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सौ सौ अफसाने हैं

नवगीत

सबका अपना तौर-तरीका
सबके अपने पैमाने हैं।

हैं कई सभ्यताएँ
और उनमें संघर्ष है।
कैसे होगा फिर
इंसानियत का उत्कर्ष है।।

अगर हमारा पंथ निराला
उसके सौ-सौ अफसाने हैं।

एकीकृत करने का अब
कोई वक्त नहीं है।
औ देशभक्ति में
बहने वाला रक्त नहीं है।।

अगर यहाँ है फिल्मी दुनिया
तो कैसे फिल्मी गाने हैं।

देश नहीं है मानो
मात्र भूमि का टुकड़ा है।
चंदा जैसे सुंदर-सुंदर
उसका मुखड़ा है।।

सबका अपना-अपना भाग्य
मोहर लगे दाने-दाने हैं।

अविनाश ब्यौहार
जबलपुर मप्र