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क्या नाम दूँ तुम्हे?

 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कवि सम्मेलन काव्य प्रतियोगिता केलिए

क्या नाम दूँ तुम्हें ?

 

जीना है कब तक देवता का रूप धरकर ?

कितनों ने की है दुनिया में तेरी कदर ?

हे नारी, अबला कहूँ तुझे या नित सबला ?

फिर यूँ ही कहूँ आखिर हो तुम एक महिला ?

 

मायके की सारी यादें समेट लिए,

पग-पग पति-परमेश्वर का साथ दिए,

मेदिनी सी सहकर असीमित प्रसव-पीड़ा,

उठाई जीवन पथ में हर पल सारी बीड़ा।

 

देखते हर पल संतान की सारी लीला,

बढ़ायी सदा अपनी ही वंश की बेला।

मकान को तुमने ही बनाया एक घर,

ममता प्यार की रहीं सदा मीठी सुर।

 

हो बेकार या फिर ला दो आमदनी,

अपने घर की हो तुम नित स्वामिनी।

विज्ञानी हो या रहो अनपढ़ अज्ञानी,

सहती यूँ ही दुःख –दर्द, जैसी अवनि।

 

हर काज में जन्म भर का है सरोकार।

ख्याति मिली बस, कभी ना रहा पारावार।

देश संरक्षण या हो परिवार का रक्षण,

हैं तेरे अहसास जन-जन में अनुक्षण।

 

छोड़ा नहीं हो, तुम ने अब ऐसा कोई कार्य क्षेत्र,

जहां कोई तुझे कहें, करने में हो तुम अपात्र।

फिर भी बंधा है नहीं, जीवन में तेरा सही सूत्र,

दरिंदों के लिए, हो तुम आखिर एक महिला मात्र।