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जय भारत, जय भारती

कविता
*जय भारत , जय भारती*

खाते हैं जिस देश का
गाते है उसी देश का
क्योंकि यह धरती हमारी माता है
जय भारत , जय भारती
सिवा मुझे नहीं कुछ आता है

कल-कल बहती नदियों की
हरे पौधे , पुष्पों की कलियों की
खेत में लहलहाते पौधे के बालियों की
सुस्वच्छ अन्न का निर्माता है
जय भारत , जय भारती
सिवा मुझे नहीं कुछ आता है

मानवता की मूर्ति यहाँ है
प्रथम गणतंत्र की कृति यहाँ है
देश सेवा की रीति यहाँ है
अनेकता में एकता यहाँ है
लोकतंत्र यहाँ का
सत्य अहिंसा में भाग्य अजमाता है
जय भारत , जय भारती
सिवा मुझे नहीं कुछ आता है ।
स्वरचित
मधुर मिलन नायक
नारायणपुर , भागलपुर