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‘देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता ‘ हेतु प्रेम कविता-शीर्षक: प्रेम कुटीर

प्रेम कुटीर
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हम कम बोलते हैं आपसे
नज़र मिलाते हैं ज्यादा
ज्यादा कोशिश तो करते हैं पर टिक
नहीं पा रहे हैं दिल कमज़ोर है ज्यादा

सोचा रोमियो जैसे पीछे पड़ूं !
मजुनू जैसे दिल कोलकर प्यार करूं!
दिल में तिल टूटने लगे हैं डर रहा हूं
कहीं उनके जैसे इतिहास न बनूं

याद आयी राधा-कृष्ण की जोड़ी, पवित्र
प्रेम-बन्धन से बदल गई समय की घड़ी
स्नेह के नाम पर प्रेम करूं ! या प्रेम के                  नाम पर स्नेह करूं ! बस सोचता ही रहा

दिन बीत गयें साल-साल निकल गयें
खेले आंख-मिचौली कहीं वसंतें
कभी बन्द न होने लगी दिल की खिड़की
बस चलती थी हमारी प्रेम की गाड़ी

आयी प्रेमिका बनकर  प्रेम देवी  सामने
दिन महीने साल निकलें, भगवान जाने
निकले थे अलग-अलग दिशाओं में
बन्दी थे मोह-जीवन से, आज हम स्वतंत्र हैं

आज हम बोलते हैं ज्यादा आपस में
नज़र मिलाते हैं विश्वास से भी ज्यादा
दिल में लड्डू फूटने लगे हैं, डर किसका
प्रेम का वसंत आया पवित्र प्रेम में नहाया

हम न बन पाये लैला मजुनू या न बने
रोमियो जूलियट या सलीम आनरकली
बस पवित्र प्रेम कुटीर में एक हुएं, स्नेह से
प्रेम से इस वृद्धाश्रम में हम स्वतंत्र हुएं ।