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अजय कुमार पाण्डेय की नई कविता, इंतजार-आखिर कब तक,

मोमबत्ती हाथ में लेकर चले सब एक दिन,

इक दर्द के साथ हम सब चले थे एक दिन।

दुखी अनगिनत चेहरे, दर्द पारावार सा

इक नए प्रारंभ का सब स्वप्न पाले एक दिन।

एक स्वर बस गूंज रहा था इस सकल ब्रम्हांड में

यूँ लगा अब सृष्टि बदलेगी सकल ब्रह्माण्ड में।

आंधियों में जोर था, वो लौ भी शायद बुझ गयी

सिसकियां बस रह गयी, शायद सकल ब्रम्हांड में।

हैवानियत क्या इस कदर हावी हुए अब जा रही

इंसान की इंसानियत पराजित ज्यों हुए जा रही

है ये किसका दोष, आरोप अब किस पर मढ़ें

क्यूँ कर ये चेतना,  अब सुप्त सी होती जा रही।

स्तब्ध है अवनि यहां, स्तब्ध अंबर आज है

जाने कैसा आज ये फैला बवंडर आज है।

बूँद बादल की भी ना जाने कहाँ अब खो गयी

ढूंढता है रास्ता दिनकर भी यहां अब आज है।

शर्म से शायद दिनकर भी यहां क्या छुप गया

क्षोभ से भरकर के स्वयं क्या वो रुक गया।

कौन अब उसको बुलाये इस घने अंधकार में

जाने उसका भी तेज शायद शर्म से आज झुक गया।

और कितनी देर है सारा गगन है पूछता

न्याय की आवाज से सारा चमन है गूंजता।

न्याय से ही मात्र अब अवसाद शायद न रुके

जाने क्यों इस धरा को ना राह कोई सूझता।

आओ सब मिल यहां अन्याय का प्रतिकार करें

हो सुरक्षित ये धरा प्रण आज ये स्वीकार करें

वर्ना कहीं ना देर हो जाये यही इंतजार में

अब कृष्ण फिर ना आएंगे इस विकल संसार में।

जगत जननी की रक्षा का प्रण आज करना होगा

सभ्यता-असभ्यता से एक अब चुनना होगा

वरना विकल हो सृष्टि जब आपे से बाहर जाएगी

ना मिलेगा रास्ता,  शून्य सा सब हो जाएगा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय, हैदराबाद

30सितंबर,2020

 




जीवन रोशनी – मनोरंजन तिवारी

लौट जाती है, होठों तक आकर वो हर मुस्कुराहट
जो तुम्हारे नाम होती है
जो कभी तुम्हारी याद आते ही कई इंच चौडी हो जया करती थी
उन्मुक्त हँसी, बेपरवाह और बेबाक बातें
करना तो शायद मैं अब, भूल ही चुका हूँ
बार-बार जाता हूँ, उस घास में मैदान में
और ढुन्ढता हूँ, अपने जीवन की वो तमाम स्वच्छंदता
जो तुमसे मिलते ही पुरे महौल में फै़ल जाया करती थी
मेरी आँखें चमकने लगती थी रोशनी से
और ज़ुबां पर ना जाने कहाँ से आ जाते थे
वो तमाम किस्से मेरे जीवन के
जो तुम्हे बताने को आतुर रहता था मैं अक्सर
हर अंग में स्फूर्ति जग जाती थी
जैसे पंख मिल गये हो।

मुझे अनंत आसमान में उड़ने के लिये…
अब नहीं होता कुछ भी ऐसा
जैसे जंग लग गये हो, मेरे हर अंग में
ज़ुबां पर कुछ आते ही ठहर जाता हूँ
तुम अक्सर कहा करती थी ना की
बोलने से पहले सोचा करो
सिर्फ यही एक इच्छा पूरी की है मैने तुम्हारी
अब जबकि तुम साथ नहीं हो
आँखों की चमक और रोशनी गुम होने लगी है
अनजाने डर व आशंकाओं की परछाइयों में उलझ कर
अब उड़ने को पंख नहीं, पैरों से चलता हूँ
अपने ही अस्तित्व का भार उठाये
मेरे कंधे झुक जाते है
जैसे सहन नहीं कर पा रहे है जीवन का भार
आँखें हर व़क्त जमीं में गड़ी रहती है
जैसे ढून्ढ रही हो कोई निसां
जो उन राहों पर चलते हुए हमने कभी छोड़ा था
अब धूप में, चेहरे की रंगत उड़ जाने का डर नहीं होता
और छाया भी दे नहीं पाती ठंडक तन को
कानों में कभी तुम्हारी अवाज़ गूँज जाती है
जैसे पुकार रही हो तुम, मुझे पीछे से
ठहर जाता हूँ कुछ पल के लिये
देखता हूँ, मुड कर पीछे, मगर वहाँ कोई नहीं होता
दूर, बहुत दूर जहाँ मेरी आँखों की रोशनी
बमुश्किल पहुँच पाती है
एक अस्पष्ट सी छाया नज़र आती है
देखती है मुझे और ठठाकर हँसती है
जैसे व्यंग कर रही हो मुझ पर
फिर अचानक रुक जाती है
पोछती है अपने आँचल से वे आँसू के बूँदे
जो उसके गालों पर लुढ़क आते है।

फिर गुम हो जाती है वो छाया भी
जैसे गुम हो गयी थी तुम कभी।




समर्पण – आदित्य तिवारी

ये जीवन जितनी बार मिले
माता तुझको अर्पण है
इस जीवन का हर क्षण ,हर पल
माता तुझको अर्पण है।

यही जन्म नहीं, सौ जन्म भी
माता तुझ वारूँ मैं
इस धरती का मोल चुकाने
मेरा सब कुछ अर्पण है।

तन अर्पण, यह मन अर्पण है
रक्त मेरा समर्पण है
निज राष्ट्र धर्म की रक्षा में
मेरा जीवन अर्पण है।

मेरा तरुण प्रसून अर्पण
घर का कण-कण अर्पण है
तोड़ कर सारे सम्बन्धों को
मेरा हीय समर्पण है।

ग्राम- पटनी, डाक- हाटा, जिला- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत, मो. 7380975319




पत्ते  – उत्तीर्णा धर 

     

प्रथम में हल्का हरे रंग का लाल लाल
जैसे हरियाली में ढल गया हो गुलाल l

अति लघु लिए हैं शिशु का रूप
निखरता है रंग जब इसमें पड़ती धूप l

धीरे-धीरे गहरे हरे रंग में बदलाव
धूप में भी पहुंचाता है यह  छांव l

सिकुड़ने लगता है वृद्धावस्था में
रंग में परिवर्तन होता है फिर से l

अब कनक समान पीले रंग का हो जाता है
जैसे टहनी से बस यह छूटना ही चाहता है l

भूरे रंग में बदलकर अब छूट पड़ता है
हवा के सहारे इधर-उधर भटकता रहता है l




स्वयंप्रभा : टीवी के माध्यम से घर बैठे ही होगी पढ़ाई – राहुल खटे

 
 
जिस समय भारत में टीवी अया था तब इसे केवल मनोरंजन का साधन माना गया था। भारत में रामायण और महाभारत को देखने के लिए भारत के अधिकतर लोगों ने घर में पहली बार ब्लैक एण्ड वाईट टीवी खरीदा था। बाद में उसने फिल्में, गीत और हास्य कार्यक्रमों को देखने को स्थान लिया। धीरे-धीरे इसी टीवी ने सामाजिक और आर्थिक विषयों पर कार्यक्रमों पर प्रसारण शुरू हुआ। बाद में कृषि से जुडें कुछ कार्यक्रमों ने देश के किसानों को टीवी के प्रति आकर्षित किया। क्रिकेट जैसे खेलों के प्रसारण के कारण युवा वर्ग का यह पसंदीदा विषय बन गया।
 
बाद में समाचारों और दिन भर की घटनाओं और धारावाहिकों ने घर के प्रत्येक सदस्य के लिए टीवी परिवार का एक अविभाज्य अंग बन गया। कुछ दिनों के बाद इसमें कुछ शैक्षिक कार्यक्रम भी आने लगें। धीरे-धीरे टीवी हमारे घर का ही एक इलेक्ट्रॉनिक सदस्य बन गया, जिसके सामने बैठकर खाना खाना एक रोज का काम हो गया। बच्चों को मोगली जैसे कार्यक्रम बहत ही अच्छे लगते थें। बाद में इसी टीवी ने कई क्षेत्रों के कलाकारों को अपना मंच दिया। विज्ञापनों के कारण यही टीवी कमाई का एक साधन बन गया।
 
बच्चों को हम टीवी से दूर रखने का पर्यास भी करते हैं क्योंकि यही टीवी पढाई में बाधक बनने और समय को बरबाद करने वाला माना जाने लग गया था। इसके चलते वैज्ञानिकों ने इसे ‘इडीयट-बॉक्स’ कहा था, लेकिन समय के साथ हर वस्तु में परिवर्तन आने लगता है। अब इसी स्टूपिड बॉक्स ने नॉलेज बॉक्स का स्थान ले लिया है। भारत सरकार ने देश में ई-शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्वयं, स्वयं प्रभा और राष्ट्रीय शैक्षिक संकलन की शुरूआत की है, जिसका नाम हैं – ‘स्वयंप्रभा’। इस डिजिटल पहल का उद्देश्य वर्ष 2020 तक उच्च शिक्षा में दाखिले के अनुपात को साढे चौबीस से बढ़ाकर तीस करना है।
 
शिक्षा को समाज के हर वर्ग के लिए सुलभ और सुगम बनाने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ‘स्वयं प्रभा’ नाम से 32 विशेष टीवी चैनलों की योजना बनाई है। ये चैनल दिन में करीब 4 घंटे अलग-अलग विषयों पर लाइव कार्यक्रम प्रसारित करेंगे। यह सभी चैनल किसी भी कंपनी के सेट टॉप बॉक्स पर चैनल संख्या 2001 से 2032 पर देखे जा सकते हैं। इसकी आधिकारिक साइट है: https://www.swayamprabha.gov.in/स्वयंप्रभा 
 
भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने दो डिजिटल शिक्षा पहलों- स्वयं और स्वयं प्रभा का शुभारंभ रविवार 9 जुलाई 2017 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर किया गया था। इसी दिन देश भर में गुरू या शिक्षकों की पूजा की जाती है। आज टीवी ने इलेक्ट्रॉनिक गूरू का स्थान ले लिया हैं।
 
डिजिटल टेक्नोलोजी से अच्छे शिक्षक बड़ी संख्या में छात्रों को सीधे सिखाने के योग्य हैं। जो छात्र/छात्रा शारीरिक रूप से कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो सकते हैं वह घर पर ही पढ़ाई कर सकेगें। आईसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) समाधान एक इंटरैक्टिव लर्निंग का अनुभव प्रदान करते हैं, जिससे देश के दूरदराज के इलाकों के छात्रों को शीर्ष शिक्षकों के व्याख्यान से फायदा हो सकता है।”
 
स्वयं और स्वयं प्रभा के अतिरिक्त, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दो अन्य पहलों की शुरूआत की। यह दो पहल राष्ट्रीय शैक्षणिक डिपॉजिटरी (एनएडी) और राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी (एनडीएल) हैं।
 
स्वयं प्रभा एक विशाल ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम (एमओओसीएस) की पहल है। इसका अर्थ है कि स्वयं के तहत शैक्षणिक पाठ्यक्रम ऑनलाइन उपलब्ध कराए जाएंगे और डिजिटल कक्षाओं के माध्यम से छात्रों तक पहुँचा जा सकता है। इसमें देश का कोई भी व्यक्ति पंजीकरण कराकर शिक्षा ग्रहण कर सकता है। यदि कोई छात्र स्वयं की पहल के माध्यम से प्रमाणीकरण चाहता है, तो मामूली शुल्क पर प्रमाणपत्र उपलब्ध कराया जाएगा। इस पहल के माध्यम से सभी अध्ययन सामग्री और कक्षा में हुए परीक्षण के वीडियो को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मंत्री के अनुसार स्वयं योजना के तहत उच्च माध्यमिक विद्यालय स्तर से स्नातक स्तर तक का पाठ्यक्रम उपलब्ध होगा।
 
स्वयं प्रभा प्रत्यक्ष रूप से डायरेक्ट-टू-होम (सीधे आपके घर) सुविधा है। इसका मतलब यह है कि कक्षा के व्याख्यान और अनुभव को 32 डिजिटल शैक्षिक टेलीविजन चैनलों के माध्यम से सीधे इच्छुक छात्रों तक उपलब्ध कराया जाएगा, जो अब एचआरडी मंत्रालय द्वारा चलाए जाएंगें। इन चैनलों को डिश एंटीना और टेलीविजन द्वारा कोई भी व्यक्ति देख सकता है। इन चैनलों पर नई शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी, जो प्रत्येक दिन कम से कम 4 घंटे प्रसारित होगी। किसी कारणवश जो छात्र एक समय इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने से चूक गये हैं उनके लिए इस कार्यक्रम को दोबारा प्रसारित किया जाएगा। स्वयं प्रभा योजना कक्षा दस के स्तर से लेकर आईआईटी तक के प्रारंभिक पाठ्यक्रमों को कवर करेगी। तत्कालीन राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा था कि, यह पहल ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता के बँटवारे की खाई को भरने में मदद करेगी।
 
हाईस्कूल स्तर के छात्रों के लिए आईआईटी पाल नाम से चैनलों को लाया जा रहा है। ये चैनल 19 से लेकर 22 तक होंगे। इनका प्रबंधन आईआईटी, दिल्ली करेगा और इसके कोऑर्डिनेटर प्रो. रवि सोनी होंगे। 23 से 26 और 32 वें चैनल इग्नू के प्रबंधन में होंगे और उनका कोऑर्डिनेटर प्रो. उमा कुंजाल को बनाया गया है। वहीं 27 और 28 नंबर के चनलों को एनआईओएस देखेगी और इसके चेयरमैन प्रो सीबी शर्मा ही कोऑर्डिनेटर भी होंगे। 29 और 30 नंबर वाले चैनलों के प्रबंधन को क्यूईईई देखेगी और आईआईटी मद्रास के प्रो. अशोक झुनझनवाला इसके इसके कोऑर्डीनेटर होंगे।
 
राष्ट्रीय शैक्षणिक डिपॉजिटरी योजना अभी शुरू की गई है। यह एक डिजिटल बैंक है, जिसका उपयोग शैक्षणिक संस्थानों द्वारा शैक्षिक डिग्री, प्रमाणपत्र और देश भर के उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा प्रदान किए जाने वाले डिप्लोमा को सुरक्षित करने के लिए किया जा सकता है। इसमें इन प्रमाण पत्रों को खोने का डर भी नहीं होगा। इस डिपॉजिटरी के उपयोग से छात्रों और प्रमाण पत्र धारकों के साथ शैक्षणिक संस्थानों तथा भावी नियोक्ताओं के द्वारा किये जाने वाले प्रमाण पत्रों के सत्यापन और प्रमाणीकरण में तेजी और आसानी आयेगी। इसके साथ ही फर्जी डिग्रियों और प्रमाण पत्रों के सत्यापन की समस्या से निजात मिल जायेगी।
 
यह विचार इस साल के शुरू में वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली के बजट भाषण में शुरू हुआ था। राष्ट्रीय शैक्षणिक डिपॉजिटरी से एचआरडी मंत्रालय (मानव विकास मंत्रालय) की फर्जी डिग्री और विश्वविद्यालयों के बारे में बढ़ती चिंताओं को हल करने की उम्मीद है, इस प्रकार कर्मचारियों, शैक्षिक संस्थानों और छात्रों को सहायता मिलेगी।
 
नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी (एनडीएल) एक ऑनलाइन लाइब्रेरी है। यह देश में किसी को भी 70 लाख से ज्यादा किताबों तक पहुँचने में मदद करेगी। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी में किताबें स्कैन करके अपलोड की गई हैं। यह भारत की सबसे बड़ी ऑनलाइन लाइब्रेरी है इसमें काफी उपयोगी और मनोंरजक किताबें पढ़ी जा सकें।
 
स्वयं प्रभा पाठ्यक्रम आधारित शिक्षा चैनल के विषय इस प्रकार है :- कला, विज्ञान, व्यापार, कला प्रदर्शन, सामाजिक विज्ञान, मानविकी विषय, अभियांत्रिकी, प्रौद्योगिकी, कानून, दवा और कृषि 
 
स्वयं प्रभा योजना की विशेषताएं: (Features Swayam Prabha scheme)
1. कला, विज्ञान, वाणिज्य, कला प्रदर्शन, सामाजिक विज्ञान और मानविकी के विषयों तथा इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, कानून, चिकित्सा, कृषि आदि के रूप में पाठ्यक्रम आधारित पाठ्यक्रम दिखाए जाएंगे।
2. प्रारंभ में कार्यक्रम अंग्रेजी भाषा में दिखाए जा रहे हैं । लेकिन कुछ समय के बाद सरकार क्षेत्रीय भाषाओं में कार्यक्रमों का शुभारंभ किया जाएगे।
 
छात्रों को स्वयं प्रभा योजना से मदद
1. तस्वीरें, वीडियो और विषय विशेषज्ञों के द्वारा इंटरैक्टिव अध्ययन दिया जायेगा।
2. सामग्री देखने के बाद, छात्रों को एक टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से अपने संदेह स्पष्ट कर सकते हैं।
3. मंत्रालय ने विषय विशेषज्ञों की नियुक्ति की है। इन विशेषज्ञों के द्वारा अध्ययन सामग्री का चयन किया जायेगा। विषय विशेषज्ञों की मदत से छात्र अपने सवाल का जवाब ले पाएंगे।
 
स्वयं प्रभा को जीएसएटी-15 उपग्रह का उपयोग करके 24 घंटे और सातों दिन उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए समर्पित 32 डीटीएच चैनलों के समूह के रूप में माना जाता है। हर दिन, कम से कम 4 घंटो के लिए नई सामग्री होगी जो दिन में 5 बार दोहराई जाएगी, जिससे छात्रों को उनकी सुविधा का समय चुनने की अनुमति मिल जाएगी। चैनल बिसाग, गांधीनगर से अपलिंक किए गए हैं। सामग्री एनपीटीईएल, आईआईटी, यूजीसी, सीईसी, इग्नू, एनसीईआरटी और एनआईओएस द्वारा प्रदान की जाती है। INFLIBNET केंद्र वेब पोर्टल को बनाए रखता है। इन सभी चैनलों के कार्येक्रमों को अपने माेबाइल पर भी युटयूब के माध्यम से देखा जा सकता हैंं। स्वयंप्रभा युट्युुब लिंक Swayam Prabha: https://youtu.be/JwDrYw2xsQM
 
डीटीएच चैनल में पाठयक्रमों का समावेश किया जाएगा :
क) उच्च शिक्षा: स्नातकोत्तर और अंडर ग्रेजुएट स्तर पर पाठ्यक्रम, कला, विज्ञान, वाणिज्य, नाट्य कला, सामाजिक विज्ञान और मानविकी, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, कानून (विधि), औषधी, कृषि इत्यादि जैसे विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम। सभी पाठ्यक्रम स्वयम के माध्यम से अपनी विस्तृत प्रस्तुति में प्रमाणीपत्र पाठ्यक्रम होंगे, ईसे एमओयूसी पाठ्यक्रमों की प्रस्तुति के लिए विकसित किया जा रहा है।
 
1) स्कूल शिक्षा (कक्षा 9-12 स्तर): भारत के बच्चों के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण के साथ-साथ शिक्षण और सीखने के लिए मॉड्यूल के लिए मॉड्यूल को बेहतर तरीके से समझने में मदद करते हैं और पेशेवर डिग्री कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए स्पर्धा परीक्षाओं की तैयारी में उनकी सहायता करते हैं।
 
2) पाठ्यक्रम-आधारित पाठ्यक्रम जो भारत और विदेशों में भारतीय नागरिकों के जीवनभर के शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं।
 
3) 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए स्पर्धा परीक्षाओं की तैयारी के लिए इससे सहायता मिलेगी।
 
इससे भारत के उन दूर-दराज के गांवों तक आज एक कोई शिक्षक नहीं पहुँच सकता वहा भी स्वयंप्रभा पहुँचकर ज्ञान के प्रकाश से भारत को आलोकित करेगी।
 
– प्रबंधक (राजभाषा), भारतीय स्टेट बैंक, नाशिक  मोबाईल: 9483081656



रानू चौधरी की नई कविता, यक्ष प्रश्न

यक्ष प्रश्न

किसानों की मुस्कराहट से

लहराते हैं खेत

खेतों के लहराने से

मुस्कराता है पूरा देश |

मुस्कान किसानों की

क्यों जाती दिख रही हैं

खेतों की हरियाली

क्यों गुम सी दिख रही हैं|

क्यों नहीं मिलता उन्हें

परिश्रम का फल

क्यों देनी पडती है

उन्हें अपनी जान

क्यों नहीं किया जाता

समस्याओं का समाधान।

तो कैसे रखें आशा

कि मुस्कराएगा हमारा

आने वाला हिन्दुस्तान |

                   – रानू चौधरी




हिंदी की वास्तविक व वर्तमान स्थिति

करोनाकाल ने हम सभी को सोचने के अनेक अवसर दिए हैं । मैंने भी कुछ समय से एक विषय पर काफ़ी विचार किया । वह था हिंदी की वास्तविक व वर्तमान स्थिति l जो मैंने अनुभव किया शायद आप में से अधिकांश लोग उससे सहमत होंगे ।आजकल हिंदी लिखने वालों की कमी नहीं है परंतु क्या उस सामग्री को पढ़ने के लिए हमारी आने वाली पीढ़ी तैयार है ? क्या उनको हिंदी साहित्य में रुचि है ? क्या वे उसे स्वेच्छा से पढ़ना चाहते हैं ?हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ तो हैं परंतु पाठक कितने हैं ? अपनी कविता प्रकाशित करवा लेना या एक -दो पुस्तक लिख लेने से हमारी पीढ़ी को कुछ लाभ होगा ? हिंदी मंच बहुत हैं लेकिन इन मंचों से युवा पीढ़ी कितनी जुड़ी हुई है ? उत्तम रचनाएँ हैं परंतु क्या अंग्रेज़ी जैसी प्रसिद्धता उन रचनाओं को  मिल पाती है ? शायद ना । कहतेहैं व प्रत्येक वस्तु या रीति समाप्त हो जाती है जिसे भावी पीढ़ी नहीं अपनाती और यही मुझे हिंदी का भविष्य दिखाई दे रहा है l इनके कारणों को समझेंगे तो सबसे बड़ा कारण भाषा को क्लिष्ट करना लगता है । क्या हम सरल , सहज भाषा में अपनी यह भाषा अपनी पीढ़ी को नहीं बता सकते ? आवश्यक तो नहीं हमारी भावी पीढ़ी साहित्यकारों की भाषा में ही लिखे या पढ़े , आप उनके अनुसार अपनी भाषा में परिवर्तन कीजिये अन्यथा इतने विशाल साहित्य भंडार को पढ.ने वाला कोई रहेगा ही नहीं l आप विद्यार्थियों से बात करके देखिए , अधिकांश बच्चे १० वीं की परीक्षा के बाद हिंदी नहीं चाहते । ऐसा नहीं है कि वे कहानियाँ , उपन्यास नहीं पढ़ते पर हिंदी भाषा में नहीं पढ़ना चाहते । कारण का पता लगाना कोई नहीं चाहता l साहित्यकार , कवि और लेखक लिखते हैं परंतु पाठक नहीं हैं और करोड़ों की भाषा के बारे में यह कटु सत्य है कि हिंदी की पुस्तकों के पाठक अब नाममात्र हैं l इस तथ्य को नकारना यानि हिंदी का विलुप्त हो जाना एक ही बात है । तो प्रयास करें कि अपने घर , मोहल्ले और नगर से ही सबसे हिंदी बोलने का और उसके बाद उसे पढ़ने ,पढ़ाने का अभियान आरम्भ हो ।बच्चे प्रारंभ से ही अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ रहे हैं चलिए वह भी स्वीकार है लेकिन निज भाषा में संवाद तो बंद ना हो ,भाषा उनके लिए अपरिचित न बन जाए इसके लिए हमारी पीढ़ी ने भी अगर विचार नहीं किया तो शायद आगे विचार करने वाले बचेंगे भी नहीं l यह भय निराधार नहीं है l बेहतर है इसपर आज से ही काम  हो औरनिरंतर हो l


शालिनी वर्मा
दोहा कतर




सपना की नई कविता ‘ मैं हूं भी बेरोजगार’

कितना मुश्किल करना है स्वीकार

कि, हूँ मैं भी बेरोजगार।

सत्य झुठलाया भी नहीं जा सकता

 न ही इससे मुँह मोड़ सकती मैं

परम् सत्य तो यही है

 लाखों लोगों की तरह

 मैं भी हूँ बेरोजगार।

कभी-कभी मन होता भारी

  डिग्री पाकर, क्या हासिल किया मैंने                                                                    

अच्छा होता, कम होती  पढ़ी-लिखी

मन को तसल्ली तो दे पाती

तब इतना दर्द भी नहीं होता शायद

अपनी इस बीमारी का

दर्द भरी बेरोजगारी का।

पड़ोसी भी अब उड़ाने लगे मज़ाक

क्या सारी उम्र करनी है पढ़ाई ?

नौकरी का इरादा है भी या नहीं?

जवाब नहीं कोई उनके सवाल का 
                                                                                                           
  पर सच तो यही है, हूँ मैं बेरोजगार।

पापा ने भी वैकेंसी के बारे में

बात करना छोड़ दिया 

माँ का भी उठने लगा भरोसा

सभी साथी आगे निकल गए।

जीवन के इस संघर्ष में

सपने अभी नहीं हुए साकार

इज़लिये  तो आज भी हूँ, बेरोजगार ।

सोचती हूँ किसे कोसू अब मैं

अपनी किस्मत को  या उस सरकार को

  जिसके शासन में,                                                                                 

 भर्ती निकले तो इम्तहान नहीं होते

परीक्षा हो तो, परिणाम नहीं होते

 परिणाम निकल भी गया गर

बिना पॉवर इंटरव्यू से होते बाहर।

कहने को तो युवा है देश का आधार

फिर क्यों युवाओं का मान नहीं।

सरकारें आती हैं जाती हैं

रोजगार के लंबे-लंबे होते दावे

फिर भी बढ़ती जाती बेरोजगारी 

मिलती हर बार बस निराशा।

बहुत सहन कर लिया

अब और नहीं।

समय आ गया है

जवाब माँगने का

युवा शक्ति क्या है, बतलाने का 

न रुकना, न झुकना, न हार मानना,

कदम से कदम मिलाकर चलना है

हकों को पाकर ही अब दम लेना है

हकों को पाकर ही अब दम लेना है…।

– सपना, शोधार्थी, हिंदी-विभाग ,पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़-160014 

ई-मेल : [email protected]




तपते लोहे पर वक्त की सही चोट है हरियाणा में फिल्म सिटी का बनना….

  सामयिक आलेख: द गोल्डन टाइम

सुशील कुमार ‘नवीन’

हरियाणा सरकार पिंजौर के पास फिल्मसिटी बनाने के लिए अब पूरे मूड में है। घोषणा तो दो साल पूर्व की है पर सरकार की सक्रियता से लगता है कि लोगों का यह सपना अब जल्द पूरा होगा। अनिश्चितता के दौर से गुजर रही मायानगरी मुम्बई का हरियाणा बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। 

फिल्मसिटी बनाने के लिए सबसे जरूरी वहां का माहौल होता है। जिसकी हरियाणा में कोई कमी नहीं है। अट्रैक्टिव टूरिस्ट स्पॉट, झील-सरोवर, पोखर, खेत-खलिहान, बालू रेत के ऊंचे टीले, आकाश के साथ-साथ पाताल को छूती खानक-डाडम की पहाड़ियां, गहरे-घने जंगल, देसी संस्कृति। कहने को यहां वो सब कुछ है जो फिल्मांकन के लिए जरूरी है। 

हरियाणा का गीत-संगीत आज पूरे विश्वपटल पर छाया हुआ है। लोगों को हंसाने में हरियाणवीं कलाकार यू ट्यूब पर सर्वाधिक सब्सक्राइबर्स के साथ धूम मचाए हुए है। गीत-संगीत, कविताई ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां आज हरियाणा की तूती न बोलती हो। गीत-संगीत के आधुनिक ट्रेंड ने म्यूजिक इंडस्ट्री में धमाल मचाया हुआ है। डीजे पर बजने वाले गीतों में सबसे ज्यादा भागीदारी हरियाणवीं गीतों की होती है। दंगल, सुल्तान जैसी फिल्मों की सफलता में हरियाणवी कल्चर ही प्रमुख था। यही नहीं टीवी चैनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों में हरियाणा की स्टोरी, बैकग्राउंड, कलाकार आदि प्रमुखता से इस्तेमाल किये जा रहे हैं। 

दूसरी सबसे बड़ी जरूरत सरकार के सहयोग की होती है।सरकार पहले ही फ़िल्म पालिसी बनाकर फ़िल्म निर्माताओं को विभिन्न रियायतें प्रदान करने का निर्णय ले चुकी है। फ़िल्म साइटस की हरियाणा में कोई कमी नहीं है। कुरुक्षेत्र-पानीपत जैसे ऐतिहासिक युद्ध मैदान हैं तो हिल स्टेशन सी मोरनी हिल है। पिंजौर गार्डन में तो पहले भी कई गाने फिल्माए जा चुके है। अरावली की पहाड़ियां, राजस्थान की सीमा से लगे भिवानी जिले के कई इलाकों की साइट जैसलमेर-बीकानेर से कम नहीं है। करनाल, पानीपत अम्बाला के खेतों में छाई रहने वाली हरियाली पंजाब की हरियाली स्पॉट को भी शर्मिंदा करने का मादा रखती है।

माधोगढ़(महेन्दरगढ़) का किला,हिसार का गुजरी महल राजा-महाराजाओं की कहानी पर बनने वाले धारावाहिकों और फिल्मों के लिए शानदार स्पॉट हैं। धार्मिक माहौल के साथ रोमांचकता फिल्माने के लिए तोशाम की बाबा मुंगीपा पहाड़ी, देवसर और पहाड़ी माता के मंदिर के स्पॉट है। पिंजौर गार्डन, टाउन पार्क हिसार, क्लेसर के जंगल, सुल्तानपुर झील आदि की सुंदरता कैमरे में कैद होने को हर समय आतुर रहती है। यहां की माटी में जन्मे कलाकार मुम्बई में पहले ही झंडा गाड़े हुए हैं। सतीश कौशिक, यशपाल शर्मा, रणदीप हुडा, जगदीप अहलावत आदि से सब भली भांति से परिचित हैं। 

वर्तमान में फ़िल्मनगरी मुम्बई जिस दौर से गुजर रही है। वह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सुशांत सिंह की मौत ने आज पूरी फिल्म इंडस्ट्री को हिलाकर रखा हुआ है। ऐसे दौर में हरियाणा अपनी खुद की फिल्मसिटी बनाने का स्वप्न सिरे चढ़ाता है तो निश्चिन्त रूप से एक सही कदम होगा। तो मुख्यमंत्री जी, लोहा गर्म है, वक्त का हथौड़ा उठाइये और मार दीजिए सीधी चोट। हजारों लोगों को रोजगार के सपने को पूरा करने में यह निर्णय ऐतिहासिक होगा।

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717 26237

[email protected]

 
 
 



नया वादा

*नया वादा*

आख़िर कैसे नए वादों पर ए’तिबार किया जाए
पुरानी साज़िशों को कैसे दरकिनार किया जाए।

क़ातिल क़त्ल की ताक़ में ज़मानों से सोया नहीं
आख़िर सोए हुओं को कैसे होश्यार किया जाए।

सच दिन-ब-दिन और कमज़ोर बनता जा रहा है
चलो साथ मिलकर झूठ का शिकार किया जाए।

देखों कितनी ऊँची हो गई है दीवारें नफरतों की
चलो ज़हन की ताक़त से इनमें दरार किया जाए।

खुद्दारी की स्याही भर लो अपनी कलम में तुम
चलो अपने सब लफ़्ज़ों को हथियार किया जाए।

जवाँ पीढ़ी ही तो इस मुल्क़ को आगे ले जाएँगी
आओ अच्छी तालीम से इन्हें तैयार किया जाए।

जॉनी अहमद ‘क़ैस’

केंद्रीय विद्यालय मिसा कैंट, असम
टी. जी. टी. शारीरिक और स्वास्थ्य शिक्षा

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