अंतराष्ट्रीय महिला दिवस रचना भाग तीन
नारी आज खोजती
खुद को राष्ट्र समाज के
हर पल प्रहर में
करती सवाल
कौन हूँ मैं ?
क्या अस्तित्व है मेरा
क्यों हूँ मैं बेहाल
सभ्य समाज की
सभ्यता से गली
चौराहों हाट बाज़ारों
पर सवाल?
मैँ माँ भी हूँ
बहन बेटी रिश्तो के
समाज मे फिर क्यो
डरी सहमी?
सम्मान अस्मत को
करती चीत्कार पुकार।।
कहती है नारी जन्म
से पूर्व कोख में मेरा
क्यो करते हो नाश।।
गर जन्म ले लिया हमने
जीवन भर अस्मत अस्तित्व
की खातिर लड़तीं संग्राम।।
शिक्षा दीक्षा अधिकार
की खातिर लड़ते रहना ही
मेरा संसार।।
घर सड़क गली बाज़ार
चौराहों पर डरी सहमी
भागती दौड़ती मांगती
अपना सामान अधिकार।।
कभी स्वयं की अस्मत
बचाने में मीट जाती
कभी दहेज की बलि
बेदी पर जिंदा ही जल
जाती या जला दी जाती
दहसत दासता नियत का
जीवन भार।।
मानव मानवता के विकसित
समाज मे भी बेबस हूं मैं
नारी परम् शक्ति सत्ता की
स्वीकार।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश