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अमूल्य त्रिपाठी की कविता – ‘हिंदी’

भारत की आन है हिंदी,
देश का अभिमान है,हिंदी,
फ़िर क्यूँ एक दिन की मेहमान है हिन्दी.
अंग्रेज़ों की वाकपटुता में,
खो गयी अपनी शान है हिंदी,
आज अनपढ़ो की पहचान है हिन्दी।
पर वक्त अब बदल रहा है,
हिंदी में अब विमर्श, हो रहा है
तभी तो Google भी हिन्दी,
बोल रहा है .
मोबाइल में कीबोर्ड हिन्दी में दे रहा,
हिन्दी पेजों को ट्रैफिक दे रहा है.
हिंदी का परचम लहराया था,
वाजपेयी जी ने जब मान बढ़ाया था,
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को अपनाया था,
हिंदी को अंग्रेज़ी, से बेहतर बताया था,
युवाओं को भी अब,
आना होगा,
हिंदी को उसका मान दिलाना होगा।