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महिलाददिवस काव्य प्रप्रतियोगिता

  1.  

महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु प्रेषित रचनाएँ

 

1.मैं जायदाद क्यूँ

 

फिर देखो

हम नदी के दो किनारे हैं

जब चलना साथ है 

तो इतना आघात क्यूँ

तुम तुम हो तो

मैं मैं क्यूँ नहीं

मैं धरा हूँ तो

तुम गगन क्यूँ नहीं

मैं बनी उल्लास तो

तुम विलास क्यूँ

मैं परछाईं हूँ तुम्हारी

फिर अकेली क्यूँ

तुम एक शख्सियत हो

तो मैं मिल्कियत क्यूँ

तुम एक व्यक्ति हो तो

मैं एक वस्तु क्यूँ 

तुम्हारी गरिमा की वजह हूँ मैं

फिर इतना अहम क्यूँ

तुम मेरी कायनात हो तो

मैं जायदाद क्यूँ

मैं सृष्टि हूँ तो,

तुम वृष्टि बन जाओ

मैं रचना हूँ तो

तुम संरचना बन जाओ

फिर देखो

पतझड भी रिमझिम करेंगे

और बसन्त बौराएगी

संघर्ष की फ्थरीली राह भी

मख़मलों हो जाएगी 

नयी भोर की अगवानी में

संध्या भी गुनगुनाएगी

संध्या भी गुनगुनाएगी 

रचनाकार 

ज्ञानवती सक्सैना

ज्ञान’9414966976

संगठन राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान,जयपुर

पता सुभाष चन्द्र सक्सैना 68/171राजस्थान हाउसिंग बोर्ड, सांगानेर ,जयपुर राजस्थान

[email protected]

 

 

2.मैं स्त्री हूँ

 

मैं स्त्री हूँ

जग जीतने के लिए

अपने सपनों को वारती हूँ

सौ सौ बार हारती हूँ 

कब कहाँ क्या हारना है

अच्छे से जानती हूँ

तब कहीं जाकर

जग जीतती हूँ

दुनिया की जंग जीतती हूँ

मैं स्त्री हूँ 

अपने सपनों का पोषण करती हूँ

अपनों को तृप्त  रखती हूँ

बहुत कुछ सहन करती हूँ

वहन करती हूँ

मैं डरती हूँ

संभल संभल कर पग धरती हूँ

मैं स्त्री हूँ

कब कहाँ कितना नाचना है

कितना नचाना है

अच्छे से जानती हूँ

कठपुतली नहीं,धुरी हूँ

मैं स्त्री हूँ 

चुप्पी की ताकत को

पहचानती हूँ

छोटीछोटी बातों पर

उलझती नहीं 

बड़ी बात पर बख्शती नहीं

गरजती नहीं,बरसती हूँ

दूरदर्शी हूँ

मैं स्त्री हूँ

मैं स्त्री हूँ

 

कई बार मरती हूँ 

तब कहीं जीती हूँ

कई बार मरती हूँ

तब कहीं,अपनों के

दिलों को जीतती हूँ

जिजीविषा की धनी हूँ

मैं स्त्री हूँ

 

कई बार हारती हूँ

तब कहीं हरा पाती हूँ

कमियों को पीती हूँ

तब कहीं जीती हैूँ

सही वक़्त का इंतज़ार करती हूँ

तूफ़ानों से नौका निकालना

अच्छे से जानती हूँ

ममता,नेह का

समंदर हूँ

मैं स्त्री हूँ

 

मैं सही

तुम ग़लत,फिर भी

अपनों को

ग़लत सिद्ध करने की

गलती कभी नहीं करती

अनुकूल समय का

इंतज़ार करती हूँ

झेलती हूँ कई दंश

मानस हँस हूँ

मैं स्री हूँ

 

संस्कार की चॉक हूँ

घड़ती हूँ

अपनों को,सपनों को

संस्कृति को,सभ्यता को

समाज की नींव को

मैं स्त्री हूँ

जग जीतने के लिए

कई बार हारती हूँ

अपने सपनों को वारती हूँ

मैं स्त्री हूँ

मैं स्त्री हूँ

रचनाकार

ज्ञानवती सक्सैना ‘ ज्ञान’

9414966976

संगठन राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान,जयपुर

पता सुभाष चन्द्र सक्सैना 68/171राजस्थान हाउसिंग बोर्ड, सांगानेर ,जयपुर राजस्थान

[email protected]

 

 

3.देदीप्यमान लौ हूँ

 

मैं मैं हूँ,

आंगन की रौनक हूँ

फुलवारी की महक हूँ,किलकारी हूँ,

मैं व्यक्ति हूँ, सृष्टि हूँ

अपनों पर करती नेह वृष्टि हूँ

मैं अन्तर्दृष्टि हूँ,समष्टि हूँ

सूक्ष्मदर्शी हूँ, दूरदर्शी हूँ

ममता की मूरत हूँ  

समाज की सूरत हूँ

मैं मैं केवल देह नहीं  

संस्कृति की रूह हूँ

मैं पावन नेह गगरिया हूँ  

मैं सावन मेह बदरिया हूँ

मैं इंसानियत में पगी  

अपनेपन में रंगी

सपनों से लदी 

अपनों में रमी  

मौज हूँ

धड़कता दिल हूँ

आला दिमाग हूँ

राग हूँ, रंग हूँ 

फाग हूँ ,जंग हूँ 

मंजिल हूँ, मझधार हूँ  

मैं जन्नत हूँ,मन्नत हूँ

मैं मैं हूँ  

मैं ख्वाब हूँ, नायाब हूँ

लाजवाब हूँ  

किसी की कायनात हूँ

मैं संस्कार हॅू

सभ्यता का आयाम हूँ

संस्कृति का स्तंभ हूँ 

उत्थानपतन का पैमाना हूँ

मैं दुर्गा हूँ, सरस्वती हूँ

मैं सीता हूँ, सावित्री हूँ

मैं  धरा हूँ, धुरी  हूँ  

मैं शक्ति हूँ, आसक्ति हूँ

मैं सावन की फुहार हूँ ,

घनघोर घटा हूँ

मैं आस्था हूँ ,विश्वास हूँ

मैं उत्साह हूँ, उल्लास हूं  

मैं साधन नहीं साधना हूँ,

आराधना हूँ

ना भोग हूँ, ना भोग्या हूँ

परिपक्व क्षीर निर्झर हूँ

परिवार का गुमान हूँ

ईश्वर का वरदान हूँ

देदीप्यमान लौ हूँ 

देदीप्यमान लौ हूँ 

मैं मैं हूँ 

मैं मैं हूँ

ज्ञानवती सक्सैना ‘ ज्ञान’

9414966976

संगठन राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान,जयपुर

पता सुभाष चन्द्र सक्सैना 68/171राजस्थान हाउसिंग बोर्ड, सांगानेर ,जयपुर राजस्थान

[email protected]

 

उपर्युक्त तीनों रचनाएँ मेरी मौलिक एवं स्वरचित रचनाएँ हैं

 

ज्ञानवती सक्सैना  ‘ ज्ञान