मनोरंजन कुमार तिवारी की कविता “बनेगा कुछ ना कुछ…….तुम देख लेना”
बनेगा कुछ ना कुछ…….तुम देख लेना
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जीवन के परिधि के,
अंदर-बाहर, यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ,
बिखरे हुए दर्द के टुकड़ों को,
शिद्धत से जीने दो मन को,
इसे बहलाओ मत, झुठलाओ मत,
भूलने मत दो अपनी स्मृति से,
एकनिष्ठ होकर एकाकार होने दो,
बनेगा कुछ ना कुछ,
तुम देख लेना। ………
ताप से खौलते पानी को,
भाप बनने दो,
बौद्धिकता,मुल्य और प्रतिमानों के,
बौछार मत फेंको,
संघनित होने दो इस भाप को,
बूंदों में ढलने दो,
बनेगा कुछ ना कुछ,
तुम देख लेना।
तिमिर को गहराने दो,
झूठे दिलासा के लौ जला कर,
टुकड़ों में मत बांटों इसे,
घबराओ मत,
समझौतों के आगे हो ना नत,
अपमान, पीड़ा, पश्चाताप,
विपत्ति, विकृति और संताप,
को सह लेने दो मन को,
छन-छन कर बहने दो आँखों से,
बनेगा कुछ ना कुछ,
तुम देख लेना……
उलझनों में उलझ जाना मत,
भावनाओं में बहक जाना मत,
बहने दो अंधड़, तूफ़ान,
उखड़ने दो जो उखड सकता है,
बिखर जाने दो जो बिखर सकता है,
जो बचा रह जाएगा आखिर,
वही बस तुम्हारा है,
उसी से बनेगा आकार तुम्हारा,
तुम देख लेना….