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नवनीत शुक्ल का लेख – ‘औषधीय गुणों से भरपूर मूली’

प्रकृति ने हमें विभिन्न प्रकार के फल-फूल, सब्जियाँ एवं कंदमूल प्रदान किये हैं, इन्हीं में से पौष्टिक तत्वों से भरपूर मूली भी एक सब्जी है जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुतायत मात्रा में उगायी जाती है जिससे सभी आमजन परिचित हैं, परंतु इसके दिव्य औषधीय गुणों के बारे में नहीं जानते हैं। मूली का वैज्ञानिक नाम रैफेनस सैटाइवस(Raphanus Sativus) है जो ब्रेसीकेसी कुल से आती है। मूली का प्रयोग आमतौर पर खाने में सलाद के रूप में एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में किया जाता है। मूली के बीजों से तेल भी निकाला जाता है जो रंगहीन होता है। मूली में विभिन्न औषधीय गुण पाये जाते हैं जो विभिन्न रोगों में लाभदायक होने के साथ-साथ शरीर की आंतरिक प्रक्रिया को ठीक रखते हैं।

प्रति एक सौ ग्राम मूली में विटामिन सी लगभग 15 मिग्रा, कैल्शियम 25 मिग्रा, सोडियम 39 मिग्रा, पौटेशियम 233 मिग्रा, मैग्नीशियम 10 मिग्रा, फास्फोरस 22 मिग्रा, खाद्य फाइबर 1.6 ग्राम, आयरन 2-3 मिग्रा एवं अन्य विभिन्न पोषक तत्व और विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। आमतौर पर शीत ऋतु में आने वाली मूली अधिक फायदेमंद होती है। सुबह के समय मूली का सेवन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहद फायदेमंद होता है। मूली के जड़ के साथ-साथ उसके पत्ते भी बहुत उपयोगी होते हैं जिनका प्रयोग औषधीय रूप में तथा सब्जी एवं पराठे बनाने में होता है।
मूली में विभिन्न लाभदायक तत्व पाये जाते हैं जो हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाते हैं। मूली का सेवन करने से निम्नलिखित स्वास्थ्य लाभ होते हैं :-
(1) मूली में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, यदि हम खाने में मूली का सेवन करते हैं तो हड्डियाँ एवं दांत मजबूत हो जाते हैं।

(2) मूली में काफी मात्रा में आयरन पाया जाता है जो हमारे शरीर के खून को साफ करता है तथा मूली के रस में बराबर मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से हीमोग्लोबिन बढ़ जाता है और खून की कमी को दूर हो जाती है।

(3) मूली में सोडियम एवं क्लोरीन तत्व पाये जाते हैं जो पेट को साफ रखने में सहायक सिद्ध होते हैं तथा पाचन क्रिया को नियमित करता है एवं सोडियम तत्व चर्मरोगों से शरीर की रक्षा करता है।

(4) मूली उच्च रक्तचाप एवं बावासीर में लाभकारी होती है।

(5) मूली के सेवन से मूत्ररोगों में लाभ मिलता है तथा ताजी मूली का नियमित सेवन पीलिया रोग में लाभकारी है।

(6) मूली के रस में नमक तथा नींबू मिलाकर नियमित सेवन करने से मोटापा जैसे भयानक रोग में लाभ होता है।

(7) यदि सिर में जूँ लगातार पड़ती हैं तो मूली के रस को पानी में मिलाकर धोयें लाभ होगा।

(8) मूली में काला नमक व नीबूं लगाकर नियमित सुबह खाने से कब्ज जैसा भयानक रोग दूर हो जाता है तथा चेहरे पर कांति आती है।

(9) यदि पेट में दर्द हो रहा है तो मूली के रस को नीबूं के रस में बराबर मात्रा में मिलाकर पियें आराम मिलेगा।

(10) यदि मुँह से बदबू आती है तो सुबह-सुबह मूली के पत्तों में सेंधा नमक लगाकर नियमित सेवन करें दुर्गंध नष्ट हो जायेगी।

(11) मूली के लगातार सेवन से चेहरे में चमक आती है एवं झाईयां दूर होती है तथा चेहरे पर मुहांसे नहीं होते हैं। यदि चेहरे पर मुहांसे निकल आयें हैं तो मूली का एक गोल टुकड़ा काटकर मुहासों पर लगायें तथा सूखने पर ठंडे पानी से धो लें काफी आराम मिलेगा।

