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वह औरत मुझे अच्छी नही लगती !

दुनिया के इस भिड में मुश्किल है स्वयंका चेहरा खोजना.

हर एक चेहरा आइने मे आगे पिछे प्रतित होता.

कभी सुअर का तो कभी लोमडी का.

हर एक परेशांन है जहां मे.

शामल वर्ण तेजतर्रार आंखे.

अहंकार और अंधकार.

एक ऐसा कुआं.

कालेपन की छाया.

सूखा हुआ अकेला.

धरती के लिये छोटा परंतु आसुओं से भरा.

अनचाही ख्यायिशे थी मेरी उसे चरित्र हनन करने की.

मैने की है ऊसकी हत्या मन के किसी कोने में.

साजिश की है हमने उसे आत्मघात दिखाने की.

इतनी भी वह अच्छी नही लगती .

की ऊसके खुन का ईल्जाम हमारे मथ्ते चढे.

दुसरा भी हनने पैंतरा अपनाया है.

उसको घर से बेदखल किया है.

बदनामी कि कई दिवारे चढा दी है.रिश्तों के आंगन मे.

क्योंकी वह औरत मुझे अच्छी नही लगती.

साजिशे की है हमने .उसे गिराने की.

निती,परिवार,समाज के हर एक मोडपर.

उस ओरत ने किये है गुनाह.

सजा है उसको करना है बेदखल.

लटका देना है फांसी पर ,क्पोकी वह औरत मुझे अच्छी नही लगती.

एक तुफान गया है करीब से.

आत्मलांछना,आत्मक्लेश,कर्मबंध की परछाईयोंका.

कब आती है मुठ्ठी में ? मेरे मन तुम बोलो.

द्बंद्व के इस भवसागर मे धकेलो.

उस औरत से छुटकारा दिलाओ.क्पोकी वह औरत मुझे अच्छी नही लगती.

जनम के साथ हमारे उतरता परिवार हमारा कायनात से.

संगी,साथी,मित्र ,शत्रु भी.चाहनेवाले और घ्रुना करनेवाले.

परंतु अमर आत्मा भी आती है साथ में.

प्रकाश देती ,सुगंध देती,ज्ञान के मार्ग पर आनंद का सहारा.

प्रेम का द्बिप ह्रुदय मे.नियत द्रुश्यों को बदलने का ईरादा.

सब मेरे है.मै सबकी हुॅ.हक है मुझे.

मन मे बसे हर किरदार बदलने का.

क्योकी वह औरत भी मुझे अच्छी लगती हैं !