दोहे
दोहे
अन्न वस्त्र भी चाहिये,
थोड़ी बहुत जमीन ।
समाधान खोजें सभी,
किस पर करें यकीन ।।
कृषक देश की आन है,
कृषक देश की जान।
सबको वो ही पालता,
करें कृषक का मान।।
धरती सुत की आज तुम,
सुनो इतनी पुकार।
अनुशासन की बेड़ियां,
नहीं हमें स्वीकार ।।
पास उनके समय बहुत,
व्यर्थ करें बरबाद।
चौराहे पर जाम है,
किसका करें हिसाब।।
राजनीति का शोरगुल,
छल छंदी व्यवहार।
श्वेत कबूतर उड़ गए ,
अपने पंख पसार।
डॉ भावना शुक्ल