(12) मूली शरीर से हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड निकालकर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाती है।

(13) मूली में विटामिन ए पाया जाता है जो आंखों की रोशनी बढ़ाता है तथा नियमित मूली खाने से चश्मे का नंबर कम हो जाता है तथा चश्मा उतर भी जाता है।

(14) मूली के सेवन करने से शरीर का सूखापन नष्ट होता है तथा भूख बढ़ती है।

(15) मूली के सेवन से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।

(16) मूली मासिक-धर्म और वीर्य पुष्टि वर्धक है तथा श्वेतप्रदर रोगों में लाभकारी है।

(17) मूली के पांच ग्राम बीज मक्खन के साथ सुबह के समय लगातार एक महीने तक खाने से पौरुष बढ़ता है।

(18) जोड़ों के दर्द एवं जकड़न में मूली का सेवन लाभप्रद है।

(19) शरीर में सूजन आने पर मूली के रस को गुनगुना करके लगाने पर आराम मिलता है।

(20) मूली के नियमित सेवन से पेशाब सम्बंधी बीमारियां जैसे जलन, रुक-रुक कर पेशाब आना एवं गुर्दे बीमारी आदि रोग दूर हो जाते हैं।

(21) डायबिटीज के रोगी यदि लगातार मूली का सेवन करते हैं तो लाभ होता है तथा रोग की तीव्रता कम होती है।

(22) यदि कान के सुनने की शक्ति कमजोर हो गई है तो मूली के रस में नींबू का रस मिलाकर गुनगुना करके कान में डालें तथा कान नीचे की तरफ करके लेट जाएं इससे कान की गंदगी बाहर आ जायेगी तथा सुनने की शक्ति बढ़ेगी।

(23) कान में दर्द होने पर मूली के पत्तों को सरसों के तेल में उबाल लें तथा 2-2 बूंद कान में डाल लें दर्द में आराम मिलेगा।

(24) मूली को उबालकर खाने से गर्भ विकार दूर होते हैं तथा स्थिरता आती है एवं गर्भपात नहीं होता है।

(25) मूली को करेला एवं संतरा के साथ नहीं खाना चाहिए तथा मूली खाने के बाद दूध और पानी पीने से बचना चाहिए।

शिक्षक एवं पूर्व कृषि शोध छात्र, इ० वि० इ०
संपर्क : प्राथमिक विद्यालय भैरवां द्वितीय, हसवा, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश, मूल निवास- रायबरेली, मो : 9451231908




विवेक की चार कविताएं

हमने हर मोड़ पर जिसके लिये, ख़ुद को जलाया है।

उसी ने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।।

किया है जिसके एहसासों ने,  मेरी रात को रोशन।

सुबह उसकी अदावत ने, मेरी रूह को जलाया है।।

मुहब्बत के थे दिन ऐसे, दुआ बस ये निकलती है।

ख़ुशी से चहके वो हरपल, मुझे जिसने रुलाया है।।

चुराया जिसने आसमाँ से, मेरे आफताब को।

वही रक़ीब उन हाथों की, लकीरों में आया है।।

सताती हैं वो तेरे प्यार की बातें,  ख्यालों में।

तेरी इस बेरुख़ी ने मुझको, पत्थरदिल बनाया है।।

किया फिर याद तुझको आज, मैंने अपने अश्क़ों से।

तेरे एहसास की जुंबिश ने, फिर इनको बहाया है।।

कि तूने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।

हमने हर मोड़ पर तेरे लिये, ख़ुद को जलाया है।।

2 – ज़िंदगी का फलसफा

सोन चिरैया धूप मेरे आँगन में आती,

और बसंत से पूर्व कोकिला सी है गाती।

फुदक-फुदक कर गौरैया सी इधर-उधर जाती है,

फिर चंचल गिलहरी सी, दीवार पे चढ़ जाती है।

दोपहरी में पसर गयी वह, अनचाहे मेहमान सी,

और शाम तक सिमट गयी वह, एक कपड़े के थान सी।।

 

