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मन ही मन

मन ही मन..
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मेरे मन के ख्याल….!
मौन साक्षी हैं
कितने ही बार
तेरे मनआगमन पर आने पर
मनाई है मन ही मन दीपावली

कितनी बार ही कोसा है
जब कोई भंग किया है ख्याल
उस पर तुम्हारे साच्क्षात
अनचाही रख़्सतो पर
जतायी है मातम
मन ही मन…!

करते रहे हैं प्रतिक्षा
बुनते हैं रहे हैं सन्नाटे
पल प्रति पल
बरस दर बरस
सोख लेते हैं विषाद
देते हैं आमंत्रण
सुखद स्मृतियों और
करते हैं क्षमायाचना
मन ही मन…!

जो ठेस पहुँचाई हो कभी
इन तमाम संभावनाओं के साक्षी
तुम मेरे मन के प्रीत
मीत मौन ही गुनते अब
इतिहास के साक्षी होने का
तठस्थ होकर
वर्तमान भूत भविष्य को भोगते
मन ही मन…!

-समि…..✍