योगिता ‘ज़ीनत’ की दो ग़ज़लें
1
एक एहसान तुम अगर करदो
सारे इल्ज़ाम मेरे सर कर दो।
जानवर आ गए हैं बस्ती में
मेरा जंगल में, कोई घर कर दो।
बीज सी हूँ, जड़ें जमा लूँगी
मुझको मिट्टी में तुम अगर कर दो।
सारी ख़ुशियाँ तुम्हें मुबारक हों
इक नज़र लुत्फ़ की इधर कर दो।
दूर मन्ज़िल है रास्ते दुश्वार
मेरी आसान रहगुज़र कर दो।
फ़ौज वो जुगनुओं की ले आया
जाके सूरज को ये ख़बर कर दो।
गुम न हो जाऊँ मैं अँधेरों में
मेरी रातों को अब सहर कर दो।
लेके सबकी दुआएँ तुम ‘ज़ीनत’
बद्दुआओं को बे असर कर दो।
*
2
अक़्स कह दें कि आइना कह दें
सोचते हैं कि तुमको क्या कह दें।
रहनुमाओं सी बात करते हो
तुम कहो तो तुम्हें ख़ुदा कह दें।
ख़्वाब आँखों में रख लिए तेरे
आ कभी करके हौसला कह दें।
मेरी ख़ामोशियाँ समझते हो
क्या तुम्हें अपना हमनवा कह दें।
दर्द में भी क़रार देते हो
दर्दे – दिल की तुम्हें दवा कह दें।
बातों – बातों में रूठना ‘ ज़ीनत ‘
क्या इसे आपकी अदा कह दें।
– योगिता ‘ज़ीनत’
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