3 – ख़्वाहिश

सिलसिला यूँ चलने दो, जो हो रहा है होने दो,

कुंज गली की पत्तियों सा, समय को बिखरने दो।

मन के टेढ़े रास्तों पर, मोड़ तो कई आयेंगे,

खोज में आनन्द की पर, बहुतेरे मुड़ जायेंगे।

नयन जो धुंधलायें ग़र, तुम आंसुओ से धो लेना,

सीपियों के मोतियों से, गलहार तुम पिरो लेना।

ये भी बिखर जायेंगे और मिट्टी में मिल जायेंगे,

इक अधूरी याद‌ से फिर, जी को ये तड़पायेंगे।

छूना मत‌ झुककर इन्हें, नये बीज फिर से पड़ने दो,

नये पुष्प फिर से खिलने दो, नयी आस फिर से पलने दो।

कुंज गली की पत्तियों सा, समय को बिखरने दो।।

सिलसिला यूँ चलने दो, जो हो रहा है होने दो।।

 4  स्वदेशी

राष्ट्रवाद की अलख जगाओ,

आओ स्वदेशी को अपनाओ।

छोड़ विदेशी आकर्षण को,

राष्ट्र के हित में सब लग जाओ।

माना कठिन डगर है लेकिन

हमको जुगत लगानी होगी

कोरोनामय अर्थव्यवस्था

हमको ऊपर लानी होगी।

चाइनीज़ के राग को छोड़ो

देसी मोह से नाता जोड़ो

हमसे नृप संकल्प माँगता

उसके इस भ्रम को न तोड़ो।

मिला नसीबों से ये राजा

देश के हित की बात जो करता

हम सबका उज्ज्वल भविष्य हो

आठों प्रहर हमीं पे मरता।

आज राष्ट्र के हित में ग़र हम

राजा से कदम मिलायेंगे

वह दिन भी फिर दूर न होगा

जब विश्व गुरु बन जायेंगे।

 




आशा दिलीप की कविता – ‘मेहंदी और जीवन’

जीवन भी कुछ मेहंदी सा हो
कष्ट सहे टूटन का पेड़ से
सिल पर पिसे दर्द को सह के
समेटी जाए पात्र मे पानी संग
जो भी छुए उस पर छाप छोड़ कर
यौवना के हाथों पर लिखी जाए
पति के स्नेह का प्रतीक बन कर
सौभाग्य कहलाऊँ प्रेम बन हथेली पर
सोलह श्रंगार में जब समाहित होने पर
संम्पूर्ण सौभाग्य का चिन्ह बन कर
मेहंदी सी क्यों न बन जाऊं  मैं
लहलहाती रहूँ टहनी से जुड़ी हुई
चमकती रहूँ ओस जब मुझे छू जाए
ओर जब तोड़ी भी जाऊं अपने झाड़ से
पिसन का कष्ट सह हथेलियों पर
अपना रंग छोड़ कर सुख को पाने
स्वयं का कष्ट कैसे सुख बन जाये
काश जीवन भी मेहंदी सा हो जाये




कितने भौतिकवादी हो गए हैं हम : प्राज

साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।

 

कबीर जी के इस दोहे, से सभी परिचित है और मुझे नहीं लगता इस दोहे का अर्थ बतलाने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में इस दोहे की प्रासंगिकता तलाशने को जाने क्यों जिज्ञासा मन में उत्पन्न हुआ। 

        एक ओर जहाँ डिजिटलाइजेशन इस दौर में मानव सभ्यता अपने विचारों को,अभिव्यक्ति को वाट्सएप के स्टेटस रूपी पर्दे पर फिल्मी प्रिमियर की तरह लॉन्च करना सीख गया है।इसी संदर्भ में आपको लिए चलता हूँ सन् 1859 में क्रम विकास के सिद्धांत पर आधारित चार्ल्स डार्विन की लिखी पुस्तक ‘जीवजाति का उद्भव’ (Origin of Species) की ओर जिसमें डार्विन साहब ने बताया कि ” विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे और जीव-जन्तु पहले एक जैसे ही होते थे, पर संसार में अलग-अलग जगह की भौगौलिक परिस्थितियों और वातावरण के कारण उनकी रचना में धीरे-धीरे परिवर्तन होता गया और इस विकास के फलस्वरूप एक ही जाति के पौधों और एक ही जाति के जीव-जन्तुओं की कई प्रजातियां बनती गई। मनुष्य के पूर्वज भी किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग होकर अलग जगहों पर अलग तरह से रहने लगे और तब उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनका क्रमिक विकास होता गया जिससे धीरे-धीरे उनमें बदलाव होते गए और वे बंदर से मनुष्य बन गए।” इसी सिद्धांत के जस्ट उलट आज का मानव वर्चुअल वर्ल्ड में जिस प्रकार पब्लिसिटी एवं पापुलॉरिटी बटोरने के लालसावादी प्राणी भी बन गया है।

