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तव चरणार्पित

अंतरराष्ट्रीय देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता

तव चरणार्पित

बाईस अनमोल भाषा रत्नों से जड़ी अनोखा हार,

अर्पित है हे माँ तव चरणों में उपहार।

बीच में चमक रही है राजभाषा हिन्दी।

जैसे तेरी ललाट पर विराजमान लाल बिंदी।

ये कन्नड़- ये बंगाली, वही भाव, है वही शैली,

अपनी भाषा हेतु क्यों कर रहे है सब अपना मन मैली ?

आपस में लड़ कर हे माँ हम क्या पाएंगे ?

एकता की कली को खिलने से पहले ही मुरझा देंगे !

सब है तेरे ही क्यारी की प्यारी फूल।

फिर भी घटती है भाषांधता से कई भूल।

कहीं भी रहें, हम सब तो है भाई- भाई,

आपस में लड़कर क्यों बन गए है कसाई ?

भाषा से भाईचारे का संदेश मिले अगर हमें यहाँ,

हम से अधिक भाग्यवान होगा कौन और कहाँ ?

लड़ना है नहीं आपस में भाषा के नाम पर।

      एक ह्रदय होना है हम सब को राजभाषा हिन्दी अपना कर।

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