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मै क्या कहूं

मै क्या कहूं की साथ मेरे क्या नहीं हुआ
अच्छा भला किया था पर अच्छा नहीं हुआ !!

कैसे करेगा मुझसे नदामत का तज़किरा
जिसको कभी यक़ीन भी पक्का नहीं हुआ !!

वो भी किसी की ज़ात से मन्सूब हो गया
बिछ्डे़ हुए तो उसको भी हफ़्ता नहीं हुआ !!

ऐसे भी ना तमाम हुई आपकी गज़ल
हर शेर हो गया मगर मक़्ता नहीं हुआ !!

मुर्शिद मुझे हमेशा ही इक ग़म सताएगा
सौ झूठ बोल कर भी मै सच्चा नहीं हुआ !!

इक ग़म-शनास शख्स की तन्हाईयों को देख
फ़िर मै किसी के इश्क़ में अन्धा नहीं हुआ !!