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छेडना था : बस यूँ ही

तुमने  ये गजरे कयूॅ नहीं लगाये,

चंदन सा बदन क्यो नहीं महका,

ये जुलफें वैसे कयूॅ नहीँ बलखाई,

तेरा चितचोर इसलिए नहीं बहका,

ऐ!इत्ती सी बात पर तुम रूठी मुझसे,

छेडना था मुझे बस यूँ ही कह दिया।1।

        तेरी हर अदा पे तो गुलिस्ताॅ कुरबाॅ है,

        हर डाल पर सारे बुलबुल मेहरबाँन है,

         गेसुएॅ लहराती तो ये कहर बरपाती, 

        हम कयूॅ झाँकते फिर अपनी गिरेबाॅ है,

         ऐ! इत्ती सी बात पर तुम रूठी मुझसे,

        छेडना था मुझे  बस यूँ ही  कह दिया ।2।

बरखा की बूंदो से,सिहरता है ये मन,

हरे भरे सावन में, दमकता तेरा दामन,

पानी की फुहार, जब छेडते तेरा बदन,

हवा के बहाव में बहके तब मेरा कदम,

ऐ! इत्ती सी बात पर तुम रूठी मुझसे,

छेडना था मुझे, बस यूँ ही  कह दिया ।3।