यूँ मायूस मत बैठो
यूँ मायूस मत बैठो ।
यूँमायूस मत बैठो, हँसों मुस्कुराओं दोस्तों ।
ख़्वाब से निकलो हक़ीक़त में आओ दोस्तों ।।
एक उम्र गुज़ार दी ज़माने वालों के काम देखते-देखते;
अब बारी तुम्हारी है-कुछ कारगुज़ारी करके दिखाओ दोस्तों ।
फूलों की मासूम-महक़ती वादियों में बहुत रह लिए;
अब काँटों में रहने का हुनर भी सीखों और सिखाओ दोस्तों ।
चाँद-सितारों को घर तक लाना जब ना हो मुमकिन;
तो जुगनुओं से ही अपने सहन को सजाओ दोस्तों ।
दौलत और शोहरत के ढेर लगा कर क्या करोगे;
बस,सदाकत-हक़गोई पर फ़ना हो जाओ दोस्तों ।
दुनियाँ वाले तो चाहेंगे ही-आपको हर बार गिराने की;
पर ख़ुद को ख़ुद की नज़र से कभी मत गिराओ दोस्तों ।
मंदिर मस्जिद में जाकर क्यों वक़्त ज़ाया करते हो;
जब क़ाबलियत है तुममें , पहले ख़ुद को ख़ुदा बनाओ दोस्तों ।
खैर इस ‘दीप के साये तले भी अंधेरे ही पनपते हैं;
बेहतर होगा ख़ुद को चाँद-सूरज की तरह चमकाओ दोस्तों ।
यूँ मायूस मत बैठो, हँसों मुस्कुराओं दोस्तों ।
ख़्वाब से निकलो हक़ीक़त में आओ दोस्तों ।।
रचनाकार – संदीप कटारिया (करनाल,हरियाणा)