दोनों ही बेज़ुबां निकले
!! दोनों ही बेज़ुबां निकले !!
लोगों को जीतने की ज़िद है
हम अपनों से खेलने में नादाँ निकले।
सब कुछ कह दिया उनसे बातों ही बातों में,
पर अभी तक मेरे दिल की अरमां ना निकले।
हज़ार खूबियाँ कम पड़ जाती हैं
एक ग़लतफ़हमी ही काफ़ी है रिश्ता तोड़ने के लिए।
जो मुसलसल रहा है रिश्ता हमारा हरदम
हम हवा ना देंगे उसको मुँह मोड़ने के लिए।
बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं वो
उनसे मिलने की जल्दी में
हम घर से जलती धूप में नंगे पाँव निकले।
जिसे हम उम्र भर सोचते रहे गैरों की तरह
मुझे क्या मालूम वो मेरे दिल के मेहमां निकले।
हम अपना सब कुछ छोड़कर उनके साथ रहे
उनको लगा कि हम किसी काम के नही है
मगर जब पीछे मुड़कर देखा तो काम तमाम निकले।
वो कहते हैं कि मुझे उनसे अब मोहब्बत नही है
कैसे कहूँ- कि मेरे इश्क़ के दो ही गवाह थे
एक मेरी ख़ामोशी, दूसरी किताबें, मगर दोनों ही बेज़ुबां निकले।