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प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता

      एहसास .. 

थी उम्मीद कि तुमसे मिलके, जिंदगी-जिंदगी होगी  |

फक्त ना उम्मीदी  ने ना  छोड़ा पीछा   मेरा बरसों   तक ||

मेरे शायराना अंदाज टूट कर बिखर-बिखर के जुडते रहे |

फिर न जुड़ सके तेरे टुकड़े-टुकड़े किए हुए वो खत ||

ये मालूम है कि बदनसीबी, तुमसे और दूर -दूर ले जाएगी|

मगर जिद्द अपनी भी ये है देखे बेबसी रुलाती है कहाँ तक ||

ऐ दोस्तों भूल कर भी मेरा हाल  न पूछ बैठना |

बहुत रोई हूँ उसकी चाहत में ,रात भर,उम्र भर ||  

अब अंधेरा है ज़रा , मेरे छोटी सी जिंदगानी में |

देखे खटखटाती है  रोशनी, तकदीर का  दरवाज़ा  कब तक ||

डॉ कविता यादव