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बेटी तुम संघार करो

 

शीर्षक : – बेटी तुम संघार करो

 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते की 

          प्रथा बदल रही भारत में,

बेबस बेचारी बेटी की 

         व्यथा बदल रही भारत में,

नित्य नित्य व्यभिचारों के

           नये नये ये किस्से हैं,

कुछ रोती बेटी रह जातीं

          कुछ राजनीति के हिस्से हैं,

आरोपों प्रत्यारोपों से 

        न्याय ना तुमको मिल पाये,

चीख चीरती है हृदय पर 

         सिंहासन ना हिल पाये,

नहीं सुरक्षा बेटी तुमको 

         स्वयं शक्ति संचार करो,

लाज बचाने नारी जाति की 

          बेटी तुम संघार करो।

मूक बना प्रशासन है जी

          शासन की जंजीरो से ,

सत्ता न्याय न कर पाती है

          राजनीति जंजीरों से,

सुनो विपक्षी बेपैंदे हैं

        ये वोट देख लुढ़कते हैं,

कायर मर्कट बने हुये हैं

         फायदे हेतु घुड़कते हैं,

बेटी तो बेटी होती है 

          नहीं निकम्मे जान सके,

माँ की पीड़ा पिता की इज्जत

     नहीं निकम्मे मान सके,

खड़ग उठाओ हाथों में

         हर क्षण तुम तलवार धरो,

लाज बचाने नारी जाति की

         बेटी तुम संघार करो।

तुम दुर्गा शेरावाली हो,

         तुम काली खप्परवाली हो,

तुम चण्ड – मुण्ड संघारिन हो,

         तुम रानी झाँसी वाली हो,

तुम भक्ति हो महाशक्ति हो

         तुम ही रणचंडी हो,

रक्त बीज का रक्त पान कर

        तुम ही मातु चामुंडी हो,

बनो सुदर्शन तुम कृष्ण का

        और राम का तीर बनो,

परशुराम का परशु बनकर

        हे बेटी तुम वीर बनो,

भाला भुजबल करो प्रचंड

       दानव पर तुम वार करो,

लाज बचाने नारी जाति की

        बेटी तुम संघार करो।

नेत्र उठाये तुझ पर बेटी

       नेत्र निकालो दानव का,

हाथ छुये बेटी तन को

       हाथ उखाड़ो दानव का,

करो संयमित शक्ति अपनी

       निर्बलता को त्यागो तुम,

बेबस लाचारी बेचारी

       और मोह को त्यागो तुम,

बने जागरुक भारत की बेटी

       और देश उत्थान करे,

आत्मनिर्भर बनकर बेटी

       भारत देश महान करे,

मत डरो झूँठी ललकारों से

       तुम पुनः पुनः प्रतिकार करो,

लाज बचाने नारी जाति की 

       बेटी तुम संघार करो।

 

रचनाकार

मृदुल पाराशर “गैर दिमागी “

गाजीपुर फ़ीरोज़ाबाद

उत्तर प्रदेश

मो .नं.9917562933