जीवन और मौत में अंतर
जीवन और मौत का अंतर
मैंने मौत को बहुत पास देखा,
हिल गई मेरे जीवन की रेखा,
वह अद्भुत विलक्षण क्षण ,
सचमुच प्रलयंकारी था,
मुझे आभास करा देता है वह क्षण,
जीवन की लघुता का,
नश्वरता का, अक्षुण्ण क्षणभंगुरता का,
और प्रणय पाथेय से बिछोह होने का।
रूक गयी थी साँसे एक क्षण के लिए,
टूट गए थे सपने भविष्य के लिए,
क्षितिज का धुँधला किनारा ,
बिल्कुल दूर हो चुका था,
जीवन की नाव का किनारा ,
हाथ से निकल चुका था,
कि अचानक सभी प्रश्नों के उत्तर
मिल गए,
जीवन के अवशेष मौत ने उगल दिए,
अब निश्चित था,
आज का बीता हुआ क्षण,
प्रभुता की शरण पर अवलंबित था,
अच्छे कर्मों के बीज का अंकुरण,
प्रस्फुटित था,
आस्था, श्रद्धा, भक्ति का गृहीत कवच,
मानो मेरे नेपथ्य में था।।
स्मरण हो आयी पुनः वह,
स्नेहमयी गोद,
और वट वृक्ष के समान पितृसाया,
स्मरण हो आयी वह पुनीत सिन्दूर की रेखा,
स्मरित हो आयीं वह पल्लवित टहनियाँ,
विस्तृत फल-फूल उस वृक्ष के,
जिसने मरुभूमि में भी,
अतल गहराई का
रस सिंचित कराया था।
सभी कुछ अब अनुकूल था,
प्रतिकूल थी तो केवल स्मृतियों की,
काली छाया,
जिसने पुनः एक बार झकझोर दिया,
अंतस्तल को,
एहसास करा दिया जीवन और मौत के,
असहनीय अंतर को।।
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