 

        बात लालसा की आ गई, और मानवों पर चर्चा चल रही है तो इसी संदर्भ में एक छोटा सा प्रश्न जो एक बच्चे ने किया था, उसे आपके समक्ष रखना चाहूंगा। संभवतः मैं ऊर्जा संरक्षण के नियम के विषय में पढ़ रहा था- “उष्मा ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और, ना ही उष्मा का विनाश किया जा सकता है। केवल उष्मा का स्थानांतरण होता है।”

 

इसको सुनकर छोटे से बच्चे ने पूछा:- “चाचु ! उष्मा का विनाश नही हो सकता और ना ही निर्माण ये कैसे संभव है? “

 

उसे समझाने के लिए कहा- “बेटा जैसे तुम्हारे अंदर आत्मा है ना, वो कभी नहीं मरती। ठीक वैसे ही उष्मा है।”

 

वो बोला:- “चाचु! कन्फ्यूजन है यार…!”

 

मैं बोला:- “क्या कन्फ्यूजन ?”

 

उसने कहा:- “चाचु ! साल 1990 में हमारे गांव में 100 व्यक्ति (आत्मा) थे फिर 2000 में 300 व्यक्ति और अभी 750 लोगों की संख्या है। आत्मा मरती नहीं है फिर ये नये-नये आत्मा कहाँ से इम्पोर्ट हो रहे है? ये हाल हम जनसंख्या के हिसाब से देखे तो भी प्रत्येक 10 में जनसंख्या 20% बढ़ती है। तो ये 20% अतरिक्त आत्मा कहाँ से आते हैं?”

 

मैनें उसे होमवर्क करों इधर-उधर की बातें नहीं करों कहकर शांत कर दिया। लेकिन उसका प्रश्न वाजिब था, मेरे मन में भी ये सवाल चल ही रहा था फिर विचाराधीन मन ने कहा- “मनुष्य की संख्या बढ़े तो प्राकृतिक संसाधन एवं पारिस्थितिक तंत्र का विलोपन हुआ। इससे जहाँ एक वर्ग की संख्या बढ़ी तो दूसरे वर्ग की संख्या घटना प्रारंभ हुआ। इसे इस प्रकार समझते है कि संसार के प्रत्येक वस्तु में उष्मा निवास करती है चाहे वह जीवित हो या मृत। उष्मा का संचार होते रहता है। जैसे-जैसे मनुष्यों की संख्या बढ़ने लगी, अन्य सजीव /निर्जीव संसाधनों की कमी होने लगी। यानी उष्मा की मात्रा उतनी ही है, केवल स्वरूपों में परिवर्तन होने लगा।”

 

 

 मनुष्य वह प्रजाति जिसमें अपार संभवनाएं है कुछ भी कर गुजरने की, कुछ भी निर्माण कर नव अविष्कारों को मुर्त रूप देने सक्षम है। लेकिन वर्तमान दौर में मनुष्य लालसा, लोभ, ईष्या और भौतिकवाद के चंगुल में बसा है। जनाब, वर्तमान तो भौतिकवाद इतना प्रभावी है कि लोग मनुष्य उपस्कर से लेकर अलंकरण तक तन, मन और धन से समर्पित स्वार्थी बन चुका है। इससे-उससे और सबसे उपर दिखना है, उठना है, बेहतर से बेहतरीन बनना है। इन सभी के प्रश्नों की वजह से जाने आज का मनुष्य अपनी अहमियत भूल गया है। वर्तमान दौर में भावनाओं का मार्केटिंग हो रहा है। कमाल नहीं है? आप कहेंगे भावनाओं का मार्केटिंग कैसे? इसे ऐसे समझने का प्रयास करते हैं, लोग प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, इसके लिए किसी भी हद तक जाने को आतुर है। जैसे चाहे वह स्टंट क्यों ना हो, या फिर अश्लीलता परोसते फुहड़ फैशन से लबरेज अंग वस्त्र, टशन से अशिष्टता के बोल सरगम की तरह बेधड़क कहना हो या फिर मद्द को नाम पर हेल्पिंग हैंड नेचर का प्रदर्शन सब कुछ कमाल है। बहरहाल वर्तमान दौर में सिर्फ ये देखा गया है कि इतना दिजीए कि मैं भुखा ना रहूं, दुनियाँ चाहे कुछ हो जाय। शेष आप समझदार पाठक हैं। 

 

आपका

  प्राज

छत्तीसगढ़




शब्दकोश ही बदल देंगे ये तो …

हमारे एक जानकार हैं। नाम है वागेश्वर। नाम के अनुरूप ही उनका अनुपम व्यक्तित्व है। धीर-गम्भीर, हर बात को बोलने से पहले तोलना कोई उनसे सीखे। न कोई दिखावा न कोई ढोंग। सीधे-सपाट। मुंहफट कहे तो भी चल सकता है। मोहल्ले में सब उनकी खूबियों से परिचित हैं। ऐसे में हर कोई उनसे बात करते समय सौ बार सोचता है। उम्र भले ही हमसे डेढ़ी हो पर हमारे साथ उनका सम्बन्ध मित्रवत ही है। खुद कहते हैं कि आप मेरी लाइन के बन्दे हैं। खैर आप उनके प्रशंसा पुराण को छोड़ें। आप तो बात सुनें और आनन्द लें।

आज सुबह पार्क में उनके साथ मुलाकात हो गई। रामा-श्यामी तो स्वभाविक ही थी। देखकर बोले-आओ, मित्र सुंदर-सुगन्धित,  हरी-भरी शीतल-स्निग्ध छाया में कुछ क्षण विश्राम कर लें। कुछ अपनी सुनाएं, कुछ आपकी सुनें। उनका इस तरह वार्तालाप करना मेरे लिए भी नया अनुभव था। दो टूक बात कह समय की कीमत समझाने वाले इस व्यक्तित्व के पास आज वार्तालाप का समय जान मैं भी हैरान था। उनके निमंत्रण को स्वीकार कर हंसते हुए मैने कहा-क्या बात साहब। आज ये सूरज पश्चिम की तरफ से क्यों निकल रहा है। 

बोले-कुछ खास नहीं। वैसे ही आज गप्प लड़ाने का मूड हो रहा था। सबके अपने दर्द होते हैं ऐसे में हर किसी से बात करना जोखिमभरा होता है। आप कलमकार है, सबके सुख-दुख पर लिखते हो। आपसे बात कर अच्छा लगता है। मैंने कहा-ये आपका बड़प्पन है। बोले-यार क्या जमाना आ गया है। बोलने की कोई सेंस ही नहीं है। थोड़ी देर पहले एक आदमी यहां से गुजर रहा था। छोटा सा एक बच्चा दूसरे से बोला-देख काटड़ा जाण लाग रहया। भले मानस उसके ढीलडोल को देख मोटा आदमी कह देते। पेटू, हाथी क्या नाम कम थे जो काटड़ा और नया नाम निकाल दिया। मैंने कहा- जी कोई बात नहीं, बच्चे हैं। हंसी-मजाक उनकी तो माफ होती है। अब वो अपना ओरिजनल रूप धारण कर चुके थे।

बोले-ठीक है ये बच्चे थे।माफ किए। पर ये बड़े जिनपर सबकी नजर रहती है वो ऐसी गलती करें तो क्या सीख मिलेगी आने वाली पीढ़ी को। नाम सदा पहचान देने के लिए होते हैं। पहचान खोने के लिए थोड़ी। लाल-बाल-पाल के बारे में पूछो सभी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल को सब जान जाएंगे। नेता जी माने सुभाष चन्द्र बोस, गुरुदेव माने रविन्द्र नाथ टैगोर, शास्त्री जी से लाल बहादुर शास्त्री, महात्मा से महात्मा गांधी की पहचान सभी को है। स्वर कोकिला से लता मंगेश्कर, सुर सम्राट से मोहमद रफी, याहू से शम्मी कपूर, ड्रीम गर्ल से हेमा मालिनी, पाजी से धर्मेंद्र, बिग बी से अमिताभ बच्चन जाने जाते है। उड़नपरी से पीटी उषा, लिटिल मास्टर से सुनील गावस्कर, मास्टर ब्लास्टर से सचिन तेंदुलकर, हरियाणा हरिकेन से कपिल देव अलग से ही पहचाने जाते हैं। दादा, माही,जड्ड, गब्बर,युवी भी बुरे नाम नहीं है। अब तो स्तर और भी नीचे चला गया है।पप्पू, फेंकू, खुजलीवाल नाम अपने आप में ब्रांड बन चुके हैं। बेबी-बाबू, स्वीटू-जानू, छोटा पैकेट-बड़ा पैकेट के तो क्या कहने। मैं हंसने लगा तो फिर बोल पड़े।

बोले- अभी तो हरामखोर, नॉटी गर्ल, आईटम ही नाम आगे आये हैं। इनके जन्मदाता इनके अर्थ को ही नई परिभाषा का रूप दे रहे हैं। अभी तो देखना गोश्त चॉकलेट तो मच्छी लॉलीपॉप का शब्द रूप धारण कर लेगी। कुत्ता-कमीना मतलब बहुत प्यारा हो जाएगा। गधे जैसा मतलब समझदार, बन्दर चंचल व्यक्तित्व हो जाएगा। बिल्ली मतलब ज्यादा सयानी,हाथी पर्यावरण प्रेमी को कहा जायेगा। सियार यारों का यार तो लोमड़ रणनीतिज्ञ कहलाएगा। खास बात निक्कमा काम का नहीं से बदलकर बेकार के काम न करने वाला कहलवायेगा। और यदि यूँ ही इनके शब्दों के अर्थ बदलने का प्रयोग जारी रहा तो पूरा शब्दकोश बदल जायेगा। वो लगातार बोले जा रहे थे। मुझमें भी उन्हें बीच में रोकने की हिम्मत नहीं थी।

इसी दौरान उनके मोबाइल की घण्टी बज गई। फोन के दूसरी तरफ से उनकी अर्धांगनी का मधुर गूंजा-कहां मर गए। ये चाय ठंडी हो जाएगी तब आओगे क्या। फिर इसे ही सुबड़-सुबड़ कर के पीना। मुझे और भी काम हैं। कोई तुम्हें झेलने वाला मिल गया होगा।वागेश्वर जी बोले-थोड़ा सांस तो लो। बीपी हाई हो जाएगा। पूरे दिन फिर सर पे कफ़न बांधी रहना। बस अभी आया। यहां पार्क में ही बैठा हूँ। कोई अंतरिक्ष में सैर करने नहीं गया था।यह कहकर फोन काट दिया। हंसकर बोले-भाई,हाइकमान का मैसेज आ गया है, तुरंत रिपोर्ट करनी होगी। अन्यथा वारंट जारी हो जाएंगे। ये कहकर वो निकल गए। मैं भी उनके कथन को मन ही मन स्वीकारते हुए घर की राह चल पड़ा। घर पहुंचा तो स्वागत में ही नया शब्द सुनने को मिला। सुई लगाके आये या लगवाके। मैंने कहा-मतलब। जवाब मिला- मतलब ज्ञान बांट के आये हो या कोई आपसे बड़ा ज्ञानी मिल गया था, जो इतनी देर लगा दी। जवाब सुन मैं भी हंस पड़ा। शब्दकोश तो पक्का ही बदलकर रहेगा। इसे कोई नहीं बचा सकता। पत्नी मेरे शब्द बाण से हतप्रभ रह गई। मैंने उसे सारी बात बताई तो वो भी मुस्करा दी।

(नोट: लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे किसी के साथ व्यक्तिगत रूप में न जोड़ें।)

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

9671726237

 
 



मीनाक्षी डबास ‘मन’ की कविता – ‘स्त्रियों के बाल’

स्त्रियों के बाल
कविता है स्वयं
जब सुलझाती उनको
मानो चुने जा रहे शब्द
एक-एक लट की तरह।

लहराते हैं जब
खुले बाल हवा के संग
मानो बहे जाते शब्द
छंद के नियम पर
कुछ कहे जाने को।

एक तारतम्यता में
बंधना बालों का
चोटी के अंग
मानो शब्द बहते हों
रस के आंगन।

वो जब बाँधती
जुड़ा उन्हें सहेजने को
न बिखरने देने को
मानो यति-गति से
बने शब्दों में संतुलन।

बालों को संवारती
सजाती बहुरंग
लिए बहु साधन
मानो शब्दार्थ सजे हों
अलंकार का ले आभूषण।

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी), राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
ईमेल पता : [email protected]




संदीप सिंधवाल की कविता – ‘मेरा मैं’

ये जो माटी ढेर है, ‘मैं’ माया का दास।
माया गई तो मैं भी, खाक बचा अब पास।।

मैं श्रेष्ठ हूं तो सिद्घ कर, मैं अच्छी नहीं बात।
सबका मालिक एक है, इंसां की इक जात।।

मिट्टी में मिल जाता मैं, कुछ ना जाता संग।
एक परमात्मा सच है, सब उसके ही अंग।।

सभी से मेल राखिए, मिटा दिजै सब अहं।
बातों से बात बनती, मिट जाते सब बहम।।

गैर की पीर उठाएं, आता सबका काल।
पीर न देखे कभी ‘मैं’,फिर कौन देखे हाल।।

एक अदृश्य सा बिन्दु तू,बहुत अनंत ब्रह्माण्ड।
सबका हिसाब हि ऊपर, नजर में सभी कांड।।

करोना से पंगु बना, धन ना आया काम।
अहं हुआ चकनाचूर, सभी हैं यहां आम।।

भू सूर्य जल पवन आग,करते अपना काम।
अथक निरंतर हि चलते,मांगे न कोय दाम।।

‘सिंधवाल’ मन शांत है, तो होता उपकार।
मैं जब भी ‘हम’ बनें तो,सबका होय उद्धार।।

-संदीप सिंधवाल




सपना की कविता – ‘बेरोजगार’

बेरोजगार

कितना मुश्किल यह स्वीकार
हूँ, मैं भी बेरोजगार।

सत्य को झुठलाया भी नहीं जा सकता
न ही इससे मुँह मोड़ सकती हूँ मैं
परम् सत्य तो यही है
लाखों लोगों की तरह
मैं भी हूँ बेरोजगार।

कभी-कभी मन भारी हो जाता
इतनी डिग्री पाकर, क्या हासिल कर लिया मैंने

अच्छा, होता कम पढ़ी-लिखी होती
मन को तसल्ली तो दे पाती
तब इतना दर्द भी नहीं होता शायद
बेरोजगार होने का।

पड़ोसी भी मज़ाक उड़ाने लगे है
क्या सारी उम्र पढ़ाई ही करनी है?
नौकरी करने का इरादा भी है या नहीं?
अपनी रोजगार बेटियों के दम पर
मेरे इस बेबसी का

पर सच तो यही है, हूँ मैं बेरोजगार।

पापा ने भी वैकेंसी के बारे में
बात करना छोड़ दिया
माँ का भरोसा भी उठने लगा, मुझसे
सभी साथी आगे निकल गए
जीवन के इस संघर्ष में
मैं ही नालायक निकल गयी उन सब में
तभी तो आज भी हूँ, बेरोजगार।

किसे कोसूँ अब मैं, अपनी किस्मत को

या उस सरकार को जिसके शासन में

भर्ती निकले तो इम्तहान नहीं होते
परीक्षा हो तो, परिणाम राम भरोसे
परिणाम निकल भी गया
बिना पॉवर की वजह से बाहर कर दिया जाता
इंटरव्यू में।

कहने को तो युवा है देश का आधार
फिर क्यों युवाओं का मान नहीं।

सरकारें आती हैं जाती हैं
युवाओं को रोजगार देने के नाम पर
फिर भी हर साल बढ़ती जाती, बेरोजगारी

युवाओं को मिलती
हर बार बस निराशा
मेरी ही तरह।

फिर भी न कोई करता बेरोजगारी पर बात
कब तक यह युवाओं की जान लेती रहेगी
रोजगार देने के नाम पर
अपनी ही जेब गर्म करते जाएँगे।

बहुत सहन कर लिया
अब और नहीं
समय आ गया है
जवाब माँगने का
युवा शक्ति क्या है, बतलाने का
बहुत चुप्पी साध ली, अब वक्त है
आवाज़ को बुलंद करने का

न रुकना है, न झुकना है, न हार मानना
कदम से कदम मिलाकर चलना है
हकों को पाकर ही दम लेना है।

  • – सपना

संपर्क : हिंदी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़-160014, मोबाइल नंबर 9354258143, ईमेल पता : [email protected]




विवेक का गीत- “हर मोड़ पर जिसके लिये, ख़ुद को जलाया है…”

हमने हर मोड़ पर जिसके लिये, ख़ुद को जलाया है।

उसी ने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।।

किया है जिसके एहसासों नेमेरी रात को रोशन।

सुबह उसकी अदावत ने, मेरी रूह को जलाया है।।

मुहब्बत के थे दिन ऐसे, दुआ बस ये निकलती है।

ख़ुशी से चहके वो हरपल, मुझे जिसने रुलाया है।।

चुराया जिसने आसमाँ से, मेरे आफताब को।

वही रक़ीब उन हाथों की, लकीरों में आया है।।

सताती हैं वो तेरे प्यार की बातेंख्यालों में।

तेरी इस बेरुख़ी ने मुझको, पत्थरदिल बनाया है।।

किया फिर याद तुझको आज, मैंने अपने अश्क़ों से।

तेरे एहसास की जुंबिश ने, फिर इनको बहाया है।।

कि तूने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।

हमने हर मोड़ पर तेरे लिये, ख़ुद को जलाया है।।

हमने हर मोड़ पर जिसके लिये, ख़ुद को जलाया है।

उसी ने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।।

किया है जिसके एहसासों नेमेरी रात को रोशन।

सुबह उसकी अदावत ने, मेरी रूह को जलाया है।।

मुहब्बत के थे दिन ऐसे, दुआ बस ये निकलती है।

ख़ुशी से चहके वो हरपल, मुझे जिसने रुलाया है।।

चुराया जिसने आसमाँ से, मेरे आफताब को।

वही रक़ीब उन हाथों की, लकीरों में आया है।।

सताती हैं वो तेरे प्यार की बातेंख्यालों में।

तेरी इस बेरुख़ी ने मुझको, पत्थरदिल बनाया है।।

किया फिर याद तुझको आज, मैंने अपने अश्क़ों से।

तेरे एहसास की जुंबिश ने, फिर इनको बहाया है।।

कि तूने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।

हमने हर मोड़ पर तेरे लिये, ख़ुद को जलाया है।।




पवन जांगड़ा का गीत, – “बेटी नाम कमावैगी”

बेटी की क्यूट स्माइल नै,

देख लाडो की प्रोफाइल नै

यो पापा होग्या फैन.

यो पापा होग्या फैन।

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी..

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी।

घर में जिसके होवै बेटी,रौनक घर में आवे।

प्यारी-प्यारी लागे बेटी,सबका मन हर्षावे। 

घर में जिसके होवै बेटी,रौनक घर में आवे।

प्यारी-प्यारी लागे बेटी,सबका मन हर्षावे। 

तन्नै बेटे कर दिए फ़ैल..

तन्नै बेटे कर दिए फ़ैल.

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी..

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी।


भ्रूण-हत्या की इस प्रथा में बेटी कर री फाइट,

घटती दिखे कद्र देश म्ह,, यो किसने दे दिया राईट!

भ्रूण-हत्या की इस प्रथा में बेटी कर री फाइट,

घटती दिखे कद्र देश म्ह,, यो किसने दे दिया राईट।

तन्नै बेटे कर दिए फ़ैल..

तन्नै बेटे कर दिए फ़ैल।

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी..

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी।

शिक्षा हो या खेल-जगत,सबमें बेटी नाम कमावै,

देख के फ़ोटो फ्रंट पेज प, मन में खुशियाँ छावै, 

शिक्षा हो या खेल-जगत,सबमें बेटी नाम कमावै,

देख के फ़ोटो फ्रंट पेज प, मन में खुशियाँ छावै।

बढ़ता मान पिता का, होती कद्र माता की गैल.

बढ़ता मान पिता का, होती कद्र माता की गैल।

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी..

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी..

पवन जांगड़ा कुलेरी आळा, मन में इच्छा ठारया,

जुग-जुग जीवै बेटी घर म्ह, या ही रीत चला रया,

तन्नै बेटे कर दिए फ़ैल..

तन्नै बेटे कर दिए फ़ैल।

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी..

र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी।