लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) के साहित्यकार राष्ट्रकवि -पंडित वंशीधर शुक्ल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) के साहित्यकार
राष्ट्रकवि पंडित वंशीधर शुक्ल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
यह कैसी विडंबना है, कि स्वतंत्रता संग्राम के उठ जाग मुसाफिर भोर भई ,तथा -उठो सोने वालों सबेरा हुआ है! जैसे सशक्त गीतो का जागरण मंत्र देश वासियों के कर्ण गह्वर में फुकने वाले स्वतंत्रता योद्धा पंडित वंशीधर शुक्ल को स्वाधीनता की सुबह के उजाले में हम भूल से गए। अवध प्रांत के लखीमपुर जिले का “मन्योरा“ नामक ग्राम के उस पावन स्थली का स्मरण करते ही मस्तक स्वयमेव नत हो जाता है और साथ ही अंतः करण में उस देवता तुल्य पूजनीय महनीय व्यक्तित्व का ध्यान करते ही अनेक भावों का संचार होता है। महापुरुष का दिव्य शरीर पंडित वंशीधर शुक्ल के नाम से अलंकृत था।
बसंत पंचमी की पावन पवित्र बेला थी ।इस पवित्र बेला मे संवत १९६१ वि० “मन्योरा” ग्राम,ग्राम्य जीवन के सिद्धहस्त चितेरे त्यागमूर्ति , राष्ट्रकवि कीर्ति शेष सम्राट पंडित वंशीधर शुक्ल की उद्भव स्थल होने के गौरव से गौरवान्वित हो उठा। आपके पूज्य पिताजी का नाम पंडित छेदीलाल शुक्ल था । वे ,”छेद्दू-अल्हैत” के नाम से प्रदेश में विख्यात थे। वे स्वयं ही आशु कवि थे। शुक्ला जी के पूर्वज उन्नाव जिले के बीघापुर के निवासी थे ,जो बाद में उन्नाव से लखीमपुर चले आए। लगभग 15 वर्ष की आयु में आप पित्र सुख से वंचित हो गए परिणाम स्वरूप उन्हें विधिवत शिक्षा नहीं मिल पाई। आरंभ में उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी का अध्ययन किया आठवीं जमात तक अध्ययन कर पाए थे कि आर्थिक अभावों ने आ घेरा। संस्कृत की प्रथमा परीक्षा भी आपने इसी बीच उत्तीर्ण की परंतु पढ़ाई आगे ना चल सकी ।शुक्ला जी ने जीविकोपार्जन के लिए अपने कवि मित्र श्री गोविंद प्रसाद मिश्र के साथ मिलकर किताबों की दुकान खोली। शुक्ला जी के काव्य लेखन का शुभारंभ यहीं से होता है। पुस्तक व्यवसाय से संबद्ध होने के कारण उन्होंने इस उम्र में ही काफी अध्ययन कर डाला। प्रारंभ में उन्होंने शृंगारिक रचनाएं लिखी ।धीरे-धीरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और अपनी लेखनी के माध्यम से जन क्रांति को तूफानी बल दिया। शुक्ल जी का क्रांतिकारी गीत -“खूनी पर्चा “नाम से देश में प्रसिद्ध हुआ। इस गीत में अंग्रेजी साम्राज्य को हिला कर रख दिया। रातों-रात यह गीत देश के कोने कोने में प्रसारित किया गया। गीत की कुछ पंक्तियां दृष्टव्य हैं—
“ अमर भूमि के प्रकट हुआ हूं ,
मर-मर अमर कहांऊंगा,
जब तक तुम को मिटा न दूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा ।
तुम हो जालिम दगाबाज , मक्कार सितमगर हत्यारे,
डाकू चोर गिरहकट राहजन जाहिल कौमी हत्यारे।।”
पंडित वंशीधर शुक्ल का बहुमुखी व्यक्तित्व एक ओर यदि पुण्य सलिल जाह्नवी के सदृश्य शीतल और निर्मल है ,तो दूसरी ओर यज्ञ कुंड की पवित्र अग्नि का प्रचंड और प्रखर स्वरूप। उन्होंने अपना सर्वस्व जीवन पर हित में अर्पित कर दिया। सौजन्य और दया के भंडार ही थे ।अपने विरोधी के प्रति भी इतनी और ममता तलाशने पर भी नहीं मिलेगी। स्वर्गीय पंडित वंशीधर मिश्र(जो की कांग्रेस पार्टी के विधायक तथा वन मंत्री भी रहे थे )से इनके मतभेद थे
जो वैमनस्य की सीमा तक पहुंच गए थे । परंतु एक बार उनके अस्वस्थ होने पर जब वे लखनऊ में विधायक निवास में इलाज करवा रहे थे शुक्ला जी उन्हें देखने गए। वहां सेवक ने बताया कि डॉक्टरों ने मिलने से मना किया है। शुक्ला जी ने जेब में हाथ डाला और जितने भी पैसे व रूपये निकले, देते हुए बोले-“दैइ दिएयू सारेक इलाज कराइ लेई। ”
विरोधी पर भी इतनी कृपा !! तभी तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ,भूतपूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ,आचार्य नरेंद्र देव आदि राष्ट्र नेताओं द्वारा सम्मानित एवं त्याग ,तपस्या तथा राष्ट्र सेवा में सेवार्थ समर्पित उनका व्यक्तित्व राष्ट्र के असहाय निरीह तथा शोषित जन-मानस के लिए देव रूप में पूजित रहा। राजनीति जगत में शुक्ल जी गाली देने वाले फक्कड़ व्यक्तियों में गिने जाते थे लेकिन इस इनका सम्मान छोटे से छोटे नेता से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरु तक करते थे। स्वर्गीय पंडित गोविंद बल्लभ पंत जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब, “पंत पुराण” पुस्तिका छपवा कर उनके हाथ में दे आए थे, जिसके ऊपर के पृष्ठ पर यह दोहा लिखा था-
दब्बू ,पिट्ठू ,क्रूर, जड़ ,
नहि मर्ज़ाद ना लाज।
होत पहाड़ी एक संग,
महरा और महाराज।।
दिल्ली के एक कवि सम्मेलन में स्वर्गीय बालकृष्ण शर्मा “नवीन”, सभापति के आसन पर विराजमान थे। शुक्ल जी ने पहले तो उनके खिलाफत में कुछ पंक्तियां सुनाई तत्पश्चात कांग्रेश शासन के विरुद्ध दिल्ली का दरबार रचना सुनाई-
जहां गरजइ पटेल सरकार,
जवाहिर खुल के करें उजियार।
जहां पर पाकिस्तान बटाइ,
बैइठि बिलसइ कांग्रेस सरकार,
बहइ हइ दिल्ली का दरबार ।I”
कुछ लोगों ने कहा इन्हें रोका जाए, परंतु नवीन जी ने कहा- “आप लोग चुप रहे, इनका त्याग किसी से कम नहीं है। ,” यह कैसी विडंबना है कि हमारी सरकार ने ऐसे आदित्य राष्ट्रभक्त कभी का कोई सम्मान नहीं किया ।स्वर्गीय श्री श्याम लाल पार्षद को केवल एक झंडा गीत- “विजई विश्व तिरंगा प्यारा” पर पद्मश्री की उपाधि से विभूषित किया गया, जबकि उस गीत के प्रेरक तथा उसके सदृश्य असंख्य गीतों के रचयिता को उसके जीवन काल में उचित सम्मान भी नहीं मिला। शायद इस तथ्य को कम लोग ही जानते होंगे, कि अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी के यहां पार्षद जी तथा शुक्ला जी दोनों ही आया करते थे ।विद्यार्थी जी ने दोनों लोगों से झंडा गीत लिखने को कहा था पार्षद जी ने झंडा गान लिखा और शुक्ला जी को दिखाया था। शुक्ल जी ने आवश्यक संशोधन किए और तब यह गीत गांधीजी के पास भेजा गया था। स्वर्गीय पार्षद जी बार-बार शुक्ला जी के प्रति आभार को मानते रहे। कीर्ति शेष पंडित वंशीधर शुक्ल जी ने आजीवन मनसा- वाचा -कर्मणा देश की सेवा की। वे स्वतंत्र संग्राम सेनानी भी रहे, कई बार जेल यात्रा की विधानसभा के सदस्य भी रहे परंतु जो सेवा उन्होंने अपनी कविता द्वारा ही देश की तथा इसे देश गरीब किसान जन समूह की,की है वह बेजोड़ है। उन्होंने हिंदी कविता को एक राष्ट्रीय मोड़ दिया। शुक्ल जी ने अपने जीवन में सैकड़ों प्रेरक भी गीत लिखे। उनका एक एक गीत आजादी का तराना बन चुका था। आज उन गीतों का दर्द भला काफी हाउसिया बुद्धिजीवी क्या समझ पाएगा ? भारतीय जनमानस पंडित जी के गीतों से भलीभांति परिचित हैं उन गीतों को गुनगुना कर आज भी आंखें नम हो जाती हैं ,एक समूचा युग चित्र सामने आ जाता है-‛ उठो सोने वालों सबेरा हुआ है ‘,‘चरखवा चालू रहे‘,‛ सर बांधे कफनवा शहीदों की टोली चली’,’ ‛मेरा रंग दे तिरंगा चोला’, ‛उठ जाग मुसाफिर भोर भई‘ जैसे अनेक लोकप्रिय गीत भारतीय जनआत्मा में रच बस गए हैं। वे सच्चे अर्थों में जन कवि थे।जन ही उनका आराध्य था। सुविख्यात उपन्यासकार एवं महान विचारक श्री अमृतलाल नागर जी के शब्दों में “पंडित वंशीधर शुक्ल जी को अवधी-सम्राट कहकर हम उनके व्यक्तित्व को छोटा कर देते हैं। एक सच्चे जन-कवि ,कवि-सम्राट से बहुत ऊंचा होता है।”
शुक्ल जी के सैकड़ों गीतों का रिश्ता किसान के खून पसीने से घुल मिल गया है। असलियत-ओज,सादगी का अद्भुत सम्मिश्रण पंडित जी के रचना संसार की कालजई बनाने में सक्षम है।“ हमारा गांव,” “किसान की अर्ज़ी”, ” किसान की दुनिया’ , ‛झरने की आत्मकथा’, ‛राजा की काठी’ ,‛राम मड़ैया’ जैसी अनगिनत रचनाएं ग्राम्य-जीवन व कवि के द्वारा भोगी हुई जिंदगी की कठिनाइयों का जीवित दस्तावेज बन गई है। ‛ऋतुचक्र’ शुक्ल जी की अप्रतिम कृति है। इसके माध्यम से शुक्ल जी आधुनिक हिंदी कवियों से बहुत आगे निकल गए हैं। ‛किसान की अर्जी’ कविता सुनकर नेहरू जी रो पड़े I यह आपको ही सौभाग्य प्राप्त था, कि आपके द्वारा रचित गीत “उठ जाग मुसाफिर भोर भई”- महात्मा गांधी जी को अत्यंत प्रिय था और उनके आश्रम में गाया जाता था। सुभाष जी के सभापतित्व में एक सभा में “ आ पगले गदर मचायें,“ कविता पढ़ी, तो सुभाष जी ने कहा- गांधीजी सुन लें कि राष्ट्रकवि की क्या पुकार है।