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महिला दिवस पर आयोजित काव्य हेतु

  कविता 

 मै  आज भी  आजाद नही हूँ किन्तु ,

वक्त की आँखों में आँखे डाल कर,

 आज भी मुझे आँकते हैं लोग |

मैं देवी हूँ या परिणीता यह भाँपते हैं लोग ||

दरवाजे से आज भी लौट जाती है बारात मेरी |

बेरहम वक्त की बदकिस्मती की तस्वीर मानते हैं लोग ||

टूकड़े -टूकड़े कर मेरे शरीर की नुमाईश के वक्त |

मेरे ही  मजार पर बैठ जिंदा मुझे मानते हैं लोग ||

बरसों बीते  आज तक मेरी  सूरतेहाल नही बदले |

जहरीली मुस्कुराहट के आगोश में ले मुझे 

मेरी अर्चना को अक्सर विश्वासघात मानते हैं लोग || 

डॉ कविता यादव 

बड़ौदा गुजरात