगांडा की एक बड़ीशुगरमिल‘ ‘मसीन्डीमें है, जिससे यह शहर दूरदूर तक प्रसिद्ध है। हम 10बजकर 40 मिनट परमरचीज़न फॉलकेटॉप ऑफ हिलपर पहुँचे।

यहाँ का नज़ारा देखते ही बनता है यहाँ पर पानी का इतना जबरदस्तप्रपात  है कि अगर व्यक्ति गिर जाए  , तो एक पल भी लगे उसकी जानजाने में यहाँ के नज़ारों और खतरों  को कैमरों में कैद करके हम लोगवहाँ से निकल पड़े – ‘सांबिया रिवर लॉज़की तरफ।

यह लॉजमरचीज़न फॉल्स नेशनल पार्कके बीच स्थित है। खाना खाकरहम लोग निकल पड़े, 1 बज़कर 45 मिनट परनाइल रिवर‘  पर बोटिंग केलिए पहुँचे हम लोग बोट की छत पर चले गए ; जहाँ से नज़ारा ज्यादाखूबसूरत लग रहा था। दूर किनारों पर हिरण परिवार अपनी दुनिया मेंव्यस्त थे तो वहीं दरियाई घोड़े पानी में गोते लगाते तो कभी बाहर निकलआते यहाँ बड़ेबड़ेमगरमच्छभी थे।युगांडाकेनाइल क्रोकोडाइलदुनिया में सबसे बड़ेमगरमच्छहोते हैं, यहाँ परनाइल पर्चनामक मछलीभी पाई जाती है। हम लोग 3 घण्टे तक बोटिंग करते रहे बोटिंग के बादहम लोग वापस लॉज गये जब हम वहाँ पहुँचे तो हमारा टेण्ट तैयारहो चुका था

ठीक 10 बज़े सिक्योरिटी गार्ड आया उसने हमें बताना शुरू किया, रात में यहाँ पर अक्सर चीते और जंगली सूअर आते हैं हमने पूछा-“तो तुम्हारे पास क्या है उनसे रक्षा के लिए?” उसने कहा– “तरकीबहमने पूछा वो कैसे? क्योंकि उसके पास एक रस्सी और टॉर्च थी ,कोई गन आदि नहीं।वह  बोला-“जब शेर आता है तो हम इस रस्सी को जमीन पर फेंककर अपनी तरफ एक खास तरीके से खींचते हैं ; जिससे शेर रस्सी को साँप समझकर भाग जाता है और सभी जानवरों पर एक खास तरीके से टॉर्च मारते हैं ,तो वो भी भाग जाते हैं ठीक बारह बज़े सभी लाइटें बन्द कर दी जाती हैं

अब यह सुनकर भागने का मन तो हमारा हो रहा था ,पर कहाँ भागते अब तो भागने में भी जिन्दगी खत्म होती नज़र रही थी और रुकने में भी, अब मरते क्या करते वाली स्थिति हमारी हो चुकी थी डर अलग बात हैऔर उत्सुकता अलग, हमारे मन में भी उत्सुकता कुछ ज्यादा गहरा गई और उसके मुकाबले में डर थोड़ा कम, ये सोचकर कि अज़ीब सी ही सही पर सुरक्षा तो है ये कैसे भगाता होगा ये सब देखने की लालसा मन में जाग गयी तो हम लोगों ने फैसला किया कि हम कॉटेज़ में नहीं टैंट में ही सोयेंगे

हमने उससे पूछा कि-“हम टैंट में रहकर ये एडवेन्चर देखना चाहते हैं, क्या तुम हमारे टैंट के पास रहोगे?”

उसने कहा– “हाँ मैं रात भर जागकर पहरा देता हूँ और यहीं आपके टैंट केपीछे बैठता हूँ।

हमने कहा – “ठीक है तो हम टैंट में रहकर ही देखेंगे

वह बोला-“ठीक है पर एक बात का ध्यान रखना कि जब भी कोई जानवर इधर आए तो आप लोग आवाज़ मत करना और टॉर्च ही जलाना हमारी टॉर्च की ओर देखकर बोला – “और हाँ बिना किसी आहट के बस चुपचाप लेटे रहना।

हमने पूछा– “लेटे रहेंगे तो देखेंगे कैसे?”

वह बोला-“देखने से आहट हुई तो समस्या हो जायेगी हमने कहा-“ठीक है जैसा तुम कहो

हमने उसको कुछ शीलिंग दिये और अपने टैंट में जाकर खिडकियों तक को बन्द कर डाला अब गर्मी के मारे बुरा हाल होने लगा खैर अब हमारी बातों का सिलसिला चला कि कैसी होगी हमारी ये रोमांचक रात जानवरों के बीच में सामने के कॉटेज़ में कुछ भारतीय रुके थे, वे बाहर कुर्सी ड़ालकर अपने नन्हें बच्चे के साथ बैठ गये ; जो कि उचित नहीं था यही नहीं सामने वाले कॉटेज़ के बाहर एकअंग्रेज़ महिला कुर्सी पर बैठी नॉवेल पढ़ने में व्यस्त थी हम अन्दर बैठे इन लोगों को देख रहे थे और हिम्मत जुटा रहे थे कि जब वो लोग बाहर बैठे हैं तो हम तो अन्दर ही हैं, कम से कम खिड़कियाँ तो खोल सकते हैं, हमने सारी खिड़कियाँ खोल दीं तब जाकर गर्मी से राहत मिली

ठीक बारह बज़े सभी लाइट बन्द कर दी जाती हैं ; क्योंकि बारह बज़े केबाद खतरा बढ़ जाता है। हम इस वृतान्त को कह सुन रहे थे कि जाने कब बारह बज़ गए और सभी लाइटें बन्द कर दी गयीं, घुप्प अँधेरा छागया। हमने इधरउधर नज़र दौड़ाई ।टार्च से देखा तो वहाँ कोई नहीं था वो भारतीय परिवार और वह अंग्रेज़ महिला अब हमने टॉर्च बन्द की और चुपचाप लेट जाने में ही भलाई समझी। क्योंकि अब हम बाहर नहीं  निकल सकते थे, जाने अँधेरे में कौन सा जानवर हमारी घात लगाये बैठा हो

अब ये सब बातें सुनकर बच्चे बुरी तरह डरने लगे, हमने बड़ी मुश्किल सेउनको समझाया बुझाया और अपने सीने से लगाकर सुलाया,बच्चों केकारण हम भी डरे हुए थे और पछता रहे थे कि हम कॉटेज़ में क्यों रहे, किन्तु अब क्या हो सकता था ।अब तो रात आँखों में ही काटनी थी, सबतरफ सन्नाटा छाया हुआ था जो बहुत भयावह लग रहा था और सच बाततो ये कि हम भी बुरी तरह डर रहे थे, पर हम रोमांचक रात जो देखनाचाहते थे तो हमें अब डरना नहीं था, पर ऐसा नहीं हुआ एक तो घुप्पअँधेरा उस पर सन्नाटा और उस सन्नाटे में झींगुरों, मच्छरों की अज़ीबअज़ीब सी आवाज़ें रात को भयावह बना रही थीं जागने वालों में मैं औरप्रगीत ही थे, बच्चों को खुद से चिपकाए बस घड़ी में समय ही देखते रहे

समय देखा तो रात के 2 बज़ चुके थे तभी सामने से भयावह आवाज़ें आने लगीं आवाज़ें जंगली सूअरों और चीतों की थीं। अब आवाज़ें धीरेधीरे पास आने लगींतो उनकी तीव्रता और बढ़ने लगी प्रगीत के दोस्त भी चौंककर उठ गए। हम बुरी तरह डर भी रहे थे और उनको पास से देखना भी चाहते थे तो सब उठकर खिड़कियों के पास गए। अब हमारी साँसे रुकने लगीं  ; क्योंकि वो हमारी तरफ जो रहे थे और हम पर चाँद की रोशनी तो पड़ ही रही थी तो हमने तुरन्त अपनाअपना स्थान बदला और चुपचाप लेट कर भगवान से आज़ की रात जान बख्शने की दुआ माँगने लगे। अब तो आवाज़ें बिल्कुल ही पास गयीं थीं बिल्कुल हमारे टैंट के पास, यहाँ तक कि उनके कदमों की आहटें भी, अब तो कोई हमें नहीं बचा सकता। यही सोचकर हम सिक्योरिटी गार्ड को भी कोसने लगे ,बच्चे बेखबर सो रहेथे, हम सोचने लगे कि वो बस अब टैंट को हिलाने वाले हैं ,अब गिरानेवाले हैं और सोचतेसोचते टैंट को एक तीव्र छटका लगा। बस अब तो सब खत्म, लगा मेरा तो हार्ट फेल हो गया, साँसे उखड़ने लगीं, सारा रोमांच धरा का धरा रह गय। बस मन में एक ही बात कि मुझे चाहे ले जाए पर बच्चों को और किसी को भी कुछ हो अचानक बाहर भगदड़ मच गयी, आवाज़ें भी दूर जाने लगीं, धूल उड़ाते जानवर भागने लगे झाड़ियों कीतरफ हमने देखा तो गार्ड महाशय हमारे टैंट के सामने खड़े थे, हमने मन ही मन अपने भगवान का शुक्रिया अदा किया कि हमने बेकार में ही उन पर शक किया। 3 बज़ चुके थे, ये घण्टे जिंदगी और मौत के बीच बीते, अब खतरा टला देखकर आँखे बोझिल होने लगीं और हम सब जाने कब सो गए।पाँच बज़े आँख खुली और ठीक 6 बज़े हमारा ड्राइवर गया। हम गाड़ी में बैठकर और रेंजर को भी साथ लेकर, निकल पड़ेअगले एडवेन्चर यानीपारा नेशनल पार्कके लिए कुछ दूर रास्ता तयकरके हम नाइल रिवर पहुँचे नौका से गाड़ी और हम सभी नदी के दूसरी पार गए ।फिर हम सब अपनी गाड़ी में बैठकरपारा नेशनल पार्ककी तरफ चल पड़े।पारा नेशनल पार्कयुगांड़ा का सबसे बड़ा नेशनल पार्क है गाड़ी का ऊपर का हिस्सा खोलकर हम खड़े हो गये, वहाँ अफ्रीकन भैंसे, हाथी,हिरणउनके छोटेछोटे बच्चे और बबून देखे बस इस जंगल की खट्टीमीठी यादों को समेटे हम लोग वापस कम्पाला केलिए रवाना हुए और 3 बज़कर 35 मिनट पर समतल रास्ते पर आ गए। यात्रा यादगार रही।

डॉ० भावना कुंअर,ऑस्ट्रेलिया

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