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परिधि

  1. परिधि

    चक्कर लगाती रही वह बचपन से ही
    गोल गोल परिधि के भीतर
    पृथ्वी की तरह लगातार

    कभी कभी अनजाने में
    कभी कभी जानबूझकर
    कभी कभी जबरदस्ती

    परिधि बदलती रही
    परिधि के निर्माता बदले
    धुरी बदलती रही
    पर गोल गोल घूमना जारी रहा

    वो चक्कर लगाती रही ताकि
    समाज समाज बना रहे
    सामाजिक परंपराएं बची रहें
    बचे रहें संस्कार
    माता पिता का आदर सत्कार
    बचा रहे धर्म
    उसका तथाकथित
    चरित्र ,शील,
    बचा रहे लोगों का विश्वास

    पर इस चक्कर लगाने
    और बचने बचाने में
    खोया कुछ ने आत्म सम्मान
    आत्मबल , अस्तित्व
    बची रह गई सिर्फ धुरी ,परिधि
    और गोल गोल घूमना

    भारती श्रीवास्तव