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मीनाक्षी डबास ‘मन’ की कविता – ‘स्त्रियों के बाल’

स्त्रियों के बाल
कविता है स्वयं
जब सुलझाती उनको
मानो चुने जा रहे शब्द
एक-एक लट की तरह।

लहराते हैं जब
खुले बाल हवा के संग
मानो बहे जाते शब्द
छंद के नियम पर
कुछ कहे जाने को।

एक तारतम्यता में
बंधना बालों का
चोटी के अंग
मानो शब्द बहते हों
रस के आंगन।

वो जब बाँधती
जुड़ा उन्हें सहेजने को
न बिखरने देने को
मानो यति-गति से
बने शब्दों में संतुलन।

बालों को संवारती
सजाती बहुरंग
लिए बहु साधन
मानो शब्दार्थ सजे हों
अलंकार का ले आभूषण।

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी), राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
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संदीप सिंधवाल की कविता – ‘मेरा मैं’

ये जो माटी ढेर है, ‘मैं’ माया का दास।
माया गई तो मैं भी, खाक बचा अब पास।।

मैं श्रेष्ठ हूं तो सिद्घ कर, मैं अच्छी नहीं बात।
सबका मालिक एक है, इंसां की इक जात।।

मिट्टी में मिल जाता मैं, कुछ ना जाता संग।
एक परमात्मा सच है, सब उसके ही अंग।।

सभी से मेल राखिए, मिटा दिजै सब अहं।
बातों से बात बनती, मिट जाते सब बहम।।

गैर की पीर उठाएं, आता सबका काल।
पीर न देखे कभी ‘मैं’,फिर कौन देखे हाल।।

एक अदृश्य सा बिन्दु तू,बहुत अनंत ब्रह्माण्ड।
सबका हिसाब हि ऊपर, नजर में सभी कांड।।

करोना से पंगु बना, धन ना आया काम।
अहं हुआ चकनाचूर, सभी हैं यहां आम।।

भू सूर्य जल पवन आग,करते अपना काम।
अथक निरंतर हि चलते,मांगे न कोय दाम।।

‘सिंधवाल’ मन शांत है, तो होता उपकार।
मैं जब भी ‘हम’ बनें तो,सबका होय उद्धार।।

-संदीप सिंधवाल




सपना की कविता – ‘बेरोजगार’

बेरोजगार

कितना मुश्किल यह स्वीकार
हूँ, मैं भी बेरोजगार।

सत्य को झुठलाया भी नहीं जा सकता
न ही इससे मुँह मोड़ सकती हूँ मैं
परम् सत्य तो यही है
लाखों लोगों की तरह
मैं भी हूँ बेरोजगार।

कभी-कभी मन भारी हो जाता
इतनी डिग्री पाकर, क्या हासिल कर लिया मैंने

अच्छा, होता कम पढ़ी-लिखी होती
मन को तसल्ली तो दे पाती
तब इतना दर्द भी नहीं होता शायद
बेरोजगार होने का।

पड़ोसी भी मज़ाक उड़ाने लगे है
क्या सारी उम्र पढ़ाई ही करनी है?
नौकरी करने का इरादा भी है या नहीं?
अपनी रोजगार बेटियों के दम पर
मेरे इस बेबसी का

पर सच तो यही है, हूँ मैं बेरोजगार।

पापा ने भी वैकेंसी के बारे में
बात करना छोड़ दिया
माँ का भरोसा भी उठने लगा, मुझसे
सभी साथी आगे निकल गए
जीवन के इस संघर्ष में
मैं ही नालायक निकल गयी उन सब में
तभी तो आज भी हूँ, बेरोजगार।

किसे कोसूँ अब मैं, अपनी किस्मत को

या उस सरकार को जिसके शासन में

भर्ती निकले तो इम्तहान नहीं होते
परीक्षा हो तो, परिणाम राम भरोसे
परिणाम निकल भी गया
बिना पॉवर की वजह से बाहर कर दिया जाता
इंटरव्यू में।

कहने को तो युवा है देश का आधार
फिर क्यों युवाओं का मान नहीं।

सरकारें आती हैं जाती हैं
युवाओं को रोजगार देने के नाम पर
फिर भी हर साल बढ़ती जाती, बेरोजगारी

युवाओं को मिलती
हर बार बस निराशा
मेरी ही तरह।

फिर भी न कोई करता बेरोजगारी पर बात
कब तक यह युवाओं की जान लेती रहेगी
रोजगार देने के नाम पर
अपनी ही जेब गर्म करते जाएँगे।

बहुत सहन कर लिया
अब और नहीं
समय आ गया है
जवाब माँगने का
युवा शक्ति क्या है, बतलाने का
बहुत चुप्पी साध ली, अब वक्त है
आवाज़ को बुलंद करने का

न रुकना है, न झुकना है, न हार मानना
कदम से कदम मिलाकर चलना है
हकों को पाकर ही दम लेना है।

  • – सपना

संपर्क : हिंदी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़-160014, मोबाइल नंबर 9354258143, ईमेल पता : [email protected]