अफलातून लगा है
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ग़ज़ल
वह तो अफलातून लगा है।
पशुता गर नाखून लगा है।।
भ्रष्टाचार बढ़ाने वाले,
उनके मुँह में खून लगा है।
जाड़े के दिन पाँव पसारे,
यानि सलाई-ऊन लगा है।
सोच-विचार अगर होता है,
तो मुझको मजमून लगा है।
बात अगर पानी की है तब,
मोती-मानुष-चून लगा है।
झूठा सच्चा एक बराबर,
तब अंधा कानून लगा है।
लू-लपटों का राज हुआ है,
क्योंकि महीना जून लगा है।
अविनाश ब्यौहार
जबलपुर मप्र