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सवा लाख से एक लड़ाऊं तौ गुरु गोविंद सिंह नाम कहाऊँ

आहत होता युग संसय
अन्धकार के अंधेरो में
दम  घुटता।।
न्याय धर्म की सत्ता डगमग होता
ईश्वर का न्याय भरोसा
युग जीवन में आशा का
संचार झोंका आता जाता।।
निर्जीव हो चुके सोते युग समाज
चेतना को झकझोरता।।
असमंजस की बेला में
युग में ईश्वर सत्ता का सारथि
 गुरु गोविन्द सिंह आता।।
भारत की अक्षय अक्षुण
संस्कृति वाणी गुरुओ की
त्याग तपस्या बलिदानी लहू का
प्रवाह पुरुषार्थ युग चेतना जाग्रत
संस्कार गुरु गोविन्द कहलाता।।
धर्म कर्म मर्यादा मर्म का मान
सवा लाख से एक लड़ाऊ तौ
गुरु गोविन्द सिंह नाम कहाऊं
सम्मान स्व की पहचान का
मार्ग संचार गुरु गोविन्द सिंह बताता।।
मानव मानवता सत्कार
मानव मूल्य धर्म कर्म स्वतंत्रता
संकल्प मर्मज्ञ
गोविन्द गुरुओ की परम्परा
परम् प्रकाश ।।
जीवेत जाग्रतं का सत्यार्थ
गुरु गोविन्द गर्व है तमस में
रौशन रौशनी भाव भावना
प्रधान।।
सिंह की गर्जना मानवता
की सृजना भारत की
युग समाज की नैतिकता
स्वर साम्राज्य ।।

नंद लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश