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ड्रामेबाजी छोड़ें, मन से स्वीकारें हिंदी – सुशील कुमार ‘नवीन’

         

रात से सोच रहा था कि आज क्या लिखूं। कंगना-रिया प्रकरण ‘ पानी के बुलबुले’ ज्यों अब शून्यता की ओर हैं। चीन विवाद ‘ जो होगा सो देखा जाएगा’ की सीमा रेखा के पार होने को है। कोरोना ‘तेरा मुझसे पहले का नाता है कोई’ की तरह माहौल में ऐसा रम सा गया है, जैसे कोई अपना ही हमें ढूंढता फिर रहा हो। वैक्सीन बनेगी या नहीं यह यक्ष प्रश्न ‘जीना यहां मरना यहां’ का गाना जबरदस्ती गुनगुनवा रहा है। घरों को लौटे मजदूरों ने अब ‘ आ अब लौट चलें’ की राहें फिर से पकड़ ली हैं। राजनीति ‘ न कोई था, न कोई है जिंदगी में तुम्हारे सिवा’ की तरह कुछ भी नया मुद्दा खड़ा करने की विरामावस्था में है। आईपीएल ‘साजन मेरा उस पार है’ जैसे विरह वेदना को और बढ़ा कुछ भी सोचने का मौका ही नहीं दे रहा। रही सही कसर धोनी के सन्यास ने ‘तुम बिन जाऊं कहां’ की तरह छोड़कर रख दी है। 

ध्यान आया सोमवार को देवत्व रूप धारी हमारी मातृभाषा हिंदी का जन्मदिन है। विचार आया कि उन्हीं के जन्मदिवस पर आज लिखा जाए। तो दोस्तों, यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि हिंदी की वर्तमान दशा और दिशा बिगाड़ने में हम सब का कितना योगदान है।कहने को हम हिंदुस्तानी है और हिंदी हमारी मातृभाषा। इस कथन को हम अपने जीवन में कितना धारण किए बहुए हैं, यह आप और हम भलीभांति जानते हैं। सितम्बर में हिंदी पखवाड़ा का आयोजन कर हम अपने हिंदी प्रेम की इतिश्री कर लेते हैं। सभी ‘हिंदी अपनाएं’ हिंदी का प्रयोग करें ‘ की तख्तियां अपने गले में तब तक ही लटकाए रखते हैं, जब तक कोई पत्रकार भाई हमारी फ़ोटो न खींच लें। या फिर सोशल मीडिया पर जब तक एक फोटो न डाल दी जाए। फ़ोटो डालते ही पत्नी से ‘आज तो कोई ऐसा डेलिशियस फ़ूड बनाओ, मूड फ्रेश हो जाए’ सम्बोधन हिंदी प्रेम को उसी समय विलुप्त कर देता है। आफिस में हुए तो बॉस का ‘स्टुपिड’ टाइप सम्बोधन रही सही कसर पूरी कर देता है। 

हमारी सुबह की चाय ‘बेड-टी’ का नाम ले चुकी है। शौचादिनिवृत ‘फ्रेश हो लो’ के सम्बोधन में रम चुके हैं। कलेवा(नाश्ता) ब्रेकफास्ट बन चुका है। दही ‘कर्ड’ तो अंकुरित मूंग-मोठ ‘सपराउड्स’ का रूप धर चुके हैं। पौष्टिक दलिये का स्थान ‘ ओट्स’ ने ले लिया है। सुबह की राम राम ‘ गुड मॉर्निंग’ तो शुभरात्रि ‘गुड नाईट’ में बदल गई है। नमस्कार ‘हेलो हाय’ में तो अच्छा चलते हैं का ‘ बाय’ में रूपांतरण हो चुका है। माता ‘मॉम’ तो पिता ‘पॉप’ में बदल चुके हैं। मामा-फूफी के सम्बंध ‘कजन’ बन चुके हैं। गुरुजी ‘ सर’ गुरुमाता ‘मैडम’ हैं। भाई ‘ब्रदर’ बहन ‘सिस्टर’,दोस्त -सखा ‘फ्रेंड’ हैं। लेख ‘आर्टिकल’ तो कविता ‘पोएम’ निबन्ध ‘ऐसए’ ,पत्र ‘लेटर’ बन चुके है। चालक’ ड्राइवर’ परिचालक ‘ कंडक्टर’, वैद्य” डॉक्टर’ हंसी ‘लाफ्टर’ बन चुकी हैं। कलम ‘पेन’ पत्रिका ‘मैग्जीन’ बन चुकी हैं। क्रेडिट ‘उधार’ तो पेमेंट ‘भुगतान का रूप ले चुकी हैं। कहने की सीधी सी बात है कि ‘हिंदी है वतन हैं.. हिन्दोस्तां हमारा’ गाना गुनगुनाना आसान है पर इसे पूर्ण रूप से जीवन में अपनाना सहज नहीं है तो फिर बन्द करो हिंदी प्रेम का ये ड्रामा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

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रेलवे का निजीकरण एक विमर्श

*रेलवे का निजीकरण एक विमर्श*
कोई भी राष्ट्र मात्र भौगलिक इकाई नहीं है। राष्ट्र एक जीवंत इकाई है, जहां करोड़ों लोग वास करते हैं । जी हां आज हम ट्रेन की निजीकरण के बारे में बात करेंगे। भारत एक ऐसा देश है जहां करोड़ों लोग रहते हैं और देश के विकास के लिए बहुत बड़ी धनराशि की जरूरत होती है। क्योंकि भारत में विभिन्न कारणों से आर्थिक मंदी छाई हुई है और इससे निजात पाने के लिए भारत सरकार ने विनिवेश करने का निर्णय लिया है। चूकिं जीएसटी से भी अनुमान के मुताबिक पैसे नहीं आ रहा है तो इस मामले में सरकार अपनी कुछ कंपनियां और जमीन को पूरी तरह से या फिर उनके कुछ शेयर बेचेगी ताकि अर्थव्यवस्था की मंदी को दूर कर सके और विकास का काम कर सके। इसी को विनिवेश कहते हैं। सरकार सभी से अपील भी कर रही है कि समय पर टैक्स भर दे और सब्सिडी भी छोड़े, क्योंकि इससे सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसीलिए भारत सरकार ने एक नया वित्त मंत्रालय विभाग बनाया है,जिसका नाम है – निवेश एवं संपत्ति प्रबंधन विभाग, ( Department of investment and public asset Management) । इसे संक्षिप्त में ‘दीपम’ भी कहा जाता है । यह विभाग ही यह सब देखता है और परिस्थिति के अनुसार विशेष निर्णय लेता है। बढ़ती विभिन्न समस्या एवं प्रयोजनों के कारण मात्र टैक्स लगाकर भारत में विकास का काम करना नामुमकिन हो गया है। भारत जैसे विशाल देश को चलाने के लिए बड़ी मात्रा में पैसों का सख्त जरूरत है। यह तय करेगा कि सरकार के हाथ 51% में मालिकाना हक रहे या उससे कम। निजीकरण के इस प्रयास के तहत रेलवे 109 रूटों पर अतिरिक्त 151 रेलगाड़ियां शुरू करेगी। रेलवे ने कहा है कि प्रत्येक ट्रेन में कम से कम 16 कोच होंगे। निजी क्षेत्र की कंपनियां इस के वित्तपोषण, संचालन और रख-रखाव के लिए जिम्मेदार होंगे।
भारत में हमेशा से रेल किसी व्यवसाय संगठन नहीं,बल्कि एक सार्वजनिक सेवा की तरह चलती रही है। सब्सिडी के जरिए सस्ती यात्रा की व्यवस्था हमेशा से रेलवे की पहचान रही है। इसका नुकसान यह हुआ कि रेलवे की गुणवत्ता पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत भी नहीं समझी गई। जबकि, इसका बड़ा फायदा यह हुआकि इसने बड़े पैमाने पर श्रमिकों के आवागमन को सहज और सुलभ बनाया। खासकर उन कृषि मजदूरों के मामले में जो हर साल धान की रोपाई और फसल की कटाई के मौसम में बड़ी संख्या में पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों का रुख करते हैं। अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के मामले में रेलवे के इस योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
गौर करने की बात यह है कि 151 अतिरिक्त आधुनिक ट्रेन चलने से रेलवे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि ट्रेनों के आने से रोजगार का सृजन होगा। साथ ही साथ मॉडर्न टेक्नोलॉजी के जरिए रेलवे का इंफ्रस्ट्रक्चर में सुधार आएगा। यह जो प्राइवेट ट्रेन चलेगी इसकी अधिकतम रफ्तार प्रति घंटा 107 किलोमीटर होगी। निजी ट्रेन वहां चलाई जाएगी, जहां इसकी डिमांड ज्यादा है। इसमें सरकार को मुनाफा होगा और देश का विकास नहीं रुकेगा। देश की अर्थव्यवस्था को देखकर ही यह तय किया गया है। परंतु ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि रेलवे ने कुछ कदम भी उठाए हैं, जैसे- निजीकरण में पहले बहुत सारे लोगों की सरकारी नौकरीयां खत्म होंगी। रेलवे ने सभी मंडल रेल प्रबंधक को पत्र जारी कर कहा है कि उन कर्मचारियों की सूची तैयार करें, जो 2020 की पहली तिमाही में 55 साल के हो गए या उनकी सेवा अवधि के 30 साल पूरे हो गए। उन सभी को समय पूर्व सेवानिवृत्त का ऑफर दिया जाएगा। इसकी संख्या पूरे रेलवे में कम से कम तीन लाख है। सुनने में अटपटा लगने से भी प्रतीत होता है कि रेलवे के निजीकरण से युवा पीढ़ी में नौकरी की संभावना खत्म नहीं बल्कि बढ़ेगी। किसी ने सच ही कहा था कि नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहिए। लगता है भारत सरकार इसी फार्मूले को अपना रही है।
रेलवे जैसे बड़े विभाग को चलाने के लिए जितने लोगों की जरूरत है उतनी नौकरी जरूर निकलेगी और देश के नौजवानों को हमेशा की तरह नियुक्ति मिलेगी। उन्हें निराश नहीं होना पड़ेगा।
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अभी देखने की बात यह होगी कि सरकार किसकी बनेगी और भारतवर्ष के लोग इस निर्णय को किस तरह लेंगे और रेलवे की निजीकरण फैसले को कितना सहयोग मिलता है।
मंजूरी डेका
सहायक शिक्षिका
असम
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