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प्रेम काव्य अंर्तराष्ट्रीय प्रतियोगिता

तुम—
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।
सुन रहे हो न तुम,
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।
क्योंकि मैं
तुम में ही तो हूँ,
तुम से ही तो हूँ,
तुम में ही तो मैं विलीन हूँ।
क्योंकि,
मैं हूँ ही नहीं, तुम ही तुम हो,
मेरे ख्यालों में, मेरे सवालों में,
मेरी नींदों में , मेरे ख्वाबों में,
मेरी जागृति में, मेरे फैसलों में,
मेरे अस्तित्व में, मेरे रोम- रोम में।
तुम ही तुम हो, मैं कहीं नहीं।
मेरे मानस पटल की हर दीवार और कौने में,
हो सके तो झांक कर देख लो,
क्या मालूम तुम फिर कभी आईना न देखो।
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।
क्योंकि मैं तुम में ही हूँ, तुम से ही हूँ।
क्या तुम्हें कुछ अच्छा नहीं लगता?
लग भी कैसे सकता है,
क्योंकि तुम तो तुम हो।
एक दिन जब तुम, तुम नहीं रहोगे,
तब,
तुम्हें भी कुछ अच्छा लगेगा।
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।