मनोरंजन कुमार तिवारी की कविता “मैं और तुम”
मैं और तुम
हर बार हम बनने को मिलते है,
हमारे अहम से टकरा कर,
हम चकनाचूर हो जाता है,
और इसके अणु पुरे ब्रह्मांड में बिखर जाते है,
एक लम्बे समयांतराल के बाद,
फिर से एक जगह जुड़ने लिए,
मैं और तुम मिलते है,
मगर एक-दूसरे को मिटाने लिए,
और ये सही भी है,
क्योंकि जब तक मैं और तुम ख़त्म नहीं हो जायेंगे,
हम आकार नहीं ले सकेगा,
मैं और तुम बात नहीं करते एक -दूसरे से,
मगर हम बात करना चाहते है,
मैं तुमसे बात इसलिए नहीं करता की,
मैं जनता हूँ, मेरी आवाज़ नहीं पहुँच पाएगी तुम तक,
तुम, मुझसे बात इसलिए नहीं करती की,
तुम चाहती हो की मैं झुकूँ तुम्हारे ज़िद के आगे,
मैं और तुम एक दूसरे से प्यार नहीं करते,
बल्कि नफ़रत करते है इतना,
जितना और कोई नहीं करता,
ना मुझसे, ना तुमसे,
पर फिर भी हम मिलते है,
ताकि एक-दूसरे को जला कर राख कर सकें,
पर अफ़सोस की ऐसा हो नहीं पाता पूरी तरह,
मैं और तुम फिर से बिखर जाते है टुकड़ों में
इसलिए हम नहीं बन पाते। @मनोरंजन