,’ आदरणीय नरेंद्र देव के सभापतित्व में ‘पलटिये बार-बार सरकार ‘ कविता जब पढ़ी तो आचार्य ने कहा था- “यह कविता हिंदी में ना होकर यदि अंग्रेजी में होती तो यह कवि इसी एक कविता से अमर हो गया होता।” अखिल भारतीय समाजवादी सम्मेलन का सभापतित्व बाबू जयप्रकाश नारायण कर रहे थे उस सम्मेलन में शुक्ल जी ने कविता पढ़ी थी- ‛अरे ओ हठी विनोबा सुनो भूमिका दान नहीं होता’- तो सभी आश्चर्यचकित थे। जिस समय शुक्ल जी विनोबा जी से मिले तो संत विनोबा का उपालम्भ था-“ शुक्ल जी आप मेरे दर्शन को ही क्यों फेल किए दे रहे हैं?” शुक्ल जी ने कहा ‛जो भी भाव उठा कविता में फूट पड़ा।’अब जैसी आपकी आज्ञा हो! विनोबा जी ने भूदान के पक्ष में एक कविता की मांग की, और वापस आकर, ‛भूदान करो, भूदान करो’ शीर्षक से एक लंबी कविता लिखी। यदि संक्षेप में कहा जाए ,तो वह एक काल पुरुष थे ,कवि के शुद्ध स्वरूप- “कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भू:।” वे सजीव सदेहस्वरूप ,कल्पनालोक के सच्चे बिहारी, जन-जन की अंतर वेदना को आत्मसात कर आकार देने वाले, सच्चे कलाकार थे। यूं तो उनका कृतित्व जन-जन के लिए आदरणीय और समादृत या, परंतु गत दशको उनके कृतित्व को आदर देने की चर्चा कुछ अधिक होती रहीहै। लखनऊ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में उनकी कविताओं को रखा जाना, उत्तर प्रदेश सरकार राज्य हिन्दी संस्थान द्वारा ₹5000 के पुरस्कार पुरस्कृत किया जाना, विश्वविद्यालय में अभिनंदन तथा बसंत पंचमी 2 जनवरी सन 1979 ईस्वी को राजकीय अभिनंदन ग्राम मान्योरा में ही किया जाना, आदि घटनाओं ने भारतीय जनमानस को उनकी रचनाओं और आकृष्ट होने को विवश किया है। इतना कुछ सम्मान प्राप्त होने के उपरांत भी वह कम प्रतीत होता है ,क्योंकि ‛विजई विश्व तिरंगा प्यारा’ जैसे गीत के गायक को पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया जा सकता है तो’ उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ ’सर बांधे कफनवा’ ‛शहीदों की टोली चली’ ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ ‛आ पगले गदर मचावे,’ ‘खूनी पर्चा’ ,‛तन मन करे निसार तोपे भारत मैय्या ’, यदि अमर गीतों के रचनाकार तथा गांधी, सुभाष, नेहरू ,पटेल पंडित मदन मोहन मालवीय, आचार्य नरेंद्र देव ,राम मनोहर लोहिया ,बिनोवा भावे,जय प्रकाश आदि युग उन्नायकों द्वारा प्रसंशित और समपूजित कवि श्री शुक्ल जी का व्यक्तित्व क्या इतने ही सम्मान का अधिकारी है ?
बसंत पंचमी का पावन- पवित्र दिवस भगवती सरस्वती का दिन है। बसंत पंचमी को जन्म लेने वाला व्यक्ति भाव विद्रोही और अपने ही विचारों का दीवाना होता है। निराला, अमर शहीद राजनारायण ,तथा शुक्लजी इसके उदाहरण हैं, उनकी कुछ रचनाओं में उनका आत्मदर्शन मुखर हो उठा है :-
“हम हरी डार के पत्ता हन पतझरन ते घबराई का।
ई चलाचली की दुनिया मां , झंझा ते मुँह लुकुवाई का ।।”
“दाता पहाड़ के झरना हम, बहुत दुनिया माँ बहि आयन।।”,
“जीवन भर बोले इंकलाब,
अब गीत प्रणय के गायें क्या?”
“चिंता मां उपजेन चलेन फिरेन, चिंता भोजन चिंता पानी।
चिंता मा लड़ि-भिडी मरेन-जरेन,निश्चिंत जिंदगी का जानी।।”
“ढांखें ते ”
“पंवार ते”
“कमल ते “
“बिरवा बिरवन ते
ब्वॉले,जगु काहे हमें रोवावे,।”
साहित्य हमारी चेतना की वह तपस्या एवम साधना है, जो हमारे संस्कारों का परिष्करण करती हुई भव्य विचारों एवं आचरणों को नई दिशा प्रदान करती है। विद्वानों द्वारा अन्य विधाओं के साहित्यकारों से अधिक, कवि का स्थान ऊंचा माना गया है। उसके प्रकांड पांडित्य के विषय में प्राचीन मनीषियों ने इस प्रकार अपने विचार व्यक्त किए हैं –
“जानाते यन्न चंद्रारकौ जानन्ते यन्न न योगिन:।
जानीते यन्न भर्गोअपि, तज्जनाति कवि: स्वयं ।।
तथा उन्हीं लोगों ने कवि के विशेष गुणों पर भी प्रकाश डाला है-
शुर्चिदक्ष:शांत:सुजन विनत:सुन्दरतर:।
कलावेदी विद्वानति मृदुपद: काव्य चतुर: ।।
रसज्ञ: दैवज्ञ: सरस हृदय:सत्कुल भव:।
शुभाकारश्कछंदो गुण गण विवेकी स च कवि:।।”
उपर्युक्त कवि के संपूर्ण गुणवत्ता राष्ट्रकवि पंडित वंशीधर शुक्ल की प्रशंसा करते हैं। जीवन के उषा काल से ही रचना धर्मी बनकर अपनी काव्य कृतियों द्वारा कवित्त, सवैया की परंपरा से छायावादी भावुकता पूर्ण शैली तक और भी इससे भी आगे अधुनातम काव्य बोध की लंबी विकास यात्रा में अपने काव्य की विविध भाव भूमियों का संस्पर्श किया है। प्रकृति वर्णन से लेकर ग्रामीण अंचल की उलझी हुई संवेदनाओं को वाणी देने वाले बौद्धिक कलाकार के रूप में आप का युग युग तक वंदन होता रहेगा। शुक्ल जी साहित्य सागर में हास्य रस के अमूल्य रत्न होते हुए भी अवधी भाषा के सम्राट हैं। शुक्ल जी की प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं- “आल्हा सुमिरनी”, “बेटी बेचन”, “युगल चंडालिका”, “मेला घुमनी”, “कुकडूँ -कूँ” “अब ग्राम सुधार करौ पुतुआ”, “ अब दुनिया बदल गई” ,“पंत पुराण”,”नेहरू सावधान”, “कमला आख्यान”,”गुप्ता भाषण”, “कांग्रेस की कुकडूँ -कूँ”, “कांग्रेस सरकार स्वाहा”, “नसबंदी बंद करो”, “स्वतंत्रता संग्राम”, “मजदूर”, “दहेज” , “श्री कृष्ण चरित”, “दिल्ली दरबार”, “कश्मीर आल्हा”, “तृप्यन्ताम” आदि।
26 अप्रैल सन 1980 में मां भारती का यह पुत्र पंचतत्व में विलीन हो गया। उसके स्वर्गवास के समय लगभग भारतवर्ष के प्रत्येक पत्र ने अपनी अपनी श्रद्धांजलि समर्पित की। परंतु महान पत्रकार और प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ बनारसीदास चतुर्वेदी के शब्द बड़े मार्मिक है। उन्होंने लिखा था जिस महाकवि ने अर्धशतक असंख्य जनता को प्रेरणा प्रदान की जो स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रसिद्ध सेनानी भी था तथा जिस का संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा में ही बीता, क्या उसकी स्मृति रक्षा के लिए हिंदी संसार कुछ भी नहीं करेगा ?” आदरणीय चतुर्वेदी जी की अभिलाषा स्वरूप लखीमपुर जनपद में “राष्ट्रकवि पंडित वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्य प्रकाशन समिति लखीमपुर खीरी” का गठन किया गया और उनके साहित्य के प्रकाशन तथा उनकी स्मृति को अमर बनाने के लिए एक स्मारक भवन के निर्माण का संकल्प भी समिति ने लिया है I अधिक कहने की आवश्यकता नहीं शुक्ल जी का व्यक्तित्व कृतित्व अर्ध शताब्दी तक हिंदी संसार पर छाया सा रहाI संपूर्ण भारत में कोई भी कवि सम्मेलन बिना उनके सफल नहीं होता था।
कवि के संपूर्ण गुण स्वत्: राष्ट्रकवि पंडित वंशीधर शुक्ल की प्रशंसा करते हैं। जीवन के उषाकाल से ही रचना धर्मी बनकर अपनी काव्य कृतियों द्वारा कवित्त, सवैया, की परंपरा से छायावादी भावुकता पूर्णशैली तक और भी इससे भी आगे अधुनातन का विरोध की लंबी विकास यात्रा में अपने काव्य की विविध भाव भू-मियों का संस्पर्श किया है। प्रकृति वर्णन से लेकर ग्रामीण अंचल की उलझी हुई संवेदना ओं को गाड़ी देने वाले बौद्धिक कलाकार के रूप में आप का युग युग तक वंदन होता रहेगा। शुक्ला जी साहित्य सागर में हास्य रस के अमूल्य रत्न होते हुए भी अवधी भाषा के सम्राट हैं। शुक्ला जी की प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं -‘आल्हा सुमिरनी’, ‛कृषक विलाप’, ‛बेटी बेचन’, ‘युगल चंडालिका’, ‘ मेला घूमनी’, ‛कुकड़ू- कूँ ‘ ‛राष्ट्रीय- गान,’ ‛ ग्राम सुधार करो पुतुआ’, ‛अब दुनिया बदल गई’,‛ पंत पुराण’, ‛नेहरू- सावधान’, ‛कमला आख्यान’, ‛गुप्ता -भाषण ’,‛कांग्रेस की कुकड़ू कूँ’, ‛कांग्रेस सरकार स्वाहा’, ‛नसबंदी बंद करो ’,‛स्वतंत्रता संग्राम’, ‛मजदूर’, ‛दहेज ’, ‛श्री कृष्ण चरित’, ‛दिल्ली दरबार ‘,‛कश्मीर आल्हा’, ‛तर्पयन्ताम’ आदि।
26 अप्रैल सन 1980 में मां भारती का यह पुत्र पंचतत्व में विलीन हो गया। उसके स्वर्गवास के समय लगभग भारतवर्ष के प्रत्येक पत्र ने अपनी अपनी श्रद्धांजलि समर्पित की। परंतु महान पत्रकार और प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ बनारसीदास चतुर्वेदी के शब्द बड़े मार्मिक है। उन्होंने लिखा था“ जिस महाकवि ने अर्धशताब्दी तक असंख्य जनता को प्रेरणा प्रदान की ,जो स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रसिद्ध सेनानी भी था तथा जिस का संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा सेवा में ही बीता, क्या उसकी स्मृति रक्षा के लिए हिंदी संसार कुछ भी नहीं करेगा ?” आदरणीय चतुर्वेदी जी की अभिलाषा स्वरूप लखीमपुर जनपद “राष्ट्रकवि पंडित वंशीधर शुक्ल राष्ट्रकवि स्मारक एवं साहित्य प्रकाशन समिति लखीमपुर खीरी ”का गठन किया गया और उनके साहित्य के प्रकाशन तथा उनकी स्मृति को अमर बनाने के लिए एक स्मारक भवन के निर्माण के का संकल्प भी समिति ने लिया है। अधिक कहने की आवश्यकता नहीं शुक्ल जी का व्यक्तित्व कृतित्व अर्धशताब्दी हिंदी तथा हिंदी संसार पर छाया सा रहा। संपूर्ण भारत में कोई भी कवि सम्मेलन बिना उनके सफल नहीं होता था।
-डॉ. प्रीति त्रिवेदी
विभागप्रभारी,हिंदी विभाग
पी.एन.जी. राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,रामनगर
उत्तराखंड