महिला दिवस पर प्रतियोगिता हेतु रचना, “शक्ति स्वरूपा “
“शक्ति_स्वरूपा”
हे -नारी तू ही है नारायणी
और तू ही है शक्ति स्वरूपा
जीती है तू दो -दो रूपों को
लेकर जन्म नारी रूप में
इस पावन वसुधा पर
हे -नारी तू ही है नारायणी ,
दो -दो कुलों की मान है तू
एक कुल का मान बढ़ाती
लेकर जन्म बेटी के रूप में
उस कुल में खुशियाँ बिखेरती
उस वंश बेल में वृद्धि करके
हे -नारी तू ही है नारायणी ,
ममता की मूरत बन प्यार लुटाती
बच्चों पर ,,करती नहीं भेदभाव उनमें
वहीं जरूरत पड़ने पर तू धारण करती
रूप शक्तिस्वरूपा माँ चंडी का –और
करती है संहार उन दुष्ट दरिंदों का
हे -नारी तू ही है नारायणी
और तू ही है शक्तिस्वरूपा …. ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
22-